मंगलवार, 19 सितंबर 2017

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

  महापाप (बड़े गुनाह) प्रत्येक वह कार्य जिस का पाप बहुत ज़्यादा हो और पाप और गुनाह के कारण उसकी गम्भीरता बढ़ जाती है, इसी प्रकार प्रत्येक कार्य जिस में लिप्त व्यक्ति के लिए सजा या लानत (धिक्कारित) या अल्लाह के क्रोध का वादा किया गया हो, उसे महापाप कहते हैं।
महापाप (बड़े गुनाह) प्रत्येक वह कार्य जिस का पाप बहुत ज़्यादा हो और पाप और गुनाह के कारण उसकी गम्भीरता बढ़ जाती है, इसी प्रकार प्रत्येक कार्य जिस में लिप्त व्यक्ति के लिए सजा या लानत (धिक्कारित) या अल्लाह के क्रोध का वादा किया गया हो, उसे महापाप कहते हैं।
वास्तविक्ता तो यह है कि महापापों की संख्यां के प्रति हदीस शास्त्रों में मतभेद हैं। कुछ लोगों ने महापाप को  हदीस में बयान की गई सात वस्तुओं में सीमित कर दिया है और कुछ लोगों ने 70 बड़े गुनाह को गिनाया है तो कुछ लोगों ने उस से अधिक कहा है।
परन्तु महापापों की सही संख्यां हदीस से प्रमाणित नहीं है बल्कि यह विद्वानों की कोशिश है कि रसूल की  हदीसों से लिया गया है। जिस कार्यकर्ता को जहन्नम की धमकी, या अल्लाह की लानत या अल्लाह का ग़ज़ब और क्रोध उस पर उतरता है तो वह महापापों में शुमार होगा। जैसा कि इस्लामिक विद्वानों ने महापाप की परिभाषा किया है।
महापापों से अल्लाह और उस के रसूल ने दूर रहने का आदेश दिया है और मानव को अपने आप को इन गंदगियों से प्रदुषित न करने पर उभरा है।
महापाप से अल्लाह और उसके रसूल (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने दूर रहने की आदेश दिया है। 
जैसा कि अल्लाह का कथन है। “ जो बड़े-बड़े गुनाहों और अश्लील कर्मों से बचते हैं और जब उन्हें (किसी पर) क्रोध आता है तो वे क्षमा कर देते हैं।” (सूरः  37
दुसरे स्थान पर अल्लाह तआला का फरमान है। “ यदि तुम उन बड़े गुनाहों से बचते रहो, जिनसे तुम्हें रोका जा रहा है, तो हम तुम्हारी बुराइयों को तुमसे दूर कर देंगे और तुम्हें प्रतिष्ठित स्थान में प्रवेश कराएँगे।” (सूरः निसाः 31
रसूल (सल्लल्लाहु अलिह व सल्लम) ने फरमायाः “ पांच समय की फर्ज़ नमाज़ें और जुमा से दुसरे जुमा तक और रमज़ान से दुसरे रमज़ान तक नेक कार्य गुनाहों के लिए प्रायश्चित हैं जब तक कि महापापों से बचा जाए।” (सिल्सिला सहीहा- अलबानीः 3322
इस हदीस में स्पष्ठ रूप से बड़े गुनाह से सुरक्षित रहने पर उत्साहित किया है और यह सूचना दी गई है कि नेकियां करने से छोटे पाप मिट जाते हैं। ”
महापाप से प्रायश्चित कैसे संभव है
अल्लाह से वास्तविक तौबा और महापाप से बहुत दूरी के माध्यम से महापाप से प्रायश्चित किया जा सकता है। हमेशा उस पाप के होने के कारण अल्लाह रो रो कर माफी मांगनी चाहिये और यदि वह महापाप किसी व्यक्ति के हक और अधिकार से संबन्धित है तो उस अधिकार को अदा करना अनिवार्य होगा।
महापाप अपने अप्राध और अल्लाह की नाराज़गी के कारण कई क़िसमों में विभाजित हैं। सब से बड़ा पाप अल्लाह के साथ शिर्क है। जैसा कि सही हदीस में आया है।
عن أبي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه عَنِ النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم قَالَ: اجْتَنِبُوا السَّبْعَ الْمُوبِقاتِ قَالُوا: يا رَسُولَ اللهِ وَما هُنَّ قَالَ: الشِّرْكُ بِاللهِ، وَالسِّحْرُ، وَقَتْلُ النَّفْسِ الَّتي حَرَّمَ اللهُ إِلاَّ بِالْحَقِّ، وَأَكْلُ الرِّبا، وَأَكْلُ مَالِ الْيَتيمِ، وَالتَّوَلِّي يَوْمَ الزَّحْفِ، وَقَذْفُ الْمُحْصَنَاتِ الْمُؤْمِناتِ الْغافِلاتِ). صحيح البخاري: 2766, صحيح مسلم: 89)
अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन हा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः“ सात सर्वनाश करने वाली चीजों से बचो, प्रश्न किया गया है, वह क्या हैं ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः अल्लाह के साथ शिर्क, जादू, बेगुनाह की हत्या, अनाथों का माल नाहक खाना, ब्याज खाना, युद्ध की स्थिति में युद्धस्थल से भागना, भोली भाली पवित्र मुमिन महिलाओं पर प्रित आरोप लागना (सही बुखारीः 2766 और सही मुस्लिमः 89)
दुसरी हदीस में रसूल ने लोगों को खबरदार करते हुए कहा, महापापों में सह से बड़ा महापाप किया है जिस पर सहाबा ने कहा कि आप ही सूचित करें जैसा कि हदीस में वर्णन हुआ है।
عن أبي بَكْرَةَ قَالَ: قَالَ النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم: أَلا أُنَبِّئُكُمْ بِأَكْبَرِ الْكَبائِرِ ثَلاثًا، قَالُوا: بَلى يا رَسُولَ اللهِ، قَالَ: الإِشْراكُ بِاللهِ وَعُقوقُ الْوالِدَيْنِ وَجَلَسَ،وَكانَ مُتَّكِئًا،فَقالَ أَلا وَقَوْلُ الزّورِ قَالَ فَما زَالَ يُكَرِّرُها حَتّى قُلْنا لَيْتَهُ سَكَتَ – (صحيح البخاري : 2654)
अबू बकरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन हा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः“““ “क्या मैं तुम्हें सब से बड़े पापों की जानकारी न दूँ,  तीन बर फरमाया, तो हमने कहा, क्यों नहीं, ऐ अल्लाह के रसूल! आप ने कहा, अल्लाह के साथ शिर्क करना, माता पिता की अवज्ञा करना, रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) टेक लगाए हुए थे, तो सीधा बैठ गए और फरमयाः सुनो, झूटी गवाही देना, (रावी ) कहते हैं, यह शब्द रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) बार बार दुहराते रहें, यहां तक कि सबाहा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) हृदय में कल्पना करने लगे कि काश रसूल खामूश हो जाते। (सही बुखारीः 2654
عن عَبْدِ اللهِ بْنِ عَمْرٍو قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم: إِنَّ مِنْ أَكْبَرِ الْكَبائِرِأَنْ يَلْعَنَ الرَّجُلُ والِدَيْهِ قِيلَ يا رَسُولَ اللهِ وَكَيْفَ يَلْعَنُ الرَّجُلُ والِدَيْهِ قَالَ: يَسُبُّ الرَّجُلُ أَبا الرَّجُلِ فَيَسُبُّ أَباهُ وَيَسُبُّ أُمَّهُ  – صحيح أبي داؤد -الألباني- 5141)
अबदुल्लाह बिन अम्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः “बेशक सब से बड़े गुनाह में से है कि व्यक्ति अपने माता-पिता को गाली दे, लोगों ने आश्चर्य से पूंछा, क्या कोई अपने माता पिता को गाली देता है ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः व्यक्ति दुसरे व्यक्ति के पिता को गाली देता है तो वह उस के पिता को गाली देता है और उस के माता को गाली देता है।” -सही अबू दाऊदः 5141

परन्तु आज के युग में माता पिता को गाली देना और मारना पीटना और उनकी हत्या करना तो सर्वजनिक घटना हो चुकी है। जरा ध्यान पूर्वक विचार करें कि जब दुसरे व्यक्ति के माता पिता को गाली देना महापाप और बड़ा गुनाह है, क्योंकि संभावना है कि वह व्यक्ति उस के माता पिता को गाली दे, तो माता पिता को गाली देना या उन्हे मारना पीटना या उनकी हत्या का पाप कितना महान होगा जिस की कल्पना भी मुश्किल है.? महापापों की कुछ उदाहरण हदीस के माध्यम से पेश की गईं परन्तु वास्तविक्ता तो यह है कि महापापों की संख्यां के बहुत ज़्यादा हैं, जैसा की हदीस शास्त्रों के बातों गुज़र चुकी हैं और इमाम ज़हबी (उन पर अल्लाह की रहमत हो) ने एक पुस्तक (अल-कबाइर) संकलन किया जिस में महापापों को हदीस एवं क़ुरआन से प्रमाणित किया है।
अल्लाह हमें और आप को महापापों से सुरक्षित रखें। आमी।।।।।।।न

मंगलवार, 25 नवंबर 2014

मानव के अधिकार




सम्पूर्ण प्रकार की प्रशंसा अल्लाह तआला के लिए है जो सारे संसार और संसार वासियों का मालिक और सृष्टिकर्ता है। अल्लाह की ओर से नबी अक्रम (सल्ल0) पर सलातु सलाम अवतरित हो जो सारे संसार के लिए दयालु तथा रहमत बना कर भेजे गए थे।
सम्पूर्ण सृष्टि का सृष्टिकर्ता अल्लाह ही है। इस लिए उस के पास सर्व मानव एक समान है। किसी को किसी पर सर्वश्रेष्ठता प्राप्त नहीं सिवाए के उस के कर्म और कर्तव्य के आधार पर अल्लाह के पास उसे उत्तमता प्राप्त है। अल्लाह ने मानव को सम्पूर्ण वस्तुओं पर सर्वश्रेष्ठता प्रदान किया है और मानव ही आकाश और धरती के बीच पाइ जाने वाली सम्पूर्ण वस्तुओं पर शासन करता है। वह उन सम्पूर्ण वस्तुओं से उत्तम और सर्वश्रेष्ठ है। इसी लिए वह केवल अल्लाह के सामने अपना माथा टेके और अल्लाह की इबादत और आराधना करे, अल्लाह के अलावा की अराधना न करे। क्योंकि वह धरती और आकाश के बीच पाइ जाने वाली सम्पूर्ण वस्तुओं से महान है।
अल्लाह ने मानव के पिता आदम (अलैहिस्सलाम) की रचना अपने हाथों से किया है और उस में अपना रूह फूंका है। फरिश्तों को आदम (अलैहिस्सलाम) का सज्दा करने का आदेश दिया। ताकि आदम (अलैहिस्सलाम) का आदर व सम्मान को बढ़ाए और सर्व मानव को सम्मानित करे। मानव के लिए सब चीजों की रचना की और मानव को उस के उपयोग से परिचित किया। मानव के मार्गदर्शन के लिए प्रत्येक काल और इलाके में संदेष्टा और दूत भेजा और उन पर आकाश से ग्रन्थ उतारा और सब से अन्त में मुहम्मद (सल्ल) को अन्तिम दूत होने की घोषणा कर दी और उन पर क़ुरआन करीम जैसा पवित्र और सुरक्षित ग्रन्थ अवतरित किया, जिस की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने जिम्मे ली। क़ुरआन और मुहम्मद (सल्ल) के प्रवचन ही पूरी दुनिया के लिए उत्तम मार्गदर्शनीय है। इसी लिए अब क़ुरआन और नबी (सल्ल) की हदीसों पर अमल करने में मानव जाती की मुक्ति और सफलता है। क्योंकि क़ुरआन तथा हदीस पूरी जीवन व्यवस्था के लिए अमली आदर्श है। जिन में मानव जाती के जीवन के प्रत्येक गोशों का सही और न्यायपूर्वक और उचित नियम और कानून पेश किये गए हैं। जो किसी भी प्रकार के भेद भाव और अन्याय और कमी से पवित्र है। जो प्रत्येक काल के स्थितियों के अनुकूल है। क्योंकि अल्लाह के पास सब मानव एक समान है। सब के लिए एक दुसरे पर अधिकार दिया है। जिन में से कुछ का बयान किया जाता है।
(1) जीवन का अधिकारः
अल्लाह ने मानव को यह जीवन दिया है। ताकि मानव का परिक्षा ले। प्रत्येक मानव का एक दुसरे पर अधिकार नियुक्त किया। ताकि लोग एक दुसरे के अधिकार की पूर्ति के माध्यम से दुनिया और पारलौकिक जीवन में सफलता प्राप्त करे। कोइ किसी पर अत्याचार न करे, किसी के अधिकार को न छीने, किसी का जीवन छीनते हुए उस की हत्या न करे, बल्कि किसी एक मासूम व्यक्ति की हत्या सारे जहाँ में बिगाड़ का कारण होता है। इस्लाम ने मानव के जीवन के सुरक्षा की ओर प्रभाव शाली बल दिया है और किसी मासूम व्यक्ति की हत्या महा पाप में शामिल किया है। जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है।
مَنْ قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الْأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَ جَمِيعًا. [سورة المائدة: 32
जिसने किसी व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इनसानों की हत्या कर डाली। और जिसने उसे जीवन प्रदान किया, उसने मानो सारे इनसानों को जीवन दान किया।” (सूरह अल-माइदाः 32)
बल्कि जो लोग ना हक्क किसी की हत्या करेगा और दुसरे अपराध भी जिस से अल्लाह और उस के रसूल (सल्ल0) ने मना किया है, वह कार्य करेगा, तो ऐसे लोगों को दुगना तीन गुन्ना यातनाओं में ग्रस्त किया जाएगा और उनका कोई सहायक न होगा। जैसा कि अल्लाह ने खबरदार किया है।
وَالَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ اللَّـهِ إِلَـٰهًا آخَرَ‌ وَلَا يَقْتُلُونَ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّ‌مَ اللَّـهُ إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ ۚ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ يَلْقَ أَثَامًا- يُضَاعَفْ لَهُ الْعَذَابُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِ مُهَانًا. (سورة الفرقان: 69
और जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे इष्ट-पूज्य को नहीं पुकारते हैं और नाहक़ किसी जीव को जिस (के क़त्ल) को अल्लाह ने हराम किया है, क़त्ल नहीं करते हैं। और न वे व्यभिचार करते है-जो कोई यह काम करे तो वह गुनाह के वबाल से दोचार होगा-क़ियामत के दिन उसकी यातना बढ़ती चली जाएगी और वह उसी में अपमानित हो कर स्थायी रूप से पड़ा रहेगा।”  (सूरह अलफुर्क़ानः 69)
इसी प्रकार नबी (सल्ल) ने भी किसी मूमिन की ना हक्क हत्या में शामिल सब लोगों को जहन्नम में दाखिल किये जाने की सूचना दी है। रसूल (सल्ल) का फरमान हैः
لو أنَّ أَهلَ السَّماءِ وأَهلَ الأرضِ اشترَكوا في دمِ مؤمنٍ لأَكبَّهمُ اللَّهُ في النَّارِ. (صحيح الترغيب: 2442 وصحيح الترمذي: 1398

अबू सईद अल्खुदरी (रज़ि0) से वर्णन है कि रसूल (सल्ल0) ने फरमायाः यदि किसी एक मूमिन की ना हक्क हत्या में धरती वाले और आकाश वाले भागीदार हों तो अल्लाह उन सब को मुख के बल घसीटते हुए जहन्नम में दाखिल करेगा। (सही अत्तरगीबः 2442 व सही अत्तिरमिज़ीः 1398)
मुसलमान या गैर मुस्लिम सब का ना हक्क हत्या करना महा पाप है। इस अपराध के दोषी व्यक्ति को अल्लाह जन्नत में दाखिल नहीं करेगा। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सर्व मानव को सूचित कर दिया है। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान है।
من قتل نفسًا معاهدًا لم يَرَحْ رائحةَ الجنةِ، وإنَّ رِيحَها ليُوجدُ من مسيرةِ أربعين عامًا. (صحيح البخاري: 6914
जिस ने किसी शान्ति प्रिय व्यक्ति की हत्या किया तो वह जन्नत की सुगंध नहीं पाएगा, अगर्चे कि जन्नत की सुगंध चालिस वर्ष की दूरी से पहले ही प्राप्त होती है।” (सही बुखारीः 6914)
बल्कि मानव अपने प्राण पर भी अधिकार नहीं रखता कि वह जैसे चाहे उस का प्रयोग करे, जब चाहे उसे खत्म करे, बल्कि यह जीवन उसे अल्लाह की ओर से अमानत के तौर पर मिली है और इस दुनिया में वह अपनी मर्ज़ी के बिना आया है तो इस दुनिया से भी अपनी मर्ज़ी से नहीं जा सकता है। इस लिए जिस व्यक्ति ने आत्महत्या किया। तो अल्लाह तआला उसे वह हमेशा हमेश के लिए जन्नहम में दाखिल करेगा। जहन्नम में अपने आप को उसी वस्तु से कष्ट देता रहेगा, जिस वस्तु से दुनिया में आत्महत्या किया था। सिवाए कि अल्लाह उसे क्षमा कर दे।
مَن قتل نفسه بشيء في الدنيا عذب به يوم القيامة. (صحيح البخاري: 5700) و (صحيح مسلم: 110
रसूल (सल्ल0) का कथन हैः जिस ने दुनिया में किसी वस्तु से आत्महत्या किया तो उसी से क़ियामत के दिन उसे यातना दिया जाएगा।” (सही बुखारीः 5700 व सही मुस्लिमः110)
इस अज़ाब के प्रति कुछ विस्तार से दुसरी हदीस में इस प्रकार वर्णन हुआ है। रसूल (सल्ल0) ने सुचित कर दिया है।
عن أبي هريرة رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: مَن تردى من جبل فقتل نفسه فهو في نار جهنم يتردى فيه خالداً مخلداً فيها أبداً، ومَن تحسَّى سمّاً فقتل نفسه فسمُّه في يده يتحساه في نار جهنم خالداً مخلداً فيها أبداً، ومَن قتل نفسه بحديدة فحديدته في يده يجأ بها في بطنه في نار جهنم خالداً مخلداً فيها أبداً. (صحيح البخاري: 5442) و (صحيح مسلم: 109
अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः जिस ने पहाड़ से गिर कर आत्महत्या किया, तो वह जहन्नम में दाखिल होगा और उस में हमेशा हमेश अपने आप को पहाड़ से गिरा कर सज़ा देता रहेगा और जिसने जहर खा कर आत्महत्या किया तो जहन्नम में दाखिल होगा और जहर उस के हाथ में होगा जिस से वह हमेशा स्वयं सज़ा देता रहेगा। और जिस ने धारदार छुरी से आत्महत्या किया। तो जहन्नम में धारदार छुरी उस के हाथ में होगी और सदैव वह अपने आप को उस से सज़ा देता रहेगा।” (सही बुखारीः 5442 व मुस्लिमः 109)
आत्महत्या करने वाला व्यक्ति अल्लाह पर विश्वास नहीं करता और अल्लाह की दी हुइ जीवन को बिना उसके अनुमति के खत्म करता है तो अल्लाह तआला उस पर जन्नत हराम कर देता जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पूर्व लोगों में से एक व्यक्ति का किस्सा इस प्रकार बयान फरमाया हैः
وعن جندب بن عبد الله رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: كان فيمن كان قبلكم رجل به جرح فجزع فأخذ سكيناً فحز بها يده فما رقأ الدم حتى مات. قال الله تعالى: بادرني عبدي بنفسه حرمت عليه الجنة. ( البخاري: 3276 ) و(صحيح مسلم: 113
जुन्दुब बिन अब्दुल्लाह ﷜ से वर्णन है कि रसूल﷐ ने फरमायाः तुम से पूर्व समाज में एक व्यक्ति था जब वह ज़ख्मी हो गया जिस से उसे बहुत पीड़ा का अनुभव हुआ और पीड़ा के कारण उसने एक चाकू लिया और अपने हाथ को काट लिया जिस कारण रक्त बहता रहा, यहाँ तक उसकी मृत्यु हो गई। तो अल्लाह ने फरमायाः मेरे इस दास ने अपने आप के साथ जल्दबाज़ी की तो मैं ने इस पर जन्नत को वर्जित कर दिया है। (बुखारीः 3276, मुस्लिमः 113)
(2) एक दुसरे के आदर-सम्मान का अधिकारः
अल्लाह ने मानव की रचना इसी प्राकृतिक पर किया है कि वह सामूहिक रूप में जीवन व्यतीत करे। जिस समाज में वह रह रहा है। एक दुसरे की आदर-सम्मान करे। क्योंकि अल्लाह ने मानव को सम्पूर्ण वस्तुओं पर उत्तमता प्रदान की है और उसे सब से सुन्दर रूप दिया है और उसे बहुत ही आदर-सम्मान वाला बनाया है। जैसा कि अल्लाह का कथन है।
وَلَقَدْ كَرَّمْنَا بَنِي آَدَمَ وَحَمَلْنَاهُمْ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَرَزَقْنَاهُمْ مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَى كَثِيرٍ مِمَّنْ خَلَقْنَا تَفْضِيلًا [الإسراء:70
हमने आदम की सन्तान को श्रेष्ठता प्रदान की और उन्हें थल औऱ जल में सवारी दी और अच्छी-पाक चीज़ों की उन्हें रोज़ी दी और अपने पैदा किए हुए बहुत-से प्राणियों की अपेक्षा उन्हें श्रेष्ठता प्रदान की।” (सूरह अल्इस्राः 70)
अल्लाह ने मानव को प्रतिष्ठित करते हुए सब चीज़ों को उनके मातहत किया है। सब चीज़ों पर वह शासन करता है।
أَلَمْ تَرَ‌وْا أَنَّ اللَّـهَ سَخَّرَ‌ لَكُم مَّا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْ‌ضِ وَأَسْبَغَ عَلَيْكُمْ نِعَمَهُ ظَاهِرَ‌ةً وَبَاطِنَةً ۗ وَمِنَ النَّاسِ مَن يُجَادِلُ فِي اللَّـهِ بِغَيْرِ‌ عِلْمٍ وَلَا هُدًى وَلَا كِتَابٍ مُّنِيرٍ‌ [لقمان:20
क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने, जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, सब को तुम्हारे काम में लगा रखा है और उसने तुम पर अपनी प्रकट और अप्रकट अनुकम्पाएँ पूर्ण कर दी है? इस पर भी कुछ लोग ऐसे है जो अल्लाह के विषय में बिना किसी ज्ञान, बिना किसी मार्गदर्शन और बिना किसी प्रकाशमान किताब के झगड़ते है।” (सूरह लुक़्मानः 20)
नबी (सल्ल) ने बड़ों का आदर-सम्मान करने और छोटों के साथ दया करने का आदेश दिया है।
ليس منَّا من لم يرحمْ صغيرَنا ويُوَقِّرْ كبيرَنا ويأمُرْ بالمعروفِ وينهَ عن المُنكر. (الترغيب والترهيب: 235/2
जो छोटों पर कृपा न करे और बड़ों का आदर-सम्मान न करे, और भलाइ की ओर निमन्त्रण और बुराइ से रोके, वह हमारे धर्म पर नहीं।”   (अत्तरगीब वत्तरहीबः 2/235)
रसूल (सल्ल) ने एक यहूदी के शव को गुज़रते हुए को देखा तो उस का आदर करते हुए आप (सल्ल) खड़े हो गए। जैसा कि हदीस में वर्णन है। अब्दुर्रहमान बिन अबी लैला कहते हैः सहल बिन हुनैफ और कैस बिन सअद काद्सिया के स्थान पर बैठे थे। लोग एक मृतक का शव ले कर गुजरने लगे, तो वह दोनों खड़े हो गए। तो उन से कहा गया कि यह गैर मुस्लिम है। तो उन दोनों ने कहाः बेशक नबी (सल्ल) के पास से एक यहूदी का शव ले कर लोग गुज़रे तो आप (सल्ल) खड़े हो गए। तो लोगों ने खबर दिया कि यह एक यहूदी का शव है। आप (सल्ल) ने फरमायाः क्या यह मानव नहीं। (सही बुखारीः 1312)
ऊपर्युक्त हदीस से ज्ञात हुवा कि हर मानव का आदर-सम्मान करना चाहिये परन्तु उस की पूजा नहीं। क्योंकि पूजा तो केवल एक अल्लाह का ही अधिकार है और आदर-सम्मान प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है।
(3) स्वतन्त्रता का अधिकारः
अल्लाह ने हर मानव को स्वतन्त्र पैदा किया है। इस लिए हर मानव का प्राकृतिक हक स्वतन्त्रता है। एक मानव की स्वतन्त्रता का अधिकार उस सीमा पर खत्म हो जाती है, जहां से दुसरे मानव का स्वतन्त्रता की सीमा आरम्भ होती है। क्योंकि बहुत से लोग अपनी स्वतन्त्रता के अधिकार का गलत मतलब ले कर उस का दुरूपयोग करते हैं। इस लिए एक मानव की स्वतन्त्रता कुछ नियम और कानून से सम्बन्धित है। हर मानव को अपने ज्ञान प्राप्त करने, सम्पत्ति के मालिक होने, काम करने, अपने आस्था और धर्म के चयन करने में स्वतन्त्रता प्राप्त है। किसी पर कोई ज़बर्दस्ती और ज़ोर नहीं है। जो उसे पूर्वजों से पाया है। या अपनी खोज और तलाश और जांच पड़ताल से अपने धर्म का चयन किया है। उसे यह अधिकार प्राप्त है। जैसा कि अल्लाह ने घोषणा की है।
وَقَالَ سُبْحَانَهُ: لَا إِكْرَ‌اهَ فِي الدِّينِ ۖ قَد تَّبَيَّنَ الرُّ‌شْدُ مِنَ الْغَيِّ ۚ فَمَن يَكْفُرْ‌ بِالطَّاغُوتِ وَيُؤْمِن بِاللَّـهِ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْ‌وَةِ الْوُثْقَىٰ لَا انفِصَامَ لَهَا ۗ وَاللَّـهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ. [البقرة:256
धर्म के विषय में कोई ज़बरदस्ती नहीं। सही बात नासमझी की बात से अलग होकर स्पष्ट हो गई है। तो अब जो कोई बढ़े हुए सरकश को ठुकरा दे और अल्लाह पर ईमान लाए, उसने ऐसा मज़बूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटने वाला नहीं। अल्लाह सब कुछ सुनने, जानने वाला है।” (सूरह अल-बकराः 256)
इस संसार में प्रत्येक मानव अपने इच्छा अनुसार जीवन व्यतीत करने में स्वतन्त्र है। कोइ दुसरा उस के प्रति जोर जबर्दस्ती नहीं कर सकता और दुसरा उस के कर्म का ज़िम्मेदार भी नहीं परन्तु पारलौकिक जीवन में मानव को उस के कर्म के अनुसार बदला दिया जाएगा और उस से धर्म के प्रति प्रश्न भी किया जाएगा। स्वभाविक बात है कि हम अपने लिए जीवन व्यतीत करने की सम्पूर्ण सामग्रियों में अच्छा से अच्छा और असली वस्तु का चयन करने की अन्थक कोशिश करते हैं जो वस्तु कुछ दिनों या इसी जीवन तक सिमित है और यह बहुत ही अच्छी बात है। तो धर्म इस जीवन के साथ साथ पारलौकिक जीनव तक हमें लाभ पहुंचाना वाला है, उस के असली होने के प्रति खोज और जांच पड़ताल अधिक से अधिक करना चाहिये। क्योंकि नरक और स्वर्ग की प्राप्ति इस धर्म पर अमल करने पर निर्भर करता है। अल्लाह ने हमें बुद्धि विवेक दिया है। ताकि हम सत्य और असत्य, अच्छे और बुरे और असली और नकली में अन्तर करे और अच्छी वस्तुओं पर अमल करें और बुरी चीज़ों से दूर रहें और इस परिक्षा के लिए अल्लाह ने हमे इस संसार में भेजा है। कर्म के आधार पर स्वर्ग और नरक का फैसला किया जाएगा। इस लिए अल्लाह ने अपना रास्ता और सही मार्ग बताने के लिए रसूलों (अलैहिस्सलाम) को दुनिया में भेजा और उन्हें केवल लोगों तक धर्म को पहुंचाने का आदेश दिया है। लोगों को धर्म को स्वीकार करने पर मजबूर करने से रोका है। अल्लाह का फरमान है।
وَقَالَ سُبْحَانَهُ: وَلَوْ شَاءَ رَبُّكَ لَآَمَنَ مَنْ فِي الْأَرْضِ كُلُّهُمْ جَمِيعًا أَفَأَنْتَ تُكْرِهُ النَّاسَ حَتَّى يَكُونُوا مُؤْمِنِينَ. [يونس:99
यदि तुम्हारा रब्ब चाहता तो धरती में जितने लोग हैं, वे सब के सब ईमान ले आते, फिर क्या तुम लोगों को विवश करोगे कि वे मूमिन हो जाएँ? ” (सूरह यूनुसः 99)
अल्लाह चाहता तो सब धरती वासी एक धर्म के अनुयायी होते परन्तु अल्लाह ने मानव को बुद्धि विवेक दे कर अच्छे तथा बुरे और सत्य धर्म और असत्य धर्म के चयन करने में मानव को अधिकार दिया है और मानव को अच्छे और बुरे में अन्तर करने की क्षमता भी प्रदान किया है और अब जो जैसी कोशिश और प्रयास करेगा, उसी के अनुसार उसे बदला प्रप्त होगा। क्योंकि यह संसार परिक्षास्थल है।
(4) सब के बीच न्याय तथा बराबरी का अधिकारः
सब का मालिक एक ही है जो सातों आकाश के ऊपर अपने अर्श (सिंहासन) पर है। उस के पास सर्व मानव एक समान है। इस लिए सब के लिए एक ही नियम लागू किया है। सब के साथ न्याय हो, सब के साथ बराबरी का मामला किया है। धनी और निर्धन, ज्ञानी और अज्ञानी, छोटा और बड़ा, महिला और पुरूष और उच्च जाती और नीची जाती में कोइ अन्तर नहीं, बल्कि धर्म पर अमल करने में बराबरी है और मामला में सब के साथ न्याय के साथ फैसला किया जएगा। यदि किसी को किसी पर सर्वश्रेष्ठता प्राप्त है, तो वह केवल धर्म पर अमल करने और अल्लाह की अनुपालन करने के कारण प्रतिष्ठित होगा है। अल्लाह तआला ने प्रत्येक के साथ न्याय करने का आदेश दिया है।
وَقَالَ سُبْحَانَهُ: إِنَّ اللَّـهَ يَأْمُرُ‌كُمْ أَن تُؤَدُّوا الْأَمَانَاتِ إِلَىٰ أَهْلِهَا وَإِذَا حَكَمْتُم بَيْنَ النَّاسِ أَن تَحْكُمُوا بِالْعَدْلِ ۚ إِنَّ اللَّـهَ نِعِمَّا يَعِظُكُم بِهِ ۗ إِنَّ اللَّـهَ كَانَ سَمِيعًا بَصِيرً‌ا. [النساء:58
अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि अमानतों को उनके हक़दारों तक पहुँचा दिया करो। और जब लोगों के बीच फ़ैसला करो, तो न्यायपूर्वक फ़ैसला करो। अल्लाह तुम्हें कितनी अच्छी नसीहत करता है। निस्सदेह, अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है। (सूरह अन्निसाः 85)
दुसरी आयात में प्रत्येक स्थिति में न्याय करना चाहिये। यह अल्लाह का आदेश है।
قَالَ اللهُ تَعَالَى: إِنَّ اللَّـهَ يَأْمُرُ‌ بِالْعَدْلِ وَالْإِحْسَانِ وَإِيتَاءِ ذِي الْقُرْ‌بَىٰ وَيَنْهَىٰ عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنكَرِ‌ وَالْبَغْيِ ۚ يَعِظُكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُ‌ونَ [النحل:90
निश्चय ही अल्लाह न्याय का और भलाई का और नातेदारों को (उनके हक़) देने का आदेश देता है और अश्लीलता, बुराई और सर्कशी से रोकता है। वह तुम्हें नसीहत करता है। ताकि तुम ध्यान दो।” (सूरह अन्नहलः 90)
रसूल (सल्ल) ने भी सब के साथ न्याय और समानता का प्रचार किया और सब के साथ न्याय और समानता का व्यवहार किया। रसूल (सल्ल) ने फरमायाः
يا أيها الناسُ! إنَّ ربَّكم واحدٌ، و إنَّ أباكم واحدٌ، ألا لا فضلَ لعربيٍّ على عجميٍّ، و لا لعجميٍّ على عربيٍّ، و لا لأحمرَ على أسودَ، و لا لأسودَ على أحمرَ إلا بالتقوى إنَّ أكرمَكم عند اللهِ أتقاكُم، ألا هل بلَّغتُ ؟ قالوا: بلى يا رسولَ اللهِ قال: فيُبَلِّغُ الشاهدُ الغائبَ. [السلسلة الصحيحة: الألباني: 2700
रसूल (सल्ल) ने फरमायाः ऐ लोगों! बेशक तुम्हारा रब्ब एक है और तुम्हारे पिता एक है। सुन लों! किसी अरबी व्यक्ति को गैर अरबी पर प्रतिष्ठता प्राप्त नहीं है। और न ही किसी गैर अरब को अरबी पर सर्वोत्तमता प्राप्त है। न ही किसी गोरे को काले पर और काले को गोरे पर प्रतिष्ठता प्राप्त है। सिवाए कि अल्लाह का तक्वा। बेशक कि अल्लाह के पास तुम में सब से सम्माणति व्यक्ति वह है जो अल्लाह का भय रखता है। क्या मैं ने अल्लाह का संदेश पहुंचा नहीं दिया?, तो लोगों ने कहा, क्यों नहीं ऐ अल्लाह के रसूल!, तो आप (सल्ल) ने फरमायाः उपस्थित व्यक्ति अनुपस्थित व्यक्ति तक यह संदेश पहुंचा दे। (अस्सिलसिला अस्सहीहाः अलबानीः 2700)
नबी (सल्ल) समाज के प्रत्येक वर्ग से सम्बन्धित रखने वाले व्यक्ति के साथ न्याय करते थे। इस्लामी नियम सब के ऊपर लागू करते थे। किसी पर तनिक भी अन्याय नहीं करते थे। हदीस में एक घटना का बयान इस प्रकार हुवा है।
أنَّ قُرَيشًا أهَمَّتهُمُ المَرأةُ المَخْزوميَّةُ التي سَرَقَت، فقالوا: مَن يُكَلِّمُ رسولَ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم: ومَن يَجْتَرئُ عليه إلَّا أُسامَةُ، حِبُّ رسول الله صلَّى اللهُ عليه وسلَّم، فكَلَّمَ رسولَ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم، فقال: أتَشْفَعُ في حَدٍّ مِن حُدودِ اللهِ. ثم قامَ فخطبَ، قال: يا أيُّها الناسُ! إنَّما ضلَّ مَن كان قَبلَكم، أنهُم كانوا إذا سرَقَ الشَّريفُ تَرَكوه، وإذا سَرَقَ الضَّعيفُ فيهِم أقاموا عليه الحَدَّ، وايْمُ اللهِ! لو أنَّ فاطِمَةَ بنتَ مُحمدٍ، سَرَقَت لَقطَعَ مُحمدٌ يَدَها. (صحيح البخاري: 6788
क़ुरैश जाती की एक उच्च परिवार की महिला ने चोरी की, जिस के प्रति क़ुरैश जाती के लोग बहुत चिन्तित हुए और रसूल (सल्ल) से उस महिला के अपराध की माफी के लिए उसामा (रज़ि) को शिफारसी बना कर भेजा। तो उसामा (रज़ि) ने उस चोरी करने वाली महिला की माफी की शिफारिश किया तो रसूल (सल्ल) ने उत्तर दियाः क्या तुम अल्लाह की किसी सज़ा के आदेश को लागू न करने की शिफारस करते हो ?, फिर खुत्बा दिया और फरमायाः ऐ लोगों! तुम से पहली समुदाय पथभ्रष्ट हो गई, क्योंकि जब उन में का कोइ उच्च परिवार से सम्बन्धित लोग चोरी करता तो उसे छोड़ देते थे और जब कोइ गरीब व्यक्ति चोरी करते तो उस पर सज़ा लागू करते थे। अल्लाह की कसम! यदि फातिमा बिन्ते मुहम्मद भी चोरी करती तो मैं उस का हाथ काटता।” (सही बुखारीः 6788)
यह है वह इतिहासिक न्यायपूर्वक फैसला जो सब ऊंच नीच और भेदभाव के समाप्ती की घोषणा करता। जिस ने विश्व के प्रचलित रीति रिवाज और भेदभाव और अन्याय और ऊंच नीच के खात्मे का इलान किया।
(5) शिक्षा का अधिकारः
इस्लाम ने प्रत्येक मानव को शिक्षा प्राप्त करने की ओर उत्साहित किया है और ज्ञान हासिल करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। अतः ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान प्राप्त न करने वाले से अत्यन्त उत्तम है। बल्कि दीन की आधारभूत ज्ञान प्राप्त करना प्रत्येक मुसलमान पर अनिवार्य है। जैसा नबी (सल्ल) ने सूचित किया है।  
عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ: طلبُ العلمِ فريضةٌ على كلِّ مسلمٍ، وإِنَّ طالبَ العلمِ يستغفِرُ له كلُّ شيءٍ، حتى الحيتانِ في البحرِ. (صحيح الجامع: العلامة الألباني: 3914
अनस बिन मालिक (रज़ि) से वर्णन है कि रसूल (सल्ल) ने फरमायाः प्रत्येक मुसलमान पर ज्ञान का प्राप्त करना अनिवार्य है। बेशक छात्र (ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक) के लिए प्रत्येक वस्तु क्षमा की दुआ करते हैं। यहाँ तक कि मछ्लियां भी सागर में।” (सही अल्जामिअः अल्लामा अलबानीः 3914)
शिक्षा हासिल करना हर मानव का प्रथम अधिकार है। इस लिए अल्लाह ने उसे प्राप्त करना अनिवार्य करार दिया है। ताकि सब मानव अच्छाई और बुराई, सत्य और असत्य में अन्तर करने का सक्षम हो। शिक्षा मानव को अपने जीवन के प्रति उत्तम निर्नय लेने का योग्य बना देती है और उसे दुनिया और आखिरत में सफलता प्राप्त करने का योग्य बनाती है।
(6) काम करने का अधिकारः
इस्लाम मानव को रोजगार से जुड़ने पर उत्साहित करता है और प्रत्येक प्रकार की बेरोजगारी से रोकता है। हर मानव को रोजगार का अधिकार दिया है। और रोजगार के चयन करने में वह स्वतन्त्र है। परन्तु रोजगार को कुछ नियम और शिष्ठाचार से जोड़ दिया है और रोजगार के चयन करने में अल्लाह और उस के रसूलके आदेशों का अनुपालन करने पर दुनिया तथा आखिरत में सफलता की शुभ खबर दिया है। और कुछ व्यापार और रोजगार से दूर रहने का आदेश दिया है। अल्लाह के आदेश के अनुसार जीवन व्यतीत करने पर उत्तम बदला की शुभ खबर दिया है। अल्लाह ने काम करके रोज़ी तलाशने का आदेश दिया है। अल्लाह का फरमान है।
قَالَ اللهُ تَعَالَى: هُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ ذَلُولًا فَامْشُوا فِي مَنَاكِبِهَا وَكُلُوا مِنْ رِزْقِهِ وَإِلَيْهِ النُّشُورُ. [الملك: 15
वही तो है जिसने तुम्हारे लिए धरती को वशीभूत किया। अतः तुम उसके (धरती के) कन्धों पर चलो और उसकी रोज़ी में से खाओ, उसी की ओर दोबारा उठकर (जीवित होकर) जाना है।” (सूरह अल्मुल्कः 15)
रसूल (सल्ल) ने भी सब से अच्छी कमाई अपने हाथ की कमाई को क़रार दिया है। रसूल (सल्ल) ने फरमायाः
وَعَنِ الْمِقْدَامِ بْنِ مَعْدِيكَرِبَ الزُّبَيْدِيِّ عَنْ رَسُولِ اللَّهِ قَالَ: مَا كَسَبَ الرَّجُلُ كَسْبًا أَطْيَبَ مِنْ عَمَلِ يَدِهِ، وَمَا أَنْفَقَ الرَّجُلُ عَلَى نَفْسِهِ وَأَهْلِهِ وَوَلَدِهِ وَخَادِمِهِ فَهُوَ صَدَقَةٌ [صحيح ابْنُ مَاجَهْ: 1752
मिक्दाम बिन मअदीकरब अज्ज़ुबैदी (रज़ि) से वर्णन है कि रसूल (सल्ल) ने फरमायाः सब से उत्तम और बेहतरीन कमाई अपने हाथ की कमाई है और जो कुछ मानव अपने ऊपर, पत्नि, बच्चों और सेवकों पर खर्च करता है, तो उसे पुण्य प्राप्त होता है।  (सही इब्ने माजाः 1752)
इसी प्रकार इस्लाम प्रत्येक कार्य को सुन्दर रुप और अच्छे ढ़ंग से पूरा करने का आदेश देता है। ताकि प्रत्येक कार्य का उत्तम तरीके से पूर्ति की जा सके। रसूल (सल्ल) ने फरमायाः
إنَّ اللهَ تعالى يُحِبُّ إذا عمِلَ أحدُكمْ عملًا أنْ يُتقِنَهُ. (صحيح الجامع: 1880
बेशक अल्लाह तआला पसन्द करता है कि जब तुम कोइ काम करो तो उसे बहुत सुन्दरता और अच्छे ढंग से करो” (सहीहुल-जामिअः 1880)
काम करने में धोखा और झूट और प्रत्येक प्रकार के अवैध वस्तुओ से दूर रहने का आदेश दिया है। सत्य और अच्छी गुणों को अपनाने का आदेश दिया है।
(7) संपत्ति रखने का अधिकारः
इस्लाम ने हर मानव को काम करने और फिर अपनी मेहनत से हासिल कमाई का मालिक होने का अधिकार देता है। ताकि लोग ज़्यादा से ज़्यादा मेहनत करे। इस्लाम सम्पत्ति के हासिल करने में दर्मियानी तरीका अपनाने का आदेश देता है। पूंजीवाद का तरीका अपनाने से मना करता है जो धनी को अधिक से अधिक धनी बना दे और साम्यवाद का तरीका अपनाने का आदेश नहीं देता है, जो लोगो को बराबरी के धोखे में डाल कर बेवकूफ बनाते हैं। इस्लाम इन दोनों तरीके के बीच का तरीके पर अमल करने का आदेश देता है। जिस से समाज के प्रत्येक विभाग में विभाजित लोगों को लाभ पहुंचे और जो जितनी कोशिश करे, उसे उतना प्रतिफल प्राप्त हो। परन्तु धनवान को आदेश दिया कि समाज में मौजूद निर्धनों की जकात और सद्का और खैरात तथा दान के माध्यम से सहायता की जाए और ब्याज को वर्जित कर के पूंजीवाद के तरीका का खंडन किया है और व्यक्ति का माल ना हक किसी भी तरीके से लेने को वर्जित किया है।
وَعَنْ أَبِي هُرَيْرَةَقَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ: كُلُّ الْمُسْلِمِ عَلَى الْمُسْلِمِ حَرَامٌ: دَمُهُ، وَمَالُهُ، وَعِرْضُهُ. [مُسْلِمٌ: 2564
अबू हुरैरा (रज़ि0) से वर्णन है कि रसूल (सल्ल0) ने फरमयाः हर मुसलमान का माल और उसका खून और उसकी इज़्ज़त आबरू दुसरे मुसलमान पर वर्जिद है। (सही मुस्लिमः 2564)
जिसने अपनी मेहनत से चटयल मैदान को खेती बारी के योग्य बनाया तो वह धरती उसी की होगी, कोई दुसरा अत्याचारक का उस पर अधिकार नहीं होगा। जिस की ओर नबी (सल्ल) ने मार्गदर्शन किया है। रसूल (सल्ल0) का फरमान है।
عَنْ سَعِيدِ بْنِ زَيْدٍ عَنِ النَّبِيِّ  قَالَ: مَنْ أَحْيَا أَرْضًا مَيْتَةً فَهِيَ لَهُ، وَلَيْسَ لِعِرْقٍ ظَالِمٍ حَقٌّ. [صحيح أبي داؤد: 3073 و صحيح الجامع: الألباني: 5976
सईद बिन ज़ैद (रज़ि0) से वर्णन है कि नबी (सल्ल0) ने फरमायाः जिस ने किसी मुर्दार धरती को आबाद किया तो वह धरती उसी की होगी। और उस धरती पर किसी दुसरे अत्याचारक दावेदार का कोइ हक नहीं है। (सही अबू दाऊदः 3073 , सही अल्जामिअः 5976)
इस प्रकार हम पाते हैं कि इस्लाम ने प्रत्येक मानव का हक एक दुसरे पर नियुक्त किया है और जो व्यक्ति अपने ऊपर अनिवार्य हक की पूर्ति करेगा। तो वह अल्लाह के पास प्रियतम होगा और पारलौकिक जीवन में सफलता प्राप्त करेगा।

शनिवार, 9 नवंबर 2013

मुहर्रम महीने का महत्व



सम्पूर्ण प्रशंसा का अल्लाह तआला ही योग्य है और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर अनगिनित दरूदु सलाम हो, अल्लाह तआला का अपने दासों पर बहुत बड़ा कृपा है कि उसने बन्दों की झोली को पुण्य से भरने के लिए विभिन्न  शुभ अवसर , महीने तथा तरीके उतपन्न किये, ताकि बन्दा ज़्यादा से ज़्यादा इन महीनों में नेक कर्म कर के अपने झोली को पुण्य से भर ले, उन महीनों में से एक मुहर्रम का महीना है।
मुहर्रम के महीने की सर्वश्रेष्टा निम्नलिखित वाक्यों से प्रमाणित होता है।
माहे मुहर्रम में रक्तपात, किसी पर अत्याचार करने का पाप दुग्ना हो जाता हैः
जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِ‌ عِندَ اللَّـهِ اثْنَا عَشَرَ‌ شَهْرً‌ا فِي كِتَابِ اللَّـهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْ‌ضَ مِنْهَا أَرْ‌بَعَةٌ حُرُ‌مٌ ۚ ذَٰلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ ۚ فَلَا تَظْلِمُوا فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ ۚ. (9- سورة التوبة: 36)
" वास्तविकता यह है कि महीनों की संख्या जब से अल्लाह ने आकाश और धरती की रचना की है, अल्लाह के लेख में बारह ही है और उन में से चार महीने आदर के (हराम) हैं। यही ठीक नियम है, अतः इन चार महीनों में अपने ऊपर ज़ुल्म (अत्याचार) न करो " ( 5- सूरः तौबा , 36)
 अबू बकरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने हज्ज के भाषण में फरमायाः  " निःसंदेह समय चक्कर लगा कर अपनी असली हालत में लौट आया है। जिस दिन अल्लाह ने आकाशों तथा धरती की रचना किया। वर्ष में बारा महीने होते हैं। उन में से चार आदर के (हराम) महीने हैं। तीन महीने मुसलसल हैं, जूल क़ादा, जूल हिज्जा, मुहर्रम और रजब मुज़र जो जुमादिस्सानी और शाअबान के बीच है......" ( सही बुखारीः 4662 और सही मुस्लिमः 1679)
अबू ज़र (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया कि रात का कौन सा भाग अच्छा है और कौन सा महीना सर्वशेष्ट है ? तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया। रात का अन्तिम भाग अच्छा है और मुहर्रम का महीना सर्वशेष्ट है।" ( सही मुस्लिमः 1163 )
रमज़ान महीने के बाद के मुहर्रम का महीना उत्तम है जैसा की एक हदीस से इस बात की पुष्टिकरण होती है। अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः " सब से अच्छा रोज़ा रमज़ान के बाद अल्लाह के महीने मुहर्रम का रोज़ा है और फर्ज़ नमाज़ के बाद सर्वशेष्ट नमाज़ रात की नमाज़ है।" ( सही मुस्लिमः 1163 )
मुहर्रम का रोज़ा रखने का कारणः
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस मुहर्रम के रोज़ा रखने का कारण भी बता दिया है। जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब मदीना हिज्रत कर के तशरीफ लाए तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पाया कि यहूद रोज़ा रखते हैं। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने प्रश्न किया, तुम लोग किस कारण आशूरा (10 मुहर्रम) के दिन रोज़ा रखते हो ? तो उन लोगों ने उत्तर दिया, यह एक महान दिन है जिस में अल्लाह ने मूसा (अलैहिस्साम) और उन की समुदाय को फिरऔन से मुक्ति दी और फिरऔन और उस की समुदाय को डुबा दिया। तो मूसा (अलैहिस्साम) ने अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए रोज़ा रखा। तो हम लोग भी इसी दिन रोज़ा रखते हैं। तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः " हम तुम लोगों से अधिक मूसा (अलैहिस्साम) के निकटतम और हक्दार हैं और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने रोज़ा रखा और इस रोज़े के रखने का आदेश दिया।" ( सही बुखारीः 4737 और सही मुस्लिमः 1130) 
मुहर्रम के रोज़े की फज़ीलतः
मुहर्रम के 10 वे दिन की अहमीयत बहुत ज़्यादा है और मूसा (अलैहिस्साम) ने रोज़ा रखा और उन के अनुयायियों ने भी रोज़ा रखा, यहाँ तक कि कुरैश (इस्लाम से पहले के अरब वासी) ने रोज़ा रखा और प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने रोज़ा रखा और लोगों को इस रोज़े के रखने पर प्रोत्साहित किया। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन है जिसे अबू क़ताता (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि एक व्यक्ति ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से आशूरा के रोज़े के प्रति प्रश्न क्या ?
وصيامُ يومِ عاشوراءَ ، أَحتسبُ على اللهِ أن يُكفِّرَ السنةَ التي قبلَه. (صحيح مسلم: 1162) "
 तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया।" आशूरा के रोज़े के प्रति मैं अल्लाह से पूरी आशा करता हूँ कि अगले एक वर्ष के पापों के मिटा देगा " ( सही मुस्लिमः 1162)
यह अल्लाह तआला का बहुत बड़ा कृपा हम पर है कि एक दिन के रोज़े के बदले एक वर्ष के पाप स्माप्त हो जाते हैं। प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) 10 मुहर्रम के रोज़े का खास ध्यान रखते थे।
ما رأيتُ النبيَّ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم يتحرَّى صيامَ يومٍ فضَّلَه على غيرِه إلا هذا اليومَ، يومَ عاشوراءَ، وهذا الشهرَ، يعني شهرَ رمضانَ. (صحيح البخاري: 2006)
इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को आशूरा के दिन का रोज़ा रखने का बहुत ख्याल करते हुए पाया और रमज़ान के रोज़े का ऐहतमाम करते हुए देखा । ( सही बुखारीः 2006)
आशूरा का रोज़ा किस किस तिथि को रखा जाए ?
(1) मुहर्रम की 9 और 10 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया " यदि मैं आने वाले वर्ष तक जीवित रहा तो 9 और 10 का रोज़ा रखूंगा " ( सही मुस्लिम)
(2)    मुहर्रम की 10 और 11 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया " यहूद की मुखाल्फत करो, 10 के साथ एक दिन पहले ( 9 तिथि) या एक दिन बाद (11) को रोज़ा रखो, (मुस्नद अहमद और इब्ने खुज़ैमाः 2095)
(3)   मुहर्रम की 9 , 10 और 11 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया " 10 के साथ एक दिन पहले ( 9 तिथि) और एक दिन बाद (11) को रोज़ा रखो, (अल-जामिअ अस्सगीरः 5068)

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ? महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?   महापाप (बड़े गुनाह) प्रत्येक वह कार्य जिस का पाप बहुत ज़्य...