सोमवार, 27 जून 2011

सूर्य और चन्द्र ग्रहण




अल्लाह तआला ने ब्राह्माण्ड की सब वस्तुओं को किसी न किसी कारण और मानव के लाभ के लिए रचना किया है, इन्हीं में सूर्य और चन्द्र भी है, सूर्य और चन्द्र को भी बहुत सी कारणों के कारण उत्पन्न किया गया है, दोनो अपने अपने रास्ते पर चक्कर लगाते हैं, यह दोनों अल्लाह की महानता बयान करते और अल्लाह की पूजा करते हैं। अल्लाह के इस कथन पर ध्यान पूर्वक विचार करें, ” और सुरज, वह अपने ठिकाने की ओर चला जा रहा है, वह प्रभुत्वशाली सर्वज्ञ सत्ता का बाँधा हुआ हिसाब है, (38) और चाँद, उसके लिए हमने मंजिलें नियुक्त कर दी हैं यहां तक कि उनसे गुजरता हुआ वह फिर खजूर की सूखी शाख के सदृश रह जाता है (39) न सुरज के बस में यह है कि वह चाँद को जा पकड़े और न रात दिन से आगे बढ़ सकती है। सब एक एक कक्षा में तैर रहे हैं।(40) (सूरः या सीन)

अल्लाह तआला ने सूर्य और चंद्र का एक लाभ वर्षों की गिन्ती को बताया है ताकि दिन, तिथि और वर्षों में अन्तर किया जा सके। पवित्र कुरआन में अल्लाह ने इसे भी याद दिलाया है। ” वही है जिसने सूरज को प्रकाशमान बनाया और चाँद को घटने –बढ़ने की मंजिलें ठीक ठीक निश्चित कर दीं ताकि तुम उस से वर्षों और तारिखों के हिसाब मालूम करो, अल्लाह ने यह सब कुछ सत्यानुकूल ही पैदा किया है। वह अपनी निशानियाँ खोल खोल कर पेश कर रहा है, उन लोगों के लिए जो ज्ञानवान है। यकीनन रात और दिन के उलट- फेर में और हर उस चीज़ में जो अल्लाह ने ज़मीन और आसमानों में पैदा किया है, निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ( असत्य देखने और असत्य कार्य करने से ) बचना चाहते हैं। ” (सूरः यूनुसः 5,6)

इस के सिवा भी बहुत से लाभ हैं जिस के कारण अल्लाह ने सूर्य और चाँद की रचना की है।

विज्ञानिकों का कहना है कि जब सुरज और धरती के बीच चाँद आ जाता है तो सुरज ग्रहण लगता है और जब चाँद और धरती के बीच सुरज आ जाता है तो चाँद ग्रहण लगता है।

परन्तु इस्लामिक शिक्षा के अनुसार सूर्य और चंद्र ग्रहण पर विचार करते हैं।

सूरज और चाँद अल्लाह की दो बड़ी निशानी हैं जिस के ग्रहण के माध्यम से अल्लाह तआला लोगों को अपने पकड़ और अज़ाब से डराता है, जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समय सूरज ग्रहण हुआ तो कुछ लोग कहने लगे कि सूरज ग्रहण हुआ है क्यों कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बेटे इबराहीम का निधन हुआ है तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने स्पष्ठ कर दिया, ” निः संदेह सुरज और चाँद अल्लाह की निशानियों में दो निशानी हैं, जो किसी की मौत के कारण ग्रहण नहीं लगते, परन्तु अल्लाह तआला इस ग्रहण के माध्यम से अपने दासों को डराता है। ( फत्हुल-बारी शर्है सही बुखारी)
दुसरी हदीस में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इन शब्दों से फरमाया। ” ऐ लोगों, बैशक सूर्य और चंद्र अल्लाह की निशानियों में दो निशानी हैं, जो किसी की मौत और जन्म के कारण ग्रहण नहीं लगते, और जब तुम सुरज और चाँद को ग्रहण लगते देखो तो नमाज़ पढ़ो, अल्लाह के लिए दान करो और अल्लाह की बड़ाई बयान करो, (सही इब्नि हिब्बान)
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समय में कई बार सुरज ग्रहण लगा था और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने बहुत ही लम्बी लम्बी नमाज़ें पढ़ा था।

रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हदीसों से सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय निम्न शिक्षा मिलता है।

1- जब सूर्य और चंद्र ग्रहण लगने लगे तो लोगों के लिए उचित है कि नमाज़ की ओर दौड़ पड़े और लम्बी लम्बी नमाज़ पढ़े।
2- सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह का जिक्र और नाम लिया जाए, ला ईलाह इल्लल्लाह और अल्लाहु अकबर कहा जाए और अल्लाह से ज़्यादा से ज़्यादा दुआ किया जाए।
3- सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय गरीबों, मिस्कीनों और फकीरों की सहयता और उन्हें दान किया जाए। खास कर ज़रूरतमन्द लोगों के मदद की जाए।
4- सूर्य और चंद्र ग्रहण की नमाज़ सुन्नत नमाज़ है परन्तु कुछ विद्वानों ने वाजिब कहा है।
5- यह नमाज़ सूर्य और चंद्र ग्रहण के आरंभ समय से ले कर, ग्रहण के अंतिम समय तक पढ़ा जाएगा।
6- सूर्य और चंद्र ग्रहण की नमाज़, दो रकआत में चार रूकूअ और चार सजदा किया जाता है। नमाज़
का तरीका इस तरह है कि अल्लाहु अकबर कह कर हाथ बांधने के बाद सूरः फातिहा पढ़ने के बाद कोई बड़ी सूरः लम्बी क़िरात के साथ पढ़ा जाए, फिर देर तक रूकूअ किया जाए, फिर रूकूअ से उठ कर सूरः फातिहा पढ़ने के बाद कोई बड़ी सूरः लम्बी क़िरात के साथ पढ़ा जाए, फिर रुकूअ किया जाए और चाहि तो फिर किरात करे, या चाहि तो सज्दा करे और दुसरी पहली रक्आत की तरह अदा किया जाऐगा।
7- लोगों के साथ अत्याचार करने से डरा जाए, पापों और गुनाहों से रूका जाए क्यों कि बहुत सारे क़ौमों और समुदाय के नाश तथा बर्बाद और आसमानी संकट में लिप्त होने का कारण यही रहा है।
8- अपने पापों और गुनाहों से अल्लाह से तौबा और क्षमा माँगा जाए, क्यों अल्लाह तआला अपराधियों पापियों और अत्याचारियों को सूर्य और चंद्र ग्रहण के माध्यम से चेतावनी देता है। अपने पापों, अपराधों और अशुद्ध कार्यों से रूक जाओं वर्ना अल्लाह की संकटें पकड़ लेगी। अल्लाह तुम्हे तुम्हारे अपराधो के कारण सर्वनाश कर देगा और उस समय कोइ तुम्हारी सहायता और मदद नहीं कर सकेगा।
9- सूर्य और चंद्र ग्रहण किसी मानव और महापुरूष के निधन या जन्म लेने के कारण नही होता है, बल्कि अल्लाह इस के माध्यम से अपने बन्दों, मनुष्य को बुराई और दुर्व्यवहार से डराता है।
10- अल्लाह तआला ने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को बहुत सी भविष्य की चीज़ो का ज्ञान दिया था। जैसा कि अल्लाह का नियम रहा है कि अपने खास बन्दों को भविष्य की कुछ चीज़ों का ज्ञान देता है, जैसा कि अल्लाह तआला ने पवित्र कुरआन में स्वयं फरमाया, ” वह ( अल्लाह) परोक्ष का जाननेवाला है, अपने परोक्ष को किसी पर प्रकट नहीं करता, सिवाए उस रसूल के जिसे उसने (परोक्ष का ज्ञान के लिए) पसन्द कर लिया हो, ” ( सूरः जिनः 26,27)

बुधवार, 22 जून 2011

मृत्यु एक खुली वास्तविकता

निःसंदेह यह संसार एक परिक्षास्थल है। इस में जो कर्म हम करेंगे, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, उसी के अनुसार हमें आगे के दोनों जीवन में बद्ला प्राप्त होगा, यदि हमने अपनी जीवन को अच्छे कार्यों में लगाए, लोगों के भलाइ के काम किये, लोगों को उनका अधिकार दिये, अल्लाह की उपासना और पूजा सही तरीके से किये तो हमें अच्छा परिणाम मिलेगा, यदि हमने अपनी जीवन को गलत कामों में लगाए, दुसरे लोगों के साथ अत्याचार किया, और एक अल्लाह को छोड़कर अन्गिनित भगवानो के सामने अपना माथा झुकाया तो हमारा मालिक हमें डंडित करेगा, अल्लाह हमारे अपराधों के बराबर हमें बदला देगा,
परलौकिक जीवन मृत्यु के बाद आरंभ हो जाता है जिस का पहला स्थान कब्र है जिस में अपने कर्म के अनुसार सज़ा या पुरस्कार मिलेगा, फिर प्रत्येक मानव जीवित होगा जो परलौकिक जीवन का दुसरा स्थान है, जहाँ अल्लाह हर इन्सान से उसके कर्मों के बारे में प्रश्न करेगा, इसके बाद जन्नत (स्वर्ग) या जह़न्नम( नर्क) में डालेगा, यही जीवन ही वास्तविक जीवन और हमेशा रहने वाली जीवन है।
मृत्यु एक खुली वास्तविक्ता है, हर जीवधारी को एक दिन यह संसार छोड़ कर जाना है, इस लिए यदि वह परलौकिक जीवन में परसन्न रहना चाहता है, परलौकिक जीवन में सफल्ता प्राप्त करना चाहता है , जन्नत (स्वर्ग) में परवेश करना चाहता है तो वह इस धर्ती पर अच्छा काम करे, लोगों के साथ उत्तम व्यहवार करे, लोगों को उस का अधिकार दे, लोगों के लिए वही चीज़ पसन्द करे जो अपने लिए पसन्द करता है। पुण्य के कार्यों में आगे आगे रहे, जो धन-दौलत अल्लाह ने जो उसे प्रदान किया है, उस में से कुच्छ ग़रीबों, मिस्कीनों और ज़रूरतमन्द व्यक्तियों को अल्लाह को खूश करने के लिए दान करे, अल्लाह की इबादत अच्छे ढ़ंग से करें, अल्लाह की इबादत में किसी को उसका भागीदार न बनाए, अल्लाह से अपने पापों, अत्याचारों की क्षमा मांगे, क्यों कि अल्लाह तआला ने खुले शब्दों में मानव को चेतावनी दे दी है कि जो अच्छा काम करना है, इसी दुनिया में करलो, मृत्यु के बाद दोबारा तुम्हे मुहलत मिलने वाली नहीं है, अल्लाह तआला का फरमान है
" يا أيها الذين آمنوا لا تلهكم أموالكم ولا أولادكم عن ذكر الله ومن يفعل ذلك فأولئك هم الخاسرون – وأنفقوا من ما رزقناكم من قبل أن ياتي أحدكم الموت فيقول رب لولا أخرتني إلى أجل قريب فأصدق وأكن من الصادقين- ولن يؤخر الله نفسا إذا جاء أجلها والله خبير بما تعلمون "- المنافقون: 9-11)
आयत का अर्थः" ऐ लोगों जो ईमान लाए हो, तुम्हारी सम्पत्ती और तुम्हारी संतान तुम को अल्लाह की याद से ग़ाफिल न कर दे और जो ऐसा करेंगें, वह घाटे में रहने वाले लोग होंगे, जो जीविका हम्ने तुमको दी है उस में से खर्च करो, इस से पहले कि तुम में से किसी के मौत का समय आजाऐ, और उस समय वह कहे कि ऐ मेरे रब, क्यों न तूने मुझे थोड़ी सी मुह्लत और दे दी कि मैं दान देता और अच्छे लोगों में शामिल हो जाता, हालाकि जब किसी के कर्म करने की मुह्लत के समाप्त होने का समय आजाता है तो अल्लाह तआला किसी व्यक्ती को हरगिज़ और ज़्यादा मुह्लत नही देता है और जो कुच्छ तुम करते हो अल्लाह को उसकी खबर है।"

जो व्यक्ती भी इस धर्ती पर जन्म लिया है, उसे मरना है, उस का देहांत निश्चित है। अल्लाह तआना ने पवित्र कुरआन में सम्पूर्ण वस्तु के नष्ठ होने की सूचना दे दी है।
كل من عليها فان - ويبقى وجه ربك ذوالجلال والاكرام - سورة الرحمن: 26,27
इस आयत का अर्थः हर चीज़ जो इस जमीन में है नाशवान है, और सिर्फ तेरे रब का प्रतापवान एवं उदार स्वरूप ही बाकी रहने वाला है।" (सूरः अर-रहमानः26,27)

जब हर मानव को एक दिन यह संसार छोड़ कर जाना है तो वह अपने साथ किया ले कर जाएगा। खाली हाथ इस धरती पर आया था और खाली हाथ इस धरती से जाऐगा, तो क्यों नही वह काम किया जाए। जो उसे अमर बना दे। जो मृत्यु के बाद उस को लाभ पहुंचाए। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, " जब इन्सान का निधन हो जाता है तो उस के कर्म करने का समय और उसका पुण्य समाप्त हो जाता है सिवाए तीन कर्म के जिस का लाभ उसे मिलता रहता है। हमैशा रहने वाला दान, ऐसा ज्ञान जिस से लोग लाभ उठाते रहेंगे, और नेक संतान जो माता-पिता के लिए अल्लाह से दुआ करते रहते हैं। ( सुनन तिर्मिज़ी)

बुधवार, 8 जून 2011

ईमान का छटा स्तम्भः भाग्य , क़िस्मत , नसीब की अच्छाई या बुराई पर विश्वास तथा ईमान है।



भाग्य, क़िस्मत , नसीब का अर्थात यह कि अल्लाह ने अपने पुर्व कालिन ज्ञान और अपनी हिक्मत के बिना पर इस श्रेष्टी की रचना की है, और इन सब को लौट कर अल्लाह की ओर जाना है, अल्लाह तआला ही सम्पूर्ण वस्तु का स्वामी है और सब पर उस की शक्ति है, जो चाहता है करता है। उसने अपने ज्ञान से सर्व मनुष्य के भाग्य में अच्छा या बुरा लिख दिया है अब वैसा ही होगा जैसा कि अल्लाह तआला ने लिख दिया है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है,
ما اصاب من مصيبة في الأرض ولا في السماء ولا في أنفسكم إلا في كتاب من قبل أن نبرأها- إن ذلك على الله يسير – لئلا تاسوأ على ما فاتكم ولا تفرحوا بما أتاكم - الحديد:32

इस आयत का अर्थातः " कोइ भी मुसीबत, संकट, परिशानी एसी नही है जो धरती में या तुम्हारे ऊपर उतरती है और हम ने उस को पैदा करने से पहले एक किताब में लिख न रखा हो, एसा करना अल्लाह के लिए बहुत ही सरल कार्य है, ताकि जो कुछ भी हाणी तुम को पहुंचे उस पर तुम्हारा दिल छोटा न हो, और जो कुछ भी लाभ तुम को पहुंचे उस पर तुम फूल न जाओ " ( सुरः अल- हदीदः32)

भाग्य के चार दर्जे हैं, इन चारों पर ईमान लाना जरूरी है,

(1) अल्लाह के अज्ली इल्म पर ईमान लाना जो कि प्रति वस्तु को सम्मिलित और घेरे हुए है।
ألم تعلم أن الله يعلم ما في السموات و الأرض - الحج:70

" क्या तुम जानते नही कि आकाश और धरती की हर चीज़ अल्लाह के ज्ञान में है, सब कुछ को एक किताब में अंकित किया है, अल्लाह के लिए यह बहुत सरल है " ( सूरः अल-हज्जः70)

(2) अल्लाह ने अपने इल्म की बिना जो नसीब में लिख दिया है, उस पर ईमान लाया जाए। अल्लाह तआला का कथन है,
ما فرطنا في الكتاب من شيئ - الأنعام: 38
अर्थः " हम्ने भाग्य के लेख में कोइ कमी नहीं छोड़ी है। " (सूरः अल-अन्आमः38)
रसूल स0 अ0 स0 ने फरमाया
" كتب الله مقادير الخلائق قبل أن يخلق السموات و الأرض بخمسين ألف سنة "
अर्थः " अल्लाह तआला ने आसमानों और धरती के रचने से पचास हज़ार वर्ष पुर्व ही सर्व मानव के भाग्य को लिख दिया है। "

(3) हर चीज़ अल्लाह की इच्छा और चाहत से होती है। बिना उस के अनुमति के एक पत्ता भी नही हिल सकता, इस बात पर कठोर विश्वास रखा जाए। अल्लाह तआला फरमाता है।
و ما تشاؤون إلا أن يشاء الله رب العالمين - التكوير: 29
आयत का अर्थः " और तुम्हारे चाहने से कुछ नही होता जब तक सारे संसार का स्वामी अल्लाह न चाहे " सूरः अत्तक्वीरः 29)
(4) अल्लाह ही सम्पूर्ण वस्तु का उत्तपादक तथा रचनाकर्ता है। उसने प्रति वस्तु को मनुष्य के प्रयोग के लिए पैदा किया और मनुष्य को अल्लाह की इबादत के लिए पैदा किया है। अल्लाह तआला का कथन है।
الله خالق كل شيئ وهو على كل شيئ وكيل - الزمر:62
आयत का अर्थः " अल्लाह हर चीज़ का पैदा करने वाला है और वही हर चीज़ पर निगह्बान है। " सूरः अज़्ज़ुमरः 62)

भाग्य तीन प्रकार के हैं।

(1) वह भाग्य जिस के खत्म करने या लौटाने की शक्ति बन्दो को नही है। उदाहरण के तौर पर आकाश तथा धरती में आने वाले संकट, भूकंभ, वर्षा का होना, जीविका का कम या अधिक प्राप्त होना, संतान का जन्म, मानव को रोग या स्वस्थ में लिप्त होना तथा मानव का देहांत पाना, जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
" كل نفس ذائقة الموت "
इस आयत का अर्थः " प्रति जीवधारी को मृत्यु का स्वाद चखना है। "
" إن ربك يبسط الرزق لمن يشاء ويقدر "
इस आयत का अर्थः " निःसंदेह आप का पालन पोशक जिस के लिए चाहे रोज़ी अधिक करता है, और जिस के लिए चाहे रोज़ी कम करता है। "

(2) इस भाग्य को समाप्त करना मानव की शक्ति से बाहर है। परन्तु मानव इस की मार्गदर्शन कर सकता है और इस की तेजी को कम करने की शक्ति है, उदाहरण के तौर पर , इन्सानी भावना, मेल-जोल, वातावरण, और पुर्वज से प्राप्त परंपरा और रीति-रेवाज आदि.
भावनाओं और मानव अवश्यक्ता को बिल्कुल समाप्त करने का आज्ञा हमें नही दिया गया है और नही यह हमारी शक्ति में है। बल्कि इन चीज़ों का अच्छा मार्गदर्शण करना ही हमारे लिए मुक्ति का कारण बनेगा और अनुमित वस्तु का प्रयोग हमारे लिए लाभदायक होगा। जैसा कि अल्लाह तआला के नबी मोहम्मद स0 अ0 स0 ने फरमाया तुम अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाना भी पुण्य का कार्य है।
मानव लोगों के साथ मैल-जौल कर रहना पसन्द करता है। अल्लाह तआला ने भी इसी का आज्ञा दिया है कि हम अच्छे , सच्चे लोगों को सोथ रहें , मूल आदर्श के मालिक व्यक्ति को साथी बनाया जाए और बुरे लोग, करपटाचारी लोगों से दूर तथा अलग थलग रहा जाऐ, नही तो तुम भी गलत समझे जाओगो,
" يا أيها الذين آمنوا اتقوا الله وكونوا مع الصادقين "
" ऐ ईमान वालो, अल्लाह से डरो, और सच्चे लोगों के साथ रहो "
तो इन चीजों के उपस्थित होने पर बदला नही है बल्कि इन चीजों के अच्छे या बुरे प्रयोग पर बदला देगा। जो जैसा कर्म करेगा उसी प्रकार उसे उपकार या सज़ा दिया जाऐगा।

(3) वह कार्य जिस के करने या न करने का मानव को इख्तियार और शक्ति दी गई है। चाहे तो वह कार्य करे और चाहे तो नहीं करे, इसी भाग्य पर मानव से प्रश्न किया जाएगा, अल्लाह की आज्ञाकारी पर पुरस्कार मिलेगा और अवज्ञाकारी पर डंडित किया जाएगा। अल्लाह तआला अपने आज्ञा के अनुसार जीवन बिताने के लिए मानव के बीच अपने ग्रन्थों और रसूलों को भेजा और इन रसूलों और पुष्तकों के माध्यम से आदेश दिया कि मानव इन रसूलों और पुष्तकों के शिक्षा के अनुसार जीवन गुज़ारे, जो लोग इन रसूलों और पुष्तकों के शिक्षा के अनुसार जीवन गुज़ारेंगे वह स्वर्ग में प्रवेश होंगे और जो लोग इन रसूलों और पुष्तकों के शिक्षा के अवज्ञाकारी करेंगे उन्हें नरक में डालेगा। इसी भाग्य के प्रति मानव से बाज़ पुर्स किया जाएगा।
जिन लोगों ने अपराध किया ,पाप किया, परन्तु अल्लाह के साथ शिर्क न किया होगा तो आशा है कि अल्लाह चाहे तो उसे क्षमा कर देगा या चाहे तो कुछ सजा दे।

भाग्य के अच्छाई या बुराई पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।

(1) मेहनत और उपाए करते हुए अल्लाह पर विश्वास रखा जाए, क्यों कि मेहनत का फल अल्लाह की चाहत पर निर्भर करता है।
(2) हृदय को हर हाल में शान्ति प्राप्त होगी। यदि प्रयास का अच्छा परिणाम प्राप्त हुआ तो भी अल्लाह का शुक्र अदा किया जाए और यदि प्रयास का अच्छा परिणाम प्राप्त न हुआ तो भी अल्लाह के दी हुई भाग्य पर सन्तुष्टी मिलेगी।
(3) यदि मेहनत का अच्छा और उत्तम फल मिला है तो इस पर न इतराए और घमंड न करे बल्कि अल्लाह का एह्सान माने और अल्लाह का शुक्र अदा करे।
(4) किसी अप्रिय वस्तु के प्रकट होने या लक्ष्य को प्राप्त न करने पर या मेहनत का अच्छा फल न मिलने पर ग़म या परेशान न हो, बल्कि इस बात पर परसन्न हो कि यह अल्लाह का निर्णय था और अल्लाह का निर्णय हो कर ही रहेगा, इस पर सब्र करे, और अल्लाह से पुण्य की आशा रखे। तो हृदय को शान्ति मेलेगी और बहुत सारी परेशानी घुटन से मुक्ति मेलेगी।

भाग्य पर सही तरीके विश्वास न होने के कारण बहुत से नुक्सानात उठाने पड़ते है।
कुछ लोग भाग्य को सुधारने के चक्कर में जादुगरों, ठोंगी बाबाओं और ठगों के पास जा कर अपना धनदौलत नष्ठ करते हैं, कभी कभी अपनी इज़तो को दागदार करवा लेते हैं, ऐसे लोगों का सब से पहले अल्लाह पर विश्वास कम होता है, मेहनत से जी चुराते या अपने किये गये तदबीरों के प्रति सही से जाइज़ा नही लेते हैं और नुक्सान उठाते है,
सितारों पर विश्वास रखना, या हाथ देख कर भाग्य बताना , यह सब मुर्ख बनाने का काम है और अल्लाह के साथ शिर्क भी होगा और अल्लाह के साथ शिर्क ऐसा पाप है जो बिना अल्लाह से तौबा किये माफ नही होता है।

रविवार, 5 जून 2011

ईमान का पांचवा स्तम्भः आखिरत के दिन (अन्तिम दिन) पर विश्वास तथा ईमान है।



संसारिक जीवन के समाप्त होने के बाद पारलोकिक जीवन में परवेश होने पर पुख्ता और कठोर आस्था रखना ही आखिरत के दिन पर विश्वास को शामिल है। आखिरत के दिन का आरम्भ मनुष्य की मृत्यु से हो कर , क़ियामत के आने, फिर क़ब्र से उठाऐ जाने, हश्र के मैदान में जमा होने ,ह़िसाब का होना, पुल सिरात़ से गुज़रना और जन्नत या जह़न्नम में परवेश होने का नाम है।
अल्लाह तआला मख्लूक (प्रति वस्तु) को बेकार और बेमक्सद पैदा नही किया है। बल्कि एक लक्ष्य के लिए रचना किया है और मृत्यु के बाद दोबारा इसे उठाएगा और उस व्यक्ति का जैसा कर्म होगा उसी के अनुसार पुरस्कार या डंडित करेगा। आखिरत के दिन को अल्लाह ने क़ुरआन में विभिन्न नामों से ज़िक्र किया है। क़ियामत का दिन, क़ारिआ ( खड़ खड़ा देने वाली) , ह़िसाब का दिन, बद्ले का दिन, आफत और संकट, वाकिअ होने वाली, कान बह्रा कर देने वाली, छुपा लेने वाली, आदि
क़ियामत कब प्रकट होगी ?
वास्तविक्ता है कि क़ियामत के प्रकट होने का ज्ञात किसी को नही है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
" يسئلونك عن الساعة أيان مرساها- قل إنما علمها عند ربي – لا يجليها لوقتها إلا هو – ثقلت في السموات والأرض – لاتأتيكم إلا بغتة – يسئلونك كأنك حفيَ عنها – قل إنما علمها عند الله ولكن أكثر الناس لا يعلمون "( الأعراف: 187)
इस आयत का अर्थातः यह लोग आप (स0 अ0 स0) से क़यामत के बारे में प्रश्न करते हैं कि वह कब आयेगी। आप स0 अ0 स0)कह दीजिए कि इस का इल्म केवल मेरे रब के पास ही है। इस को इस के वक्त पर सिवाए अल्लाह के कोइ दूसरा ज़ाहिर नही करेगा, वह आकाशों और धरती की बहुत बड़ी ( घटना) होगी, वह तुम पर अचानक आ पड़ेगी , वह आप (स0 अ0 स0) से इस तरह प्रश्न करते हैं जैसा कि आप (स0 अ0 स0) उस की खोज कर चुके हैं। आप कह दीजिए कि उस का इल्म खास तौर से अल्लाह ही के पास है। परन्तु ज्यादातर लोग नही जानते। और प्रिय नबी स0 अ0 स0 के कथन से भी प्रामाणित है। जब जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आप स0 अ0 स0 से प्रश्न किया, क़यामत कब प्रकट होगी ? तो आप स0 अ0 स0 ने उत्तर दिया कि " इस का ज्ञान न मुझे है और न ही तुम्हें " परन्तु क़यामत प्रकट होने से पुर्व कुछ छोटी और कुछ बड़ी चिह्ना प्रकट होगी, इस के बाद ही क़यामत प्रकट होगी।

छोटी निशानियाँसामान्यता-
क़ियामत के आने से एक लम्बी अवधि पूर्व घटित होंगीं जिन में से कुछनिशानियाँ प्रकट हो चुकी हैं और निरंतर प्रकट हो रही हैं और कुछ चिह्ना अभी तक अस्तित्व में नहीं आई हैं किन्तु वे प्रकट होंगी जैसाकि प्रिय नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म ने इसकी सूचना दी हैं।
क़ियामत की छोटी चिह्ना बहुत हैं और बहुत सारी सहीह हदीसों में उनका वर्णन आया है

क़ियामत की छोटी निशानियोंमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
1- नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नबी बनाकर भेजा जाना।
2- नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का देहान्त होना।
3- बैतुल मक्दिस कीविजय।
4- फित्नों (उपद्रव) काप्रकट होनाउन्हीं में से इस्लाम के प्रारंभिक युग में उत्पन्न होने वाले फित्नेहैं, उसमान रज़ियल्लाहु अन्हु की हत्या, जमल और सिफ्फीन की लड़ाई, खवारिज का प्रकट होना, हर्रा की लड़ाई और क़ुर्आन को मख्लूक़ कहने का फित्ना।
5- नबी (ईश्दूत) होने कादावा करने वालों का प्रकट होनाउन्हीं नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) के दावेदारों में सेमुसैलमा कज़्ज़ाब" और "अस्वद अंसी" हैं।
6- हिजाज़ (मक्का और मदीनाके क्षेत्र को हिजाज़ कहा जाता है) से आग का प्रकट होना और यह आग सातवीं शताब्दीहिज्री के मध्य में वर्ष 654 हिज्री में प्रकट हुई थी और यह एक बड़ी आग थी, इस आग के निकलने के समय मौजूद तथा उसके पश्चात के उलमा ने इसका सविस्तार वर्णन किया है, इमाम नववी फरमाते हैं कि "हमारे ज़माने में वर्ष 654 हिज्री में मदीना में एक आग निकली। यह मदीना के पूरबी छोर पर हर्रा के पीछे एक बहुत बड़ी आग थी। पूरे शाम (सीरिया) और अन्य सभी नगरों में निरंतर लोगों को इसका ज्ञान हुआ तथा मदीना वालों में से जो उस समय उपस्थित थे उन्हों ने मुझे इसकी सूचना दी।"

7- अमानत का खतम होना और अमानत को नाश करने का एक रूप लोगों के मामलों की बागडोर को ऐसे अक्षम और अयोग्य लागों के हवाले कर देना है जो उसको चलाने की क्षमता और योग्यता नहीं रखते हैं।
8- ज्ञान का उठा लिया जाना और अज्ञानता का प्रकट होना और ज्ञान का उठना उलमा (ज्ञानियों) के उठाये जाने के कारण होगा, जैसाकि सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम में इसका वर्णन आया
9- व्यभिचार (ज़िनाकारी)का प्रचलन होना ।
10- सूद (व्याज) काप्रचलन होना ।
11- शराब (मदिरा) पीने कीबहुतायत।
12- बकरियों के चरानेवालों का भवनों में गर्व करना।
13- लौंडी का अपने मालिकको जननाजैसाकि सहीह बुखारी एंव मुस्लिम में यह प्रमाणित है। इस हदीस के अर्थ केबारे में विद्वानों के कई कथन हैं, हाफिज़ इब्ने हजर ने इस अर्थ को चयन किया है किबच्चों में माता-पिता की अवज्ञाकारी की बहुतायत हो जायेगी, चुनाँचि बेटा अपनी माँ से इस प्रकार व्यवहार करेगा जिस तरह लौंडी का मालिक अपनी लौंडी से अपमानजनक और गाली गलोज के साथ व्यवहार करता है।
14- झूठी गवाही की बहुतायतऔर सच्ची गवाही को छुपाना।
15- हत्या (क़त्ल) कीबाहुल्यता।
16- भूकम्पों का अधिकआना।
17- रूमियों की संख्या काअधिक होना और उनका मुसलमानों से लड़ाई करना।
18- कपड़े पहनने के उपरांतनग्न दिखने वाली महिलाओं का प्रकट होना तथा स्त्री की संख्या का अधिक होना।
19- फरात नदी से सोने केपहाड़ का प्रकट होना।
20- दरिंदों और जमादात कामनुष्यों से बात-चीत करना।
इस के सिवा भी कुछ छोटी निशानियाँहैं जो हदीसों से प्रामाणित हैं परन्तु विस्तार के डर से छोड़ दिया गया

क़ियामत की बड़ी निशानियाँ :
(1) धुँआ का प्रकट होना
(2) दज्जाल का प्रकट होना
(3) ईसा बिन मर्यम का उतरना
(4) याजूज- माजूज का नकलना 
(5) तीन बार धरती का धंसना : एक बार पूरब में धंसना (6) और एक बार पच्छिम में धंसना (7) और एक बार अरब द्वीप में धंसना।
(8) सूरज का पच्छिम से निकलना।
(9) चौपाया का निकलना और लोगों से बात-चीत करना।
(10) वहआग जो लोगों को उनके मह्शर (क़ियामत के दिन एकत्र होने के स्थान) की तरफ हाँक कर लेजायेगी।
ये निशानियाँ एक के पीछे एक प्रकट होंगी, जब इन में से पहली निशानी प्रकटहोगी तो दूसरी उसके पीछे ही प्रकट होगी। इमाम मुस्लिम ने हुज़ैफाबिन उसैद अल-ग़िफारी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा कि : नबीसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे पास आये और हम आपस में बात-चीत कर रहे थेतो आपसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूछा : तुम लोग क्या बात-चीत कर रहे हो ? लोगों ने कहा :हम क़ियामत का स्मरण कर रहे हैं
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : क़ियामतनहीं आयेगी यहाँ तक कि तुम उस से पहले दस निशानियाँ देख लो चुनाँचि आप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम ने बताया कि : धुँआ, दज्जाल, चौपाया, सूरज का पच्छिम से निकलना, ईसा बिन मरियम का उतरना, याजूज माजूज, तीन बार धरती का धंसना : एक बार पूरबमें धंसना और एक बार पच्छिम में धंसना और एक बार अरब द्वीप में धंसना और अंतिमनिशानी वह आग होगी जो यमन से निकलेगी और लोगों को उनके मह्शर (क़ियामत के दिन एकत्रहोने के स्थान) की तरफ खदेड़ कर ले जाये गी।" इन निशानियों के क्रम (तरतीब) के बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। सऊदी अरब के एक महान विद्वान मुहम्मद बिन साले अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि, क्या क़ियामत की बड़ीनिशानियाँ क्रमानुसार प्रकट होंगी ? तो उन्हों ने जवाब दिया! क़ियामत की बड़ी निशानियाँ कुछ तो क्रमबद्ध हैं और ज्ञात हैं और कुछ क्रमबद्ध नहीं हैं और उनके क्रम का कोई ज्ञान नहीं है जो निशानियाँ क्रमबद्ध हैं उनमें से ईसा बिन मर्यम का उतरना याजूज माजूज का निकलना और दज्जाल है। क्योंकि (पहले) दज्जाल भेजा जायेगा फिर ईसा बिन मर्यम उतरेंगे और उसे क़त्ल करेंगे फिर याजूज माजूज निकलेंगे।
क़ियामत की यह ब़ड़ी-बड़ी निशानियाँ जब प्रकट होंगी तो क़ियामत निकट आ चुकी होगी और अल्लाह तआला ने क़ियामत कीकुछ निशानियाँ निर्धारित कर दी हैं क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण घटना है जिसके घटित होने की निकटता पर चेतावनी देने की लोगों को आवश्यकता है।"
फिर धरती पर एक भी अच्छा मनुष्य नही रहेगा तो अल्लाह तआला के आज्ञानुसार फरिश्ता इस्राफील अलैहिस्सलाम सूर (नरसिंगा) फुंकेंगे तो क़ियामत प्रकट होगी और सम्पूर्ण वस्तु नाश हो जाऐगी , खतम हो जाऐगी जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
इस आयत का अर्थातः और उस दिन सूर (नरसिंघा) फूंका जाएगा और वह सब मर कर गिर जाऐंगे। जो आकाशों और धरती में है। सिवाए उनके जिन्हें अल्लाह जीवित रखना चाहे, फिर दुसरा सूर (नरसिंघा) फूंका जाएगा और अचानक सब उठ कर देखने लगेंगे। धरती अपने रब के प्रकाश से चमक उठेगी , कर्म पत्रिका ला कर रख दी जाएगी, नबियों और सारे गवाहों को उपस्थित कर दीया जाएगा, लोगों के बीच ठीक ठीक हक के साथ न्याय किया जाएगा, उन पर कण्य भर अत्याचार न होगा, प्रत्येक जीव को जो भी उस ने कर्म किया था उसका पुरा पुरा बदला दिया जाएगा, लोग जो कुछ भी करते हैं अल्लाह उसको खूब जानता है।

आखिरत के दिन( अन्तिम दिन) पर विश्वास तथा ईमान रखने से हमें कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह की आज्ञाकारी की रूची का बढ़ना, क़ियामत के दिन के बदले के लिए ज्यादा से ज्यादा अच्छे काम करने के लिए उत्सव उत्पन होगा, इसी तरह अल्लाह के अज़ाब से भय उत्पन होगा, और लोग बुराइ और खलत कार्य से दूर होना,
(2) दुनिया की नेमतें जिन मुस्लिम को प्राप्त न होइ है और अल्लाह की इबादत करते हुए वह परसन्न है तो उस के लिए हार्दिक संतुष्टी है कि आखिरत में इस संसारिक नेमतों के बदले न खतम होने वाली नेमतें दिया जाएगा।

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ? महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?   महापाप (बड़े गुनाह) प्रत्येक वह कार्य जिस का पाप बहुत ज़्य...