रविवार, 29 मई 2011

ईमान का चौथा स्तम्भः अल्लाह के भेजे हुए नबियों पर विश्वास तथा ईमान है।

अल्लाह तआला ने अपने कुछ बन्दों को सर्व मनुष्य की ओर नबी और रसूल (दुत्त) बना कर भेजा जो अल्लाह और बन्दों के बीच माध्यम का काम करते थे। अल्लाह का आज्ञा तथा सन्देश लोगों तक पहुंचाते थे। अल्लाह ने मानव के लिए जो जन्नत (स्वर्ग) बनाया है उसकी शुभ खबर देने वाला और अल्लाह की अवज्ञाकारी करने वालों के लिए जहन्नम (नरक) से डराने वाला बनाकर भेजा। अल्लाह ने अपने नबियों और रसूलों को विभिन्न चमत्कार दे कर भेजा था ताकि उन नबियों और रसूलों पर कोई आशंका न करें और झूटे लोग नबी और रसूल होने का ढ़ोंग न रच सके। वह सर्व नबी मानव थे। वह खाते-पीते थे। उन्हें सन्तान तथा माता-पिता थे। उन्हें रोग, परिशानियाँ, दुख दर्द लाहिक होता था। उन सब का देहांत हुआ। किन्तु अतिरिक्त ईसा( जीससो)के क्योंकि अल्लाह ने उन्हें अपने पास बुलाया लिया है और क़ियामत से निकट आकाश से धरती पर उतरेंगे और दज्जाल को क़त्ल करेंगे और फिर अल्लाह जब चाहे उन्हें देहांत देगा,(उन पर अल्लाह की शान्ती उतरे)। वह लोग दुसरे सर्व मनुष्य से सम्पूर्ण, सर्वेश्ष्ट और उत्तम थे। अल्लाह का खास कृपा और दया इन पर था परन्तु अल्लाह की कोई भी विशेष्ता इन में न थीं और इन सब नबियों ने केवल एक ईश्वर की पुजा , उपासना, अराधना की ओर सम्पूर्ण लोगों को निमन्त्रण किये।

नबी और रसूल के बीच अन्तर

विद्धवानों ने नबी तथा रसूल के बीच निम्नलिखित अन्तर बयान फरमाया है।
(1) रसूल को अल्लाह तआला का इन्कार करने वाले समुदाए में भेजा गया हो और नबी को अल्लाह तआला के आज्ञाकारी समुदाए में भेजा गया हो,
(2) रसूल जो एक नया धर्म लेकर आया और नबी जो अपने से पुर्वरसूल के धर्म का पर्चारक हो और उसी के अनुसार चलता हो,
(3) रसूल जिस पर अल्लाह ने पवित्र ग्रन्थ(किताब)उतारी हो और नबी जिस पर ग्रन्थ (किताब) न उतारी गई हो, बल्कि वह अपने से पुर्वरसूल के किताब के अनुसार अमल करता हो और लोगों को इसी पवित्र ग्रन्थ के अनुसार निमन्त्रण करता हो।
(4) प्रति रसूल नबी हैं परन्तु प्रति नबी रसूल नही हो सकते हैं।

नबी और रसूल जैसी अज़ीम स्थान इन्सान अपनी परयास तथा मेहनत से प्राप्त नही कर सकता और न ही अल्लाह की बहुत ज़्यादा पुजा तथा तपस्या से प्राप्त कर सकता है बल्कि अल्लाह तआला अपने बन्दों में से जिसे चाहे नबी और रसूल चुन लेता है। अल्लाह का कथन इस बात की पुष्टी करता है।

" वास्तविक्ता यह है कि अल्लाह अपने आदेश को भेजने के लिए फरिश्तों में से सन्देशवाहक चुनता है और इन्सानें में से भी, वह सुनता और देखता है।" ( सूराः अल-हजः57)

अल्लाह तआला नबियों और रसूलों की रक्षा करता है। उनको बड़े और छोटे गुनाहों तथा पापों से सुरतक्षित रखता है। जब कभी उन नबियों से छोटी भूल चुक तथा गलती हो जाती है जिसका धर्म के पहुंचाने से सम्बंध नही परन्तु अल्लाह तआला तुरंत उस छोटी भूल चुक तथा गलती पर नबियों को खबरदार कर देता है और नबी भी अपनी गलती स्वीकार कर के अल्लाह से क्षमा मांगते हैं। अल्लाह तआला भी उनकी छोटी गलती को क्षमा कर देता है और नबी और रसूल प्रत्येक प्रकार से सम्पूर्ण होते हैं। अल्लाह ने जो अमानत उनके जिम्मा दिया, उसको उन्हों ने सही तरीके से अदा किया और लोगों तक पूरा पूरा पहुंचा दिया।

अन्बिया और रसूलों के कुछ महत्वपूर्ण काम

अल्लाह ने नबियों तथा रसूलों को बहुत महत्वपूर्ण काम दिये हैं। उन में से कुछ निम्नलिखित हैं।
(1) लोगों तक अल्लाह के सन्देष को पहुंचाने का काम और लोगों को अल्लाह के सिवा की पुजा से हटा कर एक अल्लाह की उपासना की ओर निमन्त्रण करने का काम दिया जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है। " हम्ने हर समुदाय में एक रसूल भेजा और उसके द्वूवारा सब को सुचित कर दिया कि अल्लाह ही की बन्दगी करो, और बढ़े हुए अवज्ञाकारी से बचो," ( सूराः अल-नहलः36)
(2) जो धर्म अल्लाह ने लोगों के लिए भेजा उसकी स्पष्टीकरण का काम दिया। लोगों को अल्लाह के आदेश की व्याख्या का कार्य सुपूर्द किया गया। जैसा कि अल्लाह तआला ने मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को सम्बोधित करते हुए फरमाया। " और यह जिक्र तुम पर अवतरित किया है ताकि तुम लोगों के सामने इस सिक्षा की व्याख्या और स्पष्टीकरण करते जाओ, जो उन के लिए उतारी गयी है और ताकि लोग सोच-विचार कर सके," ( सूराः अल-नहलः44)
(3) नबियों तथा रसूलों को भेजा गया ताकि वह लोगों को बुराइ से डराए और भलाइ की ओर निमन्त्रण करे और अच्छे कार्यियों पर शुभ खबर दे, जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है। " यह सारे रसूल शुभ खबर देने वाले और डराने वाले बनाकर भेजे गए " ( सूराः अल-निसाः165)
(4) क़ियामत के दिन नबियों तथा रसूलों, अपने अनुयायियों पर गवाह होंगे कि उन्हों ने अल्लाह का सन्देश लोगों तक सही तरिके से पहुंचा दिये जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।" फिर सोचों कि उस समय यह किया करेंगे जब हम हर समुदाए में से एक गवाह लाऐंगे और उन लोगों पर तुम्हें गवाह की हैसियत से खड़ा करेंगे " (सूराः अल-)

नबियों तथा रसूलों की संख्याँ

नबियों की संख्याँ एक लाख चौबिस हज़ार थीं और उन में से रसूलों की संख्याँ 315 हैं। जैसा कि अबू ज़र (रज़ी अल्लाहु अन्हु) वर्नण करते हैं कि उन्हों ने प्रश्न किया," ऐ अल्लाह से रसूल! अन्बिया की संख्या कितनी हैं? तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उत्तर दिया, उनकी संख्या एक लाख चौबीस हजार हैं और उन में से तीन सौ पन्दरा रसूल हैं। ”
परन्तु कुरआन में अल्लाह तआला ने पचीस नबियों का नाम बयान किया है। किन्तु हम सर्व नबियों पर ईमान और विश्वास रखते हैं जिसे अल्लाह ने इस धर्ती पर नबी बना कर भेजा था चाहे उन के नाम तथा किस्से हमें बताया गया हो या उन के नाम तथा किस्से गुप्त रखा गया हो,

रसूलों के बीच उत्तमता

अल्लाह ने कुछ रसूलों को कुछ रसूलों पर उत्तमता दी है जैसा कि अल्लाह तआला ने स्वयं फरमा दिया है। " यह रसूलें हैं हम्ने इन्को एक दुसरे से बढ़ चढ़ कर पद प्रदान किया । उन में से कोई एसा था जिसे अल्लाह ने स्वयं बात की, किसी को उस ने दुसरी हैसियत से ऊंचा दर्जा दिया।" ( सूराः अल-बकराः253)

इन सब नबियों और रसूलों में सब से उत्तम और सर्वश्रेष्ट पुख्ते और कठोर इरादो वाले रसूल हैं और वह पांच हैं। नूह अलैहिस्सलाम, इब्राहीम अलैहिस्सलाम, मूसा अलैहिस्सलाम, ईसा अलैहिस्सलाम और मोहम्मद स0 अ0 स0 और इन सब के सर्दार मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)हैं जैसा कि अन्तिम नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " मैं आदम के सन्तान का सर्दार हूँ और कोई फख्र की बात नही " ( )
क्योंकि यह स्थान अल्लाह ने मुझे दिया है।

नबियों तथा रसूलों पर विश्वास तथा ईमान रखने से हमें कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।

(1) अल्लाह का अपने बन्दों के साथ खास कृपा और दया है कि उस ने लोगों के मार्गदर्शन और कल्यान के लिए आदर्निय नबियों तथा रसूलों को भेजा।
(2) अल्लाह के इस महत्वपूर्ण पुरस्कार पर उसका बहुत ज्यादा शुक्र अदा किया जाए
(3) अल्लाह के रसूलों का आदर-सम्मान किया जाए, उन से प्रेम किया जाए उन के लिए प्रार्थना किया जाए और उनकी परशंसा किया जाए कि उन्होंने अल्लाह के सन्देष्य को बहुत ही अच्छे ढ़ंग से लोगों तक पहुंचाया और इस रास्ते में मिल्ने वाली परिशानियों पर सब्र किया।

मंगलवार, 24 मई 2011

ईमान का तीसरा स्तम्भः अल्लाह के अवतरित पुस्तकों पर विश्वास तथा ईमान है।

अल्लाह ने अपने बन्दों की मार्गदर्शन के लिए समय समय पर छोटी बड़ी पुस्तकें अपने दुतों और सन्देश्ठाओं पर नाज़िल (अवतरित) किया, उन पुस्तकों पर विश्वास तथा ईमान रखा जाए कि वह सम्पूर्ण पुस्तकें सत्य हैं। अल्लाह ने इन पुस्तकों को सन्देष्टाओं पर उतारा था जिस समुदाए पर वह ग्रंथ उतारी गई थी, उस समुदाए के लिए वह पुस्तक रोश्नी और सही मार्गदर्शन के लिए काफी था। इसी तरह उस सम्पूर्ण पुस्तकों पर विश्वास रखा जाए जिसे सन्देष्टाओं पर उतारा गया था और जिसका नाम हमें बताया गया है या नही बताया गया है। जैसा कि अल्लाह तआला का आदेश है।

يا أيها الذين آمَنوا آمِنوا بالله ورسوله و الكتاب الذي نزل على رسوله والكتاب الذي أنزل من قبل ومن يكفر بالله وملائكته و كتبه و رسله و اليوم الآخر فقد ضل ضلالا بعيدا " - النساء: 136



इस आयत का अर्थः “ ऐ लोगो जो ईमान लाऐ हो, अल्लाह और उसके रसूल और उस किताब (पवित्र कुरआन) पर जिसे उसने अपने रसूल पर उतारी है और उन किताबों के ऊपर ईमान लाओ जो इस से पहले उतारी गयी और जिस ने अल्लाह और उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और आखिरत के दिन को नही मानते तो वह बहुत दूर बहक गया ” ( सूराः निसा,136)

इन्सानी बुद्धी को स्वार्थ और घमंड तथा इच्छा घेरे हुए होते हैं और जिस तरह चाहे नचाते हैं। यदि उसको खुला छोड़ दिया जाए और जिस तरह ईच्छा हो करे तो वह सत्य रासते से भटक जाएगा और अपने लिए हाणि के पद को चुन लेगा और वास्तविक सफलता को छोड़ देगा । इस लिए अल्लाह तआला ने मानव के मार्गदर्शन के लिए पुस्तकें उतारी ताकि मानव का सही मार्गदर्शन हो सके और उनको लाभदायक वस्तु के करने का आदेश दे और हाणि कारण वस्तु से रोके,
उस में से महत्वपूर्ण किताबें निम्नलिखित हैं।

(1) सुहुफ, इब्राहीम अलैहिस्सलाम को दिया गया।
(2) तौरात, मूसा अलैहिस्सलाम को दिया गया।
(3) ज़बूर, दाऊद अलैहिस्सलाम को दिया गया ।
(4) इन्जील, ईसा अलैहिस्सलाम को दिया गया ।
(5) कुरआन, मुहम्मद स0 अ0 स0 को दिया गया ।

तो इन सब किताबों पर विश्वास रखना प्रत्येक मुस्लिम के लिए अनिवार्य है। परन्तु कुरआन से पहले जितनी भी पुस्तकें उतारी गयी। उन के अनुयायियों ने उस किताब का सही खयाल नही रखा, उसकी सुरक्षा पर धयान नही दिया जिसके कारण बीते समय के साथ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उस में परिवर्तन करते रहे, इसी लिए इन सम्पूर्ण किताबें को अल्लाह तआला ने मन्सूख करके उसकी जगह कुरआन को उतारा और स्वयं इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ले ली और अब कुरआन हमेशा हमेश के लिए सुरक्षित होगया जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया है।

" إنا نحن نزلنا الذكر وإنا له لحافظون " - الحجر:9

इस आयत का अर्थः “ रहा यह जिक्र( कुरआन) तो इसको हम्ने उतारा है और हम ही खुद इसके रक्षक हैं।”

किताबों पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।

(1) अल्लाह का अपने बन्दों के साथ दया और कृपा कि उसने प्रत्येक समुदाए में पुस्तक उतारी जो उन लोगों के लिए मार्गदर्शनीय हो,
(2) अल्लाह की हिक्मत का प्रकट होना कि उसने इन किताबों में प्रत्येक समाज के लिए उचित धर्म उतारा जो उस समयानुसार अनुकूल था और सब से अन्तिम में पवित्र कुरआन उतारा जो सर्व मनुष्य के लिए मार्गदर्शनीय और मुक्तिमार्ग है।
(3) इस महान पुरस्कार पर हम इश्वर का शुक्र अदा करें, और इसी अनुसार अमल करें।

रविवार, 15 मई 2011

ईमान का दुसरा स्तम्भ: अल्लाह के फरिश्तों पर विश्वास तथा ईमान है।

अल्लाह के फरिश्तों पर विश्वास तथा ईमान का अर्थात यह कि इस बात पर कठोर विश्वास और आस्था हो कि अल्लाह तआला ने फरिशतों को मनुष्य से पहले उतपन किया है। अल्लाह तआला ने फरिशतों की रचना प्रकाश से किया है। वह गुप्त रहते हैं, वह दिखते नहीं, परन्तु कभी कभी वह नबियों और रसूलों को दिखते हैं, फरिशते अल्लाह के नेक बन्दे हैं जो अल्लाह की उपासना और विभिन्न कार्यों में व्यस्त रहते हैं, वह अल्लाह की अवज्ञाकारी नही करते, वह बुराइ नही करते, उन्हे खाने-पीने की अवश्यक्ता नहीं, विवाह की ज़रूरत नही, बल्कि वह अल्लाह की इबादत में लगे रहते हैं, जो काम अल्लाह ने उसे दिये हैं उसी में ग्रस्त रहते हैं।

उनकी कुछ महत्वपूर्ण विशेष्ता यह हैं।
(1) बहुत शक्तिशाली और बड़े शरीर वाले होते हैं।
जैसाकि अल्लाह तआला ने नरक की रक्षक फरिशते के बारे में फरमाया है।
ياأيها الذين آمنوا قوا أنفسكم وأهليكم نارا وقودها الناس والحجارة – عليها ملائكة غلاظ شداد لايعصون الله ما امرهم ويفعلون مايؤمرون " - التحريم: 6

“ ऐ लोगों जो ईमान लाऐ हो, बचाओ अपने आप को और अपने घरवालों को उस अगनी से जिसका एंधन इन्सान और पत्थर होंगे, जिस पर कठोर स्वभाव के सख्त पकड़ करनेवाले फरिश्ते नियुक्त होंगे, जो कभी अल्लाह के आदेश की अवहिलना नहीं करते, और जो आदेश भी उन्हें दिया जाता है उसका पालन करते हैं।”

इसी तरह मोहम्मद (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने फरमाया ,, मुझे अनुमति दी गइ है कि मैं अल्लाह के अर्श को उठाने वाले फरिश्तो में से एक फरिशेते के बारे में बताऊं, उसके कान की लौ से गर्दन तक की दूरी सात सौ वर्ष के दूरी के बराबर है।

(2) फरिश्ते परोंवाले होते हैं।
अल्लाह ने फरिश्तों को पर (भुजाएं) दिया है। किसी फरिश्ते को एक पर दिया है , किसी फरिशेते को दो पर दिया है, किसी को तीन , किसी को चार पर दिया है। फरिशत के उच्च स्थान के अनुसार पर दिये गऐ हैं। जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमया।
" الحمد لله فاطر السموات والأرض جاعل الملائكة رسلا أولي أجنحة مثنى وثلث وربع يزيد في الخلق ما يشاء " ( فاطر: 1)
अर्थातः "तारीफ अल्लाह ही के लिए है जो आकाशों और धरती का रचनक है और फरिश्तों को संदेष्वाहक नियुक्त करने वाला है। एसे फरिश्ते जिनको दो, दो और तीन,तीन और चार,चार भुजाएं हैं। वह अपनी सरेष्टी सनरचना में जैसी चाहता है। अभिर्वर्दन करता है।"
जिब्रील अलैहिस्सलाम को छे सौ पर थे। जैसाकि " आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि प्रिय नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने जिब्रील को उसकी वास्तविक रूप में देखा और उनको छे सौ पर थे। उन में से एक पर उफुक को छाया हुआ था। "

(3) फरिश्ते की संख्या बहुत हैं।
अल्लाह तआला के सिवा कोई नही जानता कि फरिश्तों की संख्या क्या हैं। अल्लाह तआला ने खुले शब्दों में स्पष्ट कर दिया
وما يعلم جنود ربك إلا هو" - المدثر: 31 "
"َََ और तेरे रब की सेनाओं को स्वयं उसके सिवा कोई नही जानता है। "

(4) फरिश्ते बहुत नेक होते हैं।
अल्लाह तआला ने फरिश्तों से भुल-चूक को हटा दिया है। वह बहुत नेक होते हैं। उन्से कभी भी कोई गलती और अपराध नही होता। अल्लाह तआला ने फरिश्तों के प्रति फरमाया।
بأيدي سفرة - كرام بررة " - عبس: 15
इस आयत का अर्थात यह कि “ उच्च कोइ के हैं, पवित्र हैं ”
फरिश्ते हमेशा अल्लाह के आज्ञाकारी करते हैं अवज्ञा नहीं करते हैं। अल्लाह तआला का कथन है।
لايعصون الله ما امرهم ويفعلون ما يؤمرون " - التحريم 6
इस आयत का अर्थात यह कि फरिश्ते कभी भी अल्लाह के आदेश की अवहिल्ना नही करते और जो आदेश भी उन्हें दिया जाता है उसका पालन करते हैं।

(5) अल्लाह ने फरिश्तों को रूप धारने की शक्ति दी हैं।
अल्लाह ने फरिश्तों को रूपधारन की शक्ति दी हैं जिस से वह आवश्यक्ता के अनुसार रूपधारण कर लेते हैं। जैसा कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास इन्सानी रूप में आऐ. नबी(अलैहिस्सलातु वस्सलाम) के पास इन्सानी रूप में आते थे।

कुच्छ कार्य जो फरिश्ते अन्जाम देते हैं।
(1) अल्लाह फरिश्तों को अपना दुत्त और एल्ची बनाता है।
अल्लाह तआला और मनुष्य के बीच फरिश्ते माध्यम का काम करते हैं। अल्लाह तआला नबियों और सन्देष्टाओं के पास पैगाम लेकर फरिश्तों को भेजते थे। उन में से जिब्रील अलैहिस्सलाम नबियों के पास अल्लाह का सन्देश लेकर आते थे।

(2) कुच्छ फरिश्तें अल्लाह के अर्श (सिंहासन) को उठाए हुए हैं।
अल्लाह ने कुच्छ फरिश्तों को जिम्दारी दे रखी कि वह अल्लाह के अर्श को उठाए रखे जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमाया है।
" الذين يحملون العرش ومن حوله " - غافر: 7
अर्थातः “ जो अल्लाह के अर्श को उठाऐ हुए हैं और उसके इर्द गिर्द वाले ”
और क़ियामत के दिन अल्लाह के अर्श ( सिंहासन) को आठ फरिश्ते उठाऐ हुए होंगे, अल्लाह तआला का इर्शाद है।
" ويحمل عرش ربك فوقهم يومئذ ثمانية " - الحاقة: 17
अर्थः “ और आप के रब के अर्श (सिंहासन) को उस दिन आठ फरिश्ते उठाऐ हुए होंगे।”

(3) कुच्छ फरिश्तों को अल्लाह ने मनुष्य की रक्षा के लिए नियुक्त किया हैं
अल्लाह तआला अपने बन्दों और दासों पर बहुत दयावान है। इसी लिए अल्लाह ने मनुष्य की रक्षा के लिए फरिश्तों को नियुक्त किया है जो घटनाओं , संक्कटों और भुकंपों में उन लोगों की रक्षा करते हैं जिन का जीवन बाकी है। जैसा कि अल्लाह ताआला का कथन है।
له معقبات من بين يديه ومن خلفه يحفظونه من أمر الله " - الرعد: 11
अर्थः “ हर व्यक्ति के आगे और पीछे उसके नियुक्त किये गए निरक्षक लगे हुए हैं जो अल्लाह के आदेश से उसकी देख भाल कर रहे हैं।”

(4) कुच्छ फरिश्तें मनुष्य के कर्मों को लिखते रहते हैं।
अल्लाह तआला ने बहुत सारे फरिश्तों को इन्सानों के कर्मों को लिखने के लिए नियुक्त किया है जो इन्सान से होने वाले हर कर्म को लिख लेते हैं चाहे वह अच्छा हो या बुरा । पवित्र क़ुर्आन में अल्लाह का कथन है।
إذ يتلقى المتلقيان عن اليمين وعن الشمال قعيد – ما يلفظ من قول إلا لديه رقيب عتيد " - ق: 18
अर्थः दो लिखने वाले उसके दांऐ और बांऐ बैठे हर चीज़ अंकित कर रहे हैं। कोई शब्द उसके मुक्ख से नही निकलता जिसे सुरक्षित करने के लिए एक उपस्थित रहने वाला निरक्षक मौजूद न हो,

(5) कुच्छ फरिश्तें धार्मिक पोरोग्राम में उपस्थित रहनेवाले व्यक्तियों पर शान्ती की प्रार्थना करते हैं। उनका नाम लिख लेते हैं

(6 ) अल्लाह ने कुच्छ फरिश्तों को मनुष्य का प्राण निकालने के लिए नियुक्त किया हैं। जो ठीक समय पर बिना जलदी और विलंब के उस व्यक्ति का प्राण निकालते हैं जिस के मृत्यु का समय आ गया हो। अल्लाह तआला ने इसी चीज़ को कहा है।
حتى إذا جاء أحدكم الموت توفته رسلنا وهم لايفرطون " - الأنعام: 61
इस आयत का अर्थातः यहां तक कि जब तुम में से किसी के मौत का समय आ जाता है तो उसके भैजे हुए फरिश्ते उसकी जान निकाल लेते हैं और अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में तनिक कोताही नही करते "

इस के सिवा अल्लाह तआला ने बहुत सारे फरिश्तों को दुसरे बहुत सा कार्य दिया है जो वह बिना चूँ चरा के अन्जाम देते हैं।

फरिश्तों पर विश्वास तथा ईमान रखने से हमें कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अल्लाह तआला की महानता और उसके महान शक्ति का ज्ञान मिलता है।
(2) हमें पता चलता है कि अल्लाह तआला ने हमारी निगरानी के लिए अपने खास दासों( फरिश्तों) को नियुक्त किया है जिस पर हम अल्लाह तआला का शुक्र अदा करना चाहिये और उसके आज्ञा का अधिक पालण करना चाहिये।
(3) इस से हमारे हृदय में फरिश्ते के लिए प्रेम पैदा होता है क्योंकि फरिश्ते अल्लाह की उपासना बहुत अच्छे ढ़ंग से करते हैं और हमारी रक्षा करते और हमारी क्षमा के लिए अल्लाह से प्रार्थाना करते हैं।

सोमवार, 9 मई 2011

ईमान का पहला स्तम्भ अल्लाह पर विश्वास तथा ईमान है।

अल्लाह पर विश्वास तथा ईमान का अर्थात यह कि इस बात पर कठोर विश्वास और आस्था हो कि अल्लाह ही हर वस्तु का स्वामी और पालणपोसक है। उसने हर वस्तु को एकेले उत्पन किया है। पूरे संसार को चलाने वाला वही है। धरती और आकाश की हर चीज़ उसके आज्ञा का पालन करती है। तो केवल वही ज़ात उपासना के योग्य है और केवल वही इबादत का हक्दार है। सम्पूर्ण इबादत में उसका कोई भागीदार नही है और उसके अतिरिक्त सब झूटे और असत्य है। अल्लाह तआला ने फरमाया
ذلك بأن الله هو الحق و أن ما يدعون من دونه هو الباطل وأن الله هو العلي الكبير" الحج :62

“ यह इस लिए कि अल्लाह ही सत्य है और वह सब असत्य है जिन्हें अल्लाह को छोड़ कर यह लोग पुकारते हैं और अल्लाह ही उच्च और महान है। ”

अल्लाह तआला अपने विशेष्ताओं और गुनों में सम्पूर्ण है और वह हर कमी और नक्स से पवित्र है।
किसी भी मामूली वस्तु का बिना उसके बनाने वालेके पाया जाना बुद्धि के विरूद्ध है । उदाहरण देता हूँ कि क्या कोई जलपान बिना बावर्ची के स्वयं तैयार हो जाएगी। इसी तरह कोई दुकान खूद बखूद तैयार होजागी और उस में हर तरह का सामान खूद आजाए, और खूद बखूद बिकने लगे , कोइ अक्ल वाला इस बात को नही मानेगा। तो फिर कैसे होसकता कि इतने बड़े संसार, पृथ्वी, आकाश, पलेनेट्स, पैड़ पौदा , पशु पंक्षी , मनुष्य स्वयं उतपन होगए और सुर्य ,चंदर्मां स्वयं निकलने और डुबने लगे, नदिया और चशमे स्वयं बहने लगे, यह सब इस बात की गवाही देती है कि एक ज़ात उपस्थित है जो इन सब को कन्टरोल करता है। इस बड़ी दुनिया का व्यवस्था उसके आज्ञा तथा इच्छानुसार चल रहा है और वह अल्लाह की ज़ात है। एक अल्लाह पर विश्वास और उसका कोई भागीदार और साझीदार नही है। इसे तौहीद कहा जाता है।

तौहीद को तीन विभाग में विभाजन किया जाता है।

(1) तौहीद रूबूबियत
(2) तौहीद उलूहियत
(3) तौहीद अस्मा तथा सिफात

(1) तौहीद रूबूबियत का अर्थात यह है कि आदमी कठोर विश्वास तथा आस्था रखे कि अल्लाह ही तन्हा संसार और उसकी हर वस्तु का मालिक और स्वामी है, वही सम्पूर्ण वस्तु की रचना की है, वही सब को जीविका देता है, वही सब को मृत्यु देता है, वही सब को जीवित करता है। इसी चीज़ को याद दिलाते हुए अल्लाह तआला फरमाता है।
" رب السموات و الأرض و مابينهما إن كنتم مؤقنين – لا إله إلا هو يحي ويميت ربكم ورب آباءكم الأولين " [ الدخان: 8 ]
अर्थातः “ वह आकाशों और धर्ती का रब और हर उस चीज़ का रब जो आकाशों और धर्ती के बीच हैं यदि तुम लोग वास्तव में विश्वास रखने वाले हो, कोई माबूद उसके सिवा नही है। वही जीवन प्रदान करता है और वही मृत्यु देता है। वह तुम्हारा रब है और तुम्हारे उन पुर्वजों का रब है जो तुम से पहले गुज़र चुके हैं।”

(2) तौहीद उलूहियत का अर्थात यह है कि बन्दा इस बात का इक़्ररार करे कि इबादत और उपासना की सम्पूर्ण किसमें केवल अल्लाह ही के लिए है। अल्लाह तआला ने अपनी इबादत के लिए ही आकाशों और धरती की रचना की और फिर मनुष्य तथा जिनों को इस पर बसाया ताकि वह केवल एक अल्लाह की पूजा करे, अल्लाह ही से आशा लगाए, अपनी हर संकट और परेशानियों में अल्लाह ही को पुकारे, अल्लाह के लिए बलिदान दे, तो जो उसके आज्ञानुसार चलेगा, उसको पुरस्कार देगा, और जो उस के आज्ञा के विरूद्ध चलेगा ,उसको डंडित करेगा। अल्लाह तआला ने मनुष्य तथा जिनों के उत्पन का लक्ष्य अपनी इबादत ही बयान किया है। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन पवित्र कुरआन में है।
" و ما خلقت الجن والإنس إلا ليعبدون" [الذاريات:56 ]
आयत का अर्थातः “ मैं ने जिन और मनुष्य को इसके सिवा किसी काम के लिए पैदा नही किया कि वह मेरी बन्दगी करे ”
अल्लाह तआला ने मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए नबियों और रसूलों को भेजा जैसा कि अल्लाह तआला का पवित्र कुरआन में इरशाद है।
" ولقد بعثنا في كل أمة رسولا أن اعبدوا الله و اجتنبوا الطاغوت " [النحل: 36]
“ हम्ने हर समुदाय में एक रसूल भेजा और उसके द्वूवारा सब को सुचित कर दिया कि अल्लाह ही की बन्दगी करो, और बढ़े हुए अवज्ञाकारी से बचो ”
यही तौहीद उलूहियत के बारे में नबियों और उनके समुदाय के बीच टकराव रहा है। अल्लाह तआला ने विभिन्न तरिके से अपनी उलूहियत को प्रमाणित किया है।
अल्लाह तआला ने सम्पूर्ण मानव को आज्ञा दिया कि वह केवल अल्लाह की पूजा करे और उसके सिवा सर्व झूठे भगवानों को छोड़ दी जाए। इसी में मानव जाती की सफलता और उनका कल्याण है। अल्लाह तआला का कथन पवित्र कुरआन में है।
" ياأيهاالناس اعبدوا ربكم الذي خلقكم و الذين من قبلكم لعلكم تتقون- الذي جعل لكم الأرض فراشا و السماء بناء وانزل من السماء ماء فأخرج به من الثمرات رزقا لكم فلا تجعلوا لله أندادا وأنتم تعلمون " [البقرة: 22]
अर्थातः "लोगों , बन्दगी इख्तियार करो अपने उस रब की जो तुम्हारा और तुम से पहले जो लोग हूऐ हैं उन सब का पैदा करने वाला है। तुम्हारे बचने की आशा इसी प्रकार हो सकती है। वही है जिसने तुम्हारे लिए धर्ती को बिछौना बिछाया, आकाश की छत बनाई ,ऊपर से पानी बरसाया और उसके द्वुवारा हर प्रकार की पैदावार निकाल कर तुम्हारे लिए रोजी जुटाई, अतः जब तुम यह जानते हो तो दुसरों को अल्लाह का समक्ष न ठहराऔ "
मुशरेकीन के माबूद कोई भी काम करने की शक्ति नही रखते बल्कि वह खुद मुह्ताज हैं कि लोग उनकी सेवा करे और उसका खयाल रखे जैसा कि अल्लाह तआला ने एक उधाहरण के माध्यम से लोगों को समझाया है।
" ياأيهاالناس ضرب مثل فاستمعوا له ان الذين تدعون من دون الله لن يخلقوا ذبابا ولو اجتمعوا له وأن يسلبهم الذباب شيئا لا يستنقذوه منه- ضعف الطالب والمطلوب "[ الحج:73]
हे लोगो ! एक मिसाल दी जा रही है, ज़रा ध्यान से सुनो, अल्लाह के सिवाय तुम जिन जिन को पुकारते रहे हो वे एक मक्खी तो पैदा नहीं कर सकते अगर मक्खी उन से कोई चीज़ ले भागे तो यह उसे भी उस से छीन नहीं सकते। बड़ा कमज़ोर है माँगने वाला और बहुत कमज़ोर है जिस से माँगा जा रहा है।
धरती और आकाश की हर चीज़ को अल्लाह तआला ही ने उत्पन किया है। इन सम्पूर्ण वस्तु को वही रोज़ी देता है, सम्पूर्ण वस्तु में वही तसर्रुफ करता है। तो यह बिल्कुल बुद्धि के खिलाफ है कि कुछ लोग अपने ही जैसों या अपने से कमतर की पुजा और उपासना करे, जब कि वह भी उनही की तरह ज़रूरतमन्द और मुह्ताज है। जब मख्लूक में से कोइ भी सच्चा माबूद का हक्दार नही है तो वही इबादत का हक्दार हुआ जिस ने इन सारी चीज़ों को पैदा किया है और वह केवल अल्लाह तआला की ज़ात है जो हर कमी और ऐब से पवित्र है।

(3) तौहीद अस्मा तथा सिफातः अर्थात कि अल्लाह तआला को उनके नामों और विशेष्ताओं में एक माना जाऐ, और अल्लाह के गुनों और विशेष्ताओं तथा नामों में कोई उसका भागिदार नही है। इसी तरह अल्लाह के इन विशेष्ताओं और गुनों को वैसे ही माना जाऐ जिस तरह अल्लाह ने उसको अपने लिए बताया है या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस विशेष्ता के बारे में खबर दिया है और उन विशेष्ताओं और गुनों को न माना जाऐ जिस विशेष्ता का इन्कार अल्लाह ने अपने से किया है या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस विशेष्ता का इन्कार किया है । जैसा कि अल्लाह तआला का कथन पवित्र कुरआन में है।
" ليس كمثله شيء وهوالسميع البصير "
“ अल्लाह के जैसा कोई नही है और अल्लाह तआला सुनता और देखता है।”
इस लिए अल्लाह के सिफात और गुनों को वैसे ही माना जाऐ जैसा कि अल्लाह ने खबर दिया है या उसके नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने खबर दिया है। न ही उस सिफात के अर्थ को बदला जाए और न ही उसके अर्थ का इनकार किया जाए और न ही उस सिफात की कैफियत बयान किया जाए और न ही दुसरे किसी वस्तु से उसकी उदाहरण दी जाए, बल्कि यह कहा जाए कि अल्लाह तआला सुनता है, देखता है, जानता है, शक्ति शाली है जैसा कि इस के शान के योग्य है, वह अपनी विशेष्ता में सम्पूर्ण है। कोई भी वस्तु उस जैसा नही हो सकता और न ही उस के विशेष्ता में भागिदार हो सकता है। इसी तरह इन सर्व विशेष्ताओं और गुनों की अल्लाह से इन्कार किया जाए जिस का इन्कार अल्लाह ने अपने नफ्स से किया है। या अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने उस सिफत का इन्कार अल्लाह से किया है। यह आस्था रखते हेतु कि इस सिफत के विपरित सिफत में अल्लाह सम्पूर्ण और कमाल को है। इसी तरह अल्लाह के बारे में ऐसे नाम या विशेष्ता का प्रयोग न किया जाए जिनका जिक्र न तो कुरआन में है और न ही उस की नफी की गइ है, तो एसे नामों और विशेष्ताओं के बारे में खामुशी और कुछ न कहना उचित और उत्तम है। बल्कि उस शब्द का विस्तार से अर्थात पूंछना जरूरी है। यदि विस्तारित अर्थात के समय कोई कमी या अल्लाह की शान में खराबी का माना पाया जाता है तो उसका इन्कार अनिवार्य है। जैसाकि अल्लाह तआला का आज्ञा है।
"و لله الأسماء الحسنى فادعوه بها و ذروا الذين يلحدون في أسمائه سيجزون ما كانوايعملون" [الأعراف: 180]
इस आयत का अर्थातः अल्लाह अच्छे नामों का अधिकारी है। उसको अच्छे ही नामों से पुकारो और उन लोगों को छोड़ दो जो उसके नाम रखने में सच्चाइ से हट जाते है, जो कुच्छ वह करते हैं वह उसका बदला पा कर रहेंगे।

अल्लाह तआला की विशेष्ता दो तरह की है।

(1) अल्लाह की व्यक्तिगत विशेष्ताः अल्लाह तआला इस विशेष्ता से हमेशा से है और हमेशा रहेगा उदाहरण के तौर पर , अल्लाह का ज्ञान , अल्लाह का सुनना , देखना , अल्लाह की शक्ति , अल्लाह का हाथ, अल्लाह का चेहरा, आदि और इन विशेष्ता को वैसे ही माना जाए जैसा कि अल्लाह तआला के योग्य है और न ही इन विशेष्ताओं के माना को परिवर्तन की जाए और न ही इन विशेष्ताओं के माना का इन्कार की जाए और न ही इन विशेष्ताओं को दुसरे किसी वस्तु से उदाहरण दी जाए और न ही इन विशेष्ताओं की अवस्था या हालत बयान की जाए।

(2) अल्लाह की इख्तियारी विशेष्ताः यह वह विशेष्ता है जो अल्लाह के इच्छा और इरादा पर निर्भर करता है। यदि अल्लाह चाहता है तो करता और नही चाहता तो नही करता, उदाहरण के तौर पर यदि अल्लाह तआला किसी दास के अच्छे काम पर प्रसन्न होता है तो किसी दास के बुरे काम पर अप्रसन्न होता है, किसी दास के अच्छे काम से खुश को कर उसे ज़्यादा रोज़ी देता है तो किसी के बदले को परलोकिक जीवन के लिए सुरक्षित कर देता है जैसा वह जाहता है करता है आदि ।

अल्लाह तआला पर विश्वास तथा ईमान रखने से कुच्छ लाभ प्राप्त होते हैं।

(1) अल्लाह पर विश्वास और उस के नामों तथा विशेष्ताओं पर विश्वास से अल्लाह की महानता का ज्ञान हुता है।
(2) अल्लाह तआला से प्रेम और अनुराग बढ़ता है जिस के कारण अल्लाह के आज्ञानुसार जीवन गुज़ार की शक्ति प्राप्त होती है।
(3) अल्लाह तआला के शक्ति और नराज़गी से डर और भय का एहसास होता है और बुराई और अपराध से बचता है।

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