अल्लाह तआला का बड़ा कृपा
है कि उसने मानव पर वही चीज़ अनिवार्य की जो बन्दों की क्षमता और शक्ति में हो, और
शक्ति से ज़्यादा हो तो उस को सरल और आसान कर दिया ताकि इन्सान उस कार्य और इबादत
को कर सके और मानव के शक्ति से अधिक है और इन्सान उसे कार्य के करने की क्षमता
नहीं रखता तो अल्लाह तआला ने उस इबादत और कार्य को क्षमा कर दिया है, उसी इबादतों
में नमाज़ एक बहुत ही महत्वपूर्ण इबादत है जो एक बालिग़, बुद्धि वाला, शक्ति शाली
मुसलमान के लिए दिन तथा रात में पांच बार पढ़ना अनिवार्य है, जो मुसलमान शक्ति और
क्षमता होने के बावजूद नमाज नहीं पढ़ते, ऐसे मुसलमानों को गम्भीर पुर्वक विचार
करना चाहिये कि
यदि हम नमाज़ नहीं पढ़ते तो मृत्यु के बाद हमारा ठेकाना क्या होगा,?
हमें अल्लाह तआला नमाज़ न
पढ़ने के अपराध में किया सज़ा देगा,?
क्यों कि अल्लाह तआला ने
बीमार और रोगी व्यक्तियों की क्षमता के कारण उनके लिए नमाज़ को कुछ सरल और आसान कर
दिया है। जब एक रोगी और बीमार से पीडीत व्यक्ति के लिए नमाज़ माफ नहीं बल्कि उनके
लिए अल्लाह ने कुछ छुट दी है तो तन्दुरुस्त और स्वस्थ व्यक्ति से नमाज़ कैसे माफ
और क्षमा हो सकता है।
(1) बीमार व्यक्ति पर अनिवार्य है कि वह फर्ज़
नमाज़ खड़े होकर या झुक कर या दीवार या लाठी पर टेक लगाकर ज़रूरत और क्षमता के
अनुसार पढ़े।
(2) यदि खड़े होकर पढ़ने की शक्ति न हो
तो बैठ कर नमाज़ पढ़े, बेहतर है कि खड़े होने या रकूअ की जगह पलथी
मार कर नमाज़ पढ़े।
(3) यदि बैठ कर नमाज़ पढ़ने की शक्ति नहीं
हो तो दायें करवट लेट कर क़िब्ला की ओर रुख कर के पढ़े, यदि क़िब्ला की ओर रुख करना
असंभव हो तो जिस तरह संभव हो नमाज़ पढ़ ले और उसकी नमाज़ सही होगी और उसे नमाज़
दोहराना नही होगा।
(4) यदि दायें करवट लेट कर पढ़ने की
शक्ति न हो तो चित लेट कर क़िब्ला की ओर दोनों पैर करके पढ़े और उत्तम है कि अपने
सर को थोड़ा क़िब्ला की ओर करे यदि शक्ति न हो तो जिस तरह संभव हो नमाज़ पढ़ ले और
उसे नमाज़ दोहराना नही है।
(5) यदि बीमार व्यक्ति रूकूअ या सज्दा
करने की क्षमता नहीं रखता तो अपने सर के इशारे से नमाज़ पढ़ेगा और सज्दा रूकूअ से
कम करेगा।
(6) यदि बीमार व्यक्ति अपने सर से इशारे
करने की क्षमता नहीं रखता तो अपने हृदय से नमाज़ पढ़ेगा और तक्बीर कहेगा और दुआ
पढ़ेगा और क़ियाम, रूकूअ, सज्दा और बैठने की नियत करेगा और प्रत्येक दुआ उस के
स्थान पर पढ़ेगा। जो जैसा नियत करेगा उसी के अनुसार उस को बदला (पुण्य) मिलेगा।
(7) यदि बीमार व्यक्ति के लिए हर नमाज़
को उस के असली समय में पढ़ना कठिन हो तो ज़ोहर और अस्र को एक साथ पढ़ेगा और मग़रिब
तथा ईशा को एक साथ पढ़ेगा या दोनों को प्राथ्मिक समय में पढ़ेगा या विलंभ करके
पढ़ेगा, मगर फज्र को दुसरे किसी नमाज़ के साथ एकठ्ठा करके नही पढ़ेगा।
(8) बीमार व्यक्ति नमाज़ क़स़्र कर के
नही पढ़ेगा यदि बीमार व्यक्ति यात्री हो तो क़स़्र कर सकता है।
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