मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

अच्छे आचरण के लिए महत्वपूर्ण विशेष्ता



इस्लाम ने अच्छे आचरण और स्वभाव वाले व्यक्तियों को उच्च स्थान पर स्थापित किया है। उत्तम व्यवहार एवं सुन्दर आचार एक आदर्श समाज की निर्माण के लिए ईंट का काम करती है और सुन्दर संस्कृति की निर्माण के लिए ठोस नीव है। अच्छे व्यवहारिक व्यक्ति उसी समय माना जाएगा जब उस व्यक्ति के अन्दर कुछ महत्वपूर्ण विशेष्ता पाई जाए। बहुत सारे खुबियों का मालिक हो, तब ही वह अच्छे स्भाव वाला कहलाएगा और लोगों के पास उसी समय वह आदर- सम्मान वाला माना जाएगा जब वह इन अच्छे स्भाव का मालिक होगा।
(1) सत्य बोलता हो और सच बोलने वालों को पसन्द करता हो, क्यों कि सत्य बोलना एक ऐसा सुन्दर गुन है जिसे प्रत्येक काल में सम्मानजनक माना गया है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को नबी बनाए जाने से पहले ही समुदाए वाले, मक्का वाले, बहुत सच्चा और अमानतदार के उपाधि से पुकारते थे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का बड़े से बड़ा विरोधि और बड़े से बड़ा शत्रु भी आप को कभी झुट बोलने का आरोप न लगाया और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सच्चा होने की गवाही दी है। जैसा कि रूम के राजा हिरक़ल के साम्ने अबू सुफ्यान (रज़ि अल्लाहु अन्हु) इस्लाम स्वीकार करने से पहले आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सच्चा होने की गवाही दी। अल्लाह तआला ने सर्व मानव को सच बोलने वालों का साथ देने का आदेश दिया है। अल्लाह तआला का कथन है। " ऐ लोगों जो ईमान लाए हो, अल्लाह से डरो और सच्चे लोगों का साथ दो, " ( अत-तौबाः 119)
इसी प्रकार जो लोग हमेशा सच बोलते हैं और सच बोलने वालों का साथ देते हैं तो ऐसे लोग अल्लाह के पास सच्चे लिख दिये जाते हैं। अच्चे से ज़रा नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के कथन पर विचार करें। " बैशक सच्चाइ नेक रास्तों की तरफ मार्ग दर्शन करती है, और नेकियाँ जन्नत की ओर ले जाती है और मानव हमेशा सच बोलता है यहां तक कि अल्लाह के पास सच्चा लिख दिया जाता है " ( )
गोया कि सच बोलना, सत्य के रास्ते पर चलना, अच्चे आचार के भाग में से एक भाग है।
(2) नर्म हृदय वाला होना, सद स्वभाव में से है कि मानव एक दुसरे के साथ कृपाशील हो, एक दुसरे पर दया करे, हमारे प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) बहुत ज़्यादा दयावान और कृपा करने वाले थे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का व्यवहार प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक जैसा था। गरीब हो, या धनवान, समुदाय का सरदार हो, या आम जनता, प्रत्येक के साथ कृपा का व्यवहार करते थे। व्यवहार में किसी में कोई अन्तर नही करते थे। अल्लाह तआला ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के इसी दया एवं कृपा को याद दिलाया है। अल्लाह तआला का कथन है, ऐ नबी! यह अल्लाह की दयालूता है कि तुम उन लोगों के लिए बहुत नर्म स्भाव के हो, यदि कहीं, तुम क्रूर स्भाव, और कठोर हृदय के होते तो यह सब तुम्हारे आस- पास से छंट जाते, तो उन की गलतियां माफ करो, उन के लिए अल्लाह से क्षमा की दुआ करो और धर्म के कार्य में उन्को भी प्रामर्श में सम्मिलित रखो, " ( आलि- इम्रान- 159)
प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की दयालूता का एक उदाहरण देता हूँ। कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अपने साथियों के साथ मस्जिद में बैठे हुए शिक्षा दे रहे थे। इसी बीच एक गाँव-खेड़ा का रहने वाला आया और मस्जिद के एक किनारे में पैशाब करने लगा। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथी उठे ताकि उस गाँव वाले को डान्टे डप्टे, बुरा भला कहे, परन्तु रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपने साथियों को मना फरमाया और कहा उस के पैशाब की स्थान पर एक डोल पानी डाल दो, बैशक तुम्हें आसानियाँ करने वाला बना कर भेजा गया है और सख्ती करने वाला बना कर नही भेजा गया और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने बड़े प्रेम से उस आदमी को बुला कर कहा, यह मस्जिद इस लिए नही बनाइ गई कि तुम पैशाब करो, बल्कि अल्लाह की इबादत, और नमाज़ पढ़ने के लिए बनाइ गई है। प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सेवक अनस बिन मालिक कहते हैं कि मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की दस वर्ष तक सेवा की परन्तु आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कभी भी मुझे डांटा नही, और मैं ने कभी आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के कोइ काम में गलती कर दिया तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यह नहीं कहा कि तुम ने ऐसा क्यों किया? और कभी आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कोइ काम न किया तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यह नहीं कहा कि तुम ने ऐसा क्यों नही किया ?, और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सब लोगों में सब से अधिक स्भाव के थे। ( सही बुखारी तथा सही मुस्लिम)
(3) क्षमा एवं माफीः प्रत्येक मानव से गलती , भूल- चुक होती है, इस लिए अपने अधीन और सहायकों एवं नौकर चाकर की गलती- भुल-चुक को माफ कर देना भी अच्छे आचरण, स्भाव तथा उत्तम व्यवहार में आऐगा, रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सद्स्भाव के अतिउत्तम स्थान पर स्थापित थे, ज़रा याद करें कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को मक्का वासियों ने कितना सताया, बहूत ज़्यादा अत्याचार किया, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथियों को हर प्रकार से परिशान किया, परन्तु जब अल्लाह तआला ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को मक्का वासियों पर जीत दी, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का बड़ा से बड़ा शत्रू भी आप के कब्ज़े में आ चुका था तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सब को माफ कर दिया, अपने जानी दुश्मनों से भी कुछ न कहा, बल्कि वह ऐतहासिक वाक्या कहा जिसे इतिहास ने सुनह्रे शब्दों से लिख दिया, " आज तुम पर कोइ अत्याचार नही, कोइ भर्त्सना नही, बल्कि जाओ, तुम सब स्वतंत्र हो, "
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कभी भी आप पर अत्याचार या अशुद्ध व्यवहार करने वालों से बद्ला न लिया बल्कि उन की कष्टाओं, यातनाओं को सहते रहे और उन्हें क्षमा करते रहे। अनस (रज़ी अल्लाह अन्हु) कहते हैं कि, मैं नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ जा रहा था आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) एक मोटी चादर ओढ़ रखी थी, अचानक एक देहाती आया और उस ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की चादर पकड़ कर बहुत शक्ति से खींचा कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के गरदन मुबारक पर चादर के निशान देखा, फिर उस देहाति ने कहा, ऐ मोहम्मद! तुम उस धन में से मुझे देने का आदेश दो जो अल्लाह ने तुम्हें दे रखा है, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उस की ओर मुड़े, और मुस्कुराए और उसे धन-दौलत देने का आदेश दे दिया " ( सही बुखारी तथा सही मुस्लिम)
आप ने देखा, किस प्रकार उस देहाती ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथ दुर्व्यवहार से पेश आया परन्तु आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) न उस दुर्व्यवहार का शुद्ध व्यवहार से जवाब दिया। उसे क्षमा कर दिया और न क्रोध हुए, और न ही उसे डांटा डपता, बल्कि उसे धन-दौलत दे कर भेज दिया, प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के इसी शुद्ध व्यवहार से प्रभावित हो कर लोग बड़ी संख्या में इस्लाम स्वीकार लेते थे।
(4) दान शीलताः दान शीलता एक ऐसा गुण और खूबी है जो अच्छे आचार तथा व्यवहार की पूष्ठी करता है। मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) भी बहुत ज़्यादा दान शील थे। जैसा कि जाबिर बिन अब्दुल्लाह बयान करते हैं कि" जब भी रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से कुछ मांगा गया तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इनकार न किया," ( सही बुखारी तथा सही मुस्लिम)
सुहैल बिन सअद (रज़ी अल्लाह अन्हु) कहते हैं कि, एक महिला नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास एक चादर ले कर आइ और कहा, ऐ अल्लाह के रसूल (संदेष्ठा)! यह आप के पहन ने के लिए है। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उसे स्वीकार कर लिया क्यों कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को उसकी अवश्यकता थी। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उसे पहन भी लिया। कुछ देर के बाद एक आदमी ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल (संदेष्ठा)! यह चादर बहुत सुन्दर है। यह आप मुझे दे दीजिये, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उत्तर दिया , ठीक है। इस के बाद जब रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) वहां से चले गये तो दुसरे सहाबा (रज़ी अल्लाह अन्हुम) उस आदमी से कहने लगे कि तुम्ने ऐसा क्यों किया ? तुम को मालूम है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कोइ चीज़ मांगने पर इनकार नही करते और प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को इस चादर की ज़रूरत थी, तो उस आदमी ने कहा, मैं प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पहन ने की बरकत की आशा रखता हूँ, और मैं इसी कपड़ा में दफनाया जाऊंगा,( )
(5) न्याय और बराबरीः इसी तरह अच्छे आचरण के गुणों में से है कि सब लोगों के बीच न्याय किया जाए और न्याय में गरीब और धनीवान में अन्तर न किया जाए , रिश्तेदार और गैर रिश्तेदार में अन्तर न किया जाए, और अपने धर्म तथा दुसरे धर्म वालों में अन्तर न किया जाए बल्कि सबूतों, गवाहियों, प्रमाणों की रोशनी में न्याय के साथ फेसला किया जाए। इसी तरह का किस्सा मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के जीवन में आया कि एक मुस्लिम और यहुदी ( गैर-मुस्लिम) के बीच किसी चीज़ में झगड़ा हो गया और दोनों ने न्याय के लिए मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास आये। दोनों की बात सुन ने के बाद, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फसला यहुदी ( गैर-मुस्लिम) के पक्ष में दिया ।
अल्लाह तआला ने सर्व मानव को आदेश दिया कि लोगों के बीच न्याय किया जाए, न्याय की बात कही जाए । अल्लाह का कथन है, " और जब बात कहो, इन्साफ की कहो चाहे मामला अपने नातेदार ही का क्यों न हो " ( अल- अन्आमः152)
इसी तरह विरोधी या शत्रु के बीच भी न्याय किया जाए, दुश्मनी एवं शत्रुता न्याय करने से मानव को नही रोके जैसा कि अल्लाह तआला का आज्ञा है। " ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अल्लाह के लिए औचित्य पर कायम रहने वाले और इनसाफ की गवाही देने वाले बनो, किसी गिरोह की दुश्मनी तुमको इतना उत्तेजित न कर दे कि इनसाफ से फिर जाओ। इनसाफ करो, यह ईशभक्त और विनम्रता के अधिक अनुकुल है। अल्लाह से डरकर रहो, जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसे पूरी तरह जानता है।" ( अल- माइदाः 8)
कोइ भी मानव उसी समय उत्तम आचार वाला माना जाएगा जब वह प्रत्येक के साथ न्याय और इनसाफ करे, अपने आप के साथ, अपने माता पिता से साथ, अपने संतान के साथ, अपने पत्नी के साथ, अपने रिश्तेदार और नाते दार के साथ, अपने समाज के साथ, अपने मुल्क, देश के साथ ताकि वह अच्छे आचरण वालों में उसका शुमार हो,।

इसी तरह अच्छे आचरण में से है कि लोगों के भेदों को छुपाया जाए, लोगों के राज़ों को सार्वजनिक न किया जाए। लोगों के व्यक्तिगत खराबियों का प्रचार न किया जाए। बल्कि उसे छुपाया जाए ताकि अल्लाह तआला क़ियामत के दिन इस संसार में लोगों की खराबियों को छुपाने वालों की खराबियों का छुपायेगा। उस के अपराधों तथा पापों को क्षमा करेगा। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " जो व्यक्ति किसी मुस्लिम के खामियों को छुपाएगा तो अल्लाह तआला क़ियामत के दिन उस के खामियों को छुपाऐगा "
इस के अलावा भी कुछ अच्छे गुन हैं जिस को अपनाने वालों की प्रशंसा बयान किया जाता है और ऐसे व्यक्तियों को अच्छे आचरण वाला माना जाता है।

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