बुधवार, 21 दिसंबर 2011

रोगी व्यक्तियों के लिए नमाज़ पढ़ने का तरीका



अल्लाह तआला का बड़ा कृपा है कि उसने मानव पर वही चीज़ अनिवार्य की जो बन्दों की क्षमता और शक्ति में हो, और शक्ति से ज़्यादा हो तो उस को सरल और आसान कर दिया ताकि इन्सान उस कार्य और इबादत को कर सके और मानव के शक्ति से अधिक है और इन्सान उसे कार्य के करने की क्षमता नहीं रखता तो अल्लाह तआला ने उस इबादत और कार्य को क्षमा कर दिया है, उसी इबादतों में नमाज़ एक बहुत ही महत्वपूर्ण इबादत है जो एक बालिग़, बुद्धि वाला, शक्ति शाली मुसलमान के लिए दिन तथा रात में पांच बार पढ़ना अनिवार्य है, जो मुसलमान शक्ति और क्षमता होने के बावजूद नमाज नहीं पढ़ते, ऐसे मुसलमानों को गम्भीर पुर्वक विचार करना चाहिये कि 
यदि हम नमाज़ नहीं पढ़ते तो मृत्यु के बाद हमारा ठेकाना क्या होगा,? 
हमें अल्लाह तआला नमाज़ न पढ़ने के अपराध में किया सज़ा देगा,?
क्यों कि अल्लाह तआला ने बीमार और रोगी व्यक्तियों की क्षमता के कारण उनके लिए नमाज़ को कुछ सरल और आसान कर दिया है। जब एक रोगी और बीमार से पीडीत व्यक्ति के लिए नमाज़ माफ नहीं बल्कि उनके लिए अल्लाह ने कुछ छुट दी है तो तन्दुरुस्त और स्वस्थ व्यक्ति से नमाज़ कैसे माफ और क्षमा हो सकता है।
 
(1)  बीमार व्यक्ति पर अनिवार्य है कि वह फर्ज़ नमाज़ खड़े होकर या झुक कर या दीवार या लाठी पर टेक लगाकर ज़रूरत और क्षमता के अनुसार पढ़े।

(2) यदि खड़े होकर पढ़ने की शक्ति न हो तो बैठ कर नमाज़ पढ़े, बेहतर है कि खड़े होने या रकूअ की जगह पलथी मार कर नमाज़ पढ़े।

(3) यदि बैठ कर नमाज़ पढ़ने की शक्ति नहीं हो तो दायें करवट लेट कर क़िब्ला की ओर रुख कर के पढ़े, यदि क़िब्ला की ओर रुख करना असंभव हो तो जिस तरह संभव हो नमाज़ पढ़ ले और उसकी नमाज़ सही होगी और उसे नमाज़ दोहराना नही होगा।

(4) यदि दायें करवट लेट कर पढ़ने की शक्ति न हो तो चित लेट कर क़िब्ला की ओर दोनों पैर करके पढ़े और उत्तम है कि अपने सर को थोड़ा क़िब्ला की ओर करे यदि शक्ति न हो तो जिस तरह संभव हो नमाज़ पढ़ ले और उसे नमाज़ दोहराना नही है।

(5) यदि बीमार व्यक्ति रूकूअ या सज्दा करने की क्षमता नहीं रखता तो अपने सर के इशारे से नमाज़ पढ़ेगा और सज्दा रूकूअ से कम करेगा।

(6) यदि बीमार व्यक्ति अपने सर से इशारे करने की क्षमता नहीं रखता तो अपने हृदय से नमाज़ पढ़ेगा और तक्बीर कहेगा और दुआ पढ़ेगा और क़ियाम, रूकूअ, सज्दा और बैठने की नियत करेगा और प्रत्येक दुआ उस के स्थान पर पढ़ेगा। जो जैसा नियत करेगा उसी के अनुसार उस को बदला (पुण्य) मिलेगा।

(7) यदि बीमार व्यक्ति के लिए हर नमाज़ को उस के असली समय में पढ़ना कठिन हो तो ज़ोहर और अस्र को एक साथ पढ़ेगा और मग़रिब तथा ईशा को एक साथ पढ़ेगा या दोनों को प्राथ्मिक समय में पढ़ेगा या विलंभ करके पढ़ेगा, मगर फज्र को दुसरे किसी नमाज़ के साथ एकठ्ठा करके नही पढ़ेगा।

(8) बीमार व्यक्ति नमाज़ क़स़्र कर के नही पढ़ेगा यदि बीमार व्यक्ति यात्री हो तो क़स़्र कर सकता है।

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

मरयम (अलैहिस्सलाम) के जीवन की कुछ झल्कियां


मरयम (अलैहिस्सलाम) के जीवन की कुछ झल्कियां

मर्यम (अलैहस्सलाम) की माता बहुत ही इबादत गुजार महिला थीं, उन्हों ने अल्लाह से मन्नत मांगी कि यदि अल्लाह ने उन्हें बच्चा दिया तो वह अपने बच्चे को अल्लाह के लिए धर्म की सेवा के लिए उत्सर्ग कर देगी, क्यों कि मर्यम की माता पति के साथ रहने के बावजूद गर्भवति नही हो रही थीं, अल्लाह का करना हुआ कि उनकी माता गर्भवती हो गई और जब एक बच्ची (मरयम) को जन्म दिया तो बहुत निराश हो कर कहा, जैसा कि पवित्र कुरआन ने उन का किस्सा बयान हुआ है " ऐ अल्लाह मैं ने एक युवती को जन्म दिया और बालिका बालक की तरह नही हो सकती, परन्तु फिर अल्लाह से दुआ करते हुए कहा " और मैं ने उस का नाम मरयम रखा है और ऐ अल्लाह, मैं उसे और उसकी संतान (वंश) को शैतान मरदूद की परेशानियों से तेरे शरण में देती हूँ " (सूराः आले इमरानः 36)
अल्लाह तआला ने इस नेक महिला की दुआ को स्वीकारित कर लिया और मर्यम
और उस के वंश को शैतान के परेशानियों से बचाया जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने स्पष्ट कर दिया है, अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णित है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " जब भी कोई बच्चा जन्म लेता है तो शैतान जन्म लेते समय बच्चे को छूता है तो शैतान के छूने के कारण बच्चा चिल्लाता है, सिवाए मर्यम और उस का बेटा " ( सही बुखारीः हदीस क्रमांक, 4548)
जब मर्यम (अलैहस्सलाम)
  का जन्म हुआ तो मन्नत के अनुसार, उनकी माता ने मर्यम (अलैहस्सलाम)  को पवित्र मस्जिद ( इस्राईल में इस समय मौजूद है) में ले जा कर रख दिया, मस्जिद के सब जिम्मेदार इस बालिका के पालन पोशन के लिए बहुत रूचक थे, प्रत्येक व्यक्ति चाहता था कि वह इस बालिका के पालन पोषन की जिम्मेदार ले। फिर उन लोगों ने यह निर्णय किया कि इस बालिका के पालन पोशन की जिम्मेदारी के लिए चिठी (कुरआ) डाली जाए, और जिस के नाम की चिठी निकलेगी वही मरयम के पालन पोषन की जिम्मेदारी उठाऐगा तो मर्यम (अलैहस्सलाम) के मौसा जकरीया (अलैहस्सलाम) का नाम निकला जो कि उस समय उस समुदाय के नबी थे। जैसा कि अल्लाह तआला ने इस किस्से को बयान फरमाया है। " ऐ नबी, ये छिपी खबरें हैं जो हम तुमको प्रकाशन के द्वारा बता रहें हैं, अन्यथा तुम उस समय वहाँ उपस्थित न थे जब वह लोग (उपासनाग्रह के सेवक) यह फैसला करने के लिए कि मरयम का सरपरस्त कौन हो, अपनी अपनी क़लम फेंक रहे थे, और न तुम उस समय उपस्थित थे जब उन के बीच झगड़ा खड़ा हो गया था " (सूराः आले इमरानः 44)
जकरीया (अलैहस्सलाम) मरयम का बहुत ज़्यादा ध्यान
और खयाल रखते थे, और मरयम (अलैहस्सलाम) केवल अल्लाह की उपासना तथा इबादत में लगी रहती थीं, मर्यम )अलैहस्सलाम( बहुत नेक और पवित्र स्भाव की बालिका थीं, अल्लाह तआला की ओर से उन्हें प्रत्येक प्रकार के फल फोरूट खाने के लिए दिये जाते थे। जैसा कि पवित्र ग्रन्थ कुरआन में मर्यम (अलैहस्सलाम) के किस्से के प्रति आया है, " अन्ततः उसके रब ने उस लड़की को खुशी से स्वीकार कर लिया, उसे बड़ी अच्छी लड़की बना कर उठाया और जकरीया को उसका सरपरस्त बना दिया। जकरीया जब भी उसके पास मेहराब (इबादतगाह) में जाते तो उसके पास कुछ न कुछ खाने-पीने की चीज़ें पाते, पुछते, मरयम ! यह तेरे पास कहाँ से आया ? तो वह उत्तर देती, अल्लाह के पास से आया है, अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब रोज़ी देता है," (सूराः आले इमरानः 37)
मर्यम (अलैहस्सलाम) के
पवित्रता के कारण अल्लाह ने उसे एक महान घटना में पड़ित किया और वह स्थान दिया जो किसी महिला को आज तक प्राप्त न हो सका, फरिशते ने मर्यम (अलैहस्सलाम) को नेक, पवित्र और सुन्दर व्यवहार वाली होने की गवाही दी, जैसा कि कुरआन शरीफ में आया है,  " फिर वह समय आया जब मरयम से फरिश्ते ने आ कर कहा, ऐ मरयम ! अल्लाह ने तुझे चुना और पवित्रता प्रदान की, और सारे संसार की स्त्रियों में तुझे आगे रखकर अपनी सेवा के लिए चुन लिया। ऐ मरयम ! अपने रब की आज्ञाकारी बनकर रह, उसके आगे सजदा कर और जो बन्दे उसके आगे झुकने वाले हैं, उनके साथ तू भी झुक जा।" (सूराः आले इमरानः 43)
और
फरिशता मानव रूप में मर्यम (अलैहस्सलाम) के पास आये तो मर्यम (अलैहस्सलाम) बहुत डर गईं और अल्लाह का वास्ता देने लगी तो फरिशते ने उत्तर दिया तुम डरो मत, हम मानव नही , हम फरिशते है, अल्लाह के आदेश से तुम्हें एक लड़के की शुभ खबर देने आये हैं, उस पर मर्यम (अलैहस्सलाम) बहुत आश्चर्य होई, जैसा कि पवित्र कुरआन में मर्यम (अलैहस्सलाम) और फरिशते के बीच होने वाली बात चीत इस प्रकार व्यक्त किया है, " और ऐ नबी ! इस किताब में मरयम का हाल बयान करो, जब कि वह अपने लोगों से अलग हो कर पुर्व की ओर ( इबादतगाह) एकान्तवासी हो गई थी, और परदा डाल कर उसने छिप बैठी थी, इस हालत में हमने उसके पास अपनी एक आत्मा ( फरिशता) को भेजा और वह उसके सामने एक पूरे इनसान के रुप में प्रकट हो गया, मरयम यकायक कहने लगी, कि यदि तू कोई ईश्वर से डरने वाला आदमी है, तो मैं तुझ से करूणामय ईश्वर की पनाह माँगती हूँ, उसने कहा, मैं तो तेरे रब का भेजा हुआ फरिश्ता हूँ, और इसलिए भेजा गया हूँ कि तुझे एक पवित्र लड़का दूँ, मरयम ने कहा, मेरे यहाँ केसे लड़का होंगा जब कि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं है, और मैं कोई बदकार औरत नहीं हूँ, फरिश्ते ने कहा, ऐसा ही होगा, तेरे रब कहता है कि ऐसा करना मेरे लिए बहुत आसान है और हम यह इस लिए करेंगे कि लड़के को लोगों के लिए एक निशानी बनाऐ और अपनी ओर से एक दयालुता। और यह काम होकर रहना है। मरयम को उस बच्चे का गर्भ रह गया, और वह उस गर्भ को लिए हुए एक दूर के स्थान पर चली गई, फिर प्रसव- पीड़ा ने उसे एक खजूर के पेड़ के नीचे पहुंचा दिया, वह कहने लगी, क्या ही अच्छा होता कि मैं इससे पहले ही मर जाती, और मेरा नामो-निशान न रहता, फरिश्ते ने पाँयती से उसको पुकार कहा, गम न कर, तेरे रब ने तेरे निचे एक स्त्रोत बहा दिया है, और तू तनिक इस पेड़ के तने को हिला, तेरे ऊपर रस भरी ताजा खजूरें टपक पड़ेंगी, अतः तू खा और पी और अपनी आँखे ठण्डी कर, फिर अगर कोई आदमी तुझे दिखाई दे तो उससे कह दे, कि मैं ने करूणामय (अल्लाह) के लिए रोज़े की मन्नत मानी है, इस लिए आज मैं किसी से न बोलूँगी, फिर वह उस बच्चे को लिए हुए अपनी क़ौम में आई, लोग कहने लगे, ऐ मरयम ! यह तू ने बड़ा पाप कर डाला, हारून की बहन , न तेरा बाप कोई बुरा आदमी था और न तेरी माँ ही कोई बदकार औरत थीं, मरयम ने बच्चे की ओर इशारा कर दिया, लोगों ने कहा, हम इससे क्या बात करें जो अभी जन्म लिया हुआ बच्चा है, बच्चा बोल उठा, मैं अल्लाह का बन्दा हूँ, उसने मुझे किताब दी, और नबी बनाया, और बरकतवाला किया जहाँ भी रहूँ, और नमाज़ और ज़कात की पाबन्दी का हुक्म दिया, जब तक मैं ज़िन्दा रहूँ, और अपनी माँ का हक अदा करनेवाला बनाया, और मुझ को ज़ालिम और अत्याचारी नहीं बनाया, और सलाम है मुझ पर जबकि मैं पैदा हुआ और जबकि मैं मरूँ और जबकि मैं ज़िन्दा कर के उठाया जाऊँ, यह है मरयम का बेटा ईसा और यह है उस के बारे में वह सच्ची बात जिस में लोग शक रक रहे हैं, (सूराः मरयमः 34)
अल्लाह तआला के कृपा और आदेश से जब मर्यम (अलैहस्सलाम) को एक बहुत
महान पुत्र मिला, उस समय मर्यम (अलैहस्सलाम) बहुत दुखी और परेशान थीं कि समाज के लोग उस पर आरोप लगाऐंगे, उस की बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा, कि यह बच्चा बिना बाप के अल्लाह तआला के आदेश से जन्म लिया है, तो अल्लाह तआला ने चमत्कार करते हुए उस नीव जन्म शीशु को बोलने की क्षमता प्रदान की और अपने माता के निर्दोश और पवित्र होने की घोषणा और भविष्य में अल्लाह का नबी होने का इलान किया जैसा कि मरयम (अलैहस्सलाम) का किस्सा अभी अभी बयान हुआ है।

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

बीमार व्यक्तियों के वज़ू या तयम्मुम करने का तरिका


 एक मुस्लिम के लिए अल्लाह तआला के लिए नमाज़ पढ़ना अनिवार्य है, जो किसी भी बालिग, बुद्धी वाले मुसलमान से माफ नही है, सिवाए कुछ कारणो में जिस की अनुमति स्वंय अल्लाह तआला ने दी है, परन्तु मानव जीवन में बहुत सी परिस्थतियों से गुजरता है, कभी वह बिल्कुल तन्दुरुस्त रहता है तो कभी बीमार और रोग से पीड़ीत रहता है, प्रत्येक हालत में उसे अल्लाह की इबादत, नमाज़ पढ़ना है परन्तु उस के शारीरिक क्षमता के अनुसार उसे कुछ छूट दी, और रोगी और बीमार व्यक्ति कैसे वज़ू और नमाज़ के लिए पवित्रता प्राप्त करे, इसी विषय में कुछ बातें आप की सेवा में उपस्थित करने अवसर मिला है, अल्लाह से आशा है कि हम सब को सही मार्ग दर्शन करे और मृत्यु के बाद जन्नत में दाखिल करे,

(1)  रोगी (बीमार व्यक्ति) पर अनिवार्य है कि पानी से पवित्रता प्राप्त करे तो छोटे नपाकी के कारण वज़ू वनाए, और बड़े नापाकी के कारण गुसल (स्नान) करे।

(2)  यदि उसे पानी से पवित्रता प्राप्त करने की क्षमता नहीं, चाहे पानी न होने के कारण, या कमज़ोरी या रोग के ज़्यादा होने का डर, या बीमारी से मुक्ति पाने में विलम्भ होने का डर तो इन कारणों में तयम्मुम करे।

(3)  तयम्मुम करने का तरीका यह है कि दोनों हाथों को पवित्र मिट्टी पर एक बार रखा जाए और दोनों हाथों को फूंका जाए और इन दोनों हाथों को पूरे चेहरे पर फेरा जाए फिर एक हथैली को दुसरे हथैली पर फेरा जाए।

(4)  यदि वह स्वयं पवित्रता प्राप्त करने की क्षमता नहीं रखता तो कोई दुसरा व्यक्ति उसे वज़ू या तयम्मुम कराएगा।

(5)  यदि पवित्रता प्राप्त करने वाले अंगों में ज़खम हो जिसे धोने से हानी का डर हो तो भीगे हाथ से उस पर मसह किया जाएगा, यदि भीगे हाथ से मसह करने से भी नुक्सान हो तो वह तयम्मुम करेगा।

(6)  जब शरीर का कोई अंग टूटा हो और उस पर कपड़ा या प्लास्टर लगा हो तो भीगे हाथ से उस पर मसह करना काफी होगा, तयम्मुम की आवश्यकता नही।

(7)  दीवार या कोई भी पवित्र वस्तु जिस पर धूल हो, उस से तयम्मुम करना उचित (जाइज़) है।

(8)  जब धरती या दीवार या कोई भी पवित्र वस्तु जिस पर धूल हो और इन से तयम्मुम करना असंभव हो तो मिट्टी बरतन या रूमाल में रखा जाएगा और उस से तयम्मुम किया जायगा।

(9)  जब किसी नमाज़ के लिए तयम्मुम किया और उसकी पवित्रता बाकी है तो दुसरी नमाज़ें भी पहले तयम्मुम से ही पढ़ सकता है, दुसरी बार तयम्मुम करने की ज़रूरत नहीं।

(10) बीमार व्यक्ति पर अनिवार्य (वाजिब) है कि अपने शरीर और कपड़े और स्थान (बिस्तर) को धो कर पवित्र रखे, या उसे बदल दे या अपवित्र जगह पर पवित्र बिस्तर लगा दे।

(11)  यदि शरीर और कपड़े और स्थान (बिस्तर) को धो कर पवित्र रखने की क्षमता न हो तो जहाँ तक संभव हो इन को पवित्र रखे और इसी हालत में नमाज़ पढ़े और उन पर दोबारा नमाज़ नही है।

(12)  बीमार व्यक्ति के लिए अनुचित है कि अपवित्रता के कारण नमाज़ को उस के असली समय से विलंभ करे, बल्कि संभव सिमा तक पवित्रता प्राप्त करने का प्रयास करे।

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

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