मंगलवार, 26 जनवरी 2010

गणतंत्र दिवस और देशवासियों को हमारी शुभ कामनाऐ










आज 26/01/2010 गणतंत्र दिवस है जिस के समारोह कार्यक्रम में देश की सैन्य ताकत, समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता का नज़ारा देखने को मिला और यह हमारा हक है कि हम अपनी ताकत और शक्ति का प्रदर्शन करे, अपनी संस्कृति-रीती- रवाज से दुनिया को परिचय करवाए और प्राचीन-समृद्ध संस्कृति और सभ्यता से खुद को जोड़े रखते हुए विश्व शक्ति के उच्च स्थान पर ब्राजमान हो, यही हमारी खाहिश और ईश्वर से दुआ भी
आजादी के बाद जिन लोगों को सत्ता मिली वे स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े ऊंचे आदर्शो और मूल्यों वाले नेता थे। उनके नेतृत्व में देश के विकास के लिए कई बुनियादी कार्य किए गए, लेकिन दूसरी पीढ़ी के नेताओं और उस के बाद के नेताओं के हाथ में सत्ता आते ही मूल्यों और आदर्शो के उल्लंघन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह जारी है और बिते समय के साथ अधिक से अधिकतम हो रहा है।
हमारे ऊंचे आदर्शो और मूल्यों वाले नेताओं ने जो अनूठा संविधान का निर्माण किया और जो उनका सपना था उस की एक झलक आप को दिखाता हूँ,
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक बार संविधान सभा में कहा था कि " मैं आशा करता हूं कि जो संविधान सभा बनाने जा रही है, वह भूखों को रोटी, वस्त्रहीनों को वस्त्र और बेघरों को छत देगा। अगर संविधान यह सब कुछ न कर सका तो मेरे लिए वह कागज के टुकड़े से अधिक कुछ नहीं होगा। "
डा. अंबेडकर ने इस संविधान के प्रति एक बार कहा कि " लोग कहते हैं कि मैं इस संविधान का जनक हूं। यह बिल्कुल गलत है। मैंने वह लिखा, जो मुझे लिखने के लिए कहा गया। अगर मुझे अवसर मिले तो मैं पहला व्यक्ति हूंगा, जो इस संविधान को जला दूं। यह अच्छा नहीं है और किसी के काम का नहीं है। बाद में जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि हमने मंदिर तो अच्छा बनाया था, लेकिन अगर उसमें भगवान की मूर्ति रखने के बजाय राक्षस की मूर्ति स्थापित कर दी गई हो तो मैं और क्या कह सकता हूं "
संविधान प्रारूप समिति के सदस्य मोहम्मद सादुल्ला ने एक बार कहा।
" मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे जितना भी अच्छा या खराब क्यों न हो, यदि वे लोग जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, खराब निकलें तो निश्चित रूप से संविधान खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान कितना भी खराब क्यों न हो, अगर इसे अमल में लाने वाले अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा "
भारतीय संविधान में सभी को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनेतिक न्याय देने का वचन दिया गया है, लेकिन राजनीतिक सत्ता अब घटनाओं, प्रक्रियाओं, संसाधनों और अधिकारियों के व्यवहार को सार्वजनिक हित में प्रभावित करने और लोगों को न्याय देने का माध्यम नहीं रह गई है। इसकी जगह राजनीतिक सत्ता का उद्देश्य निजी स्वार्थो की पूर्ति और सार्वजनिक धन के बेजा इस्तेमाल, विशेषाधिकार, संरक्षण, तानाशाही और विरोधी विचारधारा के लोगों को परेशान करना या जनता को परेशान करना हो गया है।
अपराधी और माफिया तत्व, जिनके हाथ खून से रंगे हुए हैं, विभिन्न दलों में प्रवेश करके माननीय बन गए हैं। राजनेता भी अब जनता से दूर कमाडो के घेरे में रहने लगे हैं। बेईमान लोगों ने राज्य की शक्तियों को येन केन प्रकारेण हस्तगत कर लिया है और वे अपने निजी स्वार्थो को पूरा करने में लगे हैंसत्ता का दुरूपयोग करते हैं। हमारी राज्य व्यवस्था अपनी जनता को पानी, बिजली के साथ-साथ रोजी रोटी मुहैया कराने में विफल हो रही है परन्तु उनके बैंक बाइलेंस में इतना पैसा होता कि दो चार वंश बिना किसी चिंता के मैज मस्ती कर सकती है।
दुखद आश्चर्य यह है कि भ्रष्टाचार में संलिप्त लोग अब शर्मसार नहीं होते बल्कि सीना ठोक कर चलते हैं और पैसा तथा राजनेतिक शक्ति के बल बुते झूट को सत्य और सत्य को झूट प्रामाणित कर देते हैं। चाहे वह आर्थिक घोटाला हो, या बलत्कार या मडर कैस हो,
जनता को केवल पानी, बिजली के साथ-साथ रोजी रोटी और शान्ती चाहिये परन्तु हमार राजनेतिक दल इसे प्राप्त कराने में पुरी तरह विफल हैं ।
अल्लाह से बिन्ती करता हूँ कि अल्लाह हमें और हमारे देशवासियो के समस्या का समाधान करे और अच्छी जीवन दे जो परिशानियों से मुक्त हो,

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ? महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?   महापाप (बड़े गुनाह) प्रत्येक वह कार्य जिस का पाप बहुत ज़्य...