एक मुस्लिम के लिए अल्लाह तआला के लिए नमाज़ पढ़ना अनिवार्य है, जो किसी भी बालिग, बुद्धी वाले मुसलमान से माफ नही है, सिवाए कुछ कारणो में जिस की अनुमति स्वंय अल्लाह तआला ने दी है, परन्तु मानव जीवन में बहुत सी परिस्थतियों से गुजरता है, कभी वह बिल्कुल तन्दुरुस्त रहता है तो कभी बीमार और रोग से पीड़ीत रहता है, प्रत्येक हालत में उसे अल्लाह की इबादत, नमाज़ पढ़ना है परन्तु उस के शारीरिक क्षमता के अनुसार उसे कुछ छूट दी, और रोगी और बीमार व्यक्ति कैसे वज़ू और नमाज़ के लिए पवित्रता प्राप्त करे, इसी विषय में कुछ बातें आप की सेवा में उपस्थित करने अवसर मिला है, अल्लाह से आशा है कि हम सब को सही मार्ग दर्शन करे और मृत्यु के बाद जन्नत में दाखिल करे,
(1) रोगी (बीमार व्यक्ति) पर अनिवार्य है कि पानी से पवित्रता प्राप्त करे तो छोटे नपाकी के कारण वज़ू वनाए, और बड़े नापाकी के कारण गुसल (स्नान) करे।
(2) यदि उसे पानी से पवित्रता प्राप्त करने की क्षमता नहीं, चाहे पानी न होने के कारण, या कमज़ोरी या रोग के ज़्यादा होने का डर, या बीमारी से मुक्ति पाने में विलम्भ होने का डर तो इन कारणों में तयम्मुम करे।
(3) तयम्मुम करने का तरीका यह है कि दोनों हाथों को पवित्र मिट्टी पर एक बार रखा जाए और दोनों हाथों को फूंका जाए और इन दोनों हाथों को पूरे चेहरे पर फेरा जाए फिर एक हथैली को दुसरे हथैली पर फेरा जाए।
(4) यदि वह स्वयं पवित्रता प्राप्त करने की क्षमता नहीं रखता तो कोई दुसरा व्यक्ति उसे वज़ू या तयम्मुम कराएगा।
(5) यदि पवित्रता प्राप्त करने वाले अंगों में ज़खम हो जिसे धोने से हानी का डर हो तो भीगे हाथ से उस पर मसह किया जाएगा, यदि भीगे हाथ से मसह करने से भी नुक्सान हो तो वह तयम्मुम करेगा।
(6) जब शरीर का कोई अंग टूटा हो और उस पर कपड़ा या प्लास्टर लगा हो तो भीगे हाथ से उस पर मसह करना काफी होगा, तयम्मुम की आवश्यकता नही।
(7) दीवार या कोई भी पवित्र वस्तु जिस पर धूल हो, उस से तयम्मुम करना उचित (जाइज़) है।
(8) जब धरती या दीवार या कोई भी पवित्र वस्तु जिस पर धूल हो और इन से तयम्मुम करना असंभव हो तो मिट्टी बरतन या रूमाल में रखा जाएगा और उस से तयम्मुम किया जायगा।
(9) जब किसी नमाज़ के लिए तयम्मुम किया और उसकी पवित्रता बाकी है तो दुसरी नमाज़ें भी पहले तयम्मुम से ही पढ़ सकता है, दुसरी बार तयम्मुम करने की ज़रूरत नहीं।
(10) बीमार व्यक्ति पर अनिवार्य (वाजिब) है कि अपने शरीर और कपड़े और स्थान (बिस्तर) को धो कर पवित्र रखे, या उसे बदल दे या अपवित्र जगह पर पवित्र बिस्तर लगा दे।
(11) यदि शरीर और कपड़े और स्थान (बिस्तर) को धो कर पवित्र रखने की क्षमता न हो तो जहाँ तक संभव हो इन को पवित्र रखे और इसी हालत में नमाज़ पढ़े और उन पर दोबारा नमाज़ नही है।
(12) बीमार व्यक्ति के लिए अनुचित है कि अपवित्रता के कारण नमाज़ को उस के असली समय से विलंभ करे, बल्कि संभव सिमा तक पवित्रता प्राप्त करने का प्रयास करे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें