निःसंदेह यह संसार एक परिक्षास्थल है। इस में जो कर्म हम करेंगे, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, उसी के अनुसार हमें आगे के दोनों जीवन में बद्ला प्राप्त होगा, यदि हमने अपनी जीवन को अच्छे कार्यों में लगाए, लोगों के भलाइ के काम किये, लोगों को उनका अधिकार दिये, अल्लाह की उपासना और पूजा सही तरीके से किये तो हमें अच्छा परिणाम मिलेगा, यदि हमने अपनी जीवन को गलत कामों में लगाए, दुसरे लोगों के साथ अत्याचार किया, और एक अल्लाह को छोड़कर अन्गिनित भगवानो के सामने अपना माथा झुकाया तो हमारा मालिक हमें डंडित करेगा, अल्लाह हमारे अपराधों के बराबर हमें बदला देगा,
परलौकिक जीवन मृत्यु के बाद आरंभ हो जाता है जिस का पहला स्थान कब्र है जिस में अपने कर्म के अनुसार सज़ा या पुरस्कार मिलेगा, फिर प्रत्येक मानव जीवित होगा जो परलौकिक जीवन का दुसरा स्थान है, जहाँ अल्लाह हर इन्सान से उसके कर्मों के बारे में प्रश्न करेगा, इसके बाद जन्नत (स्वर्ग) या जह़न्नम( नर्क) में डालेगा, यही जीवन ही वास्तविक जीवन और हमेशा रहने वाली जीवन है।
मृत्यु एक खुली वास्तविक्ता है, हर जीवधारी को एक दिन यह संसार छोड़ कर जाना है, इस लिए यदि वह परलौकिक जीवन में परसन्न रहना चाहता है, परलौकिक जीवन में सफल्ता प्राप्त करना चाहता है , जन्नत (स्वर्ग) में परवेश करना चाहता है तो वह इस धर्ती पर अच्छा काम करे, लोगों के साथ उत्तम व्यहवार करे, लोगों को उस का अधिकार दे, लोगों के लिए वही चीज़ पसन्द करे जो अपने लिए पसन्द करता है। पुण्य के कार्यों में आगे आगे रहे, जो धन-दौलत अल्लाह ने जो उसे प्रदान किया है, उस में से कुच्छ ग़रीबों, मिस्कीनों और ज़रूरतमन्द व्यक्तियों को अल्लाह को खूश करने के लिए दान करे, अल्लाह की इबादत अच्छे ढ़ंग से करें, अल्लाह की इबादत में किसी को उसका भागीदार न बनाए, अल्लाह से अपने पापों, अत्याचारों की क्षमा मांगे, क्यों कि अल्लाह तआला ने खुले शब्दों में मानव को चेतावनी दे दी है कि जो अच्छा काम करना है, इसी दुनिया में करलो, मृत्यु के बाद दोबारा तुम्हे मुहलत मिलने वाली नहीं है, अल्लाह तआला का फरमान है
" يا أيها الذين آمنوا لا تلهكم أموالكم ولا أولادكم عن ذكر الله ومن يفعل ذلك فأولئك هم الخاسرون – وأنفقوا من ما رزقناكم من قبل أن ياتي أحدكم الموت فيقول رب لولا أخرتني إلى أجل قريب فأصدق وأكن من الصادقين- ولن يؤخر الله نفسا إذا جاء أجلها والله خبير بما تعلمون "- المنافقون: 9-11)
आयत का अर्थः" ऐ लोगों जो ईमान लाए हो, तुम्हारी सम्पत्ती और तुम्हारी संतान तुम को अल्लाह की याद से ग़ाफिल न कर दे और जो ऐसा करेंगें, वह घाटे में रहने वाले लोग होंगे, जो जीविका हम्ने तुमको दी है उस में से खर्च करो, इस से पहले कि तुम में से किसी के मौत का समय आजाऐ, और उस समय वह कहे कि ऐ मेरे रब, क्यों न तूने मुझे थोड़ी सी मुह्लत और दे दी कि मैं दान देता और अच्छे लोगों में शामिल हो जाता, हालाकि जब किसी के कर्म करने की मुह्लत के समाप्त होने का समय आजाता है तो अल्लाह तआला किसी व्यक्ती को हरगिज़ और ज़्यादा मुह्लत नही देता है और जो कुच्छ तुम करते हो अल्लाह को उसकी खबर है।"
जो व्यक्ती भी इस धर्ती पर जन्म लिया है, उसे मरना है, उस का देहांत निश्चित है। अल्लाह तआना ने पवित्र कुरआन में सम्पूर्ण वस्तु के नष्ठ होने की सूचना दे दी है।
كل من عليها فان - ويبقى وجه ربك ذوالجلال والاكرام - سورة الرحمن: 26,27
इस आयत का अर्थः हर चीज़ जो इस जमीन में है नाशवान है, और सिर्फ तेरे रब का प्रतापवान एवं उदार स्वरूप ही बाकी रहने वाला है।" (सूरः अर-रहमानः26,27)
जब हर मानव को एक दिन यह संसार छोड़ कर जाना है तो वह अपने साथ किया ले कर जाएगा। खाली हाथ इस धरती पर आया था और खाली हाथ इस धरती से जाऐगा, तो क्यों नही वह काम किया जाए। जो उसे अमर बना दे। जो मृत्यु के बाद उस को लाभ पहुंचाए। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, " जब इन्सान का निधन हो जाता है तो उस के कर्म करने का समय और उसका पुण्य समाप्त हो जाता है सिवाए तीन कर्म के जिस का लाभ उसे मिलता रहता है। हमैशा रहने वाला दान, ऐसा ज्ञान जिस से लोग लाभ उठाते रहेंगे, और नेक संतान जो माता-पिता के लिए अल्लाह से दुआ करते रहते हैं। ( सुनन तिर्मिज़ी)
जीवन बहुमूल्य है जिस के सही प्रयोग से ही हमें सफलता प्राप्त होगी और हम कभी भी दुसरों के लिए गढा न खोदें, संभावना है कि कहीं हम ही न उस गढे में गिर जाए।
बुधवार, 22 जून 2011
बुधवार, 8 जून 2011
ईमान का छटा स्तम्भः भाग्य , क़िस्मत , नसीब की अच्छाई या बुराई पर विश्वास तथा ईमान है।
भाग्य, क़िस्मत , नसीब का अर्थात यह कि अल्लाह ने अपने पुर्व कालिन ज्ञान और अपनी हिक्मत के बिना पर इस श्रेष्टी की रचना की है, और इन सब को लौट कर अल्लाह की ओर जाना है, अल्लाह तआला ही सम्पूर्ण वस्तु का स्वामी है और सब पर उस की शक्ति है, जो चाहता है करता है। उसने अपने ज्ञान से सर्व मनुष्य के भाग्य में अच्छा या बुरा लिख दिया है अब वैसा ही होगा जैसा कि अल्लाह तआला ने लिख दिया है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है,
ما اصاب من مصيبة في الأرض ولا في السماء ولا في أنفسكم إلا في كتاب من قبل أن نبرأها- إن ذلك على الله يسير – لئلا تاسوأ على ما فاتكم ولا تفرحوا بما أتاكم - الحديد:32
इस आयत का अर्थातः " कोइ भी मुसीबत, संकट, परिशानी एसी नही है जो धरती में या तुम्हारे ऊपर उतरती है और हम ने उस को पैदा करने से पहले एक किताब में लिख न रखा हो, एसा करना अल्लाह के लिए बहुत ही सरल कार्य है, ताकि जो कुछ भी हाणी तुम को पहुंचे उस पर तुम्हारा दिल छोटा न हो, और जो कुछ भी लाभ तुम को पहुंचे उस पर तुम फूल न जाओ " ( सुरः अल- हदीदः32)
भाग्य के चार दर्जे हैं, इन चारों पर ईमान लाना जरूरी है,
(1) अल्लाह के अज्ली इल्म पर ईमान लाना जो कि प्रति वस्तु को सम्मिलित और घेरे हुए है।
ألم تعلم أن الله يعلم ما في السموات و الأرض - الحج:70
" क्या तुम जानते नही कि आकाश और धरती की हर चीज़ अल्लाह के ज्ञान में है, सब कुछ को एक किताब में अंकित किया है, अल्लाह के लिए यह बहुत सरल है " ( सूरः अल-हज्जः70)
(2) अल्लाह ने अपने इल्म की बिना जो नसीब में लिख दिया है, उस पर ईमान लाया जाए। अल्लाह तआला का कथन है,
ما فرطنا في الكتاب من شيئ - الأنعام: 38
अर्थः " हम्ने भाग्य के लेख में कोइ कमी नहीं छोड़ी है। " (सूरः अल-अन्आमः38)
रसूल स0 अ0 स0 ने फरमाया
" كتب الله مقادير الخلائق قبل أن يخلق السموات و الأرض بخمسين ألف سنة "
अर्थः " अल्लाह तआला ने आसमानों और धरती के रचने से पचास हज़ार वर्ष पुर्व ही सर्व मानव के भाग्य को लिख दिया है। "
(3) हर चीज़ अल्लाह की इच्छा और चाहत से होती है। बिना उस के अनुमति के एक पत्ता भी नही हिल सकता, इस बात पर कठोर विश्वास रखा जाए। अल्लाह तआला फरमाता है।
و ما تشاؤون إلا أن يشاء الله رب العالمين - التكوير: 29
आयत का अर्थः " और तुम्हारे चाहने से कुछ नही होता जब तक सारे संसार का स्वामी अल्लाह न चाहे " सूरः अत्तक्वीरः 29)
(4) अल्लाह ही सम्पूर्ण वस्तु का उत्तपादक तथा रचनाकर्ता है। उसने प्रति वस्तु को मनुष्य के प्रयोग के लिए पैदा किया और मनुष्य को अल्लाह की इबादत के लिए पैदा किया है। अल्लाह तआला का कथन है।
الله خالق كل شيئ وهو على كل شيئ وكيل - الزمر:62
आयत का अर्थः " अल्लाह हर चीज़ का पैदा करने वाला है और वही हर चीज़ पर निगह्बान है। " सूरः अज़्ज़ुमरः 62)
भाग्य तीन प्रकार के हैं।
(1) वह भाग्य जिस के खत्म करने या लौटाने की शक्ति बन्दो को नही है। उदाहरण के तौर पर आकाश तथा धरती में आने वाले संकट, भूकंभ, वर्षा का होना, जीविका का कम या अधिक प्राप्त होना, संतान का जन्म, मानव को रोग या स्वस्थ में लिप्त होना तथा मानव का देहांत पाना, जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
" كل نفس ذائقة الموت "
इस आयत का अर्थः " प्रति जीवधारी को मृत्यु का स्वाद चखना है। "
" إن ربك يبسط الرزق لمن يشاء ويقدر "
इस आयत का अर्थः " निःसंदेह आप का पालन पोशक जिस के लिए चाहे रोज़ी अधिक करता है, और जिस के लिए चाहे रोज़ी कम करता है। "
(2) इस भाग्य को समाप्त करना मानव की शक्ति से बाहर है। परन्तु मानव इस की मार्गदर्शन कर सकता है और इस की तेजी को कम करने की शक्ति है, उदाहरण के तौर पर , इन्सानी भावना, मेल-जोल, वातावरण, और पुर्वज से प्राप्त परंपरा और रीति-रेवाज आदि.
भावनाओं और मानव अवश्यक्ता को बिल्कुल समाप्त करने का आज्ञा हमें नही दिया गया है और नही यह हमारी शक्ति में है। बल्कि इन चीज़ों का अच्छा मार्गदर्शण करना ही हमारे लिए मुक्ति का कारण बनेगा और अनुमित वस्तु का प्रयोग हमारे लिए लाभदायक होगा। जैसा कि अल्लाह तआला के नबी मोहम्मद स0 अ0 स0 ने फरमाया तुम अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाना भी पुण्य का कार्य है।
मानव लोगों के साथ मैल-जौल कर रहना पसन्द करता है। अल्लाह तआला ने भी इसी का आज्ञा दिया है कि हम अच्छे , सच्चे लोगों को सोथ रहें , मूल आदर्श के मालिक व्यक्ति को साथी बनाया जाए और बुरे लोग, करपटाचारी लोगों से दूर तथा अलग थलग रहा जाऐ, नही तो तुम भी गलत समझे जाओगो,
" يا أيها الذين آمنوا اتقوا الله وكونوا مع الصادقين "
" ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो, और सच्चे लोगों के साथ रहो "
तो इन चीजों के उपस्थित होने पर बदला नही है बल्कि इन चीजों के अच्छे या बुरे प्रयोग पर बदला देगा। जो जैसा कर्म करेगा उसी प्रकार उसे उपकार या सज़ा दिया जाऐगा।
(3) वह कार्य जिस के करने या न करने का मानव को इख्तियार और शक्ति दी गई है। चाहे तो वह कार्य करे और चाहे तो नहीं करे, इसी भाग्य पर मानव से प्रश्न किया जाएगा, अल्लाह की आज्ञाकारी पर पुरस्कार मिलेगा और अवज्ञाकारी पर डंडित किया जाएगा। अल्लाह तआला अपने आज्ञा के अनुसार जीवन बिताने के लिए मानव के बीच अपने ग्रन्थों और रसूलों को भेजा और इन रसूलों और पुष्तकों के माध्यम से आदेश दिया कि मानव इन रसूलों और पुष्तकों के शिक्षा के अनुसार जीवन गुज़ारे, जो लोग इन रसूलों और पुष्तकों के शिक्षा के अनुसार जीवन गुज़ारेंगे वह स्वर्ग में प्रवेश होंगे और जो लोग इन रसूलों और पुष्तकों के शिक्षा के अवज्ञाकारी करेंगे उन्हें नरक में डालेगा। इसी भाग्य के प्रति मानव से बाज़ पुर्स किया जाएगा।
जिन लोगों ने अपराध किया ,पाप किया, परन्तु अल्लाह के साथ शिर्क न किया होगा तो आशा है कि अल्लाह चाहे तो उसे क्षमा कर देगा या चाहे तो कुछ सजा दे।
भाग्य के अच्छाई या बुराई पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) मेहनत और उपाए करते हुए अल्लाह पर विश्वास रखा जाए, क्यों कि मेहनत का फल अल्लाह की चाहत पर निर्भर करता है।
(2) हृदय को हर हाल में शान्ति प्राप्त होगी। यदि प्रयास का अच्छा परिणाम प्राप्त हुआ तो भी अल्लाह का शुक्र अदा किया जाए और यदि प्रयास का अच्छा परिणाम प्राप्त न हुआ तो भी अल्लाह के दी हुई भाग्य पर सन्तुष्टी मिलेगी।
(3) यदि मेहनत का अच्छा और उत्तम फल मिला है तो इस पर न इतराए और घमंड न करे बल्कि अल्लाह का एह्सान माने और अल्लाह का शुक्र अदा करे।
(4) किसी अप्रिय वस्तु के प्रकट होने या लक्ष्य को प्राप्त न करने पर या मेहनत का अच्छा फल न मिलने पर ग़म या परेशान न हो, बल्कि इस बात पर परसन्न हो कि यह अल्लाह का निर्णय था और अल्लाह का निर्णय हो कर ही रहेगा, इस पर सब्र करे, और अल्लाह से पुण्य की आशा रखे। तो हृदय को शान्ति मेलेगी और बहुत सारी परेशानी घुटन से मुक्ति मेलेगी।
भाग्य पर सही तरीके विश्वास न होने के कारण बहुत से नुक्सानात उठाने पड़ते है।
कुछ लोग भाग्य को सुधारने के चक्कर में जादुगरों, ठोंगी बाबाओं और ठगों के पास जा कर अपना धनदौलत नष्ठ करते हैं, कभी कभी अपनी इज़तो को दागदार करवा लेते हैं, ऐसे लोगों का सब से पहले अल्लाह पर विश्वास कम होता है, मेहनत से जी चुराते या अपने किये गये तदबीरों के प्रति सही से जाइज़ा नही लेते हैं और नुक्सान उठाते है,
सितारों पर विश्वास रखना, या हाथ देख कर भाग्य बताना , यह सब मुर्ख बनाने का काम है और अल्लाह के साथ शिर्क भी होगा और अल्लाह के साथ शिर्क ऐसा पाप है जो बिना अल्लाह से तौबा किये माफ नही होता है।
रविवार, 5 जून 2011
ईमान का पांचवा स्तम्भः आखिरत के दिन (अन्तिम दिन) पर विश्वास तथा ईमान है।
संसारिक जीवन के समाप्त होने के बाद पारलोकिक जीवन में परवेश होने पर पुख्ता और कठोर आस्था रखना ही आखिरत के दिन पर विश्वास को शामिल है। आखिरत के दिन का आरम्भ मनुष्य की मृत्यु से हो कर , क़ियामत के आने, फिर क़ब्र से उठाऐ जाने, हश्र के मैदान में जमा होने ,ह़िसाब का होना, पुल सिरात़ से गुज़रना और जन्नत या जह़न्नम में परवेश होने का नाम है।
अल्लाह तआला मख्लूक (प्रति वस्तु) को बेकार और बेमक्सद पैदा नही किया है। बल्कि एक लक्ष्य के लिए रचना किया है और मृत्यु के बाद दोबारा इसे उठाएगा और उस व्यक्ति का जैसा कर्म होगा उसी के अनुसार पुरस्कार या डंडित करेगा। आखिरत के दिन को अल्लाह ने क़ुरआन में विभिन्न नामों से ज़िक्र किया है। क़ियामत का दिन, क़ारिआ ( खड़ खड़ा देने वाली) , ह़िसाब का दिन, बद्ले का दिन, आफत और संकट, वाकिअ होने वाली, कान बह्रा कर देने वाली, छुपा लेने वाली, आदि
क़ियामत कब प्रकट होगी ?
वास्तविक्ता है कि क़ियामत के प्रकट होने का ज्ञात किसी को नही है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
" يسئلونك عن الساعة أيان مرساها- قل إنما علمها عند ربي – لا يجليها لوقتها إلا هو – ثقلت في السموات والأرض – لاتأتيكم إلا بغتة – يسئلونك كأنك حفيَ عنها – قل إنما علمها عند الله ولكن أكثر الناس لا يعلمون "( الأعراف: 187)
इस आयत का अर्थातः यह लोग आप (स0 अ0 स0) से क़यामत के बारे में प्रश्न करते हैं कि वह कब आयेगी। आप स0 अ0 स0)कह दीजिए कि इस का इल्म केवल मेरे रब के पास ही है। इस को इस के वक्त पर सिवाए अल्लाह के कोइ दूसरा ज़ाहिर नही करेगा, वह आकाशों और धरती की बहुत बड़ी ( घटना) होगी, वह तुम पर अचानक आ पड़ेगी , वह आप (स0 अ0 स0) से इस तरह प्रश्न करते हैं जैसा कि आप (स0 अ0 स0) उस की खोज कर चुके हैं। आप कह दीजिए कि उस का इल्म खास तौर से अल्लाह ही के पास है। परन्तु ज्यादातर लोग नही जानते। और प्रिय नबी स0 अ0 स0 के कथन से भी प्रामाणित है। जब जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आप स0 अ0 स0 से प्रश्न किया, क़यामत कब प्रकट होगी ? तो आप स0 अ0 स0 ने उत्तर दिया कि " इस का ज्ञान न मुझे है और न ही तुम्हें " परन्तु क़यामत प्रकट होने से पुर्व कुछ छोटी और कुछ बड़ी चिह्ना प्रकट होगी, इस के बाद ही क़यामत प्रकट होगी।
छोटी निशानियाँसामान्यता-
क़ियामत के आने से एक लम्बी अवधि पूर्व घटित होंगीं जिन में से कुछनिशानियाँ प्रकट हो चुकी हैं और निरंतर प्रकट हो रही हैं और कुछ चिह्ना अभी तक अस्तित्व में नहीं आई हैं किन्तु वे प्रकट होंगी जैसाकि प्रिय नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म ने इसकी सूचना दी हैं।
क़ियामत की छोटी चिह्ना बहुत हैं और बहुत सारी सहीह हदीसों में उनका वर्णन आया है
क़ियामत की छोटी निशानियोंमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
1- नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नबी बनाकर भेजा जाना।
2- नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का देहान्त होना।
3- बैतुल मक्दिस कीविजय।
4- फित्नों (उपद्रव) काप्रकट होनाउन्हीं में से इस्लाम के प्रारंभिक युग में उत्पन्न होने वाले फित्नेहैं, उसमान रज़ियल्लाहु अन्हु की हत्या, जमल और सिफ्फीन की लड़ाई, खवारिज का प्रकट होना, हर्रा की लड़ाई और क़ुर्आन को मख्लूक़ कहने का फित्ना।
5- नबी (ईश्दूत) होने कादावा करने वालों का प्रकट होनाउन्हीं नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) के दावेदारों में सेमुसैलमा कज़्ज़ाब" और "अस्वद अंसी" हैं।
6- हिजाज़ (मक्का और मदीनाके क्षेत्र को हिजाज़ कहा जाता है) से आग का प्रकट होना और यह आग सातवीं शताब्दीहिज्री के मध्य में वर्ष 654 हिज्री में प्रकट हुई थी और यह एक बड़ी आग थी, इस आग के निकलने के समय मौजूद तथा उसके पश्चात के उलमा ने इसका सविस्तार वर्णन किया है, इमाम नववी फरमाते हैं कि "हमारे ज़माने में वर्ष 654 हिज्री में मदीना में एक आग निकली। यह मदीना के पूरबी छोर पर हर्रा के पीछे एक बहुत बड़ी आग थी। पूरे शाम (सीरिया) और अन्य सभी नगरों में निरंतर लोगों को इसका ज्ञान हुआ तथा मदीना वालों में से जो उस समय उपस्थित थे उन्हों ने मुझे इसकी सूचना दी।"
7- अमानत का खतम होना और अमानत को नाश करने का एक रूप लोगों के मामलों की बागडोर को ऐसे अक्षम और अयोग्य लागों के हवाले कर देना है जो उसको चलाने की क्षमता और योग्यता नहीं रखते हैं।
8- ज्ञान का उठा लिया जाना और अज्ञानता का प्रकट होना और ज्ञान का उठना उलमा (ज्ञानियों) के उठाये जाने के कारण होगा, जैसाकि सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम में इसका वर्णन आया
9- व्यभिचार (ज़िनाकारी)का प्रचलन होना ।
10- सूद (व्याज) काप्रचलन होना ।
11- शराब (मदिरा) पीने कीबहुतायत।
12- बकरियों के चरानेवालों का भवनों में गर्व करना।
13- लौंडी का अपने मालिकको जननाजैसाकि सहीह बुखारी एंव मुस्लिम में यह प्रमाणित है। इस हदीस के अर्थ केबारे में विद्वानों के कई कथन हैं, हाफिज़ इब्ने हजर ने इस अर्थ को चयन किया है किबच्चों में माता-पिता की अवज्ञाकारी की बहुतायत हो जायेगी, चुनाँचि बेटा अपनी माँ से इस प्रकार व्यवहार करेगा जिस तरह लौंडी का मालिक अपनी लौंडी से अपमानजनक और गाली गलोज के साथ व्यवहार करता है।
14- झूठी गवाही की बहुतायतऔर सच्ची गवाही को छुपाना।
15- हत्या (क़त्ल) कीबाहुल्यता।
16- भूकम्पों का अधिकआना।
17- रूमियों की संख्या काअधिक होना और उनका मुसलमानों से लड़ाई करना।
18- कपड़े पहनने के उपरांतनग्न दिखने वाली महिलाओं का प्रकट होना तथा स्त्री की संख्या का अधिक होना।
19- फरात नदी से सोने केपहाड़ का प्रकट होना।
20- दरिंदों और जमादात कामनुष्यों से बात-चीत करना।
इस के सिवा भी कुछ छोटी निशानियाँहैं जो हदीसों से प्रामाणित हैं परन्तु विस्तार के डर से छोड़ दिया गया
क़ियामत की बड़ी निशानियाँ :
(1) धुँआ का प्रकट होना
(2) दज्जाल का प्रकट होना
(3) ईसा बिन मर्यम का उतरना
(4) याजूज- माजूज का नकलना
(5) तीन बार धरती का धंसना : एक बार पूरब में धंसना (6) और एक बार पच्छिम में धंसना (7) और एक बार अरब द्वीप में धंसना।
(8) सूरज का पच्छिम से निकलना।
(9) चौपाया का निकलना और लोगों से बात-चीत करना।
(10) वहआग जो लोगों को उनके मह्शर (क़ियामत के दिन एकत्र होने के स्थान) की तरफ हाँक कर लेजायेगी।
ये निशानियाँ एक के पीछे एक प्रकट होंगी, जब इन में से पहली निशानी प्रकटहोगी तो दूसरी उसके पीछे ही प्रकट होगी। इमाम मुस्लिम ने हुज़ैफाबिन उसैद अल-ग़िफारी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा कि : नबीसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे पास आये और हम आपस में बात-चीत कर रहे थेतो आपसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूछा : तुम लोग क्या बात-चीत कर रहे हो ? लोगों ने कहा :हम क़ियामत का स्मरण कर रहे हैं
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : क़ियामतनहीं आयेगी यहाँ तक कि तुम उस से पहले दस निशानियाँ देख लो चुनाँचि आप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम ने बताया कि : धुँआ, दज्जाल, चौपाया, सूरज का पच्छिम से निकलना, ईसा बिन मरियम का उतरना, याजूज माजूज, तीन बार धरती का धंसना : एक बार पूरबमें धंसना और एक बार पच्छिम में धंसना और एक बार अरब द्वीप में धंसना और अंतिमनिशानी वह आग होगी जो यमन से निकलेगी और लोगों को उनके मह्शर (क़ियामत के दिन एकत्रहोने के स्थान) की तरफ खदेड़ कर ले जाये गी।" इन निशानियों के क्रम (तरतीब) के बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। सऊदी अरब के एक महान विद्वान मुहम्मद बिन साले अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि, क्या क़ियामत की बड़ीनिशानियाँ क्रमानुसार प्रकट होंगी ? तो उन्हों ने जवाब दिया! क़ियामत की बड़ी निशानियाँ कुछ तो क्रमबद्ध हैं और ज्ञात हैं और कुछ क्रमबद्ध नहीं हैं और उनके क्रम का कोई ज्ञान नहीं है जो निशानियाँ क्रमबद्ध हैं उनमें से ईसा बिन मर्यम का उतरना याजूज माजूज का निकलना और दज्जाल है। क्योंकि (पहले) दज्जाल भेजा जायेगा फिर ईसा बिन मर्यम उतरेंगे और उसे क़त्ल करेंगे फिर याजूज माजूज निकलेंगे।
क़ियामत की यह ब़ड़ी-बड़ी निशानियाँ जब प्रकट होंगी तो क़ियामत निकट आ चुकी होगी और अल्लाह तआला ने क़ियामत कीकुछ निशानियाँ निर्धारित कर दी हैं क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण घटना है जिसके घटित होने की निकटता पर चेतावनी देने की लोगों को आवश्यकता है।"
फिर धरती पर एक भी अच्छा मनुष्य नही रहेगा तो अल्लाह तआला के आज्ञानुसार फरिश्ता इस्राफील अलैहिस्सलाम सूर (नरसिंगा) फुंकेंगे तो क़ियामत प्रकट होगी और सम्पूर्ण वस्तु नाश हो जाऐगी , खतम हो जाऐगी जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
इस आयत का अर्थातः और उस दिन सूर (नरसिंघा) फूंका जाएगा और वह सब मर कर गिर जाऐंगे। जो आकाशों और धरती में है। सिवाए उनके जिन्हें अल्लाह जीवित रखना चाहे, फिर दुसरा सूर (नरसिंघा) फूंका जाएगा और अचानक सब उठ कर देखने लगेंगे। धरती अपने रब के प्रकाश से चमक उठेगी , कर्म पत्रिका ला कर रख दी जाएगी, नबियों और सारे गवाहों को उपस्थित कर दीया जाएगा, लोगों के बीच ठीक ठीक हक के साथ न्याय किया जाएगा, उन पर कण्य भर अत्याचार न होगा, प्रत्येक जीव को जो भी उस ने कर्म किया था उसका पुरा पुरा बदला दिया जाएगा, लोग जो कुछ भी करते हैं अल्लाह उसको खूब जानता है।
आखिरत के दिन( अन्तिम दिन) पर विश्वास तथा ईमान रखने से हमें कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह की आज्ञाकारी की रूची का बढ़ना, क़ियामत के दिन के बदले के लिए ज्यादा से ज्यादा अच्छे काम करने के लिए उत्सव उत्पन होगा, इसी तरह अल्लाह के अज़ाब से भय उत्पन होगा, और लोग बुराइ और खलत कार्य से दूर होना,
(2) दुनिया की नेमतें जिन मुस्लिम को प्राप्त न होइ है और अल्लाह की इबादत करते हुए वह परसन्न है तो उस के लिए हार्दिक संतुष्टी है कि आखिरत में इस संसारिक नेमतों के बदले न खतम होने वाली नेमतें दिया जाएगा।
रविवार, 29 मई 2011
ईमान का चौथा स्तम्भः अल्लाह के भेजे हुए नबियों पर विश्वास तथा ईमान है।
अल्लाह तआला ने अपने कुछ बन्दों को सर्व मनुष्य की ओर नबी और रसूल (दुत्त) बना कर भेजा जो अल्लाह और बन्दों के बीच माध्यम का काम करते थे। अल्लाह का आज्ञा तथा सन्देश लोगों तक पहुंचाते थे। अल्लाह ने मानव के लिए जो जन्नत (स्वर्ग) बनाया है उसकी शुभ खबर देने वाला और अल्लाह की अवज्ञाकारी करने वालों के लिए जहन्नम (नरक) से डराने वाला बनाकर भेजा। अल्लाह ने अपने नबियों और रसूलों को विभिन्न चमत्कार दे कर भेजा था ताकि उन नबियों और रसूलों पर कोई आशंका न करें और झूटे लोग नबी और रसूल होने का ढ़ोंग न रच सके। वह सर्व नबी मानव थे। वह खाते-पीते थे। उन्हें सन्तान तथा माता-पिता थे। उन्हें रोग, परिशानियाँ, दुख दर्द लाहिक होता था। उन सब का देहांत हुआ। किन्तु अतिरिक्त ईसा( जीससो)के क्योंकि अल्लाह ने उन्हें अपने पास बुलाया लिया है और क़ियामत से निकट आकाश से धरती पर उतरेंगे और दज्जाल को क़त्ल करेंगे और फिर अल्लाह जब चाहे उन्हें देहांत देगा,(उन पर अल्लाह की शान्ती उतरे)। वह लोग दुसरे सर्व मनुष्य से सम्पूर्ण, सर्वेश्ष्ट और उत्तम थे। अल्लाह का खास कृपा और दया इन पर था परन्तु अल्लाह की कोई भी विशेष्ता इन में न थीं और इन सब नबियों ने केवल एक ईश्वर की पुजा , उपासना, अराधना की ओर सम्पूर्ण लोगों को निमन्त्रण किये।
नबी और रसूल के बीच अन्तर
विद्धवानों ने नबी तथा रसूल के बीच निम्नलिखित अन्तर बयान फरमाया है।
(1) रसूल को अल्लाह तआला का इन्कार करने वाले समुदाए में भेजा गया हो और नबी को अल्लाह तआला के आज्ञाकारी समुदाए में भेजा गया हो,
(2) रसूल जो एक नया धर्म लेकर आया और नबी जो अपने से पुर्वरसूल के धर्म का पर्चारक हो और उसी के अनुसार चलता हो,
(3) रसूल जिस पर अल्लाह ने पवित्र ग्रन्थ(किताब)उतारी हो और नबी जिस पर ग्रन्थ (किताब) न उतारी गई हो, बल्कि वह अपने से पुर्वरसूल के किताब के अनुसार अमल करता हो और लोगों को इसी पवित्र ग्रन्थ के अनुसार निमन्त्रण करता हो।
(4) प्रति रसूल नबी हैं परन्तु प्रति नबी रसूल नही हो सकते हैं।
नबी और रसूल जैसी अज़ीम स्थान इन्सान अपनी परयास तथा मेहनत से प्राप्त नही कर सकता और न ही अल्लाह की बहुत ज़्यादा पुजा तथा तपस्या से प्राप्त कर सकता है बल्कि अल्लाह तआला अपने बन्दों में से जिसे चाहे नबी और रसूल चुन लेता है। अल्लाह का कथन इस बात की पुष्टी करता है।
" वास्तविक्ता यह है कि अल्लाह अपने आदेश को भेजने के लिए फरिश्तों में से सन्देशवाहक चुनता है और इन्सानें में से भी, वह सुनता और देखता है।" ( सूराः अल-हजः57)
अल्लाह तआला नबियों और रसूलों की रक्षा करता है। उनको बड़े और छोटे गुनाहों तथा पापों से सुरतक्षित रखता है। जब कभी उन नबियों से छोटी भूल चुक तथा गलती हो जाती है जिसका धर्म के पहुंचाने से सम्बंध नही परन्तु अल्लाह तआला तुरंत उस छोटी भूल चुक तथा गलती पर नबियों को खबरदार कर देता है और नबी भी अपनी गलती स्वीकार कर के अल्लाह से क्षमा मांगते हैं। अल्लाह तआला भी उनकी छोटी गलती को क्षमा कर देता है और नबी और रसूल प्रत्येक प्रकार से सम्पूर्ण होते हैं। अल्लाह ने जो अमानत उनके जिम्मा दिया, उसको उन्हों ने सही तरीके से अदा किया और लोगों तक पूरा पूरा पहुंचा दिया।
अन्बिया और रसूलों के कुछ महत्वपूर्ण काम
अल्लाह ने नबियों तथा रसूलों को बहुत महत्वपूर्ण काम दिये हैं। उन में से कुछ निम्नलिखित हैं।
(1) लोगों तक अल्लाह के सन्देष को पहुंचाने का काम और लोगों को अल्लाह के सिवा की पुजा से हटा कर एक अल्लाह की उपासना की ओर निमन्त्रण करने का काम दिया जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है। " हम्ने हर समुदाय में एक रसूल भेजा और उसके द्वूवारा सब को सुचित कर दिया कि अल्लाह ही की बन्दगी करो, और बढ़े हुए अवज्ञाकारी से बचो," ( सूराः अल-नहलः36)
(2) जो धर्म अल्लाह ने लोगों के लिए भेजा उसकी स्पष्टीकरण का काम दिया। लोगों को अल्लाह के आदेश की व्याख्या का कार्य सुपूर्द किया गया। जैसा कि अल्लाह तआला ने मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को सम्बोधित करते हुए फरमाया। " और यह जिक्र तुम पर अवतरित किया है ताकि तुम लोगों के सामने इस सिक्षा की व्याख्या और स्पष्टीकरण करते जाओ, जो उन के लिए उतारी गयी है और ताकि लोग सोच-विचार कर सके," ( सूराः अल-नहलः44)
(3) नबियों तथा रसूलों को भेजा गया ताकि वह लोगों को बुराइ से डराए और भलाइ की ओर निमन्त्रण करे और अच्छे कार्यियों पर शुभ खबर दे, जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है। " यह सारे रसूल शुभ खबर देने वाले और डराने वाले बनाकर भेजे गए " ( सूराः अल-निसाः165)
(4) क़ियामत के दिन नबियों तथा रसूलों, अपने अनुयायियों पर गवाह होंगे कि उन्हों ने अल्लाह का सन्देश लोगों तक सही तरिके से पहुंचा दिये जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।" फिर सोचों कि उस समय यह किया करेंगे जब हम हर समुदाए में से एक गवाह लाऐंगे और उन लोगों पर तुम्हें गवाह की हैसियत से खड़ा करेंगे " (सूराः अल-)
नबियों तथा रसूलों की संख्याँ
नबियों की संख्याँ एक लाख चौबिस हज़ार थीं और उन में से रसूलों की संख्याँ 315 हैं। जैसा कि अबू ज़र (रज़ी अल्लाहु अन्हु) वर्नण करते हैं कि उन्हों ने प्रश्न किया," ऐ अल्लाह से रसूल! अन्बिया की संख्या कितनी हैं? तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उत्तर दिया, उनकी संख्या एक लाख चौबीस हजार हैं और उन में से तीन सौ पन्दरा रसूल हैं। ”
परन्तु कुरआन में अल्लाह तआला ने पचीस नबियों का नाम बयान किया है। किन्तु हम सर्व नबियों पर ईमान और विश्वास रखते हैं जिसे अल्लाह ने इस धर्ती पर नबी बना कर भेजा था चाहे उन के नाम तथा किस्से हमें बताया गया हो या उन के नाम तथा किस्से गुप्त रखा गया हो,
रसूलों के बीच उत्तमता
अल्लाह ने कुछ रसूलों को कुछ रसूलों पर उत्तमता दी है जैसा कि अल्लाह तआला ने स्वयं फरमा दिया है। " यह रसूलें हैं हम्ने इन्को एक दुसरे से बढ़ चढ़ कर पद प्रदान किया । उन में से कोई एसा था जिसे अल्लाह ने स्वयं बात की, किसी को उस ने दुसरी हैसियत से ऊंचा दर्जा दिया।" ( सूराः अल-बकराः253)
इन सब नबियों और रसूलों में सब से उत्तम और सर्वश्रेष्ट पुख्ते और कठोर इरादो वाले रसूल हैं और वह पांच हैं। नूह अलैहिस्सलाम, इब्राहीम अलैहिस्सलाम, मूसा अलैहिस्सलाम, ईसा अलैहिस्सलाम और मोहम्मद स0 अ0 स0 और इन सब के सर्दार मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)हैं जैसा कि अन्तिम नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " मैं आदम के सन्तान का सर्दार हूँ और कोई फख्र की बात नही " ( )
क्योंकि यह स्थान अल्लाह ने मुझे दिया है।
नबियों तथा रसूलों पर विश्वास तथा ईमान रखने से हमें कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह का अपने बन्दों के साथ खास कृपा और दया है कि उस ने लोगों के मार्गदर्शन और कल्यान के लिए आदर्निय नबियों तथा रसूलों को भेजा।
(2) अल्लाह के इस महत्वपूर्ण पुरस्कार पर उसका बहुत ज्यादा शुक्र अदा किया जाए
(3) अल्लाह के रसूलों का आदर-सम्मान किया जाए, उन से प्रेम किया जाए उन के लिए प्रार्थना किया जाए और उनकी परशंसा किया जाए कि उन्होंने अल्लाह के सन्देष्य को बहुत ही अच्छे ढ़ंग से लोगों तक पहुंचाया और इस रास्ते में मिल्ने वाली परिशानियों पर सब्र किया।
नबी और रसूल के बीच अन्तर
विद्धवानों ने नबी तथा रसूल के बीच निम्नलिखित अन्तर बयान फरमाया है।
(1) रसूल को अल्लाह तआला का इन्कार करने वाले समुदाए में भेजा गया हो और नबी को अल्लाह तआला के आज्ञाकारी समुदाए में भेजा गया हो,
(2) रसूल जो एक नया धर्म लेकर आया और नबी जो अपने से पुर्वरसूल के धर्म का पर्चारक हो और उसी के अनुसार चलता हो,
(3) रसूल जिस पर अल्लाह ने पवित्र ग्रन्थ(किताब)उतारी हो और नबी जिस पर ग्रन्थ (किताब) न उतारी गई हो, बल्कि वह अपने से पुर्वरसूल के किताब के अनुसार अमल करता हो और लोगों को इसी पवित्र ग्रन्थ के अनुसार निमन्त्रण करता हो।
(4) प्रति रसूल नबी हैं परन्तु प्रति नबी रसूल नही हो सकते हैं।
नबी और रसूल जैसी अज़ीम स्थान इन्सान अपनी परयास तथा मेहनत से प्राप्त नही कर सकता और न ही अल्लाह की बहुत ज़्यादा पुजा तथा तपस्या से प्राप्त कर सकता है बल्कि अल्लाह तआला अपने बन्दों में से जिसे चाहे नबी और रसूल चुन लेता है। अल्लाह का कथन इस बात की पुष्टी करता है।
" वास्तविक्ता यह है कि अल्लाह अपने आदेश को भेजने के लिए फरिश्तों में से सन्देशवाहक चुनता है और इन्सानें में से भी, वह सुनता और देखता है।" ( सूराः अल-हजः57)
अल्लाह तआला नबियों और रसूलों की रक्षा करता है। उनको बड़े और छोटे गुनाहों तथा पापों से सुरतक्षित रखता है। जब कभी उन नबियों से छोटी भूल चुक तथा गलती हो जाती है जिसका धर्म के पहुंचाने से सम्बंध नही परन्तु अल्लाह तआला तुरंत उस छोटी भूल चुक तथा गलती पर नबियों को खबरदार कर देता है और नबी भी अपनी गलती स्वीकार कर के अल्लाह से क्षमा मांगते हैं। अल्लाह तआला भी उनकी छोटी गलती को क्षमा कर देता है और नबी और रसूल प्रत्येक प्रकार से सम्पूर्ण होते हैं। अल्लाह ने जो अमानत उनके जिम्मा दिया, उसको उन्हों ने सही तरीके से अदा किया और लोगों तक पूरा पूरा पहुंचा दिया।
अन्बिया और रसूलों के कुछ महत्वपूर्ण काम
अल्लाह ने नबियों तथा रसूलों को बहुत महत्वपूर्ण काम दिये हैं। उन में से कुछ निम्नलिखित हैं।
(1) लोगों तक अल्लाह के सन्देष को पहुंचाने का काम और लोगों को अल्लाह के सिवा की पुजा से हटा कर एक अल्लाह की उपासना की ओर निमन्त्रण करने का काम दिया जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है। " हम्ने हर समुदाय में एक रसूल भेजा और उसके द्वूवारा सब को सुचित कर दिया कि अल्लाह ही की बन्दगी करो, और बढ़े हुए अवज्ञाकारी से बचो," ( सूराः अल-नहलः36)
(2) जो धर्म अल्लाह ने लोगों के लिए भेजा उसकी स्पष्टीकरण का काम दिया। लोगों को अल्लाह के आदेश की व्याख्या का कार्य सुपूर्द किया गया। जैसा कि अल्लाह तआला ने मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को सम्बोधित करते हुए फरमाया। " और यह जिक्र तुम पर अवतरित किया है ताकि तुम लोगों के सामने इस सिक्षा की व्याख्या और स्पष्टीकरण करते जाओ, जो उन के लिए उतारी गयी है और ताकि लोग सोच-विचार कर सके," ( सूराः अल-नहलः44)
(3) नबियों तथा रसूलों को भेजा गया ताकि वह लोगों को बुराइ से डराए और भलाइ की ओर निमन्त्रण करे और अच्छे कार्यियों पर शुभ खबर दे, जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है। " यह सारे रसूल शुभ खबर देने वाले और डराने वाले बनाकर भेजे गए " ( सूराः अल-निसाः165)
(4) क़ियामत के दिन नबियों तथा रसूलों, अपने अनुयायियों पर गवाह होंगे कि उन्हों ने अल्लाह का सन्देश लोगों तक सही तरिके से पहुंचा दिये जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।" फिर सोचों कि उस समय यह किया करेंगे जब हम हर समुदाए में से एक गवाह लाऐंगे और उन लोगों पर तुम्हें गवाह की हैसियत से खड़ा करेंगे " (सूराः अल-)
नबियों तथा रसूलों की संख्याँ
नबियों की संख्याँ एक लाख चौबिस हज़ार थीं और उन में से रसूलों की संख्याँ 315 हैं। जैसा कि अबू ज़र (रज़ी अल्लाहु अन्हु) वर्नण करते हैं कि उन्हों ने प्रश्न किया," ऐ अल्लाह से रसूल! अन्बिया की संख्या कितनी हैं? तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उत्तर दिया, उनकी संख्या एक लाख चौबीस हजार हैं और उन में से तीन सौ पन्दरा रसूल हैं। ”
परन्तु कुरआन में अल्लाह तआला ने पचीस नबियों का नाम बयान किया है। किन्तु हम सर्व नबियों पर ईमान और विश्वास रखते हैं जिसे अल्लाह ने इस धर्ती पर नबी बना कर भेजा था चाहे उन के नाम तथा किस्से हमें बताया गया हो या उन के नाम तथा किस्से गुप्त रखा गया हो,
रसूलों के बीच उत्तमता
अल्लाह ने कुछ रसूलों को कुछ रसूलों पर उत्तमता दी है जैसा कि अल्लाह तआला ने स्वयं फरमा दिया है। " यह रसूलें हैं हम्ने इन्को एक दुसरे से बढ़ चढ़ कर पद प्रदान किया । उन में से कोई एसा था जिसे अल्लाह ने स्वयं बात की, किसी को उस ने दुसरी हैसियत से ऊंचा दर्जा दिया।" ( सूराः अल-बकराः253)
इन सब नबियों और रसूलों में सब से उत्तम और सर्वश्रेष्ट पुख्ते और कठोर इरादो वाले रसूल हैं और वह पांच हैं। नूह अलैहिस्सलाम, इब्राहीम अलैहिस्सलाम, मूसा अलैहिस्सलाम, ईसा अलैहिस्सलाम और मोहम्मद स0 अ0 स0 और इन सब के सर्दार मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)हैं जैसा कि अन्तिम नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " मैं आदम के सन्तान का सर्दार हूँ और कोई फख्र की बात नही " ( )
क्योंकि यह स्थान अल्लाह ने मुझे दिया है।
नबियों तथा रसूलों पर विश्वास तथा ईमान रखने से हमें कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह का अपने बन्दों के साथ खास कृपा और दया है कि उस ने लोगों के मार्गदर्शन और कल्यान के लिए आदर्निय नबियों तथा रसूलों को भेजा।
(2) अल्लाह के इस महत्वपूर्ण पुरस्कार पर उसका बहुत ज्यादा शुक्र अदा किया जाए
(3) अल्लाह के रसूलों का आदर-सम्मान किया जाए, उन से प्रेम किया जाए उन के लिए प्रार्थना किया जाए और उनकी परशंसा किया जाए कि उन्होंने अल्लाह के सन्देष्य को बहुत ही अच्छे ढ़ंग से लोगों तक पहुंचाया और इस रास्ते में मिल्ने वाली परिशानियों पर सब्र किया।
मंगलवार, 24 मई 2011
ईमान का तीसरा स्तम्भः अल्लाह के अवतरित पुस्तकों पर विश्वास तथा ईमान है।
अल्लाह ने अपने बन्दों की मार्गदर्शन के लिए समय समय पर छोटी बड़ी पुस्तकें अपने दुतों और सन्देश्ठाओं पर नाज़िल (अवतरित) किया, उन पुस्तकों पर विश्वास तथा ईमान रखा जाए कि वह सम्पूर्ण पुस्तकें सत्य हैं। अल्लाह ने इन पुस्तकों को सन्देष्टाओं पर उतारा था जिस समुदाए पर वह ग्रंथ उतारी गई थी, उस समुदाए के लिए वह पुस्तक रोश्नी और सही मार्गदर्शन के लिए काफी था। इसी तरह उस सम्पूर्ण पुस्तकों पर विश्वास रखा जाए जिसे सन्देष्टाओं पर उतारा गया था और जिसका नाम हमें बताया गया है या नही बताया गया है। जैसा कि अल्लाह तआला का आदेश है।
يا أيها الذين آمَنوا آمِنوا بالله ورسوله و الكتاب الذي نزل على رسوله والكتاب الذي أنزل من قبل ومن يكفر بالله وملائكته و كتبه و رسله و اليوم الآخر فقد ضل ضلالا بعيدا " - النساء: 136
इस आयत का अर्थः “ ऐ लोगो जो ईमान लाऐ हो, अल्लाह और उसके रसूल और उस किताब (पवित्र कुरआन) पर जिसे उसने अपने रसूल पर उतारी है और उन किताबों के ऊपर ईमान लाओ जो इस से पहले उतारी गयी और जिस ने अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और आखिरत के दिन को नही मानते तो वह बहुत दूर बहक गया ” ( सूराः निसा,136)
इन्सानी बुद्धी को स्वार्थ और घमंड तथा इच्छा घेरे हुए होते हैं और जिस तरह चाहे नचाते हैं। यदि उसको खुला छोड़ दिया जाए और जिस तरह ईच्छा हो करे तो वह सत्य रासते से भटक जाएगा और अपने लिए हाणि के पद को चुन लेगा और वास्तविक सफलता को छोड़ देगा । इस लिए अल्लाह तआला ने मानव के मार्गदर्शन के लिए पुस्तकें उतारी ताकि मानव का सही मार्गदर्शन हो सके और उनको लाभदायक वस्तु के करने का आदेश दे और हाणि कारण वस्तु से रोके,
उस में से महत्वपूर्ण किताबें निम्नलिखित हैं।
(1) सुहुफ, इब्राहीम अलैहिस्सलाम को दिया गया।
(2) तौरात, मूसा अलैहिस्सलाम को दिया गया।
(3) ज़बूर, दाऊद अलैहिस्सलाम को दिया गया ।
(4) इन्जील, ईसा अलैहिस्सलाम को दिया गया ।
(5) कुरआन, मुहम्मद स0 अ0 स0 को दिया गया ।
तो इन सब किताबों पर विश्वास रखना प्रत्येक मुस्लिम के लिए अनिवार्य है। परन्तु कुरआन से पहले जितनी भी पुस्तकें उतारी गयी। उन के अनुयायियों ने उस किताब का सही खयाल नही रखा, उसकी सुरक्षा पर धयान नही दिया जिसके कारण बीते समय के साथ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उस में परिवर्तन करते रहे, इसी लिए इन सम्पूर्ण किताबें को अल्लाह तआला ने मन्सूख करके उसकी जगह कुरआन को उतारा और स्वयं इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ले ली और अब कुरआन हमेशा हमेश के लिए सुरक्षित होगया जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया है।
" إنا نحن نزلنا الذكر وإنا له لحافظون " - الحجر:9
इस आयत का अर्थः “ रहा यह जिक्र( कुरआन) तो इसको हम्ने उतारा है और हम ही खुद इसके रक्षक हैं।”
किताबों पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह का अपने बन्दों के साथ दया और कृपा कि उसने प्रत्येक समुदाए में पुस्तक उतारी जो उन लोगों के लिए मार्गदर्शनीय हो,
(2) अल्लाह की हिक्मत का प्रकट होना कि उसने इन किताबों में प्रत्येक समाज के लिए उचित धर्म उतारा जो उस समयानुसार अनुकूल था और सब से अन्तिम में पवित्र कुरआन उतारा जो सर्व मनुष्य के लिए मार्गदर्शनीय और मुक्तिमार्ग है।
(3) इस महान पुरस्कार पर हम इश्वर का शुक्र अदा करें, और इसी अनुसार अमल करें।
يا أيها الذين آمَنوا آمِنوا بالله ورسوله و الكتاب الذي نزل على رسوله والكتاب الذي أنزل من قبل ومن يكفر بالله وملائكته و كتبه و رسله و اليوم الآخر فقد ضل ضلالا بعيدا " - النساء: 136
इस आयत का अर्थः “ ऐ लोगो जो ईमान लाऐ हो, अल्लाह और उसके रसूल और उस किताब (पवित्र कुरआन) पर जिसे उसने अपने रसूल पर उतारी है और उन किताबों के ऊपर ईमान लाओ जो इस से पहले उतारी गयी और जिस ने अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और आखिरत के दिन को नही मानते तो वह बहुत दूर बहक गया ” ( सूराः निसा,136)
इन्सानी बुद्धी को स्वार्थ और घमंड तथा इच्छा घेरे हुए होते हैं और जिस तरह चाहे नचाते हैं। यदि उसको खुला छोड़ दिया जाए और जिस तरह ईच्छा हो करे तो वह सत्य रासते से भटक जाएगा और अपने लिए हाणि के पद को चुन लेगा और वास्तविक सफलता को छोड़ देगा । इस लिए अल्लाह तआला ने मानव के मार्गदर्शन के लिए पुस्तकें उतारी ताकि मानव का सही मार्गदर्शन हो सके और उनको लाभदायक वस्तु के करने का आदेश दे और हाणि कारण वस्तु से रोके,
उस में से महत्वपूर्ण किताबें निम्नलिखित हैं।
(1) सुहुफ, इब्राहीम अलैहिस्सलाम को दिया गया।
(2) तौरात, मूसा अलैहिस्सलाम को दिया गया।
(3) ज़बूर, दाऊद अलैहिस्सलाम को दिया गया ।
(4) इन्जील, ईसा अलैहिस्सलाम को दिया गया ।
(5) कुरआन, मुहम्मद स0 अ0 स0 को दिया गया ।
तो इन सब किताबों पर विश्वास रखना प्रत्येक मुस्लिम के लिए अनिवार्य है। परन्तु कुरआन से पहले जितनी भी पुस्तकें उतारी गयी। उन के अनुयायियों ने उस किताब का सही खयाल नही रखा, उसकी सुरक्षा पर धयान नही दिया जिसके कारण बीते समय के साथ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उस में परिवर्तन करते रहे, इसी लिए इन सम्पूर्ण किताबें को अल्लाह तआला ने मन्सूख करके उसकी जगह कुरआन को उतारा और स्वयं इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ले ली और अब कुरआन हमेशा हमेश के लिए सुरक्षित होगया जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया है।
" إنا نحن نزلنا الذكر وإنا له لحافظون " - الحجر:9
इस आयत का अर्थः “ रहा यह जिक्र( कुरआन) तो इसको हम्ने उतारा है और हम ही खुद इसके रक्षक हैं।”
किताबों पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह का अपने बन्दों के साथ दया और कृपा कि उसने प्रत्येक समुदाए में पुस्तक उतारी जो उन लोगों के लिए मार्गदर्शनीय हो,
(2) अल्लाह की हिक्मत का प्रकट होना कि उसने इन किताबों में प्रत्येक समाज के लिए उचित धर्म उतारा जो उस समयानुसार अनुकूल था और सब से अन्तिम में पवित्र कुरआन उतारा जो सर्व मनुष्य के लिए मार्गदर्शनीय और मुक्तिमार्ग है।
(3) इस महान पुरस्कार पर हम इश्वर का शुक्र अदा करें, और इसी अनुसार अमल करें।
रविवार, 15 मई 2011
ईमान का दुसरा स्तम्भ: अल्लाह के फरिश्तों पर विश्वास तथा ईमान है।
अल्लाह के फरिश्तों पर विश्वास तथा ईमान का अर्थात यह कि इस बात पर कठोर विश्वास और आस्था हो कि अल्लाह तआला ने फरिशतों को मनुष्य से पहले उतपन किया है। अल्लाह तआला ने फरिशतों की रचना प्रकाश से किया है। वह गुप्त रहते हैं, वह दिखते नहीं, परन्तु कभी कभी वह नबियों और रसूलों को दिखते हैं, फरिशते अल्लाह के नेक बन्दे हैं जो अल्लाह की उपासना और विभिन्न कार्यों में व्यस्त रहते हैं, वह अल्लाह की अवज्ञाकारी नही करते, वह बुराइ नही करते, उन्हे खाने-पीने की अवश्यक्ता नहीं, विवाह की ज़रूरत नही, बल्कि वह अल्लाह की इबादत में लगे रहते हैं, जो काम अल्लाह ने उसे दिये हैं उसी में ग्रस्त रहते हैं।
उनकी कुछ महत्वपूर्ण विशेष्ता यह हैं।
(1) बहुत शक्तिशाली और बड़े शरीर वाले होते हैं।
जैसाकि अल्लाह तआला ने नरक की रक्षक फरिशते के बारे में फरमाया है।
ياأيها الذين آمنوا قوا أنفسكم وأهليكم نارا وقودها الناس والحجارة – عليها ملائكة غلاظ شداد لايعصون الله ما امرهم ويفعلون مايؤمرون " - التحريم: 6
“ ऐ लोगों जो ईमान लाऐ हो, बचाओ अपने आप को और अपने घरवालों को उस अगनी से जिसका एंधन इन्सान और पत्थर होंगे, जिस पर कठोर स्वभाव के सख्त पकड़ करनेवाले फरिश्ते नियुक्त होंगे, जो कभी अल्लाह के आदेश की अवहिलना नहीं करते, और जो आदेश भी उन्हें दिया जाता है उसका पालन करते हैं।”
इसी तरह मोहम्मद (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने फरमाया ,, मुझे अनुमति दी गइ है कि मैं अल्लाह के अर्श को उठाने वाले फरिश्तो में से एक फरिशेते के बारे में बताऊं, उसके कान की लौ से गर्दन तक की दूरी सात सौ वर्ष के दूरी के बराबर है।
(2) फरिश्ते परोंवाले होते हैं।
अल्लाह ने फरिश्तों को पर (भुजाएं) दिया है। किसी फरिश्ते को एक पर दिया है , किसी फरिशेते को दो पर दिया है, किसी को तीन , किसी को चार पर दिया है। फरिशत के उच्च स्थान के अनुसार पर दिये गऐ हैं। जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमया।
" الحمد لله فاطر السموات والأرض جاعل الملائكة رسلا أولي أجنحة مثنى وثلث وربع يزيد في الخلق ما يشاء " ( فاطر: 1)
अर्थातः "तारीफ अल्लाह ही के लिए है जो आकाशों और धरती का रचनक है और फरिश्तों को संदेष्वाहक नियुक्त करने वाला है। एसे फरिश्ते जिनको दो, दो और तीन,तीन और चार,चार भुजाएं हैं। वह अपनी सरेष्टी सनरचना में जैसी चाहता है। अभिर्वर्दन करता है।"
जिब्रील अलैहिस्सलाम को छे सौ पर थे। जैसाकि " आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि प्रिय नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने जिब्रील को उसकी वास्तविक रूप में देखा और उनको छे सौ पर थे। उन में से एक पर उफुक को छाया हुआ था। "
(3) फरिश्ते की संख्या बहुत हैं।
अल्लाह तआला के सिवा कोई नही जानता कि फरिश्तों की संख्या क्या हैं। अल्लाह तआला ने खुले शब्दों में स्पष्ट कर दिया
وما يعلم جنود ربك إلا هو" - المدثر: 31 "
"َََ और तेरे रब की सेनाओं को स्वयं उसके सिवा कोई नही जानता है। "
(4) फरिश्ते बहुत नेक होते हैं।
अल्लाह तआला ने फरिश्तों से भुल-चूक को हटा दिया है। वह बहुत नेक होते हैं। उन्से कभी भी कोई गलती और अपराध नही होता। अल्लाह तआला ने फरिश्तों के प्रति फरमाया।
بأيدي سفرة - كرام بررة " - عبس: 15
इस आयत का अर्थात यह कि “ उच्च कोइ के हैं, पवित्र हैं ”
फरिश्ते हमेशा अल्लाह के आज्ञाकारी करते हैं अवज्ञा नहीं करते हैं। अल्लाह तआला का कथन है।
لايعصون الله ما امرهم ويفعلون ما يؤمرون " - التحريم 6
इस आयत का अर्थात यह कि फरिश्ते कभी भी अल्लाह के आदेश की अवहिल्ना नही करते और जो आदेश भी उन्हें दिया जाता है उसका पालन करते हैं।
(5) अल्लाह ने फरिश्तों को रूप धारने की शक्ति दी हैं।
अल्लाह ने फरिश्तों को रूपधारन की शक्ति दी हैं जिस से वह आवश्यक्ता के अनुसार रूपधारण कर लेते हैं। जैसा कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास इन्सानी रूप में आऐ. नबी(अलैहिस्सलातु वस्सलाम) के पास इन्सानी रूप में आते थे।
कुच्छ कार्य जो फरिश्ते अन्जाम देते हैं।
(1) अल्लाह फरिश्तों को अपना दुत्त और एल्ची बनाता है।
अल्लाह तआला और मनुष्य के बीच फरिश्ते माध्यम का काम करते हैं। अल्लाह तआला नबियों और सन्देष्टाओं के पास पैगाम लेकर फरिश्तों को भेजते थे। उन में से जिब्रील अलैहिस्सलाम नबियों के पास अल्लाह का सन्देश लेकर आते थे।
(2) कुच्छ फरिश्तें अल्लाह के अर्श (सिंहासन) को उठाए हुए हैं।
अल्लाह ने कुच्छ फरिश्तों को जिम्दारी दे रखी कि वह अल्लाह के अर्श को उठाए रखे जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया है।
" الذين يحملون العرش ومن حوله " - غافر: 7
अर्थातः “ जो अल्लाह के अर्श को उठाऐ हुए हैं और उसके इर्द गिर्द वाले ”
और क़ियामत के दिन अल्लाह के अर्श ( सिंहासन) को आठ फरिश्ते उठाऐ हुए होंगे, अल्लाह तआला का इर्शाद है।
" ويحمل عرش ربك فوقهم يومئذ ثمانية " - الحاقة: 17
अर्थः “ और आप के रब के अर्श (सिंहासन) को उस दिन आठ फरिश्ते उठाऐ हुए होंगे।”
(3) कुच्छ फरिश्तों को अल्लाह ने मनुष्य की रक्षा के लिए नियुक्त किया हैं
अल्लाह तआला अपने बन्दों और दासों पर बहुत दयावान है। इसी लिए अल्लाह ने मनुष्य की रक्षा के लिए फरिश्तों को नियुक्त किया है जो घटनाओं , संक्कटों और भुकंपों में उन लोगों की रक्षा करते हैं जिन का जीवन बाकी है। जैसा कि अल्लाह ताआला का कथन है।
له معقبات من بين يديه ومن خلفه يحفظونه من أمر الله " - الرعد: 11
अर्थः “ हर व्यक्ति के आगे और पीछे उसके नियुक्त किये गए निरक्षक लगे हुए हैं जो अल्लाह के आदेश से उसकी देख भाल कर रहे हैं।”
(4) कुच्छ फरिश्तें मनुष्य के कर्मों को लिखते रहते हैं।
अल्लाह तआला ने बहुत सारे फरिश्तों को इन्सानों के कर्मों को लिखने के लिए नियुक्त किया है जो इन्सान से होने वाले हर कर्म को लिख लेते हैं चाहे वह अच्छा हो या बुरा । पवित्र क़ुर्आन में अल्लाह का कथन है।
إذ يتلقى المتلقيان عن اليمين وعن الشمال قعيد – ما يلفظ من قول إلا لديه رقيب عتيد " - ق: 18
अर्थः दो लिखने वाले उसके दांऐ और बांऐ बैठे हर चीज़ अंकित कर रहे हैं। कोई शब्द उसके मुक्ख से नही निकलता जिसे सुरक्षित करने के लिए एक उपस्थित रहने वाला निरक्षक मौजूद न हो,
(5) कुच्छ फरिश्तें धार्मिक पोरोग्राम में उपस्थित रहनेवाले व्यक्तियों पर शान्ती की प्रार्थना करते हैं। उनका नाम लिख लेते हैं
(6 ) अल्लाह ने कुच्छ फरिश्तों को मनुष्य का प्राण निकालने के लिए नियुक्त किया हैं। जो ठीक समय पर बिना जलदी और विलंब के उस व्यक्ति का प्राण निकालते हैं जिस के मृत्यु का समय आ गया हो। अल्लाह तआला ने इसी चीज़ को कहा है।
حتى إذا جاء أحدكم الموت توفته رسلنا وهم لايفرطون " - الأنعام: 61
इस आयत का अर्थातः यहां तक कि जब तुम में से किसी के मौत का समय आ जाता है तो उसके भैजे हुए फरिश्ते उसकी जान निकाल लेते हैं और अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में तनिक कोताही नही करते "
इस के सिवा अल्लाह तआला ने बहुत सारे फरिश्तों को दुसरे बहुत सा कार्य दिया है जो वह बिना चूँ चरा के अन्जाम देते हैं।
फरिश्तों पर विश्वास तथा ईमान रखने से हमें कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह तआला की महानता और उसके महान शक्ति का ज्ञान मिलता है।
(2) हमें पता चलता है कि अल्लाह तआला ने हमारी निगरानी के लिए अपने खास दासों( फरिश्तों) को नियुक्त किया है जिस पर हम अल्लाह तआला का शुक्र अदा करना चाहिये और उसके आज्ञा का अधिक पालण करना चाहिये।
(3) इस से हमारे हृदय में फरिश्ते के लिए प्रेम पैदा होता है क्योंकि फरिश्ते अल्लाह की उपासना बहुत अच्छे ढ़ंग से करते हैं और हमारी रक्षा करते और हमारी क्षमा के लिए अल्लाह से प्रार्थाना करते हैं।
उनकी कुछ महत्वपूर्ण विशेष्ता यह हैं।
(1) बहुत शक्तिशाली और बड़े शरीर वाले होते हैं।
जैसाकि अल्लाह तआला ने नरक की रक्षक फरिशते के बारे में फरमाया है।
ياأيها الذين آمنوا قوا أنفسكم وأهليكم نارا وقودها الناس والحجارة – عليها ملائكة غلاظ شداد لايعصون الله ما امرهم ويفعلون مايؤمرون " - التحريم: 6
“ ऐ लोगों जो ईमान लाऐ हो, बचाओ अपने आप को और अपने घरवालों को उस अगनी से जिसका एंधन इन्सान और पत्थर होंगे, जिस पर कठोर स्वभाव के सख्त पकड़ करनेवाले फरिश्ते नियुक्त होंगे, जो कभी अल्लाह के आदेश की अवहिलना नहीं करते, और जो आदेश भी उन्हें दिया जाता है उसका पालन करते हैं।”
इसी तरह मोहम्मद (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने फरमाया ,, मुझे अनुमति दी गइ है कि मैं अल्लाह के अर्श को उठाने वाले फरिश्तो में से एक फरिशेते के बारे में बताऊं, उसके कान की लौ से गर्दन तक की दूरी सात सौ वर्ष के दूरी के बराबर है।
(2) फरिश्ते परोंवाले होते हैं।
अल्लाह ने फरिश्तों को पर (भुजाएं) दिया है। किसी फरिश्ते को एक पर दिया है , किसी फरिशेते को दो पर दिया है, किसी को तीन , किसी को चार पर दिया है। फरिशत के उच्च स्थान के अनुसार पर दिये गऐ हैं। जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमया।
" الحمد لله فاطر السموات والأرض جاعل الملائكة رسلا أولي أجنحة مثنى وثلث وربع يزيد في الخلق ما يشاء " ( فاطر: 1)
अर्थातः "तारीफ अल्लाह ही के लिए है जो आकाशों और धरती का रचनक है और फरिश्तों को संदेष्वाहक नियुक्त करने वाला है। एसे फरिश्ते जिनको दो, दो और तीन,तीन और चार,चार भुजाएं हैं। वह अपनी सरेष्टी सनरचना में जैसी चाहता है। अभिर्वर्दन करता है।"
जिब्रील अलैहिस्सलाम को छे सौ पर थे। जैसाकि " आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि प्रिय नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने जिब्रील को उसकी वास्तविक रूप में देखा और उनको छे सौ पर थे। उन में से एक पर उफुक को छाया हुआ था। "
(3) फरिश्ते की संख्या बहुत हैं।
अल्लाह तआला के सिवा कोई नही जानता कि फरिश्तों की संख्या क्या हैं। अल्लाह तआला ने खुले शब्दों में स्पष्ट कर दिया
وما يعلم جنود ربك إلا هو" - المدثر: 31 "
"َََ और तेरे रब की सेनाओं को स्वयं उसके सिवा कोई नही जानता है। "
(4) फरिश्ते बहुत नेक होते हैं।
अल्लाह तआला ने फरिश्तों से भुल-चूक को हटा दिया है। वह बहुत नेक होते हैं। उन्से कभी भी कोई गलती और अपराध नही होता। अल्लाह तआला ने फरिश्तों के प्रति फरमाया।
بأيدي سفرة - كرام بررة " - عبس: 15
इस आयत का अर्थात यह कि “ उच्च कोइ के हैं, पवित्र हैं ”
फरिश्ते हमेशा अल्लाह के आज्ञाकारी करते हैं अवज्ञा नहीं करते हैं। अल्लाह तआला का कथन है।
لايعصون الله ما امرهم ويفعلون ما يؤمرون " - التحريم 6
इस आयत का अर्थात यह कि फरिश्ते कभी भी अल्लाह के आदेश की अवहिल्ना नही करते और जो आदेश भी उन्हें दिया जाता है उसका पालन करते हैं।
(5) अल्लाह ने फरिश्तों को रूप धारने की शक्ति दी हैं।
अल्लाह ने फरिश्तों को रूपधारन की शक्ति दी हैं जिस से वह आवश्यक्ता के अनुसार रूपधारण कर लेते हैं। जैसा कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास इन्सानी रूप में आऐ. नबी(अलैहिस्सलातु वस्सलाम) के पास इन्सानी रूप में आते थे।
कुच्छ कार्य जो फरिश्ते अन्जाम देते हैं।
(1) अल्लाह फरिश्तों को अपना दुत्त और एल्ची बनाता है।
अल्लाह तआला और मनुष्य के बीच फरिश्ते माध्यम का काम करते हैं। अल्लाह तआला नबियों और सन्देष्टाओं के पास पैगाम लेकर फरिश्तों को भेजते थे। उन में से जिब्रील अलैहिस्सलाम नबियों के पास अल्लाह का सन्देश लेकर आते थे।
(2) कुच्छ फरिश्तें अल्लाह के अर्श (सिंहासन) को उठाए हुए हैं।
अल्लाह ने कुच्छ फरिश्तों को जिम्दारी दे रखी कि वह अल्लाह के अर्श को उठाए रखे जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया है।
" الذين يحملون العرش ومن حوله " - غافر: 7
अर्थातः “ जो अल्लाह के अर्श को उठाऐ हुए हैं और उसके इर्द गिर्द वाले ”
और क़ियामत के दिन अल्लाह के अर्श ( सिंहासन) को आठ फरिश्ते उठाऐ हुए होंगे, अल्लाह तआला का इर्शाद है।
" ويحمل عرش ربك فوقهم يومئذ ثمانية " - الحاقة: 17
अर्थः “ और आप के रब के अर्श (सिंहासन) को उस दिन आठ फरिश्ते उठाऐ हुए होंगे।”
(3) कुच्छ फरिश्तों को अल्लाह ने मनुष्य की रक्षा के लिए नियुक्त किया हैं
अल्लाह तआला अपने बन्दों और दासों पर बहुत दयावान है। इसी लिए अल्लाह ने मनुष्य की रक्षा के लिए फरिश्तों को नियुक्त किया है जो घटनाओं , संक्कटों और भुकंपों में उन लोगों की रक्षा करते हैं जिन का जीवन बाकी है। जैसा कि अल्लाह ताआला का कथन है।
له معقبات من بين يديه ومن خلفه يحفظونه من أمر الله " - الرعد: 11
अर्थः “ हर व्यक्ति के आगे और पीछे उसके नियुक्त किये गए निरक्षक लगे हुए हैं जो अल्लाह के आदेश से उसकी देख भाल कर रहे हैं।”
(4) कुच्छ फरिश्तें मनुष्य के कर्मों को लिखते रहते हैं।
अल्लाह तआला ने बहुत सारे फरिश्तों को इन्सानों के कर्मों को लिखने के लिए नियुक्त किया है जो इन्सान से होने वाले हर कर्म को लिख लेते हैं चाहे वह अच्छा हो या बुरा । पवित्र क़ुर्आन में अल्लाह का कथन है।
إذ يتلقى المتلقيان عن اليمين وعن الشمال قعيد – ما يلفظ من قول إلا لديه رقيب عتيد " - ق: 18
अर्थः दो लिखने वाले उसके दांऐ और बांऐ बैठे हर चीज़ अंकित कर रहे हैं। कोई शब्द उसके मुक्ख से नही निकलता जिसे सुरक्षित करने के लिए एक उपस्थित रहने वाला निरक्षक मौजूद न हो,
(5) कुच्छ फरिश्तें धार्मिक पोरोग्राम में उपस्थित रहनेवाले व्यक्तियों पर शान्ती की प्रार्थना करते हैं। उनका नाम लिख लेते हैं
(6 ) अल्लाह ने कुच्छ फरिश्तों को मनुष्य का प्राण निकालने के लिए नियुक्त किया हैं। जो ठीक समय पर बिना जलदी और विलंब के उस व्यक्ति का प्राण निकालते हैं जिस के मृत्यु का समय आ गया हो। अल्लाह तआला ने इसी चीज़ को कहा है।
حتى إذا جاء أحدكم الموت توفته رسلنا وهم لايفرطون " - الأنعام: 61
इस आयत का अर्थातः यहां तक कि जब तुम में से किसी के मौत का समय आ जाता है तो उसके भैजे हुए फरिश्ते उसकी जान निकाल लेते हैं और अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में तनिक कोताही नही करते "
इस के सिवा अल्लाह तआला ने बहुत सारे फरिश्तों को दुसरे बहुत सा कार्य दिया है जो वह बिना चूँ चरा के अन्जाम देते हैं।
फरिश्तों पर विश्वास तथा ईमान रखने से हमें कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह तआला की महानता और उसके महान शक्ति का ज्ञान मिलता है।
(2) हमें पता चलता है कि अल्लाह तआला ने हमारी निगरानी के लिए अपने खास दासों( फरिश्तों) को नियुक्त किया है जिस पर हम अल्लाह तआला का शुक्र अदा करना चाहिये और उसके आज्ञा का अधिक पालण करना चाहिये।
(3) इस से हमारे हृदय में फरिश्ते के लिए प्रेम पैदा होता है क्योंकि फरिश्ते अल्लाह की उपासना बहुत अच्छे ढ़ंग से करते हैं और हमारी रक्षा करते और हमारी क्षमा के लिए अल्लाह से प्रार्थाना करते हैं।
सोमवार, 9 मई 2011
ईमान का पहला स्तम्भ अल्लाह पर विश्वास तथा ईमान है।
अल्लाह पर विश्वास तथा ईमान का अर्थात यह कि इस बात पर कठोर विश्वास और आस्था हो कि अल्लाह ही हर वस्तु का स्वामी और पालणपोसक है। उसने हर वस्तु को एकेले उत्पन किया है। पूरे संसार को चलाने वाला वही है। धरती और आकाश की हर चीज़ उसके आज्ञा का पालन करती है। तो केवल वही ज़ात उपासना के योग्य है और केवल वही इबादत का हक्दार है। सम्पूर्ण इबादत में उसका कोई भागीदार नही है और उसके अतिरिक्त सब झूटे और असत्य है। अल्लाह तआला ने फरमाया
ذلك بأن الله هو الحق و أن ما يدعون من دونه هو الباطل وأن الله هو العلي الكبير" الحج :62
“ यह इस लिए कि अल्लाह ही सत्य है और वह सब असत्य है जिन्हें अल्लाह को छोड़ कर यह लोग पुकारते हैं और अल्लाह ही उच्च और महान है। ”
अल्लाह तआला अपने विशेष्ताओं और गुनों में सम्पूर्ण है और वह हर कमी और नक्स से पवित्र है।
किसी भी मामूली वस्तु का बिना उसके बनाने वालेके पाया जाना बुद्धि के विरूद्ध है । उदाहरण देता हूँ कि क्या कोई जलपान बिना बावर्ची के स्वयं तैयार हो जाएगी। इसी तरह कोई दुकान खूद बखूद तैयार होजागी और उस में हर तरह का सामान खूद आजाए, और खूद बखूद बिकने लगे , कोइ अक्ल वाला इस बात को नही मानेगा। तो फिर कैसे होसकता कि इतने बड़े संसार, पृथ्वी, आकाश, पलेनेट्स, पैड़ पौदा , पशु पंक्षी , मनुष्य स्वयं उतपन होगए और सुर्य ,चंदर्मां स्वयं निकलने और डुबने लगे, नदिया और चशमे स्वयं बहने लगे, यह सब इस बात की गवाही देती है कि एक ज़ात उपस्थित है जो इन सब को कन्टरोल करता है। इस बड़ी दुनिया का व्यवस्था उसके आज्ञा तथा इच्छानुसार चल रहा है और वह अल्लाह की ज़ात है। एक अल्लाह पर विश्वास और उसका कोई भागीदार और साझीदार नही है। इसे तौहीद कहा जाता है।
तौहीद को तीन विभाग में विभाजन किया जाता है।
(1) तौहीद रूबूबियत
(2) तौहीद उलूहियत
(3) तौहीद अस्मा तथा सिफात
(1) तौहीद रूबूबियत का अर्थात यह है कि आदमी कठोर विश्वास तथा आस्था रखे कि अल्लाह ही तन्हा संसार और उसकी हर वस्तु का मालिक और स्वामी है, वही सम्पूर्ण वस्तु की रचना की है, वही सब को जीविका देता है, वही सब को मृत्यु देता है, वही सब को जीवित करता है। इसी चीज़ को याद दिलाते हुए अल्लाह तआला फरमाता है।
" رب السموات و الأرض و مابينهما إن كنتم مؤقنين – لا إله إلا هو يحي ويميت ربكم ورب آباءكم الأولين " [ الدخان: 8 ]
अर्थातः “ वह आकाशों और धर्ती का रब और हर उस चीज़ का रब जो आकाशों और धर्ती के बीच हैं यदि तुम लोग वास्तव में विश्वास रखने वाले हो, कोई माबूद उसके सिवा नही है। वही जीवन प्रदान करता है और वही मृत्यु देता है। वह तुम्हारा रब है और तुम्हारे उन पुर्वजों का रब है जो तुम से पहले गुज़र चुके हैं।”
(2) तौहीद उलूहियत का अर्थात यह है कि बन्दा इस बात का इक़्ररार करे कि इबादत और उपासना की सम्पूर्ण किसमें केवल अल्लाह ही के लिए है। अल्लाह तआला ने अपनी इबादत के लिए ही आकाशों और धरती की रचना की और फिर मनुष्य तथा जिनों को इस पर बसाया ताकि वह केवल एक अल्लाह की पूजा करे, अल्लाह ही से आशा लगाए, अपनी हर संकट और परेशानियों में अल्लाह ही को पुकारे, अल्लाह के लिए बलिदान दे, तो जो उसके आज्ञानुसार चलेगा, उसको पुरस्कार देगा, और जो उस के आज्ञा के विरूद्ध चलेगा ,उसको डंडित करेगा। अल्लाह तआला ने मनुष्य तथा जिनों के उत्पन का लक्ष्य अपनी इबादत ही बयान किया है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन पवित्र कुरआन में है।
" و ما خلقت الجن والإنس إلا ليعبدون" [الذاريات:56 ]
आयत का अर्थातः “ मैं ने जिन और मनुष्य को इसके सिवा किसी काम के लिए पैदा नही किया कि वह मेरी बन्दगी करे ”
अल्लाह तआला ने मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए नबियों और रसूलों को भेजा जैसा कि अल्लाह तआला का पवित्र कुरआन में इरशाद है।
" ولقد بعثنا في كل أمة رسولا أن اعبدوا الله و اجتنبوا الطاغوت " [النحل: 36]
“ हम्ने हर समुदाय में एक रसूल भेजा और उसके द्वूवारा सब को सुचित कर दिया कि अल्लाह ही की बन्दगी करो, और बढ़े हुए अवज्ञाकारी से बचो ”
यही तौहीद उलूहियत के बारे में नबियों और उनके समुदाय के बीच टकराव रहा है। अल्लाह तआला ने विभिन्न तरिके से अपनी उलूहियत को प्रमाणित किया है।
अल्लाह तआला ने सम्पूर्ण मानव को आज्ञा दिया कि वह केवल अल्लाह की पूजा करे और उसके सिवा सर्व झूठे भगवानों को छोड़ दी जाए। इसी में मानव जाती की सफलता और उनका कल्याण है। अल्लाह तआला का कथन पवित्र कुरआन में है।
" ياأيهاالناس اعبدوا ربكم الذي خلقكم و الذين من قبلكم لعلكم تتقون- الذي جعل لكم الأرض فراشا و السماء بناء وانزل من السماء ماء فأخرج به من الثمرات رزقا لكم فلا تجعلوا لله أندادا وأنتم تعلمون " [البقرة: 22]
अर्थातः "लोगों , बन्दगी इख्तियार करो अपने उस रब की जो तुम्हारा और तुम से पहले जो लोग हूऐ हैं उन सब का पैदा करने वाला है। तुम्हारे बचने की आशा इसी प्रकार हो सकती है। वही है जिसने तुम्हारे लिए धर्ती को बिछौना बिछाया, आकाश की छत बनाई ,ऊपर से पानी बरसाया और उसके द्वुवारा हर प्रकार की पैदावार निकाल कर तुम्हारे लिए रोजी जुटाई, अतः जब तुम यह जानते हो तो दुसरों को अल्लाह का समक्ष न ठहराऔ "
मुशरेकीन के माबूद कोई भी काम करने की शक्ति नही रखते बल्कि वह खुद मुह्ताज हैं कि लोग उनकी सेवा करे और उसका खयाल रखे जैसा कि अल्लाह तआला ने एक उधाहरण के माध्यम से लोगों को समझाया है।
" ياأيهاالناس ضرب مثل فاستمعوا له ان الذين تدعون من دون الله لن يخلقوا ذبابا ولو اجتمعوا له وأن يسلبهم الذباب شيئا لا يستنقذوه منه- ضعف الطالب والمطلوب "[ الحج:73]
हे लोगो ! एक मिसाल दी जा रही है, ज़रा ध्यान से सुनो, अल्लाह के सिवाय तुम जिन जिन को पुकारते रहे हो वे एक मक्खी तो पैदा नहीं कर सकते अगर मक्खी उन से कोई चीज़ ले भागे तो यह उसे भी उस से छीन नहीं सकते। बड़ा कमज़ोर है माँगने वाला और बहुत कमज़ोर है जिस से माँगा जा रहा है।
धरती और आकाश की हर चीज़ को अल्लाह तआला ही ने उत्पन किया है। इन सम्पूर्ण वस्तु को वही रोज़ी देता है, सम्पूर्ण वस्तु में वही तसर्रुफ करता है। तो यह बिल्कुल बुद्धि के खिलाफ है कि कुछ लोग अपने ही जैसों या अपने से कमतर की पुजा और उपासना करे, जब कि वह भी उनही की तरह ज़रूरतमन्द और मुह्ताज है। जब मख्लूक में से कोइ भी सच्चा माबूद का हक्दार नही है तो वही इबादत का हक्दार हुआ जिस ने इन सारी चीज़ों को पैदा किया है और वह केवल अल्लाह तआला की ज़ात है जो हर कमी और ऐब से पवित्र है।
(3) तौहीद अस्मा तथा सिफातः अर्थात कि अल्लाह तआला को उनके नामों और विशेष्ताओं में एक माना जाऐ, और अल्लाह के गुनों और विशेष्ताओं तथा नामों में कोई उसका भागिदार नही है। इसी तरह अल्लाह के इन विशेष्ताओं और गुनों को वैसे ही माना जाऐ जिस तरह अल्लाह ने उसको अपने लिए बताया है या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस विशेष्ता के बारे में खबर दिया है और उन विशेष्ताओं और गुनों को न माना जाऐ जिस विशेष्ता का इन्कार अल्लाह ने अपने से किया है या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस विशेष्ता का इन्कार किया है । जैसा कि अल्लाह तआला का कथन पवित्र कुरआन में है।
" ليس كمثله شيء وهوالسميع البصير "
“ अल्लाह के जैसा कोई नही है और अल्लाह तआला सुनता और देखता है।”
इस लिए अल्लाह के सिफात और गुनों को वैसे ही माना जाऐ जैसा कि अल्लाह ने खबर दिया है या उसके नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने खबर दिया है। न ही उस सिफात के अर्थ को बदला जाए और न ही उसके अर्थ का इनकार किया जाए और न ही उस सिफात की कैफियत बयान किया जाए और न ही दुसरे किसी वस्तु से उसकी उदाहरण दी जाए, बल्कि यह कहा जाए कि अल्लाह तआला सुनता है, देखता है, जानता है, शक्ति शाली है जैसा कि इस के शान के योग्य है, वह अपनी विशेष्ता में सम्पूर्ण है। कोई भी वस्तु उस जैसा नही हो सकता और न ही उस के विशेष्ता में भागिदार हो सकता है। इसी तरह इन सर्व विशेष्ताओं और गुनों की अल्लाह से इन्कार किया जाए जिस का इन्कार अल्लाह ने अपने नफ्स से किया है। या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस सिफत का इन्कार अल्लाह से किया है। यह आस्था रखते हेतु कि इस सिफत के विपरित सिफत में अल्लाह सम्पूर्ण और कमाल को है। इसी तरह अल्लाह के बारे में ऐसे नाम या विशेष्ता का प्रयोग न किया जाए जिनका जिक्र न तो कुरआन में है और न ही उस की नफी की गइ है, तो एसे नामों और विशेष्ताओं के बारे में खामुशी और कुछ न कहना उचित और उत्तम है। बल्कि उस शब्द का विस्तार से अर्थात पूंछना जरूरी है। यदि विस्तारित अर्थात के समय कोई कमी या अल्लाह की शान में खराबी का माना पाया जाता है तो उसका इन्कार अनिवार्य है। जैसाकि अल्लाह तआला का आज्ञा है।
"و لله الأسماء الحسنى فادعوه بها و ذروا الذين يلحدون في أسمائه سيجزون ما كانوايعملون" [الأعراف: 180]
इस आयत का अर्थातः अल्लाह अच्छे नामों का अधिकारी है। उसको अच्छे ही नामों से पुकारो और उन लोगों को छोड़ दो जो उसके नाम रखने में सच्चाइ से हट जाते है, जो कुच्छ वह करते हैं वह उसका बदला पा कर रहेंगे।
अल्लाह तआला की विशेष्ता दो तरह की है।
(1) अल्लाह की व्यक्तिगत विशेष्ताः अल्लाह तआला इस विशेष्ता से हमेशा से है और हमेशा रहेगा उदाहरण के तौर पर , अल्लाह का ज्ञान , अल्लाह का सुनना , देखना , अल्लाह की शक्ति , अल्लाह का हाथ, अल्लाह का चेहरा, आदि और इन विशेष्ता को वैसे ही माना जाए जैसा कि अल्लाह तआला के योग्य है और न ही इन विशेष्ताओं के माना को परिवर्तन की जाए और न ही इन विशेष्ताओं के माना का इन्कार की जाए और न ही इन विशेष्ताओं को दुसरे किसी वस्तु से उदाहरण दी जाए और न ही इन विशेष्ताओं की अवस्था या हालत बयान की जाए।
(2) अल्लाह की इख्तियारी विशेष्ताः यह वह विशेष्ता है जो अल्लाह के इच्छा और इरादा पर निर्भर करता है। यदि अल्लाह चाहता है तो करता और नही चाहता तो नही करता, उदाहरण के तौर पर यदि अल्लाह तआला किसी दास के अच्छे काम पर प्रसन्न होता है तो किसी दास के बुरे काम पर अप्रसन्न होता है, किसी दास के अच्छे काम से खुश को कर उसे ज़्यादा रोज़ी देता है तो किसी के बदले को परलोकिक जीवन के लिए सुरक्षित कर देता है जैसा वह जाहता है करता है आदि ।
अल्लाह तआला पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह पर विश्वास और उस के नामों तथा विशेष्ताओं पर विश्वास से अल्लाह की महानता का ज्ञान हुता है।
(2) अल्लाह तआला से प्रेम और अनुराग बढ़ता है जिस के कारण अल्लाह के आज्ञानुसार जीवन गुज़ार की शक्ति प्राप्त होती है।
(3) अल्लाह तआला के शक्ति और नराज़गी से डर और भय का एहसास होता है और बुराई और अपराध से बचता है।
ذلك بأن الله هو الحق و أن ما يدعون من دونه هو الباطل وأن الله هو العلي الكبير" الحج :62
“ यह इस लिए कि अल्लाह ही सत्य है और वह सब असत्य है जिन्हें अल्लाह को छोड़ कर यह लोग पुकारते हैं और अल्लाह ही उच्च और महान है। ”
अल्लाह तआला अपने विशेष्ताओं और गुनों में सम्पूर्ण है और वह हर कमी और नक्स से पवित्र है।
किसी भी मामूली वस्तु का बिना उसके बनाने वालेके पाया जाना बुद्धि के विरूद्ध है । उदाहरण देता हूँ कि क्या कोई जलपान बिना बावर्ची के स्वयं तैयार हो जाएगी। इसी तरह कोई दुकान खूद बखूद तैयार होजागी और उस में हर तरह का सामान खूद आजाए, और खूद बखूद बिकने लगे , कोइ अक्ल वाला इस बात को नही मानेगा। तो फिर कैसे होसकता कि इतने बड़े संसार, पृथ्वी, आकाश, पलेनेट्स, पैड़ पौदा , पशु पंक्षी , मनुष्य स्वयं उतपन होगए और सुर्य ,चंदर्मां स्वयं निकलने और डुबने लगे, नदिया और चशमे स्वयं बहने लगे, यह सब इस बात की गवाही देती है कि एक ज़ात उपस्थित है जो इन सब को कन्टरोल करता है। इस बड़ी दुनिया का व्यवस्था उसके आज्ञा तथा इच्छानुसार चल रहा है और वह अल्लाह की ज़ात है। एक अल्लाह पर विश्वास और उसका कोई भागीदार और साझीदार नही है। इसे तौहीद कहा जाता है।
तौहीद को तीन विभाग में विभाजन किया जाता है।
(1) तौहीद रूबूबियत
(2) तौहीद उलूहियत
(3) तौहीद अस्मा तथा सिफात
(1) तौहीद रूबूबियत का अर्थात यह है कि आदमी कठोर विश्वास तथा आस्था रखे कि अल्लाह ही तन्हा संसार और उसकी हर वस्तु का मालिक और स्वामी है, वही सम्पूर्ण वस्तु की रचना की है, वही सब को जीविका देता है, वही सब को मृत्यु देता है, वही सब को जीवित करता है। इसी चीज़ को याद दिलाते हुए अल्लाह तआला फरमाता है।
" رب السموات و الأرض و مابينهما إن كنتم مؤقنين – لا إله إلا هو يحي ويميت ربكم ورب آباءكم الأولين " [ الدخان: 8 ]
अर्थातः “ वह आकाशों और धर्ती का रब और हर उस चीज़ का रब जो आकाशों और धर्ती के बीच हैं यदि तुम लोग वास्तव में विश्वास रखने वाले हो, कोई माबूद उसके सिवा नही है। वही जीवन प्रदान करता है और वही मृत्यु देता है। वह तुम्हारा रब है और तुम्हारे उन पुर्वजों का रब है जो तुम से पहले गुज़र चुके हैं।”
(2) तौहीद उलूहियत का अर्थात यह है कि बन्दा इस बात का इक़्ररार करे कि इबादत और उपासना की सम्पूर्ण किसमें केवल अल्लाह ही के लिए है। अल्लाह तआला ने अपनी इबादत के लिए ही आकाशों और धरती की रचना की और फिर मनुष्य तथा जिनों को इस पर बसाया ताकि वह केवल एक अल्लाह की पूजा करे, अल्लाह ही से आशा लगाए, अपनी हर संकट और परेशानियों में अल्लाह ही को पुकारे, अल्लाह के लिए बलिदान दे, तो जो उसके आज्ञानुसार चलेगा, उसको पुरस्कार देगा, और जो उस के आज्ञा के विरूद्ध चलेगा ,उसको डंडित करेगा। अल्लाह तआला ने मनुष्य तथा जिनों के उत्पन का लक्ष्य अपनी इबादत ही बयान किया है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन पवित्र कुरआन में है।
" و ما خلقت الجن والإنس إلا ليعبدون" [الذاريات:56 ]
आयत का अर्थातः “ मैं ने जिन और मनुष्य को इसके सिवा किसी काम के लिए पैदा नही किया कि वह मेरी बन्दगी करे ”
अल्लाह तआला ने मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए नबियों और रसूलों को भेजा जैसा कि अल्लाह तआला का पवित्र कुरआन में इरशाद है।
" ولقد بعثنا في كل أمة رسولا أن اعبدوا الله و اجتنبوا الطاغوت " [النحل: 36]
“ हम्ने हर समुदाय में एक रसूल भेजा और उसके द्वूवारा सब को सुचित कर दिया कि अल्लाह ही की बन्दगी करो, और बढ़े हुए अवज्ञाकारी से बचो ”
यही तौहीद उलूहियत के बारे में नबियों और उनके समुदाय के बीच टकराव रहा है। अल्लाह तआला ने विभिन्न तरिके से अपनी उलूहियत को प्रमाणित किया है।
अल्लाह तआला ने सम्पूर्ण मानव को आज्ञा दिया कि वह केवल अल्लाह की पूजा करे और उसके सिवा सर्व झूठे भगवानों को छोड़ दी जाए। इसी में मानव जाती की सफलता और उनका कल्याण है। अल्लाह तआला का कथन पवित्र कुरआन में है।
" ياأيهاالناس اعبدوا ربكم الذي خلقكم و الذين من قبلكم لعلكم تتقون- الذي جعل لكم الأرض فراشا و السماء بناء وانزل من السماء ماء فأخرج به من الثمرات رزقا لكم فلا تجعلوا لله أندادا وأنتم تعلمون " [البقرة: 22]
अर्थातः "लोगों , बन्दगी इख्तियार करो अपने उस रब की जो तुम्हारा और तुम से पहले जो लोग हूऐ हैं उन सब का पैदा करने वाला है। तुम्हारे बचने की आशा इसी प्रकार हो सकती है। वही है जिसने तुम्हारे लिए धर्ती को बिछौना बिछाया, आकाश की छत बनाई ,ऊपर से पानी बरसाया और उसके द्वुवारा हर प्रकार की पैदावार निकाल कर तुम्हारे लिए रोजी जुटाई, अतः जब तुम यह जानते हो तो दुसरों को अल्लाह का समक्ष न ठहराऔ "
मुशरेकीन के माबूद कोई भी काम करने की शक्ति नही रखते बल्कि वह खुद मुह्ताज हैं कि लोग उनकी सेवा करे और उसका खयाल रखे जैसा कि अल्लाह तआला ने एक उधाहरण के माध्यम से लोगों को समझाया है।
" ياأيهاالناس ضرب مثل فاستمعوا له ان الذين تدعون من دون الله لن يخلقوا ذبابا ولو اجتمعوا له وأن يسلبهم الذباب شيئا لا يستنقذوه منه- ضعف الطالب والمطلوب "[ الحج:73]
हे लोगो ! एक मिसाल दी जा रही है, ज़रा ध्यान से सुनो, अल्लाह के सिवाय तुम जिन जिन को पुकारते रहे हो वे एक मक्खी तो पैदा नहीं कर सकते अगर मक्खी उन से कोई चीज़ ले भागे तो यह उसे भी उस से छीन नहीं सकते। बड़ा कमज़ोर है माँगने वाला और बहुत कमज़ोर है जिस से माँगा जा रहा है।
धरती और आकाश की हर चीज़ को अल्लाह तआला ही ने उत्पन किया है। इन सम्पूर्ण वस्तु को वही रोज़ी देता है, सम्पूर्ण वस्तु में वही तसर्रुफ करता है। तो यह बिल्कुल बुद्धि के खिलाफ है कि कुछ लोग अपने ही जैसों या अपने से कमतर की पुजा और उपासना करे, जब कि वह भी उनही की तरह ज़रूरतमन्द और मुह्ताज है। जब मख्लूक में से कोइ भी सच्चा माबूद का हक्दार नही है तो वही इबादत का हक्दार हुआ जिस ने इन सारी चीज़ों को पैदा किया है और वह केवल अल्लाह तआला की ज़ात है जो हर कमी और ऐब से पवित्र है।
(3) तौहीद अस्मा तथा सिफातः अर्थात कि अल्लाह तआला को उनके नामों और विशेष्ताओं में एक माना जाऐ, और अल्लाह के गुनों और विशेष्ताओं तथा नामों में कोई उसका भागिदार नही है। इसी तरह अल्लाह के इन विशेष्ताओं और गुनों को वैसे ही माना जाऐ जिस तरह अल्लाह ने उसको अपने लिए बताया है या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस विशेष्ता के बारे में खबर दिया है और उन विशेष्ताओं और गुनों को न माना जाऐ जिस विशेष्ता का इन्कार अल्लाह ने अपने से किया है या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस विशेष्ता का इन्कार किया है । जैसा कि अल्लाह तआला का कथन पवित्र कुरआन में है।
" ليس كمثله شيء وهوالسميع البصير "
“ अल्लाह के जैसा कोई नही है और अल्लाह तआला सुनता और देखता है।”
इस लिए अल्लाह के सिफात और गुनों को वैसे ही माना जाऐ जैसा कि अल्लाह ने खबर दिया है या उसके नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने खबर दिया है। न ही उस सिफात के अर्थ को बदला जाए और न ही उसके अर्थ का इनकार किया जाए और न ही उस सिफात की कैफियत बयान किया जाए और न ही दुसरे किसी वस्तु से उसकी उदाहरण दी जाए, बल्कि यह कहा जाए कि अल्लाह तआला सुनता है, देखता है, जानता है, शक्ति शाली है जैसा कि इस के शान के योग्य है, वह अपनी विशेष्ता में सम्पूर्ण है। कोई भी वस्तु उस जैसा नही हो सकता और न ही उस के विशेष्ता में भागिदार हो सकता है। इसी तरह इन सर्व विशेष्ताओं और गुनों की अल्लाह से इन्कार किया जाए जिस का इन्कार अल्लाह ने अपने नफ्स से किया है। या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस सिफत का इन्कार अल्लाह से किया है। यह आस्था रखते हेतु कि इस सिफत के विपरित सिफत में अल्लाह सम्पूर्ण और कमाल को है। इसी तरह अल्लाह के बारे में ऐसे नाम या विशेष्ता का प्रयोग न किया जाए जिनका जिक्र न तो कुरआन में है और न ही उस की नफी की गइ है, तो एसे नामों और विशेष्ताओं के बारे में खामुशी और कुछ न कहना उचित और उत्तम है। बल्कि उस शब्द का विस्तार से अर्थात पूंछना जरूरी है। यदि विस्तारित अर्थात के समय कोई कमी या अल्लाह की शान में खराबी का माना पाया जाता है तो उसका इन्कार अनिवार्य है। जैसाकि अल्लाह तआला का आज्ञा है।
"و لله الأسماء الحسنى فادعوه بها و ذروا الذين يلحدون في أسمائه سيجزون ما كانوايعملون" [الأعراف: 180]
इस आयत का अर्थातः अल्लाह अच्छे नामों का अधिकारी है। उसको अच्छे ही नामों से पुकारो और उन लोगों को छोड़ दो जो उसके नाम रखने में सच्चाइ से हट जाते है, जो कुच्छ वह करते हैं वह उसका बदला पा कर रहेंगे।
अल्लाह तआला की विशेष्ता दो तरह की है।
(1) अल्लाह की व्यक्तिगत विशेष्ताः अल्लाह तआला इस विशेष्ता से हमेशा से है और हमेशा रहेगा उदाहरण के तौर पर , अल्लाह का ज्ञान , अल्लाह का सुनना , देखना , अल्लाह की शक्ति , अल्लाह का हाथ, अल्लाह का चेहरा, आदि और इन विशेष्ता को वैसे ही माना जाए जैसा कि अल्लाह तआला के योग्य है और न ही इन विशेष्ताओं के माना को परिवर्तन की जाए और न ही इन विशेष्ताओं के माना का इन्कार की जाए और न ही इन विशेष्ताओं को दुसरे किसी वस्तु से उदाहरण दी जाए और न ही इन विशेष्ताओं की अवस्था या हालत बयान की जाए।
(2) अल्लाह की इख्तियारी विशेष्ताः यह वह विशेष्ता है जो अल्लाह के इच्छा और इरादा पर निर्भर करता है। यदि अल्लाह चाहता है तो करता और नही चाहता तो नही करता, उदाहरण के तौर पर यदि अल्लाह तआला किसी दास के अच्छे काम पर प्रसन्न होता है तो किसी दास के बुरे काम पर अप्रसन्न होता है, किसी दास के अच्छे काम से खुश को कर उसे ज़्यादा रोज़ी देता है तो किसी के बदले को परलोकिक जीवन के लिए सुरक्षित कर देता है जैसा वह जाहता है करता है आदि ।
अल्लाह तआला पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह पर विश्वास और उस के नामों तथा विशेष्ताओं पर विश्वास से अल्लाह की महानता का ज्ञान हुता है।
(2) अल्लाह तआला से प्रेम और अनुराग बढ़ता है जिस के कारण अल्लाह के आज्ञानुसार जीवन गुज़ार की शक्ति प्राप्त होती है।
(3) अल्लाह तआला के शक्ति और नराज़गी से डर और भय का एहसास होता है और बुराई और अपराध से बचता है।
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