शनिवार, 9 नवंबर 2013

मुहर्रम महीने का महत्व



सम्पूर्ण प्रशंसा का अल्लाह तआला ही योग्य है और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर अनगिनित दरूदु सलाम हो, अल्लाह तआला का अपने दासों पर बहुत बड़ा कृपा है कि उसने बन्दों की झोली को पुण्य से भरने के लिए विभिन्न  शुभ अवसर , महीने तथा तरीके उतपन्न किये, ताकि बन्दा ज़्यादा से ज़्यादा इन महीनों में नेक कर्म कर के अपने झोली को पुण्य से भर ले, उन महीनों में से एक मुहर्रम का महीना है।
मुहर्रम के महीने की सर्वश्रेष्टा निम्नलिखित वाक्यों से प्रमाणित होता है।
माहे मुहर्रम में रक्तपात, किसी पर अत्याचार करने का पाप दुग्ना हो जाता हैः
जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।
إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِ‌ عِندَ اللَّـهِ اثْنَا عَشَرَ‌ شَهْرً‌ا فِي كِتَابِ اللَّـهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْ‌ضَ مِنْهَا أَرْ‌بَعَةٌ حُرُ‌مٌ ۚ ذَٰلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ ۚ فَلَا تَظْلِمُوا فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ ۚ. (9- سورة التوبة: 36)
" वास्तविकता यह है कि महीनों की संख्या जब से अल्लाह ने आकाश और धरती की रचना की है, अल्लाह के लेख में बारह ही है और उन में से चार महीने आदर के (हराम) हैं। यही ठीक नियम है, अतः इन चार महीनों में अपने ऊपर ज़ुल्म (अत्याचार) न करो " ( 5- सूरः तौबा , 36)
 अबू बकरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने हज्ज के भाषण में फरमायाः  " निःसंदेह समय चक्कर लगा कर अपनी असली हालत में लौट आया है। जिस दिन अल्लाह ने आकाशों तथा धरती की रचना किया। वर्ष में बारा महीने होते हैं। उन में से चार आदर के (हराम) महीने हैं। तीन महीने मुसलसल हैं, जूल क़ादा, जूल हिज्जा, मुहर्रम और रजब मुज़र जो जुमादिस्सानी और शाअबान के बीच है......" ( सही बुखारीः 4662 और सही मुस्लिमः 1679)
अबू ज़र (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया कि रात का कौन सा भाग अच्छा है और कौन सा महीना सर्वशेष्ट है ? तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया। रात का अन्तिम भाग अच्छा है और मुहर्रम का महीना सर्वशेष्ट है।" ( सही मुस्लिमः 1163 )
रमज़ान महीने के बाद के मुहर्रम का महीना उत्तम है जैसा की एक हदीस से इस बात की पुष्टिकरण होती है। अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः " सब से अच्छा रोज़ा रमज़ान के बाद अल्लाह के महीने मुहर्रम का रोज़ा है और फर्ज़ नमाज़ के बाद सर्वशेष्ट नमाज़ रात की नमाज़ है।" ( सही मुस्लिमः 1163 )
मुहर्रम का रोज़ा रखने का कारणः
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस मुहर्रम के रोज़ा रखने का कारण भी बता दिया है। जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब मदीना हिज्रत कर के तशरीफ लाए तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पाया कि यहूद रोज़ा रखते हैं। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने प्रश्न किया, तुम लोग किस कारण आशूरा (10 मुहर्रम) के दिन रोज़ा रखते हो ? तो उन लोगों ने उत्तर दिया, यह एक महान दिन है जिस में अल्लाह ने मूसा (अलैहिस्साम) और उन की समुदाय को फिरऔन से मुक्ति दी और फिरऔन और उस की समुदाय को डुबा दिया। तो मूसा (अलैहिस्साम) ने अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए रोज़ा रखा। तो हम लोग भी इसी दिन रोज़ा रखते हैं। तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः " हम तुम लोगों से अधिक मूसा (अलैहिस्साम) के निकटतम और हक्दार हैं और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने रोज़ा रखा और इस रोज़े के रखने का आदेश दिया।" ( सही बुखारीः 4737 और सही मुस्लिमः 1130) 
मुहर्रम के रोज़े की फज़ीलतः
मुहर्रम के 10 वे दिन की अहमीयत बहुत ज़्यादा है और मूसा (अलैहिस्साम) ने रोज़ा रखा और उन के अनुयायियों ने भी रोज़ा रखा, यहाँ तक कि कुरैश (इस्लाम से पहले के अरब वासी) ने रोज़ा रखा और प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने रोज़ा रखा और लोगों को इस रोज़े के रखने पर प्रोत्साहित किया। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन है जिसे अबू क़ताता (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि एक व्यक्ति ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से आशूरा के रोज़े के प्रति प्रश्न क्या ?
وصيامُ يومِ عاشوراءَ ، أَحتسبُ على اللهِ أن يُكفِّرَ السنةَ التي قبلَه. (صحيح مسلم: 1162) "
 तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया।" आशूरा के रोज़े के प्रति मैं अल्लाह से पूरी आशा करता हूँ कि अगले एक वर्ष के पापों के मिटा देगा " ( सही मुस्लिमः 1162)
यह अल्लाह तआला का बहुत बड़ा कृपा हम पर है कि एक दिन के रोज़े के बदले एक वर्ष के पाप स्माप्त हो जाते हैं। प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) 10 मुहर्रम के रोज़े का खास ध्यान रखते थे।
ما رأيتُ النبيَّ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم يتحرَّى صيامَ يومٍ فضَّلَه على غيرِه إلا هذا اليومَ، يومَ عاشوراءَ، وهذا الشهرَ، يعني شهرَ رمضانَ. (صحيح البخاري: 2006)
इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को आशूरा के दिन का रोज़ा रखने का बहुत ख्याल करते हुए पाया और रमज़ान के रोज़े का ऐहतमाम करते हुए देखा । ( सही बुखारीः 2006)
आशूरा का रोज़ा किस किस तिथि को रखा जाए ?
(1) मुहर्रम की 9 और 10 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया " यदि मैं आने वाले वर्ष तक जीवित रहा तो 9 और 10 का रोज़ा रखूंगा " ( सही मुस्लिम)
(2)    मुहर्रम की 10 और 11 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया " यहूद की मुखाल्फत करो, 10 के साथ एक दिन पहले ( 9 तिथि) या एक दिन बाद (11) को रोज़ा रखो, (मुस्नद अहमद और इब्ने खुज़ैमाः 2095)
(3)   मुहर्रम की 9 , 10 और 11 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया " 10 के साथ एक दिन पहले ( 9 तिथि) और एक दिन बाद (11) को रोज़ा रखो, (अल-जामिअ अस्सगीरः 5068)

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

ज़िल्हिज्जा महीना का महत्व


 अल्लाह तआला का बहुत कृपा है कि अल्लाह ने अपने सृष्टि में से कुछ मख्लूक को कुछ पर महानता और महत्व दी है। अल्लाह तआला ने मानव को सारी मख्लूक से प्रतिष्ठित किया है। इसी प्रकार मानव में नबियों और रसूलों को प्रतिष्ठित किया है और वर्ष में बहुत से शुभ अवसर रखें हैं जिस में बन्दा अपने आप को अल्लाह की इबादत और उपासना में व्यस्त रख कर अत्यन्त पुण्य और नेकी कमा सकता है। इन शुभ अवसरों में एक ज़िल्हिज्जा के आरम्भिक दस दिन हैं। जिस का महत्व क़ुरआन एवं हदीस से प्रमाणित है। जैसा कि अल्लाह का प्रवचन है।
والفجر وليال عشر
सुबह की क़सम - और दस रातों की  (सूरहः फज्रः 2)
क़ुरआन के एक बहुत वरिष्ट विद्वान अल्लामा इब्ने कसीर ने इस आयत का अर्थ ज़िल्हिज्जा के आरम्भिक दस दिन ही लिया है। जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हु) से भी यही अर्थ प्रमाणित है। (सही बुखारी)
हदीस में भी ज़िल्हिज्जा के आरम्भिक दस दिनों की बहुत महत्व का विवरण हुआ है।
ما مِن أيَّامٍ العملُ الصَّالحُ فيها أحبُّ إلى اللَّهِ من هذِهِ الأيَّام يعني أيَّامَ العشرِ ، قالوا : يا رسولَ اللَّهِ ، ولا الجِهادُ في سبيلِ اللَّهِ ؟ قالَ : ولا الجِهادُ في سبيلِ اللَّهِ ، إلَّا رَجلٌ خرجَ بنفسِهِ ومالِهِ ، فلم يرجِعْ من ذلِكَ بشيءٍ – (عبدالله بن عباس -المصدر: صحيح أبي داودرقم الحديث: 2438)
इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः इन दस दिनों में नेक कार्य करना अल्लाह के पास बहुत प्रिय है, लोगों ने प्रश्न कियाः अल्लाह के रास्ते में जिहाद से उत्तम है, तो आप ने फरमायाः अल्लाह के रास्ते में जिहाद से उत्तम है, सिवाए कोई व्यक्ति अपने प्राण और धनदौलत के साथ अल्लाह के रास्ते में निकला और फिर उसका धनदौलत खत्म हो गया और वह भी शहीद हो गया। ( सही अबी दाऊदः 2438 )
इब्ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः  अल्लाह के पास सब से महान दिन यही ज़िल्हिज्जा के आरम्भिक दस दिन हैं और नेक कर्म करना इन दस दिनों में अल्लाहु को बहुत ज़्यादा प्रिय है। इस लिए तुम लोग ज़्यादा से ज़्यादा इन दिनों में लाइलाहा इल्लल्लाहु पढ़ो, और ज़्यादा से ज़्यादा इन दिनों में अल्लाह की तक्बीर बयान करो, और ज़्यादा से ज़्यादा इन दिनों में अल्लाह की तारीफ और प्रशंसा बयान करो। (मुस्नद अहमदः 131/2)
सईद बिन जुबैर (रहिमुल्लाह अलैह) के प्रति वर्णन है कि ज़िल्हिज्जा के आरम्भिक दस दिनों में वह अल्लाह की इबादत में अपनी क्षमता से अधिक व्यस्त हो जाते थे।
इब्ने हजर (रहिमुल्लाह अलैह) अपनी बहुचरचित पुस्तक फत्हुल्बारी में कहते हैः  ज़िल्हिज्जा के आरम्भिक दस दिनों की प्रतिष्टता का कारण यही समझ में आता है कि इस में सर्व महान इबादतें एकत्र हो गईं हैं। जैसे कि नमाज़ें, रोज़ा , सद्क़ा व खैरात एवं हज्ज और यह सब इबादतें केवल इन दस दिनों के अलावा में जमा नहीं होते हैं।
इन दिनों में निम्न इबादतें बहुत ज़्यादा करना चाहिये।
नमाज़ः  समय से पहले ही नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद की ओर निकलना चाहिये, ज़्यादा से ज़्यादा नफली नमाज़ें पढ़ना चाहिये, क्योंकि नफली नमाज़ें और ज़्यादा सज्दा अधिक सवाब प्राप्त करने का कारण बनता है। सौबान (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फरमाते हुए सुनाः अल्लाह के लिए तुम ज़्यादा से ज़्यादा सज्दा करो, बेशक जब तुम अल्लाह के लिए एक सज्दा करते हो तो अल्लाह तुम्हारा एक स्थान ऊंचा करता है और तुम्हार एक पाप मिटाता है।   ( मुस्लिमः 488)
यह हदीस आम है जिस का अर्थ यही होता है कि यह पुण्य प्रत्येक व्यक्ति को हरएक समय प्राप्त होगा जो जितना अधिक सज्दा करेगा।
रोज़ाः    नेक कर्मों में रोज़ा का एक अलग उच्च स्थान है जो इन दस दिनों में रखा जाता है। जैसा कि हदीस में वर्णन आया है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ज़िल्हिज्जा के नौ दिनों का रोज़ा रखते थे। जैसा कि
أن رسولَ اللَّهِ صلَّى اللَّهُ علَيهِ وسلَّمَ كانَ يَصومُ تِسعًا مِن ذي الحجَّةِ ، ويومَ عاشوراءَ ، وثلاثةَ أيَّامٍ من كلِّ شَهْرٍ ، أوَّلَ اثنينِ منَ الشَّهرِ وخَميسينِ.
(صحيح النسائي للشيخ الألباني: 2416)
बेशक रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ज़िल्हिज्जा के आरम्भिक नौ दिनों और आशूरा के दिन और हर महीने में तीन दिन और हर महीने का पहला सोमवार और दो शुक्रवार का रोज़ा रखते थे। (सही अन्नसईः शैख अल्बानीः 2416)
इसी प्रकार नौ ज़िल्हिज्जा अर्थात अरफा के दिन का रोज़ा गैर हाजियों के लिए रखना ज़्यादा अच्छा है। जैसाकि हदीस में अरफा के दिन के सवाब के प्रति विवरण हुआ है।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः मैं आशा रखता हूँ कि अल्लाह तआला अरफा के रोज़ा के कारण एक वर्ष पीछे और एक वर्ष आगे के पापों को क्षमा कर देगा। (सही तिर्मिज़ीः  749)
अल्लाहु अक्बर व ला इलाहा इल्लल्लाह  व लिल्लाहिल हम्द ज़्यादा से ज़्यादा कहनाः  जैसा कि इब्ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः अल्लाह के पास सब से महान दिन यही ज़िल्हिज्जा के आरम्भिक दस दिन हैं और नेक कर्म करना इन दस दिनों में अल्लाहु को ज़्यादा प्रिय है। इस लिए तुम लोग ज़्यादा से ज़्यादा इन दिनों में लाइलाहा इल्लल्लाहु पढ़ो, और ज़्यादा से ज़्यादा इन दिनों में अल्लाह की तक्बीर बयान करो, और ज़्यादा से ज़्यादा इन दिनों में अल्लाह की तारीफ और प्रशंसा बयान करो। (मुस्नद अहमदः 131/2)
जैसा कि इमाम बुखारी ने फरमायाः इब्ने उमर और अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) जब ज़िल्हिज्जा के आरम्भिक दस दिनों में बाजार जाते तो रास्ते में तक्बीर कहते, बाजार में तक्बीर कहते और लोग उन की आवाज सुन कर तक्बीर कहते थे। और उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) जब मिना में अपने खैमे में होते थे तो वह तक्बीर पुकारते थे। तो मस्जिद वाले उनकी तक्बीर सुन कर तक्बीर कहते और बाजार में व्यस्त लोग भी तक्बीर कहते यहाँ तक तक्बीर की आवाज से बाजार गोंज उठती।
तक्बीर के शब्द यह हैं।  अल्लाहु अक्बर , अल्लाहु अक्बर , ला इलाहा इल्लल्लाह  वल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर ,व लिल्लाहिल हम्द,
क़ुरबानी करनाः
क़ुरबानी का दिन अल्लाह के पास बहुत ही महानतम है। उसकी  बहुत ज़्यादा महत्व है। जैसा कि इब्ने क़य्यिम (रहिमहुल्लाह अलैहि) कहते हैं कि अल्लाह के पास सब से उत्तम दिन क़ुरबानी का दिन है। और वही बड़े हज्ज का दिन है।
إنَّ أعظمَ الأيَّامِ عندَ اللَّهِ تبارَكَ وتعالَى يومُ النَّحرِ ثمَّ يومُ القُرّ.  (صحيح أبي داود:  1765)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः  सब से महानतम दिन अल्लाह तबारक व तआला के पास क़ुरबानी का दिन है फिर मिना में ठहरने का दिन है।  (सही अबी दाऊदः 1765)
इन कारणों के कारण अल्लाह तबारक व तआला के पास यह ज़िल्हिज्जा के आरम्भिक दस दिन अत्यन्त प्रियतम और महानतम हैं जिस में महत्वपूर्ण इबादतें इकट्ठा हो गई हैं।
इस लिए हमें इस शुभ अवसर से अत्यन्त लाभ उठाना चाहिये और ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह की इबादत कर के अपने दामन को नेकियों से भरने की भर पूर प्रयास और प्रयत्न करना चाहिये। अल्लाह हमारे नेक कार्य तथा नेक कर्मों को स्वीकार करे। आमीन.............

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

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