मंगलवार, 31 अगस्त 2010

रमज़ान के महीने के में की जाने वाली इबादतें- अराधना




रमज़ान करीम की बरकत और पवितर्ता से हम उसी समय लाभ उठा सकते हैं जब हम अपने बहुमूल्य समय का सही प्रयोग करेंगे, इस कृपा, माफी वाले महिने में सही से अल्लाह तआला की पुजा- अराधना करेंगे जिस तरह से प्रिय रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अल्लाह तआला की पुजा- अराधना किया है। वह इबादतें करेंगे जिसके करने से हमें पुण्य प्राप्त हो और हमारी झोली पुण्य से भर जाए और हमारा दामन पापों से पाक साफ हो जाए और उन कामों से दुर रहा जाए जो इस पवित्र महीने की बरकत तथा अल्लाह की कृपा, माफी से हमें महरूम ( वंचित) कर दे।
रमज़ान के महिने की सब से महत्वपूर्ण इबादत रोज़ा (ब्रत) है जिसे उसकी वास्तविक हालत से रखा जाए और उन कामों तथा कार्यों से दूर रहा जाए जो रोज़े को भंग ( खराब) कर दे। रोज़े रखने के लिए सब से पहले रात से ही या सुबह सादिक़ से पहले ही रोज़े रखने की नीयत किया जाए। इस लिए कि जो व्यक्ति रात में ही रोज़े की नीयत न करेगा, उस का रोज़ा पूर्ण न होगा। मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जो व्यक्ति रात ही से रोज़े की नीयत न करे, उस का रोज़ा नही। " ( अल- मुहल्लाः इब्नि हज़्म, अल-इस्तिज़्कारः इब्नि अब्दुल्बिर)
रमज़ान के मुबारक महीने में निम्नलिखित कार्य अल्लाह को खुश करने के लिए किया जाए।
1- सेहरीः
रोज़े रखने के लिए सब से पहले सेहरी खाया जाए क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है, सेहरी कहते हैं सुबह सादिक़ से पहले जो कुछ उप्लब्ध हो उसे रोज़ा रखने की नीयत से खा लिया जाए। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया," सेहरी खाओ क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है "। एक दुसरी हदीस में आया है " सेहरी खाओ यदि एक घोंट पानी ही पी लो, "
2 - फजर की नमाज़ के बाद से सुर्य निकलने तक मस्जिद में बैठ कर ज़िक्र – अज़्कार करनाः
यदि कोई व्यक्ति फजर की नमाज़ के बाद से सुर्य निकलने तक मस्जिद में बैठ कर ज़िक्रो अज़्कार करता है तो उसे बहुत ज़्यादा पुण्य मिलता है। जैसा कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " जिस ने फजर की नमाज़ पढ़ा और अपने स्थान पर बैठे ज़िक्रो अज़्कार करता रहा फिर सुर्य निक्ला और उसने दो रकआत नमाज़ पढ़ा तो उसे एक उमरे का पुरा पुरा सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा, ( सुनन तिर्मिज़ी)
3 - रोज़े की हालत में गलत सोच – विचार से अपने आप को सुरक्षित रखा जाएः
फजर से पहले से लेकर सुर्य के डुबने तक खाने – पीने तथा संभोग से रुके रहना ही रोज़ा की वास्तविक्ता नही बल्कि रोज़ा की असल हक़ीक़त यह कि मानव हर तरह की बुराई, झूट, झगड़ा लड़ाइ, गाली गुलूच, तथा गलत व्यवहार और गलत सोच – विचार तथा अवैध चीज़ो से अपने आप को रोके रखना ही रोज़े का लक्ष्य है और उसे पुण्य उसी समय प्राप्त होगा जब वह इसी तरह रोज़े रखेगा, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जो व्यक्ति अवैध काम और झूट और झूटी गवाही तथा जहालत से दूर न रहे तो अल्लाह को कोई अवशक्ता नही कि वह भूका, पीयासा रहे " ( बुखारी )
यदि कोई व्यक्ति रोज़ेदार व्यक्ति से लड़ाइ झगड़ा करने की कोशिश करे तो वह लड़ाइ, झगड़ा न करे बल्कि स्थिर से कहे कि मैं रोज़े से हूँ, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जब तुम में कोइ रोज़े की हालत में हो तो आपत्तिजनक बात न करे, जोर से न चीखे चिल्लाए, यदि कोइ उसे बुरा भला कहे या गाली गुलूच करे तो वह उत्तर दे, मैं रोज़े से हूँ।" ( बुखारी तथा मुस्लिम)
रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " कितने ही रोज़ेदार एसे हैं जिन के रोज़े से कोई लाभ नही, केवल भुखा और पियासा रहना है। " ( मिश्कातुल मसाबीह )
गोया कि रमज़ान महिने में अल्लाह तआला की ओर से दी जाने वाली माफी, अच्छे कामों से प्राप्त होनी वाली नेकियाँ, उसी समय हम हासिल कर सकते हैं जब हम रोज़े की असल हक़कीत के साथ रोज़े रखेंगे ।
4 - कुरआन करीम की ज़्यादा से ज़्यादा तिलावत किया जाएः
अल्लाह तआला ने पवित्र कुरआन इस मुबारक महीने में मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर फरिश्ते जिब्रील के माध्यम से उतारा, जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद है, " रमज़ान वह महीना है जिस में कुरआन उतारा गया जो इनसानों के लिए सर्वथा मार्गदर्शन है और ऐसी स्पष्ट शिक्षाओं पर आधारित है जो सीधा मार्ग दिखानेवाली और सत्य और असत्य का अन्तर खोलकर रख देने वाली है। " ( सूरः बक़रा,185)
यही वजह है कि फरिश्ते जिब्रील हर रमज़ान के महीने में मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को कुरआन का दौरा कराते थे। इस्लामिक विद्ववानों ने भी इस महीने में कुरआन बहुत ज़्यादा पढ़ा करते थे। वैसे भी कुरआन आम दिनों में पढ़ने से बहुत सवाब प्राप्त होता है परन्तु जो व्यक्ति रमज़ान के महीने में कुरआन ध्यान से पढ़ेगा, उस पर विचार करेगा, उस पर अमल करेगा, एसे व्यक्ति के दामन में नेकियाँ की नेकियाँ होंगी।
5 - रोज़े की हालत में ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह ही से दुआ किया जाएः
दुआ भी एक इबादत है जो केवल अल्लाह से माँगा जाए। अल्लाह तआला रोज़ेदार की दुआ को रद नही करता है जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का इरशाद है " तीन लोगों की दुआ अल्लाह के पास स्वीकारित हैं , रोज़ेदार की दुआ , यात्री व्यक्ति की दुआ, मज़्लूम की दुआ " इसी तरह रोज़ा खोलते समय भी ज़्यादा दुआ करना चाहिये , उस समय की दुआ अल्लाह तआला वापस नही करता है। जैसा कि हदीसों से वर्णित है।
6 - रातों में क़ियाम और तरावीह पढ़ने का महीनाः
इस मुबारक महीने की रातों को तरावीह पढ़ने का खास इह्तमाम किया जाए क्यों कि तरावीह पढ़ने का बहुत ज़्यादा सवाब (पुण्य) है जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जो व्यक्ति रमज़ान महीने में अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रातों को तरावीह (क़ियाम करेगा) पढ़ेगा, उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे " ( बुखारी तथा मुस्लिम)
7- माहि रमज़ान में उम्रा किया जाएः
रमज़ान के महीने में उम्रा करने से भी बहुत ज़्यादा नेकी प्राप्त होती है। जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है " रमज़ान में उम्रा करने का पुण्य मेरे साथ उम्रा करने के बराबर सवाब (पुण्य ) मिलता है " और दुसरी हदीस में आया है कि " रमज़ान में उम्रा करने का पुण्य मेरे साथ हज करने के बराबर सवाब (पुण्य ) मिलता है "
8 - रमज़ान महीने में अधिक से अधिक सदक़ा - खैरात तथा दान दिया जाएः
इस पवित्र महीने में ग़रीबों और मिस्कीनों की दिल खोल कर सहायता और मदद करना उचित और बहुत ज़्यादा सवाब ( पुण्य) का काम है। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है " सब से अच्छा दान, रमज़ान में दान देना है।" ( सुनन तिर्मिज़ी )
रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस महीने में बहुत दान ( सदक़ा – खैरात ) किया करते थे जैसा कि अब्दुल्लाह बिन अब्बास( रज़ी अल्लाह अन्हुमा ) वर्णन करते हैं " रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) लोगों में सब से अधिक दानशील थे और रमज़ान के महीने में आप ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की दानशीलता बहुत बढ़ जाती थी। जब आप ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) फरिश्ते जिब्रील से मुलाक़ात करते थे। फरिश्ते जिब्रील के साथ आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कुरआन पढ़ते- दोहराते थे। रमज़ान के महीने में आप ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की दानशीलता तेज़ हवा से बढ़ जाती थीं।" ( मुसनद अहमद)
9 - रोज़ेदार को इफतार कराया जाएः
भूके को खाना खिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य है और जिसन किसी भूके को खिलाया और पिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जन्नत के नहर से पिलाएगा जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है " जिस किसी मोमिन ने किसी भूके मोमिन को खिलाया तो अल्लाह उसे जन्नत के फलों से खिलाएगा और जिस किसी मोमिन ने किसी पियासे मोमिन को पिलाया तो अल्लाह उसे जन्नत के बिल्कुल शुद्ध पैक शराब पिलाएगा " ( सुनन तिर्मिज़ी )
जो रोज़ेदार को इफतार कराएगा तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब(पुण्य) मिलेगा और दोनों के सवाब में कमी न होगी जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है " जिसने किसी रोज़ेदार को इफतार कराया तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा मगर रोज़ेदार के सवाब में कुच्छ भी कमी न होगी " (मुसनद अहमद तथा सुनन नसई )
10- रमज़ान के महीने में इतकाफ किया जाएः
इतकाफ अर्थात, मानव ईबादत की नीयत से मस्जिद में प्रवेश हो और दुनिया दारी को छोड़ कर केवल अल्लाह की इबादत, कुरआन की तिलावत और दुआ और अपने गलतियों पर अल्लाह से माफी मांगे। इसी तरह जितने समय या जितने दिन के इतकाफ की नीयत किया है, वह अविधि पूरा करे और मानवीय अवश्कता के सिवाए मस्जिद से बाहर न निकले। इतकाफ रमज़ान और रमज़ान के अलावा महिने में भी किया जासकता है, परन्तु रमज़ान के महीने में इतकाफ करना ज़्यादा उत्तम है। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) रमज़ान के महीने में इतकाफ करते थे। जैसा कि आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि " रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ग्यारा रमज़ान से लेकर बीस रमज़ान तक इतकाफ किया फिर इकीस रमज़ान से लेकर तीस रमज़ान तक इतकाफ किया और फिर इसी पर जमे रहे और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बाद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पत्नियों ने भी आखीरी दस दिनों का इतकाफ किया। ( बुखारी तथा मुस्लिम)
11- शबे क़दर की रातों को तलाशा किया जाए और उन रातों में बहुत ज़्यादा इबादत की जाएः
यह वह मुबारक और पवित्र रात है जिस की महत्वपूर्णता पवित्र कुरआन तथा सही हदीसों से परमाणित है। यही वह रात है जिस में पवित्र कुरआन को उतारा गया। यह रात हज़ार रातों से उत्तम है। जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद है। " हम्ने इस (कुरआन) को कद्र वाली रात में अवतरित किया है। और तुम किया जानो कि कद्र की रात क्या है ? कद्र की रात हज़ार महीनों की रात से ज़्यादा उत्तम है। फ़रिश्ते और रूह उसमें अपने रब की अनुज्ञा से हर आदेश लेकर उतरते हैं। वह रात पूरी की पूरी सलामती है उषाकाल के उदय होने तक। " (सुराः कद्र)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हदीस से भी इस रात की बरकत और फज़ीलत साबित होती है। इसी लिए मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने शबे क़दर की रातों को तलाशने का आदेश दिया है। " जैसा कि आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि " रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " कद्र वाली रात को रमज़ान महीने के अन्तिम दस ताक वाली रातों में तलाशों " ( बुखारी तथा मुस्लिम)
12- अल्लाह से क्षमा और माफी माँगी जाएः
यह महीने पापों , गुनाहों , गलतियों से मुक्ति और छुटकारा का महीना है। मानव अपनी अप्राधों से मुक्ति के लिए अल्लाह से माफी मांगे, अल्लाह बहुत ज़्यादा माफ करने वाला , क्षमा करने वाला है। खास कर इस महीने के अन्तिम दस रातों में अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों , गलतियों पर माफी मांगा जाए जैसा कि आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से प्रश्न क्या कि यदि मैं क़द्र की रात को पालूँ तो क्या दुआ करू तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " ऐ अल्लाह ! निःसन्देह तू माफ करने वाला है, माफ करने को पसन्द फरमाता, तो मेरे गुनाहों को माफ कर दे।"
अल्लाह हमें और आप को इस महिने में ज्यादा से ज़्यादा भलाइ के काम, लोगों के कल्याण के काम, अल्लाह की पुजा तथा अराधना की शक्ति प्रदान करे और हमारे गुनाहों, पापों, गलतियों को अपने दया तथा कृपा से क्षमा करे। आमीन............

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

पुण्य से अपने झोली को भरने का महीना रमज़ान



रमज़ान का महीना वह पवित्र तथा बर्कत वाला महीना है जिस में अल्लाह तआला ने भलाई और लोगों के लिए कल्याण का काम करने वालों के लिए पुण्य और पापों से मुक्ति ही रखा है। यह वह महीना है जिस में जन्नत ( स्वर्ग) के द्वार खोल दिये जाते हैं तथा जहन्नम (नरक) को द्वार बन्द कर दिये जाते है, सरकश जिन और शैतान को जकड़ दिया जाता है और अल्लाह की ओर से पुकारने वाला पुकारता है , हे ! नेकियों के काम करने वालों , पुण्य के कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लो, और हे ! पापों के काम करने वालों , अब तो इस पवित्र महीने में पापों से रुक जा, और अल्लाह तआला नेकी करने वालों को प्रति रात जहन्नम ( नरक ) से मुक्ति देता है। (सहीह उल जामिअ , अलबानी)
रमज़ान के महिने की सब से महत्वपुर्ण इबादत रोज़ा (ब्रत) है जिसे अरबी में सियाम कहते हैं जिस का अर्थ होता है," रुकना " अर्थातः सुबह सादिक से लेकर सुर्य के डुबने तक खाने – पीने तथा संभोग से रुके रहना, रोज़ा कहलाता है। रमज़ान के महीने का रोज़ा हर मुस्लिम , बालिग , बुद्धिमान पुरुष और स्री पर अनिवार्य है, रोज़ा इस्लाम के पांच खम्बों में से एक खम्बा है। जिसे हर मुस्लिम को हृदय , जुबान और कर्म के अनुसार मानना ज़रुरी है। रोज़े को उसकी वास्तविक हालत से रखने वालों को बहुत ज़्यादा पुण्य प्राप्त होता है जिस पुण्य की असल संख्याँ अल्लाह तआला ही जानता है, प्रिय रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " मनुष्य के हर कर्म पर, उसे दस नेकी से लेकर सात सौ नेकी दी जाती है सिवाए रोज़े के, अल्लाह तआला फरमाता है कि रोज़ा मेरे लिए है और रोज़ेदार को रोज़े का बदला मैं दुंगा, उस ने अपनी शारीरिक इच्छा ( संभोग) और खाना – पीना मेरे कारण त्याग दिया, ( इस लिए इसका बदला मैं ही दुंगा) रोज़ेदार को दो खुशी प्राप्त होती है, एक रोज़ा खोलते समय और दुसरी अपने रब से मिलने के समय, और रोज़ेदार के मुंह की सुगंध अल्लाह के पास मुश्क की सुगंध से ज़्यादा है। ( बुखारी तथा मुस्लिम)
इसी तरह जन्नत ( स्वर्ग ) में एक द्वार एसा है जिस से केवल रोज़ेदार ही प्रवेश करेंगे, रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है, " जन्नत ( स्वर्ग ) के द्वारों की संख्याँ आठ हैं, उन में से एक द्वार का नाम रय्यान है जिस से केवल रोज़ेदार ही प्रवेश करेंगे "
रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपने साथियों को शुभ खबर देते हुए फरमाया " तुम्हारे पास रमज़ान का महिना आया है, यह बर्कत वाला महिना है, अल्लाह तआला तुम्हें इस में ढ़ाप लेगा, तो रहमतें उतारता है, पापों को मिटाता है, और दुआ स्वीकार करता है और इस महिने में तुम लोगों का आपस में इबादतों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने को देखता है, तो फरिश्तों के पास तुम्हारे बारे में बयान करता है, तो तुम अल्लाह को अच्छे कार्ये करके दिखाओ, निःसन्देह बदबख्त वह है जो इस महिने की रहमतों से वंचित रहे. " ( अल – तबरानी)
रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " जो व्यक्ति रमज़ान महीने का रोज़ा अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रखेगा , उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे " ( बुखारी तथा मुस्लिम)
रोज़ा और कुरआन करीम क़ियामत के दिन अल्लाह तआला से बिन्ती करेगा के रोज़ा रखने वाले , कुरआन पढ़ने वाले को क्षमा किया जाए तो अल्लाह तआला उसकी सिफारिश स्वीकार करेगा, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " रोज़ा और कुरआन करीम क़ियामत के दिन अल्लाह तआला से बिन्ती करेगा कि ऐ रब, मैं उसे दिन में खाने–पीने और संभोग से रोके रखा, तू मेरी सिफारिश उस के बारे में स्वीकार कर, कुरआन कहेगा, ऐ रब, मैं उसे रातों में सोने से रोके रखा, तू मेरी सिफारिश उस के बारे में स्वीकार कर, तो उन दोनो की सिफारिश स्वीकार की जाएगी " (मुस्नद अहमद और सही तरग़ीब वत्तरहीब)
फजर से पहले से लेकर सुर्य के डुबने तक खाने – पीने तथा संभोग से रुके रहना ही रोज़ा की वास्तविक्ता नही बल्कि रोज़ा की असल हक़ीक़त यह कि मानव हर तरह की बुराई , झूट , झगड़ा लड़ाइ, गाली गुलूच, तथा गलत व्यवहार और अवैध चीज़ो से अपने आप को रोके रखे ताकि रोज़े के पुण्य उसे प्राप्त हो, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जो व्यक्ति अवैध काम और झूट और झूटी गवाही तथा जहालत से दूर न रहे तो अल्लाह को कोई अवशक्ता नही कि वह भूका, पीयासा रहे " ( बुखारी )
यदि कोई व्यक्ति रोज़ेदार व्यक्ति से लड़ाइ झगड़ा करने की कोशिश करे तो वह लड़ाइ, झगड़ा न करे बल्कि स्थिर कहे कि मैं रोज़े से हूँ, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जब तुम में कोइ रोज़े की हालत में हो तो आपत्तिजनक बात न करे, जोर से न चीखे चिल्लाए, यदि कोइ उसे बुरा भला कहे या गाली गुलूच करे तो वह उत्तर दे, मैं रोज़े से हूँ। " ( बुखारी तथा मुस्लिम)
गोया कि रमज़ान महिने में अल्लाह तआला की ओर से दी जाने वाली माफी, अच्छे कामों से प्राप्त होनी वाली नेकियाँ उसी समय हम हासिल कर सकते हैं जब हम रोज़े की असल हक़कीत के साथ रोज़े रखेंगे और एक महिने की प्रयास दस महिने की कोशिश के बराबर होगी।
अल्लाह हमें और आप को इस महिने में ज्यादा से ज़्यादा भलाइ के काम, लोगों के कल्याण के काम, अल्लाह की पुजा तथा अराधना की शक्ति प्रदान करे ताकि हमारी झोली में पुण्य ही पुण्य हो, आमीन

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

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