बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

हज की फज़ीलत




हज वह महत्वपूर्ण इबादत है जो इस्लाम का पांचवाँ स्तम्भ है, जिस के बिना किसी मानव का इस्लाम पूर्ण नहीं हो सकता जिस की फर्ज़ीयत के प्रति अल्लाह ताआला ने पवित्र कुरआन में फरमाया है,
" ولله على الناس حج البيت من استطاع إليه سبيلا ومن كفر فإن الله غني عن الكافرين" ( آل عمران:97 )
" और अल्लाह का लोगों पर अधिकार है कि जो लोग अल्लाह के घर काबा जाने आने की क्षमता रखते हैं, तो वह हज के लिए काबा का यात्रा करें और जो इन्कार करेगा तो अल्लाह सारे संसार वालों से बेनयाज़ है।" ( सूरः आले-इमरान,97)
इसी तरह रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया,
" يا أيها الناس قد فرض الله عليكم الحج فحجوا, فقال رجل أكل عام ؟ يا رسول الله! فسكت. فقالها ثلاثا فقال: لو قلت نعم لوجبت ولما استطعم" ( رواه مسلم)
" ऐ लोगो, अल्लाह तआला ने तुम्हारे ऊपर हज फर्ज़ (अनिवार्य) किया है, तो तुम लोग हज करो, तो एक आदमी ने कहा, ऐ अल्लाह  के रसूल! क्या प्रत्येक वर्ष ? तो अल्लाह के सन्देष्टा खामूश हो गये फिर कुछ समय के बाद फरमया, यदि मैं " हाँ " कहता तो अनिवार्य हो जाता और तुम लोग इस की क्षमता नहीं रखते, ( सही मुस्लिम )

किसी इन्सान पर हज के फर्ज़ होने के लिए उन में पांच शर्तो का पाया जाना ज़रूरी है,
(1) मुस्लिमः हज उसी मानव पर अनिवार्य होता है जो मुस्लिमान होता है, और मुस्लिम होने के बाद हज करता है तो उस का यह हज उस के लिए काफी होगा यदि किसी ने इस्लाम स्वीकार करने से पहले हज किया तो इस्लाम स्वीकार करने उसे बाद दो बारा हज करना पड़ेगा।
(2)  बुद्धि वाला होनाः अल्लाह तआला ने धर्म के आदेश को मानना बुद्धि वालों पर अनिवार्य किया है जो मानव पागल है, तो ऐसे व्यक्तियों पर दीन के बातों का पालन करना अनिवार्य नहीं है, जैसा कि कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया,
عن عَائِشَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: " رُفِعَ الْقَلَمُ عَنْ ثَلَاثَةٍ: عَنِ النَّائِمِ حَتَّى يَسْتَيْقِظَ، وَعَنِ المُبْتَلَى حَتَّى يَبْرَأَ، وَعَنِ الصَّبِيِّ حَتَّى يَكْبُرَ" )سنن أبي داؤد-4/139 وصححه الشيخ الألباني)
आईशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) से से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " तीन व्यक्तियों को अल्लाह तआला ने क्षमा किया है। नीन्द से सोनेवाले यहां तक कि वह निन्द से जाग जाए, और पागल यहां तक कि वह बुद्धि वाला हो जाए और बच्चों से यहां तक कि वह बालिग हो जाए, (सुनन अबी दाऊद-4/139- अल्लामा अलबानी ने सही कहा है)

(3)  बालिग होनाः अल्लाह तआला ने धर्म के आदेश को मानना बालिग पुरूषों तथा महिलओं पर अनिवार्य किया है, कोई भी बालक या बालिका दीन के आदेश तथा आज्ञा पर अमल कर सकता है परन्तु बालिग होने के बाद दीन के आदेश पर अमल करना अनिवार्य हो जाता है यदि बालिग होने के बाद दीन के आज्ञा अनुसार जीवन नहीं बिताता तो वह पापी और गुनह्गार होगा जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने  स्पष्ट किया कि बच्चों पर धर्म के आज्ञा का पालन अनिवार्य नहीं है।
عَنْ عَائِشَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ: "رُفِعَ الْقَلَمُ عَنْ ثَلَاثَةٍ: عَنِ النَّائِمِ حَتَّى يَسْتَيْقِظَ، وَعَنِ الصَّغِيرِ حَتَّى يَكْبَرَ، وَعَنِ الْمَجْنُونِ حَتَّى يَعْقِلَ، (سنن ابن ماجة 1/658 وصححه الشيخ الألباني)

आईशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) से से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " तीन व्यक्तियों को अल्लाह तआला ने क्षमा किया है। नीन्द से सोनेवालों से यहां तक कि वह निन्द से उठ जाए, और बच्चों से यहां तक कि वह बालिग हो जाए, और पागल से यहां तक कि वह बुद्धि वाला हो जाए, (सुनन इब्नि माजा-4/139- अल्लामा अलबानी ने सही कहा है)
(4) आजाद होनाः  इसी तरह गुलाम पर हज फर्ज़ नही है,
(5) क्षमता होनाः किसी भी मुस्लिम की आर्थिक क्षमता के अनुसार उस पर हज फर्ज़ होता है जैसा अल्लाह तआला ने स्वयं ही कुरआन मजीद में कहा है।
" ولله على الناس حج البيت من استطاع إليه سبيلا"  ( آل عمران:97 )
" और अल्लाह का लोगों पर अधिकार है कि जो लोग अल्लाह के घर काबा जाने आने की क्षमता रखते हैं, तो वह हज के लिए काबा का यात्रा करें," (सूरः आले-इमरान,97)
क्षमता का अर्थ यह कि मानव के पास आर्थिक क्षमता हो और साथ साथ शारीरिक क्षमता भी हो यदि किसी के पास शारीरिक क्षमता है परन्तु आर्थिक क्षमता उप्लब्ध नहीं तो उस पर हज अनिवार्य नहीं और किसी के पास आर्थिक क्षमता उपलब्ध है परन्तु बुढ़ापे या अधिक बीमारी के कारण शारीरिक क्षमता नहीं तो अपनी ओर से किसी दुसरे मानव को जो अपनी ओर से हज कर चुका हो पूरा खर्च दे कर हज के लिए उसे भेजा जासकता है या उस शारीरिक क्षमताहीन मानव की ओर से उस के रिश्तेदार जो अपनी ओर से हज कर चुके हैं, हज भी कर सकता है,
हज की क्षमता होने की स्थिति में हज करने के लिए जल्द जानाः
जो लोग हज की क्षमता रखते हैं और हज का इरादा भी रखते हैं तो ऐसे लोगों को हज करने की ओर जलदी करना चाहिये, क्योंकि न जाने कब कौन सा नसीब उस के रासते में रोड़े अटका दे और हज जैसी महत्वपूर्ण इबादत से वंचित हो जाए। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने लोगों को जलदी हज करने पर उत्साहित करते हुए फरमाया।
 وعن بن عباس رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم :" من اراد الحج فليتعجل, فإنه قد يمرض وقد تضل الضالة وتعرض الحاجة " (مسند أحمد وحسنه الشيخ الألباني في الجامع الصغير وزيادته)
अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ी अल्लाह अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " जो हज करने का इच्छा रखे उसे चाहिये कि जलदी से हज कर ले, इस लिए कि वह बीमार हो सकता है, और उस के हज करने की क्षमता खत्म हो सकती है, और उसे कोई बहुत बड़ी आवश्यक्ता पड़ सकती है।" (मुस्नद अहमद- सही अल-जामिए- शैख अल-बानी )
हज की महत्वपूर्णता और फज़ीलतः अल्लाह तआला ने हज करने वालों के लिए बहुत पुण्य का वादा किया है, उन में से कुछ महत्वपूर्ण लाभ इस प्रकार हैं।
(1) हज करने वालों के गुनाहों और पापों को अल्लाह तअला माफ कर देता है, उस के गुनाहों को समाप्त कर देता है जैसा कि हदीस में वर्णन है कि जब अम्र बिन आस (रज़ी अल्लाहु अन्हु) कहते जब अल्लाह ने मेरे हृदय में इस्लाम का प्रेम डाल दिया तो मैं रसूलुल्लाह के पास आया और कहा कि आप हाथ बढाये, मैं इस्लाम स्वीकार करने का वचन देता हूँ तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया परन्तु मैं ने अपना हाथ खींच लिया तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, ऐ अम्र ! तुम्हें क्या हुआ ? तो मैं ने उत्तर दिया कि ऐ अल्लाह के रसूल, आप वचन दीजिये कि अल्लाह मेरे पिछले गुनाहों को क्षमा कर दे, तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, ऐ अम्र, क्या तुम्हें ज्ञान नहीं कि इस्लाम अपने से पूर्व पापों को मिटा देता है, और हिज्रत अपने से पूर्व गुनाहों को खत्म कर देता है और हज अपने से पहले पापों को मिटा देता है। (सही मुस्लिम )
(2)  हज को जाने वाला अल्लाह की हिफाज़त में रहता है, जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया,
عن أبي هريرة رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال : " ثَلاَثَةٌ في ضَمَانِ الله عزَّ وجلَّ: رَجُلٌ خَرَجَ إلى مَسْجِدٍ من مَسَاجِدِ الله عزَّ وجلَّ، ورَجُلٌ خَرَجَ غَازِياً في سبيل الله تعالى ، ورَجُلٌ خَرَجَ حَاجًّا " ( رواه أبو نعيم-  صحيح الجامع رقم : 3051)
अबू हुरौरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " तीन व्यक्ति अल्लाह तआला की सुरक्षा में रहते हैं, एक व्यक्ति जो अल्लाह के घरों में से किसी घर की ओर जाता है, और एक व्यक्ति जो अल्लाह के रास्ते में जिहाद के लिए निकलता है, और एक व्यक्ति जो हज करने जाता है।" (अबू नुऐम और सही अल-जामिअ, हदीस संख्याः 3051)
(3)  हज पर जाने वाले अल्लाह के मेहमान होते हैं, अल्लाह उनकी दुआऐं स्वीकार करते हैं। जैसा कि अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी अल्लाह अन्हुमा) रिवायत करते हैं,
عن ‏ابن عمر رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم ‏ ‏قال : " ‏الْغَازِي فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَالْحَاجُّ وَالْمُعْتَمِرُ وَفْدُ اللَّهِ دَعَاهُمْ فَأجَابُوهُ وَسَألُوهُ فَأعْطَاهُمْ  ( صحيح سنن ابن ماجه رقم : 2339)
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " अल्लाह तआला के रास्ते में जिहाद करने वाला और हज करने वाला और उमरा करने वाला अल्लाह का मेहमान होता है, अल्लाह ने उन्हें बुलाया तो वह लोग आये, और अल्लाह से दुआ करते हैं तो अल्लाह उनकी दुआ स्वीकार करता है।" ( सही सुनन इब्नि माजा, हदीस संख्याः 2339)
(4)  अल्लाह पर ईमान और उसके रसूल पर ईमान लाने के बाद और अल्लाह के रासते में जिहाद के बाद सब से अच्छा कर्म हज करना है जैसा कि हदीस शरीफ में आया है,
عن أبي هريرة رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم سئل أي العمل أفضل ؟ فقال:" ايمان بالله ورسوله, ثم قيل ماذا؟ قال: الجهاد في سبيل الله , قيل ثم ماذا؟ قال حج مبرور " (رواه البخاري ومسلم)
अबू हुरौरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से प्रश्न किया गया कि सब से उत्तम कर्म क्या है ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाना, फिर प्रश्न किया गया कि उस के बाद कौन सा कर्म सब से उत्तम है ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, अल्लाह के रासते में जिहाद, फिर प्रश्न किया गया कि उस के बाद कौन सा कर्म सब से उत्तम है ?, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, हज मब्रूर " (सही बुखारी,1/14 और सही मुस्लिम)
(5) यदि कोई हज करने वाले व्यक्ति का हज के यात्रा के बीच देहांत हो गया तो उस के लिए क़ियामत तक हज करने वाले का सवाब और पुण्य लिख दिया जाता है।
عن أبي هريرة رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم أنه قال : " من خرج حاجا فمات كتب له أجر الحاج إلى يوم القيامة ومن خرج معتمرا فمات كتب له أجر المعتمر إلى يوم القيامة " ( صحيح الترغيب والترهيب للشيخ الألباني)
अबू हुरौरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, "  जो व्यक्ति हज के लिए निकला और रासते में उसका देहांत हो गया तो क़ियामत तक हज करने वाले का सवाब लिख दिया जाता है, और जो व्यक्ति उमरा के लिए निकला और रासते में उसका देहांत हो गया तो क़ियामत तक उमरा करने वाले का सवाब लिख दिया जाता है, ( सही तरगीब व तरहीब शैख अलबानी)
(6)  हज मब्रूर का बदला जन्नत हैः हज मबरूर उस हज को कहा जाता है जिस में हाजी अल्लाह की नाफरमानी नही किया, किसी दुसरे हाजी को तनिक तक्लिफ नहीं दिया, रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत के अनुसार हज किया,  तब वह अल्लाह के पास स्वकारित होगा और जिस का हज अल्लाह के पास स्वकारित होगा, वह जन्नत में दाखिल होगा, जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमया,
وعن أبي هريرة رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم " الحج المبرور ليس له جزاء الا الجنة "  (متفق عليه)
अबू हुरौरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " अल्लाह के पास स्वीकारित हज का बदला केवल जन्नत है। )सही बुखारी और सही मुस्लिम)

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