मंगलवार, 25 जनवरी 2011

गणतंत्र दिवस



आज 26 जनवरी ऐतिहासिक दिन है जिस दिन प्रत्येक भारतीय के हृदय में देश भक्ति की लहरें उठता है। यही वह दिन है जब जनवरी 1930 में लाहौर में पंडित जवाहर लाल नेहरु ने तिरंगा फहराया था और स्वतंत्र भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की घोषणा की थी।
26 जनवरी 1950 वह दिन था जब भारतीय गणतंत्र और इसका संविधान प्रभावी हुए। यही वह दिन था जब 1965 में हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।
इस अवसर के महत्व के दर्शान के लिए हर वर्ष गणतंत्र दिवस पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, और राजधानी, नई दिल्ली में राष्ट्र‍पति भवन के समीप रायसीना पहाड़ी से राजपथ पर गुजरते हुए इंडिया गेट तक और बाद में ऐतिहासिक लाल किले तक शानदार परेड का आयोजन किया जाता है।
इस लिए हम आज गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर अपने सब भारतीयों को शुभ कामनाए देते हैं और देश की प्रगति और तरक्की के लिए दुआ करते हैं। सब देशवासियों से बिन्ती करते हैं कि भारत की प्रगति, उत्पादन, तरक्की और देश की छवी को सुन्दर से अतिसुन्दर करने के लिए मिल जुल कर काम करें और उन लोगों का बाइकाट करें जो हमारे देश को बांटने का काम करते हैं और भारत की प्रगती के रास्ते में रोड़ा अटकाते है और आतंकवादी के रूप में हमारे प्रिय देश को लहुलहान करते हैं।

सफर का महीना ( अपशकुन)




इस्लामिक महीनों में से एक महिने का नाम सफर है जो केलन्डर सूची के अनुसार दुसरा महीना है। इस महीने को सफर इस लिए कहा जाता है क्यों कि इस्लाम से पहले अरब वासियों दुसरे समुदाय पर आक्रमण करते थे और सब कुछ लूट लेते और कुछ भी न छोड़ते थे, इसी लिए इस महीने को सफर कहा जाता था और अरब वासियों इस महीने में दो बड़े अप्राध में ग्रस्त थे।
पहलाः इस महीने को अपने स्वार्थ के कारण आगे – पीछे कर लेते थे।
दुसराः इस महीने को मानते थे।

इस्लाम ने पूर्व अरबवासियों के दोनों कार्यों का बहुत ज्यादा खंडन किया है और एक साफ सुथ्रा मन्त्र अल्लाह पर विश्वास पेश किया है जो हर प्रकार से पवित्र और लाभदायक है।

पहलाः इस्लाम से पहले अरब वासियों सफर के महीने को अपने स्वार्थ के कारण आगे – पीछे कर लेते थे जिस महीने को अल्लाह तआला ने आदर- सम्मान वाला बनाया था, उस में पूर्व अरबवासी उलट फेर कर देते थे। अल्लाह ने उसी उलट फेर की निति को अशुद्ध करार किया। सफर का महीना वर्ष के बारा महीने में से दुसरा महीना है। अल्लाह तआला के पास उन में से चार महीने आदर ( हुरमत वाले) हैं। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है , ” वास्तविकता यह है कि महीनों की संख्या जब से अल्लाह ने आसमान और जमीन की रचना की है, अल्लाह के लेख में बारह ही है और उन में से चार महीने आदर के (हराम) हैं, यही ठीक नियम है, अतः इन चार महीनों में अपने ऊपर ज़ुल्म न करो, ” ( अल- तौबाः 36 )
इसलाम से पूर्व अरबवासी इस चार महीनों के आदर ( हुरमत) को जानते थे और उस के अनुसार अमल करने का प्रयास भी करते थे परन्तु अपने आर्थिक स्वाद के लिए मुहर्रम महीने को सफर महीने से बदल देते थे और कभी सफर के स्थान पर मुहर्रम महीने से परिवर्तन कर देते थे। अल्लाह तआला ने मुश्रिकीन (इसलाम से पूर्व अरब वासी) के इसी निति का खंडण किया है और खुले शब्दों में मानव को आदेश दे दिया कि तुम इस महीनों में उलट फेर करके अपने ऊपर अत्याचार न करो, अल्लाह तआला ने जो नियम बना दिया है उस में संशोधन नही हो सकता यदि जो संशोधन करने का प्रयास करेगा वह अपने ऊपर ज़ुल्म करेगा। यदि कोइ मानव महीने की उलट फेर करता है तो उसे कोइ लाभ तो न होगा बल्कि वास्तविक घाटा उठाएगा।
दुसरी बड़ी खलती जो पूर्व अरब वासी इस महीने में करते थे कि वह लोग सफर महीने को अपशकुन मानते थे। बल्कि आज के भी बहुत से लोग सफर के महीने को अपशकुन मानते हैं और बहुत सा वह काम करते हैं जो शिर्क के सूची में आता है। अपशकुन कहते हैं ” कोइ व्यक्ति किसी काम करने जा रहा हो और उसी समय बिल्ली रास्ता काट दे, या किसी नापसन्द व्यक्ति को देख ले, या शीशा गिर कर टूट जाए तो अपशकुन माना जाए कि अब हमारा यह काम न होगा और उस काम को न किया जाए।
अल्लाह तआला के आज्ञा के अनुसार हर वस्तु अपने अन्जाम को पहुंचती है। किसी भी मख्लूक (वस्तु) के पास उस चीज को रोकने की शक्ति नही, यदि कोइ व्यक्ति शक्ति उस चीज में मान कर वह काम नही करता तो उसने अल्लाह तआला से विश्वास हटा कर बन्दों को लाभ या हाणी का मालिक मानता है तो यही शिर्क है। प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस अपशकुन से खुले शब्दों में मना फरमाया है
” عن أبي هريرة قال : قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : ” لا عدوى ولا طيرة ولا هامَة ولا صَفَر وفر من المجذوم كما تفر من الأسد ” رواه البخاري
अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया ” छूत वाला रोग स्वयं नही लगता, और न ही अपशकुन होता, और न उल्लू के बोलने कोई फरक पड़ा, और न ही सफर महीने का असर है और तुम कोढ़ी से वेसे भागो जेसे शेर से भागते हो ” ( सही बुकारी)
उक़बा बिन आमिर (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सामने शुभ शकुन का जिकर आया तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया ” शुभ शकुन अच्छी चीज़ है और मुसलमान को अपशकुन किसी काम से नही रोकती, जब तुम में से कोइ अप्रिय चीज़ देखे तो कहे, ऐ अल्लाह ! तेरे सिवा कोई भलाई लाने वाला नही, और न ही तेरे सिवा कोई बुराई दूर कर सकता है और न ही तेरे सिवा किसी को शक्ति तथा ताकत है ” ( अबी दाऊद )
अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया ” अपशकुन शिर्क है, अपशकुन शिर्क है, (अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद (रज़ी अल्लाह अन्हु) कहते है) , हम में से प्रत्येक व्यक्ति के जहन में इस प्रकार क चिन्ता आता है परन्तु अल्लाह पर विश्वास और भरोसा से यह चीज समाप्त होजाती है ” ( सुनन अबी दाऊद व सुनन तिर्मिजी)
अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया ” जिसे अपशकुन ने किसी काम से रोक दिया तो उसने शिर्क किया।…. ( मुस्नद अहमद )

इसी तरह किसी महीला से अपशकुन लेना या पक्षी से अपशकुन लेना भी शिर्क के सुची में आएगा क्यों इन चीजों में कुछ भी शक्ति नही कि किसी को लाभ या नुक्सान पहुंचाए। फायदे या लाभ का वास्तविक मालिक एल्लाह तआला है। अल्लाह जिसे चाहे लाभ पहुंचाए और जिसे चाहे नुक्सान पहुंचाए फिर हम अपने जैसे किसी मख्लूक को उस चीज़ का दोषी क्यों ठहराए जिसा का वह मालिक नही।

सोमवार, 10 जनवरी 2011

मुस्लिम का व्यवहार






इस्लामिक जीवन में अच्छे आचार तथा व्यवहार बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसी कारण इस्लाम ने अच्छे आचरण और स्वभाव व्यक्तियों को उच्च स्थान पर स्थापित किया है। उत्तम व्यवहार एवं सुन्दर आचार एक आदर्श समाज की निर्माण के लिए ईंट का काम करती है और सुन्दर संस्कृति की निर्माण के लिए ठोस नीव है। अच्छे व्यवहार की ओर सर्व नबियों, रसूलों ने आमंत्रण किया है।
इस लिए इस्लाम ने अपने अनुयायियों को प्रत्येक उत्तम व्यवहार और स्वभाव का शिक्षण दिया और अशुद्ध आचार से दूर रहने का आदेश दिया। यही कारण कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने खुले शब्दों में कह दिया कि मेरे नबी बना कर भेजे जाने का लक्ष्य ही उत्तम आचार का प्रचार करना है। मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है, " انما بعثت لأتمم مكارم الأخلاق "
निःसंदेह मुझे केवल इसी लिए भेजा गया कि मैं उत्तम आचार की ओर बुलाता रहूँ " ( मुस्नद अहमद )

जब मानव का आचार अच्छा होगा तो उसका ईमान भी सम्पूर्ण होगा और उस के जन्नत में प्रवेश होने की संभावना भी अधिक होगी जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है,
وعن أبي هريرة رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال ": أكمل المومنين ايماناأحسنهم خلقا و خياركم خياركم لنسائهم خلقا " - أخرجه أحمد والترمذي

अर्थातः अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " सब से सम्पूर्ण और सर्वश्रेष्ट मुस्लिम वह है जो व्यवहार के अनुसार सब से अच्छा हो, और तुम में से उत्तम वह है जो अपनी पत्नियों के साथ अच्छा व्यवहार करे "।
इसी प्रकार जो लोग अच्छे व्यवहार के साथ जीवन गुज़ारते हैं और उत्तम आचार के साथ लोगों से मिलते जुलते हैं, लोगों को किसी प्रकार की तकलीफ नही देते, तो ऐसा व्यक्ति क़ियामत के दिन नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के निकट्तम होंगे जैसा कि जाबिर बिन अब्दुल्लाह से वर्नण है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया
إن من أحبكم إليّ و أقربكم مني مجلسا يوم القيامة أحاسنكم أخلاقا " - أخرجه الترمذي وحسّنه"
मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथी जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ी अल्लाह अन्हु) कहते है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " निःसंदेह तुम मेरे पास ज्यादा प्रिय और बैठक के अनुसार ज्यादा नज्दीक होंगे जो अच्छे और उत्तम आचार वाले होंगे "

उत्तम आचार , उम्दा मेल-जोल, मीठे बोल-चाल के माध्यम से एक मूमीन हमेशा रोज़ा रखने वाले, हमेशा नमाज़ पढ़ने वाले के पद को पा सकता है। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है "
وعن عائشة رضي الله عنها قالت سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول " إن المؤمن ليدرك بحسن خلقه درجة الصائم والقائم " - أخرجه ابوداؤد والحاكم

इस हदीस का अर्थातः बेशक मूमीन अपने अच्छे आचरण और शुद्ध व्यवहार से हमेशा रोज़ा रखने वाले, हमेशा नमाज़ पढ़ने वाले के स्थान को पा सकता है।
इसी तरह क़ियामत के दिन तराज़ू में सब से भारी चीज़ अच्छा आचार उत्तम चरित्र ही होगा। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है "
وعن أبي الدرداء رضي الله عنه أن النبي صلى الله عليه وسلم قال " ما من شيئ أثقل في ميزان العبد المؤمن يوم القيامة من حسن الخلق وان الله يبغض الفاحش البذي " - أخرجه الترمذي
इस हदीस का अर्थातः अबू दरदा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया है " मूमीन बन्दों के तराज़ू में क़ियामत के दिन सब से भारी चीज़ अच्छे अख्लाक होंगे और अल्लाह तआला बद खुलुक दुराचार तथा दुर्व्यवहार वाले से घृणा करते हैं।"
अल्लाह तआला भी उन लोगों से प्रेम करता है जो अच्छे चरित्र वाले होते हैं, और अल्लाह की ओर से मानव को सब से उत्तम चीज़ वर्दान की जाती है वह अच्छे व्यवहार , सुन्दर आचार और बेह्तरीन चरित्र है। जैसा कि हदीस में आया है।
قالوا : يا رسول الله ! ما خير ما اعطي الإنسان ؟ قال " الخلق الحسن " - صحّحه الألباني
लोगों ने प्रश्न किया. ऐ अल्लाह के रसूल! लोगों को सब से अच्छी चीज़ कौन सी वर्दान की जाती है तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उत्तर दिया। अच्छे व्यवहार "
जो लोग अच्छे चरित्र वाले होते हैं, स्वभाव को अपनी जीवन का अटूट हिस्सा बना लेते हैं, लोगों के प्रति उसका हृदय नरम होता है, अच्छे व्यवहार से मिलते जुलते हैं तो ऐसे लोगों के लिए जन्नत (स्वर्ग) की गारेन्टी मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने लिया है
وعن أبي أمامة الباهلي رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال:" أنا زعيم ببيت في ربض الجنة لمن ترك المراء وإن كان محقا ، وببيت في وسط الجنة لمن ترك الكذب وإن كان مازحا ، وببيت في أعلى الجنة لمن حسن خلق " - الترغيب والترهيب للمنذري

इस हदीस का मत्लब यह है, अबु उमामा बाहली (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " मैं उस व्यक्ति के लिए जन्नत (स्वर्ग) के निच्ले हिस्से की जिम्मेदारी लेता हूँ जो हक्दार होने के बावजूद झग्ड़ा लड़ाइ छोड़ दे, और मैं उस व्यक्ति के लिए जन्नत (स्वर्ग) के बीचवाले हिस्से की जिम्मेदारी लेता हूँ जो हंसी-मज़ाक में भी झूट बोलना छोड़ दे, और मैं उस व्यक्ति के लिए जन्नत (स्वर्ग) के उच्च स्थान की जिम्मेदारी लेता हूँ जिसका चरित्र, व्यवहार, स्वभाव अच्छा होजाए,
सुब्हानल्लाह, कितना बड़ा स्थान और किया ही शुभ सूची है उन व्यक्तियों के लिए जो उत्तम व्यवहार, सुन्दर आचार , अच्छे अख्लाक़, और उम्दा चरित्र वाले होते हैं। यही कारण है कि संसारिक जीवन और पारलौकिक जीवन की सफलता केवल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के आदर्शनीय जीवन के अनुसार जीवन बिताने पर निर्भर करता है। जीवन के हर मोड़ पर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अपना आदर्श माना जाए, क्यों कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अमल कर के कुरआन का व्याख्या किया है, अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद में मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के महामहानतम अख्लाक को बयान किया,
وإنّك لعلى خلق عظيم " - القلم : 4"
इस आयत का अर्थातः और बैशक आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अख्लाक़ के बड़े मरतबे पर हो,

प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के अख्लाक़ के प्रति आईशा (रज़ी अल्लाह अन्हा) से प्रश्न किया गया तो आईशा (रज़ी अल्लाह अन्हा) ने उत्तर दिया कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का अख्लाक ही कुरआन था।
इतने उच्च आचार और उत्तम व्यवहार के मालिक होने के बावजूद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह से प्रार्थना करते थे कि मेरे अख्लाक को उत्तम से उत्तम कर दे
عن عبدالله بن مسعود رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم كان يقول: " اللهم أحسنت خلقي فأحسن خلقي " - مسند أحمد
इस हदीस का माना यह है, अबदुल्लाह बिन मस्ऊद (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह से हमेशा दुआ मांगते थे " ऐ अल्लाह ! जिस तरह तूने मेरी बनावट को अति सुन्दर बनाया है उसी तरह मेरे आचार , व्यवहार को अति सुन्दर कर दे,
अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद में खुले शब्दों में मानव को आदेश दे दिया कि यदि तुम अल्लाह और अन्तिम दिन पर विश्वास और ईमान रखते हो तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के अनुसार जीवन गुज़ारो, और इसी में तुम्हारी सफलता है। अल्लाह का कथन है।
لقد كان لكم في رسول الله أسوة حسنة لمن كان يرجو الله و اليوم الآخر وذكرالله كثيرا" -الأحزاب: 21"
वास्तव में तुम लोगों के लिए अल्लाह के रसूल में एक उत्तम आदर्श है प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और अन्तिम दिन की आशा रखता है और अल्लाह को ज़्यादा याद रखता है।
प्रिय मित्रो, अच्छे आचार , सुन्दर स्वभाव केवल पढ़ने – लिखने की चीज़ नही और न ही कहानिया है जिसे केवल बयान किया जाए और ईच्छाए हैं जिस की कल्पना की जाए बल्कि यह अल्लाह पर विश्वास तथा ईमान से प्राप्त होता है , अल्लाह पर ईमान पेड़ है तो अच्छा अख्लाक़ उसका फल, यदि ईमान बिल्डिंग की नीव है तो अच्छे अख्लाक़ उसकी इमारत, जब भी अख्लाक, व्यवहार , आचार अच्छा होगा, ईमान ज़्यादा होगा और अख्लाक बिग्ड़ेगा , आचार अशुद्ध होगा तो ईमान कमज़ोर होगा,
इसी लिए एक मुस्लिम की परिभाषा यह की गइ है जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है ,
المسلم من سلم المسلمون من لسانه ويده " - أخرجه : الترمذي"

मुसलमान वह है जिस के हाथ तथा ज़ुबान के शड़यंत्र से दुसरे मुसलमान सुरक्षित रहे,

एक व्यक्ति उसी समय जन्नत का मुस्तहिक़ होगा जब उसका आचरण, व्यवहार, स्वभाव अतिसुन्दर हो और उस के पड़ोसी उस से प्रसन्न हो, यदि किसी व्यक्ति का व्यवहार तथा चरित्र सुन्दर न होगा, वह अपने पड़ोसियों को परीशान करता हो, उसके पड़ोसी उस से अप्रसन्न हो तो ऐसा व्यक्ति जहन्नम (नरक) में जाऐगा जैसा कि अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से एक व्यक्ति ने प्रश्न किया कि ऐ अल्लाह के रसूल ! फलाँ महिला बहुत नमाज़ पढ़ती, बहुत रोज़ा रखती और बहुत ज़्यादा दान करती परन्तु उस के पड़ोसी उस महिला से बहुत परीशान हैं। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " वह जहन्नम (नरक) में जाऐगी, तो फिर उस व्यक्ति ने प्रश्न किया कि ऐ अल्लाह के रसूल ! फलाँ महिला केवल फर्ज़ (अनिवार्य़) नमाज़ पढ़ती, केवल फर्ज़ (अनिवार्य़) रोज़ा रखती और केवल फर्ज़ (अनिवार्य़) दान देती परन्तु उस के पड़ोसी उस महिला से बहुत ज़्यादा प्रसन्न हैं। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " वह जन्नत में जाऐगी,

गोया कि अच्छे अखलाक़, स्वभाव तथा उत्तम आचार के कारण ही हम अपने पारलोकिक जीवन को सफलपूर्वक बना सकते हैं और दूर्व्यवहार, अशुद्ध आचार के कारण हम अपने पारलोकिक जीवन को नष्ठ कर सकते हैं। निर्णय तथा कर्म करना हमारे हाथ में है।

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