व्यापार यदि इस्लामिक शिक्षा के अनुसार
किया जाए तो वह उपासना और ईबादत के स्थान पर माना जाता है और मानव के पवित्र कमाई
में शुमार होता है और उसके कमाई करने के लिए प्रत्येक प्रकार के प्रायास पर पुण्य
मिलेता है परन्तु व्यापार में इस्लामिक आदेशों का उलंघन किया गया तो वह कमाई उस आदमी
के लिए परेशानी के कारण बनेगा और मानव की उस कमाई पर बहुत ज़्यादा अल्लाह के पास
प्रश्न किया जाएगा। जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि
व सल्लम) ने फरमायाः
"لَا تَزُولُ قَدَمَا عَبْدٍ يَوْمَ
الْقِيَامَةِ حَتَّى يُسْأَلَ عَنْ عُمُرِهِ فِيمَا
أَفْنَاهُ وَعَنْ عِلْمِهِ فِيمَ فَعَلَ وَعَنْ مَالِهِ مِنْ أَيْنَ اكْتَسَبَهُ
وَفِيمَ أَنْفَقَهُ وَعَنْ جِسْمِهِ فِيمَ أَبْلَاهُ "أخرجه الترمذي
وقَالَ : هَذَا حَدِيثٌ
حَسَنٌ صَحِيحٌ
क़ियामत के दिन किसी भी व्यक्ति के दोनो पाँव अपने स्थान से नही हरकत करेंगे यहाँ तक कि उस से उस के आयु के प्रति प्रश्न किया जाएगा कि किन चीज़ों में लगाया और उस के ज्ञान के हेतू प्रश्न किया जाऐगा कि उसने अपने ज्ञान के अनुसार अमल किया कि नहीं, और उस के धन-दौलत के बारे में प्रश्न किया जाऐगा कि उसने धन-दौलत कहाँ से कमया और कहाँ कहाँ खर्च किया और उसके शरीर के प्रति सवाल किया जाऐगा कि उसने अपने शरीर को किन चिज़ों में लगाया ?" (सुनन तिर्मिज़ीः हदीस क्रमांकः 2422)
गौया कि मानव जो कुछ भी व्यापार करता है और जिस तरीक़े से करता है, उस के प्रति उस से प्रश्न किया जाऐगा।
(1) अल्लाह की वर्जितीय वस्तुओं का व्यापार।
अल्लाह तआला ने जिन वस्तुओं को मानव के
प्रयोग के लिए अवैध किया तो उन वस्तु की खरीदारी तथा बेचने को भी वर्जित किया है।
क्योंकि अल्लाह तआला ने उन वस्तुओं को ही वर्जित किया जो मानव के प्रयोग के लिए
हाणि कारण हो या मानव समाज को उसका नुक्सान भुक्तान करना पड़े, जैसे कि जूवा ,
सट्टे बाजी, बयाज, शराब, सूव्वर, मुर्ती तथा बुलू फिल्म आदि के खरीदने और बेचने से
मना किया गया है। अब्दुल्लाह बिन अब्बास से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः " बैशक जब अल्लाह अन्य किसी चीज़ को अवैध
करता है तो उसकी कमाई को भी वर्जित कर देता है।
(दारु कुत्नी और अल्लामा अलबानी ने सही कहा है)
(दारु कुत्नी और अल्लामा अलबानी ने सही कहा है)
और जाबिर बिन अब्दुल्लाह वर्णन करते हैं कि उन्हों ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मक्का के जीत (सन 8 हिज्री) के वर्ष फरमाते हुए सुना, " बैशक अल्लाह और उस के रसूल ने शराब, मुरदार, सुव्वर और मुर्तियों का खरीदना और बेचना हराम किया है, तो कहा गया कि ऐ अल्लाह के रसूल, मुरदार जानवर की चरबी के प्रति आप क्या कहते हैं ? क्यों कि उसकी चरबी से नाव और चमड़ों में प्रयोग किया जाता है और लोग उस से दिया जाला कर प्रकाश प्रप्त करते हैं। तो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया, नहीं! वह वर्जित है। फिर रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः " अल्लाह की धुत्कार हो यहूदियों पर और अल्लाह उन लोगों को नष्ठ करे, बैशक जब अल्लाह ने मृतिक जानवरों और गाए तथा बकरियों की चरबी को हराम किया तो जैसा कि अल्लाह ने खबर दिया है,
तो उन लोगों ने उसे जमाकर फिर गर्म कर के उस का तैल निकाल कर उसे बेचा और उस बेची हूई कीमत को खाया " (सही बुखारी और सही मुस्लिम)
(2) धौखा और भ्रष्ठाचार
इस्लामिक शिक्षा के अनुसार व्यापार में प्रत्येक प्रकार का धोखा, चीतींग और मुर्ख बनाना अनुचित है, जैसा कि अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) गल्ले के ढ़ेर के पास से गुज़रे, तो उस में अपना हाथ दाखिल किया तो आप को भीगा हुआ लगा, आप ने कहा, ऐ अनाज वाले, यह क्या है ? तो उसने उत्तर दिया कि ऐ अल्लाह के रसूल, रात में वर्षा हुई थी, तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया कि " भीगे हुए अनाज को ऊपर क्यों नहीं रखा ताकि लोग देख भाल कर खरीदें, जो धोखा देगा, वह हमारे रास्ते पर नहीं है।" (सही मुस्लिम)
जिन
वस्तुओं के स्वस्थ रहने की तिथि समाप्त हो गई है। उन्हें भी बिना खरीदार को बताए
हुए बेचना भी अवैध होगा, इसी प्रकार वज़न और तराज़ू में गड़बड़ी भी धोगा और अवैध
व्यापार में सम्मिलित होगा।
(3) झूठा कसम
इस्लाम ने
झूठा शपथ खाना भी हराम किया है और झूठी कसम खा कर व्यापार करने वाले व्यक्तियों पर
अल्लाह बहुत क्रोध होता है और क़ियामत के दिन ऐसे लोगों की ओर कृपा की दृश्य से
नहीं देखेगा जैसा कि नबी से अबी ज़र (रज़ी अल्लाहु अन्हु) हदीस रिवायत करते हैं
कि नबी(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने
फरमायाः " तीन व्यक्तियों से अल्लाह तआला क़ियामत के दिन बात नहीं करेगा और
उन की ओर कृपा की दृश्य से नहीं देखेगा और उनको पवित्र भी नहीं करेगा और उन के लिए भीषन अज़ाब तैयार किया है तो वह कहते
हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यह तीन बार फरमाया। अबू ज़र (रज़ी
अल्लाहु अन्हु) कहा कि वह कष्ठ
और बहुत हानि उठाने वालों में होगा परन्तु वह कौन लोग होंगे ऐ अल्लाह के रसूल ? तो
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया, अपने कपड़े को घमंड से लटका कर पहन ने वाले,
किसी पर एहसान कर के एहसान जताने वाले और अपने सामग्री को झूठा शपथ खा कर बेचने
वाले, (सही मुस्लिम)
बल्कि सही बातों पर भी ज़्यादा कसम खाना भी अनुचित है, जैसा कि अबू क़तादा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल को फरमाते हुए सुना " बेचने और खरीदने में ज़्यादा कसम खाने से बचो, बैशक वह समान को समाप्त करता है और बरकत को मिटाता है " (सही मुस्लिम)
(4) हाट में सामग्री के पहुंचने से पहले कम कीमत
में सामान खरीदना अवैध है।
सामग्री के मार्केट में पहुंचने से पहले देहातियों और किसानों से सामान कम क़िमत पर खरीदने से मना किया गया है, जैसा कि अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सामान को मार्केट में पहुंचने से पहले खरीदने से मना किया है।" (सही बुखारी तथा सही मुस्लिम)
क्योंकि किसान हाट के सही मूल्य से आज्ञात होते हैं तो ऐसे समय में स्वार्थी लोग किसानों को मुर्ख बना कर सस्ते कीमत में उनके व्यापारिक सामग्री खरीद लेते हैं। इसी लिए नबी ने ऐसे व्यापार करने से मना फरमाया जिसमें एक पक्ष को हानि पहुंचे और दुसरे पक्ष को ज़्यादा लाभ प्राप्त हो।
(5) किसी व्यक्ति के कुछ खरीदते समय दुसरा व्यक्ति
उसी वस्तु को खरीदने का प्रयास न करे जब कि दोनों पक्ष व्यापार करने का पूरा मन
बना चुके हों।
जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से कोई व्यापार करने का मन बना ले, तो फिर तीसरा आदमी वही सामग्री के खरीदने में रूची न दिखाए, क्योंकि इस से शैतान एक दुसरे के बीच दुश्मनी उत्पन्न करता है। इस्लाम ने उन सब चीज़ों से दूर रहने का आदेश दिया जो आपस में दुश्मनी, घृणा और झगड़ा लड़ाई का कारण बने, रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस प्रकार के व्यापार से मना फरमाया है। जैसा कि अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इरशाद फरमाया, " तुम में से कोई किसी दुसरे भाई के व्यापार पर व्यापार न करे,..... " (सही बुखारी तथा सही मुस्लिम)
इसी तरह जब
दो पक्ष के बीच में किसी भी वस्तु के व्यापार की बात चीत पक्की हो जाए तो दुसरा
आदमी बढ़ा कर क़ीमत न लगाए जैसा कि अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन
है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने
फरमाया " मुस्लिम अपने भाई की व्यापार पर व्यापार नहीं करता है, ......."
( सही मुस्लिम)
(6) किसी वस्तु की कीमत
अधिक करने के लिए बोली न लगाई जाए।
बाज़ारो में कुछ स्वार्थी लोग अपने कुछ लोगों को रखते हैं कि जब ग्राहक आए तो यह भी भीड़ में उपस्थित रहें और बोली लगते समय यह भी ज़्यादा बोली लगाकर ग्राहक को धोखा दे और ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफा कमाय , इस्लाम ने इन तरीको को वर्जित किया है। जैसा कि अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने ज़्यादा बोली लगाकर ग्राहक को धोखा देने से मना फरमाया।" (सही बुखारी तथा सही मुस्लिम)
(7) गाए, भेंस, ऊंट और
बकरी आदि जानवरों के थन में दूध रोका न जाए ताकि खरिदार ज़्यादा क़ीमत दे कर
खरीदे,
इस्लाम ने धोखा और भ्रष्ठाचार के प्रत्येक तरीके और रूप से मना फरमाया है चाहि वह धोखा और भ्रष्ठाचार जीवन के किसी भी स्थान और मोड़ पर हो, इसी लिए कुछ लालची लोग अपने गाए, भेंस, ऊंट और बकरी आदि को बेचते समय धन में दूध रोक देते ताकि खरीदार यह समझे कि यह पशु ज़्यादा दूध देती है ताकि खरीदार ज़्यादा क़ीमत दे कर खरीदे तो ऐसा करने से रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मना फरमाया। जैसा कि अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " ऊंट और बकरी के दूध को बेचने के समय न रोको, जिसने इस स्थिति में खरीदा तो उसे अनुमति होगी कि चाहे तो वह इस व्यापार को जारी रखे या इस व्यापार को भंग करे, और बदले में एक साअ ( 2.500 Kilo gram) खजूर पशु के मालिक से ले ।" (सही बुखारी तथा सही मुस्लिम)
(8) जब लोगों को किसी सामग्री की आवश्यक्ता हो तो
क़ीमत चढ़ने के लिए उन वस्तुओं की जमाखोरी न की जाए।
कभी कभी बाज़ार में किसी चीज़ की कमी के कारण क़ीमत और उस चीज़ की मूल्य बढ़ जाती है, ऐसी स्थिति में उस चीज़ की जमाखोरी न की जाए जब कि लोगों को उस चीज़ की आवश्यक्ता है, विशेष रूप से खाने पीने की चीज़ें, पोशाक एवं ओषधि जैसी वस्तुओं की जमाखोरी बिल्कुलल न की जाए, जो लोग ऐसा कार्य करेंगे, वह पापी और अप्राधि होंगे जैसा मअमर बिन अब्दुल्लाह से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया है, " जमाखोरी पापी लोग करते हैं।" (सही मुस्लिम)