बुधवार, 21 दिसंबर 2011

रोगी व्यक्तियों के लिए नमाज़ पढ़ने का तरीका



अल्लाह तआला का बड़ा कृपा है कि उसने मानव पर वही चीज़ अनिवार्य की जो बन्दों की क्षमता और शक्ति में हो, और शक्ति से ज़्यादा हो तो उस को सरल और आसान कर दिया ताकि इन्सान उस कार्य और इबादत को कर सके और मानव के शक्ति से अधिक है और इन्सान उसे कार्य के करने की क्षमता नहीं रखता तो अल्लाह तआला ने उस इबादत और कार्य को क्षमा कर दिया है, उसी इबादतों में नमाज़ एक बहुत ही महत्वपूर्ण इबादत है जो एक बालिग़, बुद्धि वाला, शक्ति शाली मुसलमान के लिए दिन तथा रात में पांच बार पढ़ना अनिवार्य है, जो मुसलमान शक्ति और क्षमता होने के बावजूद नमाज नहीं पढ़ते, ऐसे मुसलमानों को गम्भीर पुर्वक विचार करना चाहिये कि 
यदि हम नमाज़ नहीं पढ़ते तो मृत्यु के बाद हमारा ठेकाना क्या होगा,? 
हमें अल्लाह तआला नमाज़ न पढ़ने के अपराध में किया सज़ा देगा,?
क्यों कि अल्लाह तआला ने बीमार और रोगी व्यक्तियों की क्षमता के कारण उनके लिए नमाज़ को कुछ सरल और आसान कर दिया है। जब एक रोगी और बीमार से पीडीत व्यक्ति के लिए नमाज़ माफ नहीं बल्कि उनके लिए अल्लाह ने कुछ छुट दी है तो तन्दुरुस्त और स्वस्थ व्यक्ति से नमाज़ कैसे माफ और क्षमा हो सकता है।
 
(1)  बीमार व्यक्ति पर अनिवार्य है कि वह फर्ज़ नमाज़ खड़े होकर या झुक कर या दीवार या लाठी पर टेक लगाकर ज़रूरत और क्षमता के अनुसार पढ़े।

(2) यदि खड़े होकर पढ़ने की शक्ति न हो तो बैठ कर नमाज़ पढ़े, बेहतर है कि खड़े होने या रकूअ की जगह पलथी मार कर नमाज़ पढ़े।

(3) यदि बैठ कर नमाज़ पढ़ने की शक्ति नहीं हो तो दायें करवट लेट कर क़िब्ला की ओर रुख कर के पढ़े, यदि क़िब्ला की ओर रुख करना असंभव हो तो जिस तरह संभव हो नमाज़ पढ़ ले और उसकी नमाज़ सही होगी और उसे नमाज़ दोहराना नही होगा।

(4) यदि दायें करवट लेट कर पढ़ने की शक्ति न हो तो चित लेट कर क़िब्ला की ओर दोनों पैर करके पढ़े और उत्तम है कि अपने सर को थोड़ा क़िब्ला की ओर करे यदि शक्ति न हो तो जिस तरह संभव हो नमाज़ पढ़ ले और उसे नमाज़ दोहराना नही है।

(5) यदि बीमार व्यक्ति रूकूअ या सज्दा करने की क्षमता नहीं रखता तो अपने सर के इशारे से नमाज़ पढ़ेगा और सज्दा रूकूअ से कम करेगा।

(6) यदि बीमार व्यक्ति अपने सर से इशारे करने की क्षमता नहीं रखता तो अपने हृदय से नमाज़ पढ़ेगा और तक्बीर कहेगा और दुआ पढ़ेगा और क़ियाम, रूकूअ, सज्दा और बैठने की नियत करेगा और प्रत्येक दुआ उस के स्थान पर पढ़ेगा। जो जैसा नियत करेगा उसी के अनुसार उस को बदला (पुण्य) मिलेगा।

(7) यदि बीमार व्यक्ति के लिए हर नमाज़ को उस के असली समय में पढ़ना कठिन हो तो ज़ोहर और अस्र को एक साथ पढ़ेगा और मग़रिब तथा ईशा को एक साथ पढ़ेगा या दोनों को प्राथ्मिक समय में पढ़ेगा या विलंभ करके पढ़ेगा, मगर फज्र को दुसरे किसी नमाज़ के साथ एकठ्ठा करके नही पढ़ेगा।

(8) बीमार व्यक्ति नमाज़ क़स़्र कर के नही पढ़ेगा यदि बीमार व्यक्ति यात्री हो तो क़स़्र कर सकता है।

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

मरयम (अलैहिस्सलाम) के जीवन की कुछ झल्कियां


मरयम (अलैहिस्सलाम) के जीवन की कुछ झल्कियां

मर्यम (अलैहस्सलाम) की माता बहुत ही इबादत गुजार महिला थीं, उन्हों ने अल्लाह से मन्नत मांगी कि यदि अल्लाह ने उन्हें बच्चा दिया तो वह अपने बच्चे को अल्लाह के लिए धर्म की सेवा के लिए उत्सर्ग कर देगी, क्यों कि मर्यम की माता पति के साथ रहने के बावजूद गर्भवति नही हो रही थीं, अल्लाह का करना हुआ कि उनकी माता गर्भवती हो गई और जब एक बच्ची (मरयम) को जन्म दिया तो बहुत निराश हो कर कहा, जैसा कि पवित्र कुरआन ने उन का किस्सा बयान हुआ है " ऐ अल्लाह मैं ने एक युवती को जन्म दिया और बालिका बालक की तरह नही हो सकती, परन्तु फिर अल्लाह से दुआ करते हुए कहा " और मैं ने उस का नाम मरयम रखा है और ऐ अल्लाह, मैं उसे और उसकी संतान (वंश) को शैतान मरदूद की परेशानियों से तेरे शरण में देती हूँ " (सूराः आले इमरानः 36)
अल्लाह तआला ने इस नेक महिला की दुआ को स्वीकारित कर लिया और मर्यम
और उस के वंश को शैतान के परेशानियों से बचाया जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने स्पष्ट कर दिया है, अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णित है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " जब भी कोई बच्चा जन्म लेता है तो शैतान जन्म लेते समय बच्चे को छूता है तो शैतान के छूने के कारण बच्चा चिल्लाता है, सिवाए मर्यम और उस का बेटा " ( सही बुखारीः हदीस क्रमांक, 4548)
जब मर्यम (अलैहस्सलाम)
  का जन्म हुआ तो मन्नत के अनुसार, उनकी माता ने मर्यम (अलैहस्सलाम)  को पवित्र मस्जिद ( इस्राईल में इस समय मौजूद है) में ले जा कर रख दिया, मस्जिद के सब जिम्मेदार इस बालिका के पालन पोशन के लिए बहुत रूचक थे, प्रत्येक व्यक्ति चाहता था कि वह इस बालिका के पालन पोषन की जिम्मेदार ले। फिर उन लोगों ने यह निर्णय किया कि इस बालिका के पालन पोशन की जिम्मेदारी के लिए चिठी (कुरआ) डाली जाए, और जिस के नाम की चिठी निकलेगी वही मरयम के पालन पोषन की जिम्मेदारी उठाऐगा तो मर्यम (अलैहस्सलाम) के मौसा जकरीया (अलैहस्सलाम) का नाम निकला जो कि उस समय उस समुदाय के नबी थे। जैसा कि अल्लाह तआला ने इस किस्से को बयान फरमाया है। " ऐ नबी, ये छिपी खबरें हैं जो हम तुमको प्रकाशन के द्वारा बता रहें हैं, अन्यथा तुम उस समय वहाँ उपस्थित न थे जब वह लोग (उपासनाग्रह के सेवक) यह फैसला करने के लिए कि मरयम का सरपरस्त कौन हो, अपनी अपनी क़लम फेंक रहे थे, और न तुम उस समय उपस्थित थे जब उन के बीच झगड़ा खड़ा हो गया था " (सूराः आले इमरानः 44)
जकरीया (अलैहस्सलाम) मरयम का बहुत ज़्यादा ध्यान
और खयाल रखते थे, और मरयम (अलैहस्सलाम) केवल अल्लाह की उपासना तथा इबादत में लगी रहती थीं, मर्यम )अलैहस्सलाम( बहुत नेक और पवित्र स्भाव की बालिका थीं, अल्लाह तआला की ओर से उन्हें प्रत्येक प्रकार के फल फोरूट खाने के लिए दिये जाते थे। जैसा कि पवित्र ग्रन्थ कुरआन में मर्यम (अलैहस्सलाम) के किस्से के प्रति आया है, " अन्ततः उसके रब ने उस लड़की को खुशी से स्वीकार कर लिया, उसे बड़ी अच्छी लड़की बना कर उठाया और जकरीया को उसका सरपरस्त बना दिया। जकरीया जब भी उसके पास मेहराब (इबादतगाह) में जाते तो उसके पास कुछ न कुछ खाने-पीने की चीज़ें पाते, पुछते, मरयम ! यह तेरे पास कहाँ से आया ? तो वह उत्तर देती, अल्लाह के पास से आया है, अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब रोज़ी देता है," (सूराः आले इमरानः 37)
मर्यम (अलैहस्सलाम) के
पवित्रता के कारण अल्लाह ने उसे एक महान घटना में पड़ित किया और वह स्थान दिया जो किसी महिला को आज तक प्राप्त न हो सका, फरिशते ने मर्यम (अलैहस्सलाम) को नेक, पवित्र और सुन्दर व्यवहार वाली होने की गवाही दी, जैसा कि कुरआन शरीफ में आया है,  " फिर वह समय आया जब मरयम से फरिश्ते ने आ कर कहा, ऐ मरयम ! अल्लाह ने तुझे चुना और पवित्रता प्रदान की, और सारे संसार की स्त्रियों में तुझे आगे रखकर अपनी सेवा के लिए चुन लिया। ऐ मरयम ! अपने रब की आज्ञाकारी बनकर रह, उसके आगे सजदा कर और जो बन्दे उसके आगे झुकने वाले हैं, उनके साथ तू भी झुक जा।" (सूराः आले इमरानः 43)
और
फरिशता मानव रूप में मर्यम (अलैहस्सलाम) के पास आये तो मर्यम (अलैहस्सलाम) बहुत डर गईं और अल्लाह का वास्ता देने लगी तो फरिशते ने उत्तर दिया तुम डरो मत, हम मानव नही , हम फरिशते है, अल्लाह के आदेश से तुम्हें एक लड़के की शुभ खबर देने आये हैं, उस पर मर्यम (अलैहस्सलाम) बहुत आश्चर्य होई, जैसा कि पवित्र कुरआन में मर्यम (अलैहस्सलाम) और फरिशते के बीच होने वाली बात चीत इस प्रकार व्यक्त किया है, " और ऐ नबी ! इस किताब में मरयम का हाल बयान करो, जब कि वह अपने लोगों से अलग हो कर पुर्व की ओर ( इबादतगाह) एकान्तवासी हो गई थी, और परदा डाल कर उसने छिप बैठी थी, इस हालत में हमने उसके पास अपनी एक आत्मा ( फरिशता) को भेजा और वह उसके सामने एक पूरे इनसान के रुप में प्रकट हो गया, मरयम यकायक कहने लगी, कि यदि तू कोई ईश्वर से डरने वाला आदमी है, तो मैं तुझ से करूणामय ईश्वर की पनाह माँगती हूँ, उसने कहा, मैं तो तेरे रब का भेजा हुआ फरिश्ता हूँ, और इसलिए भेजा गया हूँ कि तुझे एक पवित्र लड़का दूँ, मरयम ने कहा, मेरे यहाँ केसे लड़का होंगा जब कि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं है, और मैं कोई बदकार औरत नहीं हूँ, फरिश्ते ने कहा, ऐसा ही होगा, तेरे रब कहता है कि ऐसा करना मेरे लिए बहुत आसान है और हम यह इस लिए करेंगे कि लड़के को लोगों के लिए एक निशानी बनाऐ और अपनी ओर से एक दयालुता। और यह काम होकर रहना है। मरयम को उस बच्चे का गर्भ रह गया, और वह उस गर्भ को लिए हुए एक दूर के स्थान पर चली गई, फिर प्रसव- पीड़ा ने उसे एक खजूर के पेड़ के नीचे पहुंचा दिया, वह कहने लगी, क्या ही अच्छा होता कि मैं इससे पहले ही मर जाती, और मेरा नामो-निशान न रहता, फरिश्ते ने पाँयती से उसको पुकार कहा, गम न कर, तेरे रब ने तेरे निचे एक स्त्रोत बहा दिया है, और तू तनिक इस पेड़ के तने को हिला, तेरे ऊपर रस भरी ताजा खजूरें टपक पड़ेंगी, अतः तू खा और पी और अपनी आँखे ठण्डी कर, फिर अगर कोई आदमी तुझे दिखाई दे तो उससे कह दे, कि मैं ने करूणामय (अल्लाह) के लिए रोज़े की मन्नत मानी है, इस लिए आज मैं किसी से न बोलूँगी, फिर वह उस बच्चे को लिए हुए अपनी क़ौम में आई, लोग कहने लगे, ऐ मरयम ! यह तू ने बड़ा पाप कर डाला, हारून की बहन , न तेरा बाप कोई बुरा आदमी था और न तेरी माँ ही कोई बदकार औरत थीं, मरयम ने बच्चे की ओर इशारा कर दिया, लोगों ने कहा, हम इससे क्या बात करें जो अभी जन्म लिया हुआ बच्चा है, बच्चा बोल उठा, मैं अल्लाह का बन्दा हूँ, उसने मुझे किताब दी, और नबी बनाया, और बरकतवाला किया जहाँ भी रहूँ, और नमाज़ और ज़कात की पाबन्दी का हुक्म दिया, जब तक मैं ज़िन्दा रहूँ, और अपनी माँ का हक अदा करनेवाला बनाया, और मुझ को ज़ालिम और अत्याचारी नहीं बनाया, और सलाम है मुझ पर जबकि मैं पैदा हुआ और जबकि मैं मरूँ और जबकि मैं ज़िन्दा कर के उठाया जाऊँ, यह है मरयम का बेटा ईसा और यह है उस के बारे में वह सच्ची बात जिस में लोग शक रक रहे हैं, (सूराः मरयमः 34)
अल्लाह तआला के कृपा और आदेश से जब मर्यम (अलैहस्सलाम) को एक बहुत
महान पुत्र मिला, उस समय मर्यम (अलैहस्सलाम) बहुत दुखी और परेशान थीं कि समाज के लोग उस पर आरोप लगाऐंगे, उस की बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा, कि यह बच्चा बिना बाप के अल्लाह तआला के आदेश से जन्म लिया है, तो अल्लाह तआला ने चमत्कार करते हुए उस नीव जन्म शीशु को बोलने की क्षमता प्रदान की और अपने माता के निर्दोश और पवित्र होने की घोषणा और भविष्य में अल्लाह का नबी होने का इलान किया जैसा कि मरयम (अलैहस्सलाम) का किस्सा अभी अभी बयान हुआ है।

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

बीमार व्यक्तियों के वज़ू या तयम्मुम करने का तरिका


 एक मुस्लिम के लिए अल्लाह तआला के लिए नमाज़ पढ़ना अनिवार्य है, जो किसी भी बालिग, बुद्धी वाले मुसलमान से माफ नही है, सिवाए कुछ कारणो में जिस की अनुमति स्वंय अल्लाह तआला ने दी है, परन्तु मानव जीवन में बहुत सी परिस्थतियों से गुजरता है, कभी वह बिल्कुल तन्दुरुस्त रहता है तो कभी बीमार और रोग से पीड़ीत रहता है, प्रत्येक हालत में उसे अल्लाह की इबादत, नमाज़ पढ़ना है परन्तु उस के शारीरिक क्षमता के अनुसार उसे कुछ छूट दी, और रोगी और बीमार व्यक्ति कैसे वज़ू और नमाज़ के लिए पवित्रता प्राप्त करे, इसी विषय में कुछ बातें आप की सेवा में उपस्थित करने अवसर मिला है, अल्लाह से आशा है कि हम सब को सही मार्ग दर्शन करे और मृत्यु के बाद जन्नत में दाखिल करे,

(1)  रोगी (बीमार व्यक्ति) पर अनिवार्य है कि पानी से पवित्रता प्राप्त करे तो छोटे नपाकी के कारण वज़ू वनाए, और बड़े नापाकी के कारण गुसल (स्नान) करे।

(2)  यदि उसे पानी से पवित्रता प्राप्त करने की क्षमता नहीं, चाहे पानी न होने के कारण, या कमज़ोरी या रोग के ज़्यादा होने का डर, या बीमारी से मुक्ति पाने में विलम्भ होने का डर तो इन कारणों में तयम्मुम करे।

(3)  तयम्मुम करने का तरीका यह है कि दोनों हाथों को पवित्र मिट्टी पर एक बार रखा जाए और दोनों हाथों को फूंका जाए और इन दोनों हाथों को पूरे चेहरे पर फेरा जाए फिर एक हथैली को दुसरे हथैली पर फेरा जाए।

(4)  यदि वह स्वयं पवित्रता प्राप्त करने की क्षमता नहीं रखता तो कोई दुसरा व्यक्ति उसे वज़ू या तयम्मुम कराएगा।

(5)  यदि पवित्रता प्राप्त करने वाले अंगों में ज़खम हो जिसे धोने से हानी का डर हो तो भीगे हाथ से उस पर मसह किया जाएगा, यदि भीगे हाथ से मसह करने से भी नुक्सान हो तो वह तयम्मुम करेगा।

(6)  जब शरीर का कोई अंग टूटा हो और उस पर कपड़ा या प्लास्टर लगा हो तो भीगे हाथ से उस पर मसह करना काफी होगा, तयम्मुम की आवश्यकता नही।

(7)  दीवार या कोई भी पवित्र वस्तु जिस पर धूल हो, उस से तयम्मुम करना उचित (जाइज़) है।

(8)  जब धरती या दीवार या कोई भी पवित्र वस्तु जिस पर धूल हो और इन से तयम्मुम करना असंभव हो तो मिट्टी बरतन या रूमाल में रखा जाएगा और उस से तयम्मुम किया जायगा।

(9)  जब किसी नमाज़ के लिए तयम्मुम किया और उसकी पवित्रता बाकी है तो दुसरी नमाज़ें भी पहले तयम्मुम से ही पढ़ सकता है, दुसरी बार तयम्मुम करने की ज़रूरत नहीं।

(10) बीमार व्यक्ति पर अनिवार्य (वाजिब) है कि अपने शरीर और कपड़े और स्थान (बिस्तर) को धो कर पवित्र रखे, या उसे बदल दे या अपवित्र जगह पर पवित्र बिस्तर लगा दे।

(11)  यदि शरीर और कपड़े और स्थान (बिस्तर) को धो कर पवित्र रखने की क्षमता न हो तो जहाँ तक संभव हो इन को पवित्र रखे और इसी हालत में नमाज़ पढ़े और उन पर दोबारा नमाज़ नही है।

(12)  बीमार व्यक्ति के लिए अनुचित है कि अपवित्रता के कारण नमाज़ को उस के असली समय से विलंभ करे, बल्कि संभव सिमा तक पवित्रता प्राप्त करने का प्रयास करे।

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

माता पिता पर संतान के अधिकार


माता पिता पर संतान के अधिकार.

विवाह के साथ पुरूष और महिला से मिलकर एक परिवार का निर्माण होता है और जब दोनो के प्रेम का फल बच्चे के रूप में संसार में जन्म लेता है तो परिवार की नीव अधिक ठोस हो जाती है। इसी लिए तो अल्लाह तआला ने एक सुन्दर और आदर्श परिवार के निर्माण के लिए परिवार के प्रत्येक व्यक्ति पर एक दुसरे के लिए कुछ ह़ुक़ूक़ और अधिकार अनिवार्य किये हैं ताकि परिवार का प्रत्येक व्यक्ति अपने ऊपर आने वाले अधिकार को सही तरीके से अदा कर के अल्लाह के पास अच्छा बदला प्राप्त करे, इसी लिए अल्लाह तआला ने बच्चों पर माता-पिता के कुछ अधिकार और हुक़ूक अनिवार्य किया है, क्यों की माता पिता ने बच्चों की पालन पौशक में बहुत परेशानी और कष्ट उठाया है और इसी प्रकार बच्चों का माता-पिता पर कुछ हुक़ूक़ अनिवार्य किया है, जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अब्दुल्लाह बिन अम्र (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से फरमाया " और तुम्हारे ऊपर तुम्हारे संतान का हक है। " ( सही मुस्लिम, हदीस क्रमांक.1159)
ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने ऊपर आने वाले ह़कूक़ को सही तरीक़े से अदा करे और दुनिया और आखिरत (पारलोक) में बहुत से लाभ प्राप्त करे हैं।
तो बच्चों का अपने माता पिता पर कुछ ह़ुक़ूक़ जन्म लेने से पहले होता है और कुछ ह़ुक़ूक़ जन्म लेने के बाद होता है,
बच्चों का अपने माता पिता पर जन्म लेने से पहले के ह़ुक़ूक़ः
(1)  मानव विवाह करने से पहले अपने जीवन साथी के लिए अच्छे व्यवहार वाली, सुन्दर आचरण वाली और दीनदार महिला का चयन करे, क्यों कि बच्चों की पालन पौशक के लिए अच्छे स्वभाव वाली सुशील महिला का होना ज़रुरी है जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पत्नी के चयन करने के प्रति उत्साहित किया है। अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " महिला से विवाह चार कारणों से की जाती है, महिला के धनदौलत, और ऊंचे परिवार और अतिसुन्दरता और दीनदारी के कारण विवाह किया जाता है तो तुम दीनदार महिला से विवाह कर के सफलता प्राप्त करो, चाहे तुम्हें उस दीनदार महिला को तलाशने में बहुत कठिनाई उठानी पड़े " (सही बुखारी, हदीस क्रमांक.5090)
क्योंकि माता-पिता जेसे होते हैं, बच्चा ज़्यादा तर वेसे होते हैं, जैसा कि उमर बिन खत्ताब (रज़ी अल्लाहु अन्हु) ने फरमाया " निः संदेह खून का असर होता है, अपने संतान के लिए अच्छे खून का चयन करो। "
(2) संतान दुनिया की सब से उत्तम और सब से बहुमूल्य दौलत है, इस लिए अच्छे और सफलपूर्वक, नेक और स्वस्थ बच्चे की दुआ अल्लाह से बार बार करना चाहिये,
इस का आरंभ पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने से पहले ही करना चाहिये जैसा कि (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया जब तुम में कोई अपनी पत्नी के पास आये तो यह दुआ पढ़े। अब्दुल्लाह इब्नि अब्बास (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " जब तुम में से कोई अपने पत्नी के पास शारीरिक संबंध बनाने के लिए आये तो कहे, बिस्मिल्लाहे, अल्लाहुम्मा जन्निब्ना शैतान व जन्निबिशैतान मा रज़क्तना, यदि अल्लाह ने इन दोनो के मिलन से बच्चा लिखा है तो बच्चा शैतान के कष्ठों से सुरक्षित रहेगा।" (सही बुखारी, हदीस क्रमांक.7396)
अल्लाह के नबी और रसूल (अलैहिस् सलातु वस्सलाम) भी अल्लाह से नेक संतान की दुआ करते थे, जैसा जकर्या (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह से नेक बच्चे से दुआ किया. " ऐ मालिक! अपने कृपा से मुझे नेक और अच्छी वंश प्रदान कर, बैशक तु ही दुआओं को स्वीकार करता है।"
और जब बच्चा जन्म ले ले तो भी उस के स्वस्थ और नेक और दुनिया में सफलपूर्वक होने के लिए भी दुआ करना चाहिये क्यों कि माता पिता की दुआ बच्चों के हक में अल्लाह तआला स्वीकार करता है।
कुच्छ ह़ुक़ूक़ ऐसे हैं जो बच्चे के जन्म लेने के बाद माता पिता पर अनिवार्य होता है।
(1)   बच्चे के जन्म लेने के बाद उसे अपनी संतान माने, पत्नी उसे उस के पिता से जोड़े, पत्नी से झकड़ा और निबाह न होने के कारण और पत्नी को बदनाम और नुकसान पहुंचाने के लिए बच्चे को अपने वंश में से होने का इनकार नही करे, या पत्नी बच्चा को अपने पास रखने के लिए और पति से तलाक या एलग होने के कारण पत्नी बच्चे के पिता का इन्कार कर दे और उसे छुपाए। सब पाप के कार्य में से होगा बल्कि बच्चे को उस के वास्तविक माता-पिता से जोड़ा जाए। बच्चे के कारण न माँ को तक्लीफ दी जाए और न ही बाप को नुक्सान पहुंचाया जाए। जैसा कि अल्लाह का आदेश है, " न तो माँ को इस कारण से तकलीफ में डाला जाए कि बच्चा उसका है, और न ही बाप को तंग किया जाऐ कि बच्चा उसका है।" ( अल-बकराः 233)  
(2)  बच्चे का सुन्दर नाम रखे, अपने बच्चे के लिए उस नाम का चयन करे जो अच्छा अर्थ को प्रकट करता हो। वह नाम रखे जो अल्लाह को बहुत प्रिय हो और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को प्रिय है, जैसा कि हदीस में आया है, अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " अल्लाह को सब से ज़्यादा पसन्द नामों में अब्दुल्लाह और अब्दुर्रहमान है " ( सही मुस्लिम, हदीस क्रमांक.7396)
इस हदीस से ज्ञान प्राप्त हुआ कि अल्लाह को यह नाम अधिक प्रिय है, इसी प्रकार अब्द को अल्लाह के दुसरे नामों और सिफात के साथ मिला कर भी रखा जा सकता जैसे कि अब्दुर्रहीम, अब्दुल्गफ्फार आदि।
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) भी कुछ नाम पसन्द फरमाते थे जिसे रखना अच्छा है जैसा कि हदीस में आता है,
जाबिर बिन अब्दुल्लाह कहते हैं कि हमारे परिचय में एक आदमी को एक लड़का जन्म लिया तो लोगों ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से कहा कि, हम उस का क्या नाम रखें, तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया कि तुम लोग उस का नाम मेरे पास प्रिय नाम हमज़ा बिन अबदुल्मुत्तलिब के नाम पर रखो, और इमाम अल्बानी रहिमहुल्लाह कहते हैं कि रसूल को यह नाम सब से अधिक पसन्द थे, इस हदीस के वह्य होने से पहले " अल्लाह को सब से ज़्यादा पसन्द नामों में अब्दुल्लाह और अब्दुर्रहमान है " ( सिल्सिला सहीहाः 887/6)
इसी तरह नबियों और सन्देष्टाओं (अलैहिमुस्सलाम) के नामों पर बच्चों का नाम रखा जाए, जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हदीस में आता है।  अनस (रज़ी अल्लाहु अन्हु) वर्णन करते हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया, " रात में मुझे एक लड़का जन्म लिया है जिस का नाम मैं अपने पिता इबराहीम के नाम पर रखा है।" ( सही मुस्लिम, हदीस क्रमांक.2315)
इसी तरह वह नाम जो अशुभ और गलत माने की पुष्ठी करता है, वैसा नाम नहीं रखना चाहिये। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने बहुत से ऐसे नामों को बदल दिया जो अशुद्ध अर्थात पर दलालत करता था, आईशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) कहती हैं कि " रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) गलत नामों को अच्छे नामों से बदल देते थे। " (सुनन तिर्मिज़ी, हदीस क्रमांक.2839) 
(3) बच्चों को दूध पिलाने का व्यवस्था पिता करेगा, सब से उत्तम तरीका यह है कि माता दूध पीलाएगीः  माता पिता में तलाक और एलग होने के कारण माँ ही बच्चे को दूध पीलाऐगी और पिता बच्चे और उसकी माँ का पूरा खर्च उठाऐगा, यदि माता को दूध नहीं होता तो दुसरी महिला या टब्बे के दूध का व्यवस्था करना पिता की जिम्मेदारी होगी। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है। " जो बाप चाहते हों कि उनके बच्चे दूध पीने की पूरी अवधि तक दूध पिएँ, तो माएँ अपने बच्चों को पूरे दो वर्ष तक दूध पिलाए, इस स्थिति में बच्चे के बाप को सामान्य रीति के अनुसार उन्हें खाना-कपड़ा देना होगा, मगर किसी पर उसकी क्षमता से बढ़ कर बोझ नहीं डालना चाहिये।" ( अल-बकराः 233)
परन्तु जो महिला अपने बच्चे को बिना किसी मजबूरी के दूध नहीं पीलाती, इस भय से कि उस की सुन्दरता कम हो जाएगी या उस का शरीर खराब हो जाऐगा या इस में बहुत परेशानी होती है, तो ऐसी महिलाओं को बहुत ही बड़ी सजा की चेतावनी दी गई है। अबू उमामा अल बाहली (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि मैं ने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फरमाते हुए सुना " मैं सोया हुआ था कि दो आदमी मेरे पास आये और मुझे उठा कर एक बहुत दुश्वार और कठिन पर्वत के पास ले गये और दोनों ने कहा, इस पर चढ़ो, मैं ने उत्तर दिया, इस पहाड़ पर चढ़ने की मुझ में क्षमता नहीं, तो उन दोनों ने जवाब दिया, हम तुम्हारी सहायता करेंगे, तो मैं चढ़ने लगा, जब बीचो बीच पहाड़ पर पहुंचा तो बहुत डरावनी आवाज आई, तो मैं ने फरिश्तो से प्रश्न किया कि यह कैसी आवाज है, तो उन्हों ने उत्तर दिया की यह नरकवासियों की चीखो पूकार है, .................................... फिर हम ऐसी महिलाओं के पास से गुजरे जिस के वक्ष पर साँप और बिच्छू डंक मार रहे थे। तो मैं ने कहा, इन महिलाओं को यह सजा क्यों दी जा रही हैं,  तो उस ने उत्तर दिया कि यह महिलाऐं अपने बच्चों को अपना दूध नही पीलाती थीं। ..................... (अल-मुस्तदरक अलस्सहीहैन लिल हाकिमः  288/2)
(4) जन्म के सात्वें दिन बच्चे का अक़ीका की जाए, उस के सर के बाल कटवा दिये जाऐ और सर के बाल के बराबर चांदी दान दिया जाए। अकीका कहा जाता है कि बच्चे के जन्म की खुशी में अल्लाह का नाम ले कर बच्चे की ओर से बकरा जबह किया जाए जो बच्चे को संकटो से अल्लाह की अनुमति से सुरक्षित रखेगा जैसा कि  नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया, समुरा बिन जुन्दुब (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " प्रत्येक शीशु अपने अकीका के द्वारा गिरवी रखा हुवा है, सात्वे दिन उस की ओर से अकीका किया जाऐगा और सर मुंढवाया जाऐगा और उस का नाम रखा जाऐगा, (सुनन अबी दाऊद)
सर के बाल के बराबर चांदी दान कर दिया जाए जैसा कि अली बिन अबी तालिब (रज़ी अल्लाहु अन्हु) कहते है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हसन की ओर से बकरी का अकीका किया और फरमाया ऐ फातिमा! उसका बाल मुंढ़ दो, सर के बाल के बराबर चांदी दान कर दो, .....( सुनन तिर्मिज़ी)
लड़की की ओर से एक बकरा और लड़का की ओर से दो बकरा जबह किया जाऐगा, जैसा कि हदीसो से प्रमाणित है।
(5)  प्रत्येक प्रकार से बच्चों के बीच न्याय किया जाए, उपहार देने में, शिक्षा देने में, अच्छे व्यवहार में, बच्चों को जेब खर्च देने में, और मृत्यु के बाद धनदौलत के बंटवारा में सही तरीके   से इस्लामी शिक्षा अनुसार न्याय किया जाए  जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) ने फरमाया, "  " अल्लाह से भय खाओ और बच्चों के बीच बराबरी करो " (सही बुखारी)
इसी तरह लड़के को लड़की पर और लड़की को लड़के पर उत्तमता न दी जाए, बड़े को छोटे पर न और छोटे को बड़े पर उत्तमता न दी जाए, जैसा की रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) के समय में नोमान के पिता ने अपने बेटे नोमान को एक ऊंट उपहार में दिया तो नोमान की माता ने अपने पति से कहा कि आप इस उपहार पर रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) को गवाह बना दीजिये, तो नोमान के पिता रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) के पास आये और कहा ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं ने अपने बेटे नोमान को एक ऊंट उपहार में दिया है, आप इस पर गवाह रहिये, तो रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) ने प्रश्न किया कि, क्या तुमने अपने सब बेटों को इसी प्रकार का उपहार दिया है ? तो उसने उत्तर दिया, नहीं, तो आप (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) ने कहा, क्या तुम मुझे अन्याय पर गवाह बना रहे हो, मैं अन्याय पर गवाह नहीं बनता, क्या तुम चाहते हो कि सब बेटे तुम्हारे साथ उत्तम व्यवहार करे ? तो उस आदमी ने कहा, हाँ ! तो रसूलुल्लाह ने कहा कि जब तुम चाहते हो कि बच्चे तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करे तो उन को उपहार और कुछ देने में न्याय और बराबरी करो"। (सहीह मुस्लिम)
(6)    बच्चों को अच्छी पालन पोशन और उत्तम शिक्षा दी जाए, बच्चों के खाने पीने का अपनी शक्ति के अनुसार व्यवस्था करे, बच्चों को दनिया की शिक्षा के साथ आखिरत का ज्ञान दिया जाए, धर्म का ज्ञान दिया जाए, अच्छी चीज़ों को अपनाने और बुरी चीज़ो से दूर रहने पर उत्साहित किया जाए और नरक के रास्तों से उसे सुरक्षित रखा जाऐ, जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है,
" ऐ लोगों जो ईमान लाए हो, अपने आप और घरवालों को उस आग से बचाओ जिस का ईंधन इनसान और पत्थर होंगे, जिस पर कठोर स्वभाव के सख्त पकड़ करने वाले फरिश्ते नियुक्त होंगे जो कभी अल्लाह के आदेश की अवहेलना नहीं करते और जो आदेश भी उन्हें दिया जाता है उसका पालन करते हैं।" (सूरः तहरीम, 6)
और रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) ने भी स्पष्टीकरण कर दी कि माता-पिता की जिमेदारी है कि अपने संतान की शिक्षा और खर्च का व्यवस्था करे, उन चीज़ों के बारे में बताए जो बच्चे के जीवन को नष्ट कर देता है ताकि बच्चे इन वस्तुओं से दूर रहे, और उन वस्तुओं के प्रति खबर दे जो बच्चे के लिए लाभदायक हो, बच्चों के दोसतों और मित्रों के बारे में जाने कि वह कैसे हैं, यदि खलत किस्म के बच्चों से दोस्ती न करने दे। क्यों कि मानव के जीवन पर उस के दोस्तों का असर पड़ता है। इस लिए माता पिता पर जिम्मेदारी होती है कि अपने बच्चों के सही मार्ग दर्शन करे. रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) का कथन है, अब्दुल्लाह (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " तुम में से प्रत्येक व्यक्ति जिम्मेदार है और अपने जिम्मेदारी के प्रति उस से प्रश्न किया जाऐगा, राजा (आज के समय में राजनेतिक दल) अपने प्रजा का जिम्मेदार है और उस के बारे में उस से प्रश्न किया जाऐगा, और आदमी अपने घरवालों का जिम्मेदार है और घर वालों के बारे में उस से प्रश्न किया जाऐगा, और पत्नी अपने पति के घर और बच्चों की जिम्मेदार है, और इन चीज़ों के बारे में उस से प्रश्न किया जाऐगा, नौकर तथा काम करने वाले अपने मालिक के सामान (धनदौलत और घर बार) का जिम्मेदार है और उस से इन चीज़ों के प्रति प्रश्न किया जाऐगा, और तुम में से प्रत्येक व्यक्ति जिम्मेदार है और उस से उस की जिम्मेदारी के बारे में प्रश्न किया जाऐगा। (सही बुखारी और सही मुस्लिम)
माता-पिता पर अपने बच्चों के प्रति दो प्रकार की जिम्मेदारी होती है, एक तो उसे खिलाने पिलाने , कपड़ा और उसके अवश्यक्ता को पूरी करने और बीमारी का इलाज कराने की जिम्मेदारी होती है और दुसरी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी कि उसे सही शिक्षा दे, सही मार्गदर्शन करे, दुनिया की अच्छाई और बुराई के बारे में बताऐ, इस संसार का मालिक और सम्पूर्ण वस्तुओं को उसी ने उत्पन किया है, और वह मालिक बहुत महान और बहुत शक्तिशाली है, इस लिए केवल उसी की पूजा और उपासना की जाए, उसी से प्रार्थ्ना की जाए, उसी पर विश्वास और भरोसा किया जाए और उसकी इबादत और पूजा में किसी को तनिक बराबर भागिदार और साझिदार न बनाया जाए, क्यों शिर्क सब से बड़ा पाप और अत्याचार है जो मानव अपने स्रष्टीकर्ता के साथ करता है, इसी लिए नेक लोग, महापुरूष नबियों और रसूलों ने अपने अपने बेटों और वंश को अल्लाह के साथ शिर्क करने से मना किया करते थे, बच्चों को एक मालिक की उपासना और तपस्या करने पर उत्साहित करते थे, कुरआन करीम में बहुत से नबियों और नेक लोगों के किस्से मिलते हैं जैसा कि इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ने अपने बेटों को भी यही नसीहत किया था। " और इसी तरीके पर चलने की ताकीद इबराहीम ने और याक़ूब ने अपने बेटों को की थीं, उन्होंने कहा था, ऐ मेरे बेटों ! बैशक अल्लाह ने तुम्हारे लिए यही धर्म पसन्द किया हैअतः मरते समय तक मुस्लिम (आज्ञाकारी) ही रहना। फिर क्या तुम उस समय उपस्थित थे जब याक़ूब इस संसार से विदा हो रहे थे, तो उसने अपने बेटों से कहा, बच्चों, मेरे बाद तुम किस की बन्दगी (पूजा) करोगे, उन सब ने उत्तर दिया हम उसी एक अल्लाह की बन्दगी करेंगे जिसे आप ने और आप के पुर्वज इबराहीम, इस्माईल और इस्हाक़ ने एक अल्लाह माना है और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।" (सूराः बकरा, 133)
और लुकमान का अपने बेटों को नसीहत कुरआन में इस प्रकार है " याद करो जब लुक़मान अपने बेटे को नसिहत कर रहे थे तो उसने कहा, ऐ बेटा, अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करना. सत्य यह है कि शिर्क (बहुदेववाद) बहुत बड़ा ज़ुल्म है " (सूराः लुकमान, 13)
इसी तरह रसूलुल्लाह (सल्लाहु अलेहि वसल्लम) ने भी अपने चाचा के बेटे अब्दुल्लाह बिन अब्बास से कहा, ऐ लड़के!  मैं तुझे कुछ बातों की शिक्षा देता हूँ, अल्लाह को याद रख अल्लाह तेरी रक्षा करेगा, अल्लाह को याद रख, अल्लाह को तुम प्रत्येक परेशानियों में अपने सामने पाओगे, जब भी मांगो, अल्लाह से ही मांगो, जब सहायता और मदद मांगो, अल्लाह तआला से ही सहायता मांगो, जान लो कि यदि पूरे समुदाय मिल कर तुम्हें लाभ पहुंचाना चाहे तो वह समुदाय तुझे कुछ भी लाभ नहीं पहुंचा सकते सिवाए जितना अल्लाह ने तेरे नसीब में लिख दिया है, और अगर लोग एकट्ठा हो कर तुम्हें हाणि और नुक्सान पहुंचाना चाहि तो वह समुदाय तुझे कुछ भी नुक्सान नहीं पहुंचा सकते सिवाए जितना अल्लाह ने तेरे नसीब में लिख दिया है.....  (सुनन तिर्मिज़ी)

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