बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

माता पिता पर संतान के अधिकार


माता पिता पर संतान के अधिकार.

विवाह के साथ पुरूष और महिला से मिलकर एक परिवार का निर्माण होता है और जब दोनो के प्रेम का फल बच्चे के रूप में संसार में जन्म लेता है तो परिवार की नीव अधिक ठोस हो जाती है। इसी लिए तो अल्लाह तआला ने एक सुन्दर और आदर्श परिवार के निर्माण के लिए परिवार के प्रत्येक व्यक्ति पर एक दुसरे के लिए कुछ ह़ुक़ूक़ और अधिकार अनिवार्य किये हैं ताकि परिवार का प्रत्येक व्यक्ति अपने ऊपर आने वाले अधिकार को सही तरीके से अदा कर के अल्लाह के पास अच्छा बदला प्राप्त करे, इसी लिए अल्लाह तआला ने बच्चों पर माता-पिता के कुछ अधिकार और हुक़ूक अनिवार्य किया है, क्यों की माता पिता ने बच्चों की पालन पौशक में बहुत परेशानी और कष्ट उठाया है और इसी प्रकार बच्चों का माता-पिता पर कुछ हुक़ूक़ अनिवार्य किया है, जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अब्दुल्लाह बिन अम्र (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से फरमाया " और तुम्हारे ऊपर तुम्हारे संतान का हक है। " ( सही मुस्लिम, हदीस क्रमांक.1159)
ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने ऊपर आने वाले ह़कूक़ को सही तरीक़े से अदा करे और दुनिया और आखिरत (पारलोक) में बहुत से लाभ प्राप्त करे हैं।
तो बच्चों का अपने माता पिता पर कुछ ह़ुक़ूक़ जन्म लेने से पहले होता है और कुछ ह़ुक़ूक़ जन्म लेने के बाद होता है,
बच्चों का अपने माता पिता पर जन्म लेने से पहले के ह़ुक़ूक़ः
(1)  मानव विवाह करने से पहले अपने जीवन साथी के लिए अच्छे व्यवहार वाली, सुन्दर आचरण वाली और दीनदार महिला का चयन करे, क्यों कि बच्चों की पालन पौशक के लिए अच्छे स्वभाव वाली सुशील महिला का होना ज़रुरी है जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पत्नी के चयन करने के प्रति उत्साहित किया है। अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " महिला से विवाह चार कारणों से की जाती है, महिला के धनदौलत, और ऊंचे परिवार और अतिसुन्दरता और दीनदारी के कारण विवाह किया जाता है तो तुम दीनदार महिला से विवाह कर के सफलता प्राप्त करो, चाहे तुम्हें उस दीनदार महिला को तलाशने में बहुत कठिनाई उठानी पड़े " (सही बुखारी, हदीस क्रमांक.5090)
क्योंकि माता-पिता जेसे होते हैं, बच्चा ज़्यादा तर वेसे होते हैं, जैसा कि उमर बिन खत्ताब (रज़ी अल्लाहु अन्हु) ने फरमाया " निः संदेह खून का असर होता है, अपने संतान के लिए अच्छे खून का चयन करो। "
(2) संतान दुनिया की सब से उत्तम और सब से बहुमूल्य दौलत है, इस लिए अच्छे और सफलपूर्वक, नेक और स्वस्थ बच्चे की दुआ अल्लाह से बार बार करना चाहिये,
इस का आरंभ पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने से पहले ही करना चाहिये जैसा कि (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया जब तुम में कोई अपनी पत्नी के पास आये तो यह दुआ पढ़े। अब्दुल्लाह इब्नि अब्बास (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " जब तुम में से कोई अपने पत्नी के पास शारीरिक संबंध बनाने के लिए आये तो कहे, बिस्मिल्लाहे, अल्लाहुम्मा जन्निब्ना शैतान व जन्निबिशैतान मा रज़क्तना, यदि अल्लाह ने इन दोनो के मिलन से बच्चा लिखा है तो बच्चा शैतान के कष्ठों से सुरक्षित रहेगा।" (सही बुखारी, हदीस क्रमांक.7396)
अल्लाह के नबी और रसूल (अलैहिस् सलातु वस्सलाम) भी अल्लाह से नेक संतान की दुआ करते थे, जैसा जकर्या (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह से नेक बच्चे से दुआ किया. " ऐ मालिक! अपने कृपा से मुझे नेक और अच्छी वंश प्रदान कर, बैशक तु ही दुआओं को स्वीकार करता है।"
और जब बच्चा जन्म ले ले तो भी उस के स्वस्थ और नेक और दुनिया में सफलपूर्वक होने के लिए भी दुआ करना चाहिये क्यों कि माता पिता की दुआ बच्चों के हक में अल्लाह तआला स्वीकार करता है।
कुच्छ ह़ुक़ूक़ ऐसे हैं जो बच्चे के जन्म लेने के बाद माता पिता पर अनिवार्य होता है।
(1)   बच्चे के जन्म लेने के बाद उसे अपनी संतान माने, पत्नी उसे उस के पिता से जोड़े, पत्नी से झकड़ा और निबाह न होने के कारण और पत्नी को बदनाम और नुकसान पहुंचाने के लिए बच्चे को अपने वंश में से होने का इनकार नही करे, या पत्नी बच्चा को अपने पास रखने के लिए और पति से तलाक या एलग होने के कारण पत्नी बच्चे के पिता का इन्कार कर दे और उसे छुपाए। सब पाप के कार्य में से होगा बल्कि बच्चे को उस के वास्तविक माता-पिता से जोड़ा जाए। बच्चे के कारण न माँ को तक्लीफ दी जाए और न ही बाप को नुक्सान पहुंचाया जाए। जैसा कि अल्लाह का आदेश है, " न तो माँ को इस कारण से तकलीफ में डाला जाए कि बच्चा उसका है, और न ही बाप को तंग किया जाऐ कि बच्चा उसका है।" ( अल-बकराः 233)  
(2)  बच्चे का सुन्दर नाम रखे, अपने बच्चे के लिए उस नाम का चयन करे जो अच्छा अर्थ को प्रकट करता हो। वह नाम रखे जो अल्लाह को बहुत प्रिय हो और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को प्रिय है, जैसा कि हदीस में आया है, अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " अल्लाह को सब से ज़्यादा पसन्द नामों में अब्दुल्लाह और अब्दुर्रहमान है " ( सही मुस्लिम, हदीस क्रमांक.7396)
इस हदीस से ज्ञान प्राप्त हुआ कि अल्लाह को यह नाम अधिक प्रिय है, इसी प्रकार अब्द को अल्लाह के दुसरे नामों और सिफात के साथ मिला कर भी रखा जा सकता जैसे कि अब्दुर्रहीम, अब्दुल्गफ्फार आदि।
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) भी कुछ नाम पसन्द फरमाते थे जिसे रखना अच्छा है जैसा कि हदीस में आता है,
जाबिर बिन अब्दुल्लाह कहते हैं कि हमारे परिचय में एक आदमी को एक लड़का जन्म लिया तो लोगों ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से कहा कि, हम उस का क्या नाम रखें, तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया कि तुम लोग उस का नाम मेरे पास प्रिय नाम हमज़ा बिन अबदुल्मुत्तलिब के नाम पर रखो, और इमाम अल्बानी रहिमहुल्लाह कहते हैं कि रसूल को यह नाम सब से अधिक पसन्द थे, इस हदीस के वह्य होने से पहले " अल्लाह को सब से ज़्यादा पसन्द नामों में अब्दुल्लाह और अब्दुर्रहमान है " ( सिल्सिला सहीहाः 887/6)
इसी तरह नबियों और सन्देष्टाओं (अलैहिमुस्सलाम) के नामों पर बच्चों का नाम रखा जाए, जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हदीस में आता है।  अनस (रज़ी अल्लाहु अन्हु) वर्णन करते हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया, " रात में मुझे एक लड़का जन्म लिया है जिस का नाम मैं अपने पिता इबराहीम के नाम पर रखा है।" ( सही मुस्लिम, हदीस क्रमांक.2315)
इसी तरह वह नाम जो अशुभ और गलत माने की पुष्ठी करता है, वैसा नाम नहीं रखना चाहिये। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने बहुत से ऐसे नामों को बदल दिया जो अशुद्ध अर्थात पर दलालत करता था, आईशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) कहती हैं कि " रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) गलत नामों को अच्छे नामों से बदल देते थे। " (सुनन तिर्मिज़ी, हदीस क्रमांक.2839) 
(3) बच्चों को दूध पिलाने का व्यवस्था पिता करेगा, सब से उत्तम तरीका यह है कि माता दूध पीलाएगीः  माता पिता में तलाक और एलग होने के कारण माँ ही बच्चे को दूध पीलाऐगी और पिता बच्चे और उसकी माँ का पूरा खर्च उठाऐगा, यदि माता को दूध नहीं होता तो दुसरी महिला या टब्बे के दूध का व्यवस्था करना पिता की जिम्मेदारी होगी। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है। " जो बाप चाहते हों कि उनके बच्चे दूध पीने की पूरी अवधि तक दूध पिएँ, तो माएँ अपने बच्चों को पूरे दो वर्ष तक दूध पिलाए, इस स्थिति में बच्चे के बाप को सामान्य रीति के अनुसार उन्हें खाना-कपड़ा देना होगा, मगर किसी पर उसकी क्षमता से बढ़ कर बोझ नहीं डालना चाहिये।" ( अल-बकराः 233)
परन्तु जो महिला अपने बच्चे को बिना किसी मजबूरी के दूध नहीं पीलाती, इस भय से कि उस की सुन्दरता कम हो जाएगी या उस का शरीर खराब हो जाऐगा या इस में बहुत परेशानी होती है, तो ऐसी महिलाओं को बहुत ही बड़ी सजा की चेतावनी दी गई है। अबू उमामा अल बाहली (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि मैं ने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फरमाते हुए सुना " मैं सोया हुआ था कि दो आदमी मेरे पास आये और मुझे उठा कर एक बहुत दुश्वार और कठिन पर्वत के पास ले गये और दोनों ने कहा, इस पर चढ़ो, मैं ने उत्तर दिया, इस पहाड़ पर चढ़ने की मुझ में क्षमता नहीं, तो उन दोनों ने जवाब दिया, हम तुम्हारी सहायता करेंगे, तो मैं चढ़ने लगा, जब बीचो बीच पहाड़ पर पहुंचा तो बहुत डरावनी आवाज आई, तो मैं ने फरिश्तो से प्रश्न किया कि यह कैसी आवाज है, तो उन्हों ने उत्तर दिया की यह नरकवासियों की चीखो पूकार है, .................................... फिर हम ऐसी महिलाओं के पास से गुजरे जिस के वक्ष पर साँप और बिच्छू डंक मार रहे थे। तो मैं ने कहा, इन महिलाओं को यह सजा क्यों दी जा रही हैं,  तो उस ने उत्तर दिया कि यह महिलाऐं अपने बच्चों को अपना दूध नही पीलाती थीं। ..................... (अल-मुस्तदरक अलस्सहीहैन लिल हाकिमः  288/2)
(4) जन्म के सात्वें दिन बच्चे का अक़ीका की जाए, उस के सर के बाल कटवा दिये जाऐ और सर के बाल के बराबर चांदी दान दिया जाए। अकीका कहा जाता है कि बच्चे के जन्म की खुशी में अल्लाह का नाम ले कर बच्चे की ओर से बकरा जबह किया जाए जो बच्चे को संकटो से अल्लाह की अनुमति से सुरक्षित रखेगा जैसा कि  नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया, समुरा बिन जुन्दुब (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " प्रत्येक शीशु अपने अकीका के द्वारा गिरवी रखा हुवा है, सात्वे दिन उस की ओर से अकीका किया जाऐगा और सर मुंढवाया जाऐगा और उस का नाम रखा जाऐगा, (सुनन अबी दाऊद)
सर के बाल के बराबर चांदी दान कर दिया जाए जैसा कि अली बिन अबी तालिब (रज़ी अल्लाहु अन्हु) कहते है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हसन की ओर से बकरी का अकीका किया और फरमाया ऐ फातिमा! उसका बाल मुंढ़ दो, सर के बाल के बराबर चांदी दान कर दो, .....( सुनन तिर्मिज़ी)
लड़की की ओर से एक बकरा और लड़का की ओर से दो बकरा जबह किया जाऐगा, जैसा कि हदीसो से प्रमाणित है।
(5)  प्रत्येक प्रकार से बच्चों के बीच न्याय किया जाए, उपहार देने में, शिक्षा देने में, अच्छे व्यवहार में, बच्चों को जेब खर्च देने में, और मृत्यु के बाद धनदौलत के बंटवारा में सही तरीके   से इस्लामी शिक्षा अनुसार न्याय किया जाए  जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) ने फरमाया, "  " अल्लाह से भय खाओ और बच्चों के बीच बराबरी करो " (सही बुखारी)
इसी तरह लड़के को लड़की पर और लड़की को लड़के पर उत्तमता न दी जाए, बड़े को छोटे पर न और छोटे को बड़े पर उत्तमता न दी जाए, जैसा की रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) के समय में नोमान के पिता ने अपने बेटे नोमान को एक ऊंट उपहार में दिया तो नोमान की माता ने अपने पति से कहा कि आप इस उपहार पर रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) को गवाह बना दीजिये, तो नोमान के पिता रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) के पास आये और कहा ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं ने अपने बेटे नोमान को एक ऊंट उपहार में दिया है, आप इस पर गवाह रहिये, तो रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) ने प्रश्न किया कि, क्या तुमने अपने सब बेटों को इसी प्रकार का उपहार दिया है ? तो उसने उत्तर दिया, नहीं, तो आप (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) ने कहा, क्या तुम मुझे अन्याय पर गवाह बना रहे हो, मैं अन्याय पर गवाह नहीं बनता, क्या तुम चाहते हो कि सब बेटे तुम्हारे साथ उत्तम व्यवहार करे ? तो उस आदमी ने कहा, हाँ ! तो रसूलुल्लाह ने कहा कि जब तुम चाहते हो कि बच्चे तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करे तो उन को उपहार और कुछ देने में न्याय और बराबरी करो"। (सहीह मुस्लिम)
(6)    बच्चों को अच्छी पालन पोशन और उत्तम शिक्षा दी जाए, बच्चों के खाने पीने का अपनी शक्ति के अनुसार व्यवस्था करे, बच्चों को दनिया की शिक्षा के साथ आखिरत का ज्ञान दिया जाए, धर्म का ज्ञान दिया जाए, अच्छी चीज़ों को अपनाने और बुरी चीज़ो से दूर रहने पर उत्साहित किया जाए और नरक के रास्तों से उसे सुरक्षित रखा जाऐ, जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है,
" ऐ लोगों जो ईमान लाए हो, अपने आप और घरवालों को उस आग से बचाओ जिस का ईंधन इनसान और पत्थर होंगे, जिस पर कठोर स्वभाव के सख्त पकड़ करने वाले फरिश्ते नियुक्त होंगे जो कभी अल्लाह के आदेश की अवहेलना नहीं करते और जो आदेश भी उन्हें दिया जाता है उसका पालन करते हैं।" (सूरः तहरीम, 6)
और रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) ने भी स्पष्टीकरण कर दी कि माता-पिता की जिमेदारी है कि अपने संतान की शिक्षा और खर्च का व्यवस्था करे, उन चीज़ों के बारे में बताए जो बच्चे के जीवन को नष्ट कर देता है ताकि बच्चे इन वस्तुओं से दूर रहे, और उन वस्तुओं के प्रति खबर दे जो बच्चे के लिए लाभदायक हो, बच्चों के दोसतों और मित्रों के बारे में जाने कि वह कैसे हैं, यदि खलत किस्म के बच्चों से दोस्ती न करने दे। क्यों कि मानव के जीवन पर उस के दोस्तों का असर पड़ता है। इस लिए माता पिता पर जिम्मेदारी होती है कि अपने बच्चों के सही मार्ग दर्शन करे. रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) का कथन है, अब्दुल्लाह (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " तुम में से प्रत्येक व्यक्ति जिम्मेदार है और अपने जिम्मेदारी के प्रति उस से प्रश्न किया जाऐगा, राजा (आज के समय में राजनेतिक दल) अपने प्रजा का जिम्मेदार है और उस के बारे में उस से प्रश्न किया जाऐगा, और आदमी अपने घरवालों का जिम्मेदार है और घर वालों के बारे में उस से प्रश्न किया जाऐगा, और पत्नी अपने पति के घर और बच्चों की जिम्मेदार है, और इन चीज़ों के बारे में उस से प्रश्न किया जाऐगा, नौकर तथा काम करने वाले अपने मालिक के सामान (धनदौलत और घर बार) का जिम्मेदार है और उस से इन चीज़ों के प्रति प्रश्न किया जाऐगा, और तुम में से प्रत्येक व्यक्ति जिम्मेदार है और उस से उस की जिम्मेदारी के बारे में प्रश्न किया जाऐगा। (सही बुखारी और सही मुस्लिम)
माता-पिता पर अपने बच्चों के प्रति दो प्रकार की जिम्मेदारी होती है, एक तो उसे खिलाने पिलाने , कपड़ा और उसके अवश्यक्ता को पूरी करने और बीमारी का इलाज कराने की जिम्मेदारी होती है और दुसरी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी कि उसे सही शिक्षा दे, सही मार्गदर्शन करे, दुनिया की अच्छाई और बुराई के बारे में बताऐ, इस संसार का मालिक और सम्पूर्ण वस्तुओं को उसी ने उत्पन किया है, और वह मालिक बहुत महान और बहुत शक्तिशाली है, इस लिए केवल उसी की पूजा और उपासना की जाए, उसी से प्रार्थ्ना की जाए, उसी पर विश्वास और भरोसा किया जाए और उसकी इबादत और पूजा में किसी को तनिक बराबर भागिदार और साझिदार न बनाया जाए, क्यों शिर्क सब से बड़ा पाप और अत्याचार है जो मानव अपने स्रष्टीकर्ता के साथ करता है, इसी लिए नेक लोग, महापुरूष नबियों और रसूलों ने अपने अपने बेटों और वंश को अल्लाह के साथ शिर्क करने से मना किया करते थे, बच्चों को एक मालिक की उपासना और तपस्या करने पर उत्साहित करते थे, कुरआन करीम में बहुत से नबियों और नेक लोगों के किस्से मिलते हैं जैसा कि इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ने अपने बेटों को भी यही नसीहत किया था। " और इसी तरीके पर चलने की ताकीद इबराहीम ने और याक़ूब ने अपने बेटों को की थीं, उन्होंने कहा था, ऐ मेरे बेटों ! बैशक अल्लाह ने तुम्हारे लिए यही धर्म पसन्द किया हैअतः मरते समय तक मुस्लिम (आज्ञाकारी) ही रहना। फिर क्या तुम उस समय उपस्थित थे जब याक़ूब इस संसार से विदा हो रहे थे, तो उसने अपने बेटों से कहा, बच्चों, मेरे बाद तुम किस की बन्दगी (पूजा) करोगे, उन सब ने उत्तर दिया हम उसी एक अल्लाह की बन्दगी करेंगे जिसे आप ने और आप के पुर्वज इबराहीम, इस्माईल और इस्हाक़ ने एक अल्लाह माना है और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।" (सूराः बकरा, 133)
और लुकमान का अपने बेटों को नसीहत कुरआन में इस प्रकार है " याद करो जब लुक़मान अपने बेटे को नसिहत कर रहे थे तो उसने कहा, ऐ बेटा, अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करना. सत्य यह है कि शिर्क (बहुदेववाद) बहुत बड़ा ज़ुल्म है " (सूराः लुकमान, 13)
इसी तरह रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) ने भी अपने चाचा के बेटे अब्दुल्लाह बिन अब्बास से कहा, ऐ लड़के!  मैं तुझे कुछ बातों की शिक्षा देता हूँ, अल्लाह को याद रख अल्लाह तेरी रक्षा करेगा, अल्लाह को याद रख, अल्लाह को तुम प्रत्येक परेशानियों में अपने सामने पाओगे, जब भी मांगो, अल्लाह से ही मांगो, जब सहायता और मदद मांगो, अल्लाह तआला से ही सहायता मांगो, जान लो कि यदि पूरे समुदाय मिल कर तुम्हें लाभ पहुंचाना चाहे तो वह समुदाय तुझे कुछ भी लाभ नहीं पहुंचा सकते सिवाए जितना अल्लाह ने तेरे नसीब में लिख दिया है, और अगर लोग एकट्ठा हो कर तुम्हें हाणि और नुक्सान पहुंचाना चाहि तो वह समुदाय तुझे कुछ भी नुक्सान नहीं पहुंचा सकते सिवाए जितना अल्लाह ने तेरे नसीब में लिख दिया है.....  (सुनन तिर्मिज़ी)

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

हज पर जाने से पहले कुछ बातों पर अमल करना ज़रूरी है।




हज पर जाने से पहले कुछ बातों पर अमल करना ज़रूरी है।
हज पर जान से पहले निम्नलिखित कुछ बातों को अपने जीवन में लागू करें ताकि अल्लाह तआला आप के हज को स्वीकार करे और आप को हज का पूरा पूरा सवाब और पूण्य प्राप्त हो सके,
(1) हज पर जाने से पहले हाजी अपनी नियत को अल्लाह के लिए निःस्वार्थ कर लें, हज करने का लक्ष्य केवल अल्लाह को परसन्न करना हो, दुनिया प्राप्त करने, या लोगों को दिखाने या अपना नाम मशहूर करने या घमन्ड करते हुए हज नहीं करे, क्यों कि प्रत्येक कार्य के स्वीकारित के लिए अल्लाह तआला की परसन्नता पर निर्भर करता है, अल्लाह तआला उसी कार्य को स्वीकार करता है जो केवल अल्लाह को खुश करने के लिए किया जाए। जैसा कि अल्लाह तआला ने सब लोगों को केवल अपनी इबादत करने का आज्ञा दिया है, जो इबादत केवल अल्लाह के लिए हो, और तनिक बराबर भी किसी दुसरे को अल्लाह के साथ भागीदार न बनाया जाए।
" وما أمروا إلا ليعبدوالله مخلصين له الدين حنفاء ويقيموا الصلاة ويؤتوا الزكاة وذلك الدين القيم" (سورة البينة: 1)
" और उनको इसके सिवा कीई  आदेश नहीं दिया गया कि अल्लाह की बन्दगी करें, अपने दीन को उसके लिए खालिस करके, बिल्कुल एकाग्र हो कर और नमाज़ अदा करें, और ज़कात दें, यही अत्यन्त सही और दुरूस्त दीन है" (सूराः बय्यिना,5)
(2) अल्लाह का शुक्र अदा करे कि अल्लाह ने उसे हज करने की तौफीक (हृदय में हज पर जाने का पुख्ता इच्छा डाल दी ) और शक्ति प्रदान की और हज पर जाने के लिए रास्ते और कारण को आसान और सरल बना दिया अल्लाह का शुक्र अदा करें कि अल्लाह ने उसे धनदौलत दिया और एक महत्वपूर्ण इबादत के लिए उसे चयन किया, क्यों कि बहुत से धनदौलत वाले व्यक्ति हज जैसे बड़ी इबादत से वंचित रहते हैं और दुनिया और आखिरत में घाटा उठाते हैं।
(3)  अपने व्यक्तिगत को अल्लाह के आदेश पर चलने वाला बना दे, उस का रूप, उसका कर्म, उसका उठना और बैठना सब अल्लाह को खुश और प्रसन्न करने के लिए हो, क्यों कि वह अल्लाह का मेहमान और कुटुम बन कर जा रहा है, इस लिए वह कार्य न करे जो उस के व्यक्तिगत के विरूध हो, हज पर जाने व्यक्ति के शान के विरूध हो, 
(4) हज का खर्च हलाल कमाई से पूरा करे, क्यों कि अल्लाह तआल अच्छी चीज़ों को पसन्द करता है और बन्दों से अच्छी वस्तुओं को ही स्वीकार करेगा, जैसा कि रसूलुल्लाह ने फरमाया है,
و عن أبي هريرة رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: إن الله طيب ولا يقبل إلا طيبا وأن الله أمر المؤمنين بما أمر به المرسلين فقال تعالى يا أيها الرسل كلوا من الطيبات واعملواصالحا " وقال تعالى " يا أيها الذين آمنوا كلوا من الطيبات ما رزقناكم" ثم ذكر الرجل يطيل السفر، أشعث أغبر يمد يديه إلى السماء ، يا رب يارب، ومدعمه حرام ومشربه حرام وملبسه حرام وغذي بالحرام ، فأنى يستجاب له ( رواه مسلم)
अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया "  अल्लाह तआला पवित्र है और पवित्रता वस्तु को स्वीकार करता है और बैशक अल्लाह मुसलमानों को उन्हीं चीज़ों के करने का आदेश देता है जिन चीज़ों के करने का रसूलों को आज्ञा देता है, तो अल्लाह तआला ने फरमाया, ऐ रसूलों, पवित्र वस्तुओं को खाओ और अच्छा कर्म करो, और मूमिनों से फरमाया, ऐ मूमिनों, उन पवित्र चीज़ों को खाओ जो हमने तुमहें रोजी दे रखी है, और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने एक आदमी की उदाहरण देते हुए कहा, एक आदमी लम्बा यात्रा करता है, उस के बिखरे हुए बाल, धूल से अटा हुआ शरीर, और अपने दोनों हाथों को आकाश की ओर उठाते हुए कहता है, ऐ रब, ऐ रब, और हालाँ कि उसका खाना हराम की कमाई से होता है, उसका पीना हराम की कमाई से होता है, उसका पोशाक हराम की कमाई का है, और पूरी जीवन हराम खाते हुए गुज़रा तो फिर उस की दुआ क्यों कर स्वीकारित होगी, (सही मुस्लिम)
जब अल्लाह तआला हराम कमाई करने वालों की दुआऐं स्वीकार नही करता तो जो मानव हज जैसी पवित्र इबादत अवैध कमाइ से करने जाऐगा तो अल्लाह ताआला कैसे उस के हज को स्वीकार करेगा,
(5) हज पर जाने वाला पूर्ण गुनाहों से सच्ची तौबा करे, यदि उस पर किसी का हक और अधिकार है तो पहले वह इस को अदा कर दे, किसी से कुछ कर्ज़ लिया है तो पहले उसे अदा कर दे या उसे अदा करने के लिए अपने घर वालों को नसीहत कर दे, अपने घर वालों को अल्लाह का भय रखने की नसीहत करे,
(6)  हज पर जाने से पहले हज करने का तरीका सिख ले, हज में कौन सा कर्म करना उचित है ?, कौन सा कर्म अनुचित है ?, कौन सा कार्य करना अनिवार्य है ? और कौन सा काम करने से हज नहीं होता और फिर दुसरे वर्ष हज करना पड़ता है, तमाम चीज़ो को अच्छे तरीके से, सुन्नत के अनुसार अच्छे और ज्ञानी आलिमों और इस्लामिक विद्वानों से ज्ञान प्राप्त कर ले, जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने अन्तिम हज में फरमया था,
 عن جابربن عبدالله قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: يا أيها الناس خذوا عني مناسككم ،فإني لا أدري لعلي لا أحج بعد عامي هذا " ( صحيح الجامع للشيخ الألباني , الرقم:7882)

जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " ऐ लोगों ! मुझ से हज का तरीका सीख लो, तो मुझे पता नहीं कि इस वर्ष के बाद मैं क्या अगले वर्ष हज कर पाऊंगा, या नहीं ? (सही अल्जामिअ, शैख अलबानी)

बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

हज की फज़ीलत




हज वह महत्वपूर्ण इबादत है जो इस्लाम का पांचवाँ स्तम्भ है, जिस के बिना किसी मानव का इस्लाम पूर्ण नहीं हो सकता जिस की फर्ज़ीयत के प्रति अल्लाह ताआला ने पवित्र कुरआन में फरमाया है,
" ولله على الناس حج البيت من استطاع إليه سبيلا ومن كفر فإن الله غني عن الكافرين" ( آل عمران:97 )
" और अल्लाह का लोगों पर अधिकार है कि जो लोग अल्लाह के घर काबा जाने आने की क्षमता रखते हैं, तो वह हज के लिए काबा का यात्रा करें और जो इन्कार करेगा तो अल्लाह सारे संसार वालों से बेनयाज़ है।" ( सूरः आले-इमरान,97)
इसी तरह रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया,
" يا أيها الناس قد فرض الله عليكم الحج فحجوا, فقال رجل أكل عام ؟ يا رسول الله! فسكت. فقالها ثلاثا فقال: لو قلت نعم لوجبت ولما استطعم" ( رواه مسلم)
" ऐ लोगो, अल्लाह तआला ने तुम्हारे ऊपर हज फर्ज़ (अनिवार्य) किया है, तो तुम लोग हज करो, तो एक आदमी ने कहा, ऐ अल्लाह  के रसूल! क्या प्रत्येक वर्ष ? तो अल्लाह के सन्देष्टा खामूश हो गये फिर कुछ समय के बाद फरमया, यदि मैं " हाँ " कहता तो अनिवार्य हो जाता और तुम लोग इस की क्षमता नहीं रखते, ( सही मुस्लिम )

किसी इन्सान पर हज के फर्ज़ होने के लिए उन में पांच शर्तो का पाया जाना ज़रूरी है,
(1) मुस्लिमः हज उसी मानव पर अनिवार्य होता है जो मुस्लिमान होता है, और मुस्लिम होने के बाद हज करता है तो उस का यह हज उस के लिए काफी होगा यदि किसी ने इस्लाम स्वीकार करने से पहले हज किया तो इस्लाम स्वीकार करने उसे बाद दो बारा हज करना पड़ेगा।
(2)  बुद्धि वाला होनाः अल्लाह तआला ने धर्म के आदेश को मानना बुद्धि वालों पर अनिवार्य किया है जो मानव पागल है, तो ऐसे व्यक्तियों पर दीन के बातों का पालन करना अनिवार्य नहीं है, जैसा कि कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया,
عن عَائِشَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: " رُفِعَ الْقَلَمُ عَنْ ثَلَاثَةٍ: عَنِ النَّائِمِ حَتَّى يَسْتَيْقِظَ، وَعَنِ المُبْتَلَى حَتَّى يَبْرَأَ، وَعَنِ الصَّبِيِّ حَتَّى يَكْبُرَ" )سنن أبي داؤد-4/139 وصححه الشيخ الألباني)
आईशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) से से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " तीन व्यक्तियों को अल्लाह तआला ने क्षमा किया है। नीन्द से सोनेवाले यहां तक कि वह निन्द से जाग जाए, और पागल यहां तक कि वह बुद्धि वाला हो जाए और बच्चों से यहां तक कि वह बालिग हो जाए, (सुनन अबी दाऊद-4/139- अल्लामा अलबानी ने सही कहा है)

(3)  बालिग होनाः अल्लाह तआला ने धर्म के आदेश को मानना बालिग पुरूषों तथा महिलओं पर अनिवार्य किया है, कोई भी बालक या बालिका दीन के आदेश तथा आज्ञा पर अमल कर सकता है परन्तु बालिग होने के बाद दीन के आदेश पर अमल करना अनिवार्य हो जाता है यदि बालिग होने के बाद दीन के आज्ञा अनुसार जीवन नहीं बिताता तो वह पापी और गुनह्गार होगा जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने  स्पष्ट किया कि बच्चों पर धर्म के आज्ञा का पालन अनिवार्य नहीं है।
عَنْ عَائِشَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ: "رُفِعَ الْقَلَمُ عَنْ ثَلَاثَةٍ: عَنِ النَّائِمِ حَتَّى يَسْتَيْقِظَ، وَعَنِ الصَّغِيرِ حَتَّى يَكْبَرَ، وَعَنِ الْمَجْنُونِ حَتَّى يَعْقِلَ، (سنن ابن ماجة 1/658 وصححه الشيخ الألباني)

आईशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) से से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " तीन व्यक्तियों को अल्लाह तआला ने क्षमा किया है। नीन्द से सोनेवालों से यहां तक कि वह निन्द से उठ जाए, और बच्चों से यहां तक कि वह बालिग हो जाए, और पागल से यहां तक कि वह बुद्धि वाला हो जाए, (सुनन इब्नि माजा-4/139- अल्लामा अलबानी ने सही कहा है)
(4) आजाद होनाः  इसी तरह गुलाम पर हज फर्ज़ नही है,
(5) क्षमता होनाः किसी भी मुस्लिम की आर्थिक क्षमता के अनुसार उस पर हज फर्ज़ होता है जैसा अल्लाह तआला ने स्वयं ही कुरआन मजीद में कहा है।
" ولله على الناس حج البيت من استطاع إليه سبيلا"  ( آل عمران:97 )
" और अल्लाह का लोगों पर अधिकार है कि जो लोग अल्लाह के घर काबा जाने आने की क्षमता रखते हैं, तो वह हज के लिए काबा का यात्रा करें," (सूरः आले-इमरान,97)
क्षमता का अर्थ यह कि मानव के पास आर्थिक क्षमता हो और साथ साथ शारीरिक क्षमता भी हो यदि किसी के पास शारीरिक क्षमता है परन्तु आर्थिक क्षमता उप्लब्ध नहीं तो उस पर हज अनिवार्य नहीं और किसी के पास आर्थिक क्षमता उपलब्ध है परन्तु बुढ़ापे या अधिक बीमारी के कारण शारीरिक क्षमता नहीं तो अपनी ओर से किसी दुसरे मानव को जो अपनी ओर से हज कर चुका हो पूरा खर्च दे कर हज के लिए उसे भेजा जासकता है या उस शारीरिक क्षमताहीन मानव की ओर से उस के रिश्तेदार जो अपनी ओर से हज कर चुके हैं, हज भी कर सकता है,
हज की क्षमता होने की स्थिति में हज करने के लिए जल्द जानाः
जो लोग हज की क्षमता रखते हैं और हज का इरादा भी रखते हैं तो ऐसे लोगों को हज करने की ओर जलदी करना चाहिये, क्योंकि न जाने कब कौन सा नसीब उस के रासते में रोड़े अटका दे और हज जैसी महत्वपूर्ण इबादत से वंचित हो जाए। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने लोगों को जलदी हज करने पर उत्साहित करते हुए फरमाया।
 وعن بن عباس رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم :" من اراد الحج فليتعجل, فإنه قد يمرض وقد تضل الضالة وتعرض الحاجة " (مسند أحمد وحسنه الشيخ الألباني في الجامع الصغير وزيادته)
अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ी अल्लाह अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " जो हज करने का इच्छा रखे उसे चाहिये कि जलदी से हज कर ले, इस लिए कि वह बीमार हो सकता है, और उस के हज करने की क्षमता खत्म हो सकती है, और उसे कोई बहुत बड़ी आवश्यक्ता पड़ सकती है।" (मुस्नद अहमद- सही अल-जामिए- शैख अल-बानी )
हज की महत्वपूर्णता और फज़ीलतः अल्लाह तआला ने हज करने वालों के लिए बहुत पुण्य का वादा किया है, उन में से कुछ महत्वपूर्ण लाभ इस प्रकार हैं।
(1) हज करने वालों के गुनाहों और पापों को अल्लाह तअला माफ कर देता है, उस के गुनाहों को समाप्त कर देता है जैसा कि हदीस में वर्णन है कि जब अम्र बिन आस (रज़ी अल्लाहु अन्हु) कहते जब अल्लाह ने मेरे हृदय में इस्लाम का प्रेम डाल दिया तो मैं रसूलुल्लाह के पास आया और कहा कि आप हाथ बढाये, मैं इस्लाम स्वीकार करने का वचन देता हूँ तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया परन्तु मैं ने अपना हाथ खींच लिया तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, ऐ अम्र ! तुम्हें क्या हुआ ? तो मैं ने उत्तर दिया कि ऐ अल्लाह के रसूल, आप वचन दीजिये कि अल्लाह मेरे पिछले गुनाहों को क्षमा कर दे, तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, ऐ अम्र, क्या तुम्हें ज्ञान नहीं कि इस्लाम अपने से पूर्व पापों को मिटा देता है, और हिज्रत अपने से पूर्व गुनाहों को खत्म कर देता है और हज अपने से पहले पापों को मिटा देता है। (सही मुस्लिम )
(2)  हज को जाने वाला अल्लाह की हिफाज़त में रहता है, जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया,
عن أبي هريرة رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال : " ثَلاَثَةٌ في ضَمَانِ الله عزَّ وجلَّ: رَجُلٌ خَرَجَ إلى مَسْجِدٍ من مَسَاجِدِ الله عزَّ وجلَّ، ورَجُلٌ خَرَجَ غَازِياً في سبيل الله تعالى ، ورَجُلٌ خَرَجَ حَاجًّا " ( رواه أبو نعيم-  صحيح الجامع رقم : 3051)
अबू हुरौरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " तीन व्यक्ति अल्लाह तआला की सुरक्षा में रहते हैं, एक व्यक्ति जो अल्लाह के घरों में से किसी घर की ओर जाता है, और एक व्यक्ति जो अल्लाह के रास्ते में जिहाद के लिए निकलता है, और एक व्यक्ति जो हज करने जाता है।" (अबू नुऐम और सही अल-जामिअ, हदीस संख्याः 3051)
(3)  हज पर जाने वाले अल्लाह के मेहमान होते हैं, अल्लाह उनकी दुआऐं स्वीकार करते हैं। जैसा कि अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी अल्लाह अन्हुमा) रिवायत करते हैं,
عن ‏ابن عمر رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم ‏ ‏قال : " ‏الْغَازِي فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَالْحَاجُّ وَالْمُعْتَمِرُ وَفْدُ اللَّهِ دَعَاهُمْ فَأجَابُوهُ وَسَألُوهُ فَأعْطَاهُمْ  ( صحيح سنن ابن ماجه رقم : 2339)
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " अल्लाह तआला के रास्ते में जिहाद करने वाला और हज करने वाला और उमरा करने वाला अल्लाह का मेहमान होता है, अल्लाह ने उन्हें बुलाया तो वह लोग आये, और अल्लाह से दुआ करते हैं तो अल्लाह उनकी दुआ स्वीकार करता है।" ( सही सुनन इब्नि माजा, हदीस संख्याः 2339)
(4)  अल्लाह पर ईमान और उसके रसूल पर ईमान लाने के बाद और अल्लाह के रासते में जिहाद के बाद सब से अच्छा कर्म हज करना है जैसा कि हदीस शरीफ में आया है,
عن أبي هريرة رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم سئل أي العمل أفضل ؟ فقال:" ايمان بالله ورسوله, ثم قيل ماذا؟ قال: الجهاد في سبيل الله , قيل ثم ماذا؟ قال حج مبرور " (رواه البخاري ومسلم)
अबू हुरौरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से प्रश्न किया गया कि सब से उत्तम कर्म क्या है ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाना, फिर प्रश्न किया गया कि उस के बाद कौन सा कर्म सब से उत्तम है ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, अल्लाह के रासते में जिहाद, फिर प्रश्न किया गया कि उस के बाद कौन सा कर्म सब से उत्तम है ?, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, हज मब्रूर " (सही बुखारी,1/14 और सही मुस्लिम)
(5) यदि कोई हज करने वाले व्यक्ति का हज के यात्रा के बीच देहांत हो गया तो उस के लिए क़ियामत तक हज करने वाले का सवाब और पुण्य लिख दिया जाता है।
عن أبي هريرة رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم أنه قال : " من خرج حاجا فمات كتب له أجر الحاج إلى يوم القيامة ومن خرج معتمرا فمات كتب له أجر المعتمر إلى يوم القيامة " ( صحيح الترغيب والترهيب للشيخ الألباني)
अबू हुरौरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, "  जो व्यक्ति हज के लिए निकला और रासते में उसका देहांत हो गया तो क़ियामत तक हज करने वाले का सवाब लिख दिया जाता है, और जो व्यक्ति उमरा के लिए निकला और रासते में उसका देहांत हो गया तो क़ियामत तक उमरा करने वाले का सवाब लिख दिया जाता है, ( सही तरगीब व तरहीब शैख अलबानी)
(6)  हज मब्रूर का बदला जन्नत हैः हज मबरूर उस हज को कहा जाता है जिस में हाजी अल्लाह की नाफरमानी नही किया, किसी दुसरे हाजी को तनिक तक्लिफ नहीं दिया, रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत के अनुसार हज किया,  तब वह अल्लाह के पास स्वकारित होगा और जिस का हज अल्लाह के पास स्वकारित होगा, वह जन्नत में दाखिल होगा, जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमया,
وعن أبي هريرة رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم " الحج المبرور ليس له جزاء الا الجنة "  (متفق عليه)
अबू हुरौरा (रज़ी अल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, " अल्लाह के पास स्वीकारित हज का बदला केवल जन्नत है। )सही बुखारी और सही मुस्लिम)

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