रविवार, 5 दिसंबर 2010

माहे मोहर्रम की वास्तविकता

सम्पूर्ण परशंसा अल्लाह के योग्य है और मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर अनगिनित दरूदु सलाम हो, अल्लाह तआला का अपने दासों पर बहुत बड़ा कृपा है कि उसने बन्दों के झोली को पुण्य से भरने के लिए विभिन्न समय , महीने तथा तरीके उतपन्न किये, उन में से एक मोहर्रम का महीना है ।
मोहर्रम के महीने की सर्वशेष्टा निम्नलिखित वाक्यों से प्रमाणित होता है।
माहे मोहर्रम में रक्तपात, किसी पर अत्याचार करने का पाप दुग्ना हो जाता है।
जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है। " वास्तविकता यह है कि महीनों की संख्या जब से अल्लाह ने आकाश और धरती की रचना की है, अल्लाह के लेख में बारह ही है और उन में से चार महीने आदर के (हराम) हैं। यही ठीक नियम है, अतः इन चार महीनों में अपने ऊपर ज़ुल्म (अत्याचार) न करो " ( सूरः तौबा , 36)
अबू बकरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने हज के भाषण में फरमाया " निःसंदेह समय चक्कर लगा कर अपनी असली हालत में लौट आया है जिस दिन अल्लाह ने आकाशों तथा धरती की रचना किया। वर्ष में बारा महीने होते हैं। उन में से चार आदर के (हराम) महीने हैं। तीन महीने मुसलसल हैं, जूल कादा, जूल हिज्जा, मोहर्रम और रजब है।" ( सही बुखारी और सही मुस्लिम)
अबू ज़र (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया कि रात का कौन सा भाग अच्छा है और कौन सा महीना सर्वशेष्टा है ? तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया। रात का अन्तिम भाग अच्छा है और मोहर्रम का महीना सर्वशेष्टा है।" ( सुनन नसई)
रमज़ान महीने बाद के मोहर्रम का महीना बेहतरीन है जैसा की एक हदीस से इस बात की पुष्ठी करण होता है। अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया " सब से अच्छा रोज़ा रमज़ान के बाद अल्लाह के महीने मोहर्रम का रोज़ा है और फर्ज़ नमाज़ के बाद सर्वशेष्ट नमाज़ रात की नमाज़ है।" ( सही मुस्लिम )
मोहर्रम के रोज़ा रखने का कारण
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस मोहर्रम के रोज़ा रखने का कारण भी बता दिया है। जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब मदीना हिज्रत कर के तशरीफ लाए तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पाया कि यहूद रोज़ा रखते हैं। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने प्रश्न किया, तुम लोग किस कारण आशूरा (10 मोहर्रम) के दिन रोज़ा रखते हो ? तो उन लोगों ने उत्तर दिया, यह एक महान दिन है जिस में अल्लाह ने मूसा (अलैहिस्साम) और उन की समुदाय को फिरऔन से मुक्ति दी और फिरऔन और उस की समुदाय को डुबा दिया। तो मूसा (अलैहिस्साम) ने अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए रोज़ा रखा। तो हम लोग भी इसी दिन रोज़ा रखते हैं। तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा " हम तुम लोगों से अधिक मूसा (अलैहिस्साम) के निकटतम और हक्दार हैं और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने रोज़ा रखा और इस रोज़े के रखने का आदेश दिया।" ( सही बुखारी और सही मुस्लिम)
मोहर्रम के रोज़े की फज़ीलत
मोहर्रम के 10 वे दिन की एहमीयत बहुत ज़्यादा है और मूसा (अलैहिस्साम) ने रोज़ा रखा और उन के अनुयायियों ने भी रोज़ा रखा यहाँतक कि कुरैश (इस्लाम से पहले के अरब वासी) ने रोज़ा रखा और प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने रोज़ा रखा और लोगों को इस रोज़े के रखने पर उत्साहित किया। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन है जिसे अबू क़ताता (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि एक व्यक्ति ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से आशूरा के रोज़े के प्रति प्रश्न क्या ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया।" मैं अल्लाह से आशा करता हूँ कि एक वर्ष के पापों के मिटा देगा " ( सही मुस्लिम)
यह अल्लाह तआला का बहुत बड़ा कृपा हम पर है कि एक दिन के रोज़े के बदले एक वर्ष के पाप स्माप्त हो जाते हैं। प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) 10 मोहर्रम के रोज़े का खास ध्यान रखते थे। जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को आशूरा के दिन का रोज़ा रखने का बहुत ख्याल करते हुए पाया और रमज़ान के रोज़े का ऐहतमाम करते हुए देखा । ( सही बुखारी)
आशूरा का रोज़ा किस किस तिथि को रखा जाए ?
(1) मोहर्रम की 9 और 10 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया " यदि मैं आने वाले वर्ष तक जीवित रहा तो 9 और 10 का रोज़ा रखूंगा " ( सही मुस्लिम)
(2) मोहर्रम की 10 और 11 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया " यहूद की मुखाल्फत करो, 10 के साथ एक दिन पहले ( 9 तिथि) या एक दिन बाद (11) को रोज़ा रखो, ( मुस्नद अहमद और इब्ने खुज़ैमा )
(3) मोहर्रम की 9 , 10 और 11 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया " 10 के साथ एक दिन पहले ( 9 तिथि) और एक दिन बाद (11) को रोज़ा रखो,

बुधवार, 1 सितंबर 2010

शबे क़द्र



रमज़ान महीने में एक रात ऐसी भी आती है जो हज़ार महीने की रात से बेहतर है जिसे शबे क़द्र कहा जाता है। शबे क़द्र का अर्थ होता है " सर्वशेष्ट रात " ऊंचे स्थान वाली रात " लोगों के नसीब लिखी जानी वाली रात,
शबे क़द्र बहुत ही महत्वपूर्ण रात है जिस के एक रात की इबादत हज़ार महीनों की इबादतों से बेहतर और अच्छा है। इसी लिए इस रात की फज़ीलत कुरआन मजीद और प्रिय रसूल मोहम्मद( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हदीसों से प्रमाणित है।
निम्नलिखित महत्वपूर्ण वाक्यों से क़द्र वाली रात की अहमियत मालूम होती है।
(1) इस पवित्र रात में अल्लाह तआला ने कुरआन करीम को लोह़ महफूज़ से आकाश दुनिया पर उतारा फिर 23 वर्ष की अविधि में अवयशक्ता के अनुसार मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर उतारा गया। जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद है। " हम्ने इस (कुरआन) को कद्र वाली रात में अवतरित किया है।.. " (सुराः कद्र)
(2) यह रात अल्लाह तआला के पास बहुत उच्च स्थान रखता है।
इसी लिए अल्लाह तआला ने प्रश्न के तरीके से इस रात की महत्वपूर्णता बयान फरमाया है और फिर अल्लाह तआला स्वयं ही इस रात की फज़ीलत को बयान फरमाया कि यह एक रात हज़ार महीनों की रात से उत्तम है। " और तुम किया जानो कि कद्र की रात क्या है ? क़द्र की रात हज़ार महीनों की रात से ज़्यादा उत्तम है।" (सुराः कद्र)
(3) इस रात में अल्लाह तआला के आदेश से अन्गीनित फरिश्ते और जिबरील आकाश से उतरते है। अल्लाह तआला की रहमतें, अल्लाह की क्षमा ले कर उतरते हैं, इस से भी इस रात की महत्वपूर्णता मालूम होती है। जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद है। " फ़रिश्ते और रूह उस में अपने रब की अनुज्ञा से हर आदेश लेकर उतरते हैं। " (सुराः कद्र)
(4) यह रात बहुत सलामती वाली है। इस रात में अल्लाह की इबादत में ग्रस्त व्यक्ति परेशानियों, ईश्वरीय संकट से सुरक्षित रहते हैं। इस रात की महत्वपूर्ण, विशेष्ता के बारे में अल्लह तआला ने कुरआन करीम में बयान फरमाया है। " यह रात पूरी की पूरी सलामती है उषाकाल के उदय होने तक। " (सुराः कद्र)
(5) यह रात बहुत ही पवित्र तथा बरकत वाली है, इस लिए इस रात में अल्लाह की इबादत की जाए, ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह से दुआ की जाए, अल्लाह का फरमान है। " हम्ने इस (कुरआन) को बरकत वाली रात में अवतरित किया है।...... " (सुराः अद् दुखान)
(6) इस रात में अल्लाह तआला के आदेश से लोगों के नसीबों (भाग्य) को एक वर्ष के लिए दोबारा लिखा जाता है। इस वर्ष किन लोगों को अल्लाह तआला की रहमतें मिलेंगी? यह वर्ष अल्लाह की क्षमा का लाभ कौन लोग उठाएंगे? इस वर्ष कौन लोग अभागी होंगे? किस को इस वर्ष संतान जन्म लेगा और किस की मृत्यु होगी? तो जो व्यक्ति इस रात को इबादतों में बिताएगा, अल्लाह से दुआ और प्राथनाओं में गुज़ारेगा, बेशक उस के लिए यह रात बहुत महत्वपूर्ण होगी। जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद है। " यह वह रात है जिस में हर मामले का तत्तवदर्शितायुक्त निर्णय हमारे आदेश से प्रचलित किया जाता है। " (सुराः अद् दुखानः5 )
(7) यह रात पापों , गुनाहों, गलतियों से मुक्ति और छुटकारे की रात है।
मानव अपनी अप्राधों से मुक्ति के लिए अल्लाह से माफी मांगे, अल्लाह बहुत ज़्यादा माफ करने वाला, क्षमा करने वाला है। खास कर इस रात में लम्बी लम्बी नमाज़े पढ़ा जाए, अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों, गलतियों पर माफी मांगा जाए, अल्लाह तआला बहुत माफ करने वाला, क्षमा करने वाला है। जैसा कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है। " जो व्यक्ति शबे क़द्र में अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रातों को तरावीह (क़ियाम करेगा) पढ़ेगा, उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे" ( बुखारी तथा मुस्लिम)
यह महान क़द्र की रात कौन सी है ?
यह एक ईश्वरीय प्रदान रात है जिस की महानता के बारे में कुछ बातें बयान की जा चुकी हैं। इसी शबे क़द्र को तलाशने का आदेश प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपने कथन से दिया है। " जैसा कि आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि " रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " कद्र वाली रात को रमज़ान महीने के अन्तिम दस ताक रातों में तलाशों " ( बुखारी तथा मुस्लिम)
एक हदीस में रमज़ान करीम की चौबीसवीं रात में शबे क़द्र को तलाशने का आज्ञा दिया गया है। और प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस मुबारक रात की कुछ निशानियाँ बताया है। जिस के अनुसार वह रात एकीस रमज़ान की रात थीं जैसा कि प्रिय रसूल के साथी अबू सईद अल खुद्री (रज़ी अल्लाहु अन्हु) वर्णन करते हैं। प्रिय रसूल के दुसरे साथी अब्दुल्लाह बिन अनीस (रज़ी अल्लाहु अन्हु) की रिवायत से पता चलता कि वह रात तेईस रमज़ान की रात थीं और अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ी अल्लाहु अन्हुमा) तथा उबइ बिन कअब (रज़ी अल्लाहु अन्हु) की रिवायत से पता चलता कि वह रात सत्ताईस रमज़ान की रात थीं और उबइ बिन कअब (रज़ी अल्लाहु अन्हु) तो कसम खाया करते थे कि शबे क़द्र सत्ताईस रमज़ान की रात है, तो उन के शागिर्द ने प्रश्न किया कि किस कारण इसी रात को कहते हैं? तो उन्हों ने उत्तर दिया, निशानियों के कारण, प्रिय रसूल मोहम्मद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) ने भी शबे क़द्र को अन्तिम दस ताक वाली(21,23,25,27,29) रातों में तलाश ने का आदेश दिया है। शबे क़द्र के बारे में जितनी भी हदीस की रिवायतें आइ हैं। सब सही बुखारी, सही मुस्लिम और सही सनद से वारिद हैं। इस लिए हदीस के विद्ववानों ने कहा है कि सब हदीसों को पढ़ने के बाद मालूम होता है कि शबे क़द्र हर वर्ष विभिन्न रातों में आती हैं। कभी 21 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 23 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 25 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 27 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 29 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती और यही बात सही मालूम होता है। इस लिए हम इन पाँच बेजोड़ वाली रातों में शबे क़द्र को तलाशें और बेशुमार अज्रो सवाब के ह़क़्दार बन जाए।
शबे क़द्र की निशानीः
प्रिय रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस रात की कुछ निशानी बयान फरमाया है जिस के माध्यम से इस महत्वपूर्ण रात को पहचाना जा सकता है।
(1) यह रात बहूत रोशनी वाली होगी, आकाश प्रकाशित होगा , इस रात में न तो बहुत गरमी होगी और न ही सर्दी होगी बल्कि वातावरण अच्छा होगा, उचित होगा। जैसा कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने निशानी बताया है जिसे सहाबी वासिला बिन अस्क़अ वर्णन करते है कि रसूल ने फरमाया " शबे क़द्र रोशनी वाली रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और वातावरण संतुलित होता है और सितारे को शैतान के पीछे नही भेजा जाता।" ( तब्रानी )
(2) यह रात बहुत संतुलित वाली रात होगी। वातावरण बहुत अच्छा होगा, न ही गर्मी और न ही ठंडी होगी। हदीस रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इसी बात को स्पष्ट करती है " शबे क़द्र वातावरण संतुलित रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है तो लालपन धिमा होता है।" ( सही- इब्नि खुज़ेमा तथा मुस्नद त़यालसी )
(3) शबे क़द्र के सुबह का सुर्य जब निकलता है तो रोशनी धिमी होती है, सुर्य के रोशनी में किरण न होता है । जैसा कि उबइ बिन कअब वर्णन करते हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है तो रोशनी में किरण न होता है।" ( सही मुस्लिम )
हक़ीक़त तो यह है कि इन्सान इन रातों की निशानियों का परिचय कर पाए या न कर पाए बस वह अल्लाह की इबादतों, ज़िक्रो- अज़्कार, दुआ और कुरआन की तिलावत,कुरआन पर गम्भीरता से विचार किरे । इख्लास के साथ, केवल अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए अच्छे तरीक़े से अल्लाह की इबादत करे, प्रिय रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की इताअत करे, और अपनी क्षमता के अनुसार अल्लाह की खूब इबादत करे और शबे क़द्र में यह दुआ अधिक से अधिक करे, अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों , गलतियों पर माफी मांगे जैसा कि आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि, मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से प्रश्न क्या कि यदि मैं क़द्र की रात को पालूँ तो क्या दुआ करू तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " अल्लाहुम्मा इन्नक अफुव्वुन करीमुन, तू हिब्बुल-अफ्व,फअफु अन्नी" अर्थात: ऐ अल्लाह ! निःसन्देह तू माफ करने वाला है, माफ करने को पसन्द फरमाता, तो मेरे गुनाहों को माफ कर दे।"
अल्लाह हमें और आप को इस महिने में ज्यादा से ज़्यादा भलाइ के काम, लोगों के कल्याण के काम, अल्लाह की पुजा तथा अराधना की शक्ति प्रदान करे और हमारे गुनाहों, पापों, गलतियों को अपने दया तथा कृपा से क्षमा करे। आमीन............

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

रमज़ान के महीने के में की जाने वाली इबादतें- अराधना




रमज़ान करीम की बरकत और पवितर्ता से हम उसी समय लाभ उठा सकते हैं जब हम अपने बहुमूल्य समय का सही प्रयोग करेंगे, इस कृपा, माफी वाले महिने में सही से अल्लाह तआला की पुजा- अराधना करेंगे जिस तरह से प्रिय रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अल्लाह तआला की पुजा- अराधना किया है। वह इबादतें करेंगे जिसके करने से हमें पुण्य प्राप्त हो और हमारी झोली पुण्य से भर जाए और हमारा दामन पापों से पाक साफ हो जाए और उन कामों से दुर रहा जाए जो इस पवित्र महीने की बरकत तथा अल्लाह की कृपा, माफी से हमें महरूम ( वंचित) कर दे।
रमज़ान के महिने की सब से महत्वपूर्ण इबादत रोज़ा (ब्रत) है जिसे उसकी वास्तविक हालत से रखा जाए और उन कामों तथा कार्यों से दूर रहा जाए जो रोज़े को भंग ( खराब) कर दे। रोज़े रखने के लिए सब से पहले रात से ही या सुबह सादिक़ से पहले ही रोज़े रखने की नीयत किया जाए। इस लिए कि जो व्यक्ति रात में ही रोज़े की नीयत न करेगा, उस का रोज़ा पूर्ण न होगा। मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जो व्यक्ति रात ही से रोज़े की नीयत न करे, उस का रोज़ा नही। " ( अल- मुहल्लाः इब्नि हज़्म, अल-इस्तिज़्कारः इब्नि अब्दुल्बिर)
रमज़ान के मुबारक महीने में निम्नलिखित कार्य अल्लाह को खुश करने के लिए किया जाए।
1- सेहरीः
रोज़े रखने के लिए सब से पहले सेहरी खाया जाए क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है, सेहरी कहते हैं सुबह सादिक़ से पहले जो कुछ उप्लब्ध हो उसे रोज़ा रखने की नीयत से खा लिया जाए। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया," सेहरी खाओ क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है "। एक दुसरी हदीस में आया है " सेहरी खाओ यदि एक घोंट पानी ही पी लो, "
2 - फजर की नमाज़ के बाद से सुर्य निकलने तक मस्जिद में बैठ कर ज़िक्र – अज़्कार करनाः
यदि कोई व्यक्ति फजर की नमाज़ के बाद से सुर्य निकलने तक मस्जिद में बैठ कर ज़िक्रो अज़्कार करता है तो उसे बहुत ज़्यादा पुण्य मिलता है। जैसा कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " जिस ने फजर की नमाज़ पढ़ा और अपने स्थान पर बैठे ज़िक्रो अज़्कार करता रहा फिर सुर्य निक्ला और उसने दो रकआत नमाज़ पढ़ा तो उसे एक उमरे का पुरा पुरा सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा, ( सुनन तिर्मिज़ी)
3 - रोज़े की हालत में गलत सोच – विचार से अपने आप को सुरक्षित रखा जाएः
फजर से पहले से लेकर सुर्य के डुबने तक खाने – पीने तथा संभोग से रुके रहना ही रोज़ा की वास्तविक्ता नही बल्कि रोज़ा की असल हक़ीक़त यह कि मानव हर तरह की बुराई, झूट, झगड़ा लड़ाइ, गाली गुलूच, तथा गलत व्यवहार और गलत सोच – विचार तथा अवैध चीज़ो से अपने आप को रोके रखना ही रोज़े का लक्ष्य है और उसे पुण्य उसी समय प्राप्त होगा जब वह इसी तरह रोज़े रखेगा, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जो व्यक्ति अवैध काम और झूट और झूटी गवाही तथा जहालत से दूर न रहे तो अल्लाह को कोई अवशक्ता नही कि वह भूका, पीयासा रहे " ( बुखारी )
यदि कोई व्यक्ति रोज़ेदार व्यक्ति से लड़ाइ झगड़ा करने की कोशिश करे तो वह लड़ाइ, झगड़ा न करे बल्कि स्थिर से कहे कि मैं रोज़े से हूँ, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जब तुम में कोइ रोज़े की हालत में हो तो आपत्तिजनक बात न करे, जोर से न चीखे चिल्लाए, यदि कोइ उसे बुरा भला कहे या गाली गुलूच करे तो वह उत्तर दे, मैं रोज़े से हूँ।" ( बुखारी तथा मुस्लिम)
रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " कितने ही रोज़ेदार एसे हैं जिन के रोज़े से कोई लाभ नही, केवल भुखा और पियासा रहना है। " ( मिश्कातुल मसाबीह )
गोया कि रमज़ान महिने में अल्लाह तआला की ओर से दी जाने वाली माफी, अच्छे कामों से प्राप्त होनी वाली नेकियाँ, उसी समय हम हासिल कर सकते हैं जब हम रोज़े की असल हक़कीत के साथ रोज़े रखेंगे ।
4 - कुरआन करीम की ज़्यादा से ज़्यादा तिलावत किया जाएः
अल्लाह तआला ने पवित्र कुरआन इस मुबारक महीने में मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर फरिश्ते जिब्रील के माध्यम से उतारा, जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद है, " रमज़ान वह महीना है जिस में कुरआन उतारा गया जो इनसानों के लिए सर्वथा मार्गदर्शन है और ऐसी स्पष्ट शिक्षाओं पर आधारित है जो सीधा मार्ग दिखानेवाली और सत्य और असत्य का अन्तर खोलकर रख देने वाली है। " ( सूरः बक़रा,185)
यही वजह है कि फरिश्ते जिब्रील हर रमज़ान के महीने में मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को कुरआन का दौरा कराते थे। इस्लामिक विद्ववानों ने भी इस महीने में कुरआन बहुत ज़्यादा पढ़ा करते थे। वैसे भी कुरआन आम दिनों में पढ़ने से बहुत सवाब प्राप्त होता है परन्तु जो व्यक्ति रमज़ान के महीने में कुरआन ध्यान से पढ़ेगा, उस पर विचार करेगा, उस पर अमल करेगा, एसे व्यक्ति के दामन में नेकियाँ की नेकियाँ होंगी।
5 - रोज़े की हालत में ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह ही से दुआ किया जाएः
दुआ भी एक इबादत है जो केवल अल्लाह से माँगा जाए। अल्लाह तआला रोज़ेदार की दुआ को रद नही करता है जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का इरशाद है " तीन लोगों की दुआ अल्लाह के पास स्वीकारित हैं , रोज़ेदार की दुआ , यात्री व्यक्ति की दुआ, मज़्लूम की दुआ " इसी तरह रोज़ा खोलते समय भी ज़्यादा दुआ करना चाहिये , उस समय की दुआ अल्लाह तआला वापस नही करता है। जैसा कि हदीसों से वर्णित है।
6 - रातों में क़ियाम और तरावीह पढ़ने का महीनाः
इस मुबारक महीने की रातों को तरावीह पढ़ने का खास इह्तमाम किया जाए क्यों कि तरावीह पढ़ने का बहुत ज़्यादा सवाब (पुण्य) है जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जो व्यक्ति रमज़ान महीने में अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रातों को तरावीह (क़ियाम करेगा) पढ़ेगा, उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे " ( बुखारी तथा मुस्लिम)
7- माहि रमज़ान में उम्रा किया जाएः
रमज़ान के महीने में उम्रा करने से भी बहुत ज़्यादा नेकी प्राप्त होती है। जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है " रमज़ान में उम्रा करने का पुण्य मेरे साथ उम्रा करने के बराबर सवाब (पुण्य ) मिलता है " और दुसरी हदीस में आया है कि " रमज़ान में उम्रा करने का पुण्य मेरे साथ हज करने के बराबर सवाब (पुण्य ) मिलता है "
8 - रमज़ान महीने में अधिक से अधिक सदक़ा - खैरात तथा दान दिया जाएः
इस पवित्र महीने में ग़रीबों और मिस्कीनों की दिल खोल कर सहायता और मदद करना उचित और बहुत ज़्यादा सवाब ( पुण्य) का काम है। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है " सब से अच्छा दान, रमज़ान में दान देना है।" ( सुनन तिर्मिज़ी )
रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस महीने में बहुत दान ( सदक़ा – खैरात ) किया करते थे जैसा कि अब्दुल्लाह बिन अब्बास( रज़ी अल्लाह अन्हुमा ) वर्णन करते हैं " रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) लोगों में सब से अधिक दानशील थे और रमज़ान के महीने में आप ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की दानशीलता बहुत बढ़ जाती थी। जब आप ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) फरिश्ते जिब्रील से मुलाक़ात करते थे। फरिश्ते जिब्रील के साथ आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कुरआन पढ़ते- दोहराते थे। रमज़ान के महीने में आप ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) की दानशीलता तेज़ हवा से बढ़ जाती थीं।" ( मुसनद अहमद)
9 - रोज़ेदार को इफतार कराया जाएः
भूके को खाना खिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य है और जिसन किसी भूके को खिलाया और पिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जन्नत के नहर से पिलाएगा जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है " जिस किसी मोमिन ने किसी भूके मोमिन को खिलाया तो अल्लाह उसे जन्नत के फलों से खिलाएगा और जिस किसी मोमिन ने किसी पियासे मोमिन को पिलाया तो अल्लाह उसे जन्नत के बिल्कुल शुद्ध पैक शराब पिलाएगा " ( सुनन तिर्मिज़ी )
जो रोज़ेदार को इफतार कराएगा तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब(पुण्य) मिलेगा और दोनों के सवाब में कमी न होगी जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है " जिसने किसी रोज़ेदार को इफतार कराया तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा मगर रोज़ेदार के सवाब में कुच्छ भी कमी न होगी " (मुसनद अहमद तथा सुनन नसई )
10- रमज़ान के महीने में इतकाफ किया जाएः
इतकाफ अर्थात, मानव ईबादत की नीयत से मस्जिद में प्रवेश हो और दुनिया दारी को छोड़ कर केवल अल्लाह की इबादत, कुरआन की तिलावत और दुआ और अपने गलतियों पर अल्लाह से माफी मांगे। इसी तरह जितने समय या जितने दिन के इतकाफ की नीयत किया है, वह अविधि पूरा करे और मानवीय अवश्कता के सिवाए मस्जिद से बाहर न निकले। इतकाफ रमज़ान और रमज़ान के अलावा महिने में भी किया जासकता है, परन्तु रमज़ान के महीने में इतकाफ करना ज़्यादा उत्तम है। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) रमज़ान के महीने में इतकाफ करते थे। जैसा कि आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि " रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ग्यारा रमज़ान से लेकर बीस रमज़ान तक इतकाफ किया फिर इकीस रमज़ान से लेकर तीस रमज़ान तक इतकाफ किया और फिर इसी पर जमे रहे और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बाद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पत्नियों ने भी आखीरी दस दिनों का इतकाफ किया। ( बुखारी तथा मुस्लिम)
11- शबे क़दर की रातों को तलाशा किया जाए और उन रातों में बहुत ज़्यादा इबादत की जाएः
यह वह मुबारक और पवित्र रात है जिस की महत्वपूर्णता पवित्र कुरआन तथा सही हदीसों से परमाणित है। यही वह रात है जिस में पवित्र कुरआन को उतारा गया। यह रात हज़ार रातों से उत्तम है। जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद है। " हम्ने इस (कुरआन) को कद्र वाली रात में अवतरित किया है। और तुम किया जानो कि कद्र की रात क्या है ? कद्र की रात हज़ार महीनों की रात से ज़्यादा उत्तम है। फ़रिश्ते और रूह उसमें अपने रब की अनुज्ञा से हर आदेश लेकर उतरते हैं। वह रात पूरी की पूरी सलामती है उषाकाल के उदय होने तक। " (सुराः कद्र)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हदीस से भी इस रात की बरकत और फज़ीलत साबित होती है। इसी लिए मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने शबे क़दर की रातों को तलाशने का आदेश दिया है। " जैसा कि आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि " रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " कद्र वाली रात को रमज़ान महीने के अन्तिम दस ताक वाली रातों में तलाशों " ( बुखारी तथा मुस्लिम)
12- अल्लाह से क्षमा और माफी माँगी जाएः
यह महीने पापों , गुनाहों , गलतियों से मुक्ति और छुटकारा का महीना है। मानव अपनी अप्राधों से मुक्ति के लिए अल्लाह से माफी मांगे, अल्लाह बहुत ज़्यादा माफ करने वाला , क्षमा करने वाला है। खास कर इस महीने के अन्तिम दस रातों में अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों , गलतियों पर माफी मांगा जाए जैसा कि आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से प्रश्न क्या कि यदि मैं क़द्र की रात को पालूँ तो क्या दुआ करू तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " ऐ अल्लाह ! निःसन्देह तू माफ करने वाला है, माफ करने को पसन्द फरमाता, तो मेरे गुनाहों को माफ कर दे।"
अल्लाह हमें और आप को इस महिने में ज्यादा से ज़्यादा भलाइ के काम, लोगों के कल्याण के काम, अल्लाह की पुजा तथा अराधना की शक्ति प्रदान करे और हमारे गुनाहों, पापों, गलतियों को अपने दया तथा कृपा से क्षमा करे। आमीन............

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

पुण्य से अपने झोली को भरने का महीना रमज़ान



रमज़ान का महीना वह पवित्र तथा बर्कत वाला महीना है जिस में अल्लाह तआला ने भलाई और लोगों के लिए कल्याण का काम करने वालों के लिए पुण्य और पापों से मुक्ति ही रखा है। यह वह महीना है जिस में जन्नत ( स्वर्ग) के द्वार खोल दिये जाते हैं तथा जहन्नम (नरक) को द्वार बन्द कर दिये जाते है, सरकश जिन और शैतान को जकड़ दिया जाता है और अल्लाह की ओर से पुकारने वाला पुकारता है , हे ! नेकियों के काम करने वालों , पुण्य के कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लो, और हे ! पापों के काम करने वालों , अब तो इस पवित्र महीने में पापों से रुक जा, और अल्लाह तआला नेकी करने वालों को प्रति रात जहन्नम ( नरक ) से मुक्ति देता है। (सहीह उल जामिअ , अलबानी)
रमज़ान के महिने की सब से महत्वपुर्ण इबादत रोज़ा (ब्रत) है जिसे अरबी में सियाम कहते हैं जिस का अर्थ होता है," रुकना " अर्थातः सुबह सादिक से लेकर सुर्य के डुबने तक खाने – पीने तथा संभोग से रुके रहना, रोज़ा कहलाता है। रमज़ान के महीने का रोज़ा हर मुस्लिम , बालिग , बुद्धिमान पुरुष और स्री पर अनिवार्य है, रोज़ा इस्लाम के पांच खम्बों में से एक खम्बा है। जिसे हर मुस्लिम को हृदय , जुबान और कर्म के अनुसार मानना ज़रुरी है। रोज़े को उसकी वास्तविक हालत से रखने वालों को बहुत ज़्यादा पुण्य प्राप्त होता है जिस पुण्य की असल संख्याँ अल्लाह तआला ही जानता है, प्रिय रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " मनुष्य के हर कर्म पर, उसे दस नेकी से लेकर सात सौ नेकी दी जाती है सिवाए रोज़े के, अल्लाह तआला फरमाता है कि रोज़ा मेरे लिए है और रोज़ेदार को रोज़े का बदला मैं दुंगा, उस ने अपनी शारीरिक इच्छा ( संभोग) और खाना – पीना मेरे कारण त्याग दिया, ( इस लिए इसका बदला मैं ही दुंगा) रोज़ेदार को दो खुशी प्राप्त होती है, एक रोज़ा खोलते समय और दुसरी अपने रब से मिलने के समय, और रोज़ेदार के मुंह की सुगंध अल्लाह के पास मुश्क की सुगंध से ज़्यादा है। ( बुखारी तथा मुस्लिम)
इसी तरह जन्नत ( स्वर्ग ) में एक द्वार एसा है जिस से केवल रोज़ेदार ही प्रवेश करेंगे, रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है, " जन्नत ( स्वर्ग ) के द्वारों की संख्याँ आठ हैं, उन में से एक द्वार का नाम रय्यान है जिस से केवल रोज़ेदार ही प्रवेश करेंगे "
रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपने साथियों को शुभ खबर देते हुए फरमाया " तुम्हारे पास रमज़ान का महिना आया है, यह बर्कत वाला महिना है, अल्लाह तआला तुम्हें इस में ढ़ाप लेगा, तो रहमतें उतारता है, पापों को मिटाता है, और दुआ स्वीकार करता है और इस महिने में तुम लोगों का आपस में इबादतों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने को देखता है, तो फरिश्तों के पास तुम्हारे बारे में बयान करता है, तो तुम अल्लाह को अच्छे कार्ये करके दिखाओ, निःसन्देह बदबख्त वह है जो इस महिने की रहमतों से वंचित रहे. " ( अल – तबरानी)
रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया " जो व्यक्ति रमज़ान महीने का रोज़ा अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रखेगा , उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे " ( बुखारी तथा मुस्लिम)
रोज़ा और कुरआन करीम क़ियामत के दिन अल्लाह तआला से बिन्ती करेगा के रोज़ा रखने वाले , कुरआन पढ़ने वाले को क्षमा किया जाए तो अल्लाह तआला उसकी सिफारिश स्वीकार करेगा, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " रोज़ा और कुरआन करीम क़ियामत के दिन अल्लाह तआला से बिन्ती करेगा कि ऐ रब, मैं उसे दिन में खाने–पीने और संभोग से रोके रखा, तू मेरी सिफारिश उस के बारे में स्वीकार कर, कुरआन कहेगा, ऐ रब, मैं उसे रातों में सोने से रोके रखा, तू मेरी सिफारिश उस के बारे में स्वीकार कर, तो उन दोनो की सिफारिश स्वीकार की जाएगी " (मुस्नद अहमद और सही तरग़ीब वत्तरहीब)
फजर से पहले से लेकर सुर्य के डुबने तक खाने – पीने तथा संभोग से रुके रहना ही रोज़ा की वास्तविक्ता नही बल्कि रोज़ा की असल हक़ीक़त यह कि मानव हर तरह की बुराई , झूट , झगड़ा लड़ाइ, गाली गुलूच, तथा गलत व्यवहार और अवैध चीज़ो से अपने आप को रोके रखे ताकि रोज़े के पुण्य उसे प्राप्त हो, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जो व्यक्ति अवैध काम और झूट और झूटी गवाही तथा जहालत से दूर न रहे तो अल्लाह को कोई अवशक्ता नही कि वह भूका, पीयासा रहे " ( बुखारी )
यदि कोई व्यक्ति रोज़ेदार व्यक्ति से लड़ाइ झगड़ा करने की कोशिश करे तो वह लड़ाइ, झगड़ा न करे बल्कि स्थिर कहे कि मैं रोज़े से हूँ, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है " जब तुम में कोइ रोज़े की हालत में हो तो आपत्तिजनक बात न करे, जोर से न चीखे चिल्लाए, यदि कोइ उसे बुरा भला कहे या गाली गुलूच करे तो वह उत्तर दे, मैं रोज़े से हूँ। " ( बुखारी तथा मुस्लिम)
गोया कि रमज़ान महिने में अल्लाह तआला की ओर से दी जाने वाली माफी, अच्छे कामों से प्राप्त होनी वाली नेकियाँ उसी समय हम हासिल कर सकते हैं जब हम रोज़े की असल हक़कीत के साथ रोज़े रखेंगे और एक महिने की प्रयास दस महिने की कोशिश के बराबर होगी।
अल्लाह हमें और आप को इस महिने में ज्यादा से ज़्यादा भलाइ के काम, लोगों के कल्याण के काम, अल्लाह की पुजा तथा अराधना की शक्ति प्रदान करे ताकि हमारी झोली में पुण्य ही पुण्य हो, आमीन

मंगलवार, 22 जून 2010

न्याय का मज़ाक




जीवन एक बहुमुल्य और सब से प्रिय वस्तु है जिसे आज सब से अमूल्य तथा बेकार समझ लिया गया है। दुसरों की जीवन से खेलवाड़ तो सामान्य बात है शर्त है कि धनदौलत और राजनेतिक शक्ति प्राप्त हो, या मंत्रियों का साया उपलब्ध हो, सब से खेदजनक बात यह है कि हमारे देश की सब से अधिक शक्तिशाली संगठन न्यायलय और सी बी आई भी अपने कामों में बहुत प्रभावित होती है। स्वार्थी और लोभी लोग हर जगह मौजूद हैं जो सफैद को काला और काला को सफैद कर देते हैं और पीड़ितों के दुख दर्द, कष्ठ तथा परेशानियों का कोई एहसास नही करते। हमारे महान देश भारत के स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद से लेकर आज तक कड़ोरों न्याय का गला घोंट दिया गया है। जिस के कारण अपराध प्रत्येक दिन बढ़ता जा रहा है और लोगों के जीवन का मूल कुछ भी नहीं, सब से बड़ा रूपय्या है। आज से लग भग 26 वर्ष पहले, दिसंबर 1984 में भोपाल में हुई विश्व की बदतरीन औद्योगिक त्रासदी में 20,000 लोग मारे गये थे और 5,60,000 लोग प्रभावित हुए और उन में से 37,000 लोग स्थायी रूप से विकलांग हो गए थे। परन्तु 26 वर्ष की लंबी अवधि के बाद जब न्याय आया तो प्रत्येक न्याय प्रेमियों का हृदय रोने लगा और पीड़ितों को कितना दुख हुआ होगा, कल्पना से बाहर,
क्या लाखों लोगों की जीवन से खेलवाड़ करने वालों की सजा दो साल की जेल ? और जेल जाने से पहले जमानत ? क्या यह न्याय के साथ मजाक नही ?
शक्ति के दुर्उपयोग के कारण अपराध बढ रहा है और जनता की जीवन में शांती स्माप्त और भय एवं डर ने जगह बना लिया है।
अभी केंद्रीय मंत्रियों के समूह ने भोपाल गैस त्रासदी में मारे गए लोगों के परिजनों तथा विकलांग हुए लोगों के लिए मुआवजे की रकम को बढ़ाते हुए मंत्रियों के समूह ने कुछ दिनों पहले 1,500 करोड़ रुपये के पैकेज पर अंतिम फैसला किया है। केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह ने पीड़ितों को राहत तथा उनके पुनर्वास सहित विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया था। कहा जाता है कि इस समूह ने करीब 26 वर्ष पहले हुई विश्व की बदतरीन औद्योगिक त्रासदी में मारे गये लोगों के परिजन के लिए 10 लाख रुपये के मुआवजे का भुगतान करने की सिफारिश की है। त्रासदी के दौरान मिथाइल आईसोसाइनेट गैस के रिसाव के कारण स्थायी रूप से विकलांग हुए या फिर गंभीर रूप से बीमार पड़े लोगों को पांच लाख, जबकि आशिक रूप से विकलांग हुए लोगों को तीन लाख रुपये का मुआवजा मिलने की संभावना है।
यदि यह मुआवजा की रकम मृतक परिजनों तथा विकलांग और पीड़ितों के लिए पास हो जाता है तो प्रश्न यह है कि क्या मुआवजा की यह रकम उन्हें सही तरीके मिल जाएगी ? उत्तर आप देंगे।

रविवार, 2 मई 2010

ईसा (यीशु या जीसस) अलैहिस्सलाम की जवीन कथा कुरआन की रोश्नी में

ईसा (यीशु या जीसस) अलैहिस्सलाम ( उन पर अल्लाह की शान्ती हो) को अल्लाह ने कुरआन मजीद में जो स्थान दिया है जो आदर – सम्मान दिया है बिल्कुल वह इसके अधिकार तथा ह़क़्दार हैं और इस बात की पुष्ठी बाइबल भी करता है परन्तु सेक्ड़ों बाइबल का वजूद बाइबल के असुरक्षित होने पर प्रमाणित करता है। लोगों ने अपने स्वाद के लिए पवित्र बाइबल में विभिन्न कालों में परिवर्तन करते रहे। जिस के कारण बाइबल की संख्याँ बढ़ती गई।
आज आप के सामने पवित्र कुरआन के अनुसार ईसा (यीशु ) अलैहिस्सलाम की विशेष्ताओं पर विचार करेंगे।
(1) ईसा (यीशु या जीसस) अलैहिस्सलाम ( उन पर अल्लाह की शान्ती हो) को अल्लाह ने बिना बाप के पैदा किया। अल्लाह का कथन है।
“ और जब फरिश्तों ने कहा ऐ मरयम , अल्लाह तुझे अपने एक आदेश की खुशखबरी देता है, उसका नाम मसीह ईसा बिन मरयम होगा, दुनिया और आखिरत में प्रतिष्ठित होगा, अल्लाह के निकटवर्ती बन्दों में गिना जाएगा, लोगों से पालन में (पैदाईश के बाद ही) भी बात करेगा और बड़ी उम्र को पहुंच कर भी और वह एक नेक व्यक्ति होगा। यह सुनकर मरयम बोली, पालनहार, मुझे बच्चा केसे होगा ? मुझे किसी मर्द ने हाथ तक नही लगाया। उत्तर मिला, ऐसा ही होगा, अल्लाह जो चाहता है पैदा करता है। वह जब किसी काम के करने का फैसला करता है तो कहता है कि, हो जा, और वह हो जाता है। ” ( सूराः आलिइमरान, आयत क्रमांकः47)
(2) आदम और ईसा (यीशु या जीसस) अलैहिमा सलाम (उन दोनों पर अल्लाह की शान्ती हो) के बीच समानता भी है और फर्क यह कि अल्लाह तआला ने आदम को मिट्टी अर्थात बिना माता-पिता के उत्पन किया और ईसा (यीशु या जीसस) को बिना पिता के उत्पन किया।
अल्लाह तआला का कथन है “ अल्लाह के नजदीक ईसा की मिसाल आदम जैसी है कि अल्लाह ने उसे मिट्टी से पैदा किया और आदेश दिया कि हो जा और वह हो गया ” (आले-इमरानः59)
(3) निःसंदेह ईसा (यीशु या जीसस) अलैहिस्सलाम ( उन पर अल्लाह की शान्ती हो) अल्लाह के कलमे और (रूह़) हुक्म से पैदा हुए थे। अल्लाह तआला का कथन है।
“ मरयम का बेटा मसीह ईसा इसके सिवा कुछ न था कि अल्लाह का रसूल था और एक आदेश था जो अल्लाह ने मरयम की ओर भेजा और एक आत्मा थी अल्लाह की ओर से (जिसने मरयम के गर्भ में बच्चे का रूपधारण किया) ”(सूराः अन्निसाः 171)
(4) अल्लाह तआला ने ईसा (यीशु या जीसस) अलैहि सलाम (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) को संबोधित करते हुए अपने कृतज्ञा को याद दिलाया जो एहसान अल्लाह ने उन पर तथा उनके माता पर किया था। अल्लाह का कथन है।
“ फिर कल्पना करो उस अवसर की जब अल्लाह कहेगा कि ऐ मरयम के बेटे ईसा, याद कर मेरी उस नेमत को जो मैं ने तुझे और तेरी माँ को प्रदान की थी। मैं ने पवित्र आत्मा से तेरी सहायता की, तू पालने में भी लोगों से बातचीत करता था और बड़ी उम्र को पहुंचकर भी, मैं ने तुझको किताब और गहरी समझ और तौरात और इंजील की शिक्षा दी, तू मेरी अनुमति से मिट्टी का पुतला पंक्षी के रूप का बनाता और उस में फूंकता था और वह मेरी अनुमति से पंक्षी बन जाता था, तू पैदाइशी अंधे और कोढ़ी को मेरे अनुमति से अच्छा करता था, तू मुर्दों को मेरे अनुमति से जिन्दा करता था, फिर जब तू बनी इस्राईल के पास खुली निशानियाँ लेकर पहुँचा और जिन लोगों को सत्य से इन्कार था उन्होंने कहा कि ये निशानियाँ जादुगिरी के सिवा और कुछ नहीं है, तो मैंने ही तुझे उनसे बचाया ” (सूराः अल-माइदाः 110)
(5) जो लोग अल्लाह को छोड़कर ईसा (यीशु या जीसस) अलैहि सलाम (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) की पूजा तथा इबादत करते हैं तो अल्लाह ईसा (यीशु या जीसस) अलैहि सलाम (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) से प्रश्न करेंगे कि तुमने लोगों को अपनी इबादत की ओर निमन्त्रित किया तो ईसा (यीशु या जीसस) अलैहि सलाम (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) इस का इन्कार करेंगे और लोगों को ही दोषी ठहराएंगे। अल्लाह तआला ने पवित्र कुआन में फरमाया, सारांश यह कि जब अल्लाह कहेगा कि, ऐ मरयम के बेटे ईसा, क्या तूने लोगों से कहा था कि अल्लाह के सिवा मुझे और मेरी माँ को भी ईश्वर बना लो, तो वह जवाब में कहेंगे कि, पाक है अल्लाह, मेरा यह काम न था कि वह बात कहता जिसके कहने का मुझे अधिकार न था, अगर मैं ने ऐसी बात कही होती तो आप को जरूर मालूम होता, आप जानते हैं जो कुछ मेरे दिल में है और मैं नही जानता जो कुछ आपके दिल में है, आप तो सारी छिपी हकीकतों के ज्ञाता है। ”
(6) ईसा (यीशु या जीसस) अलैहि सलाम (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) ने लोगों को एक अल्लाह (प्रमेश्वर) की पूजा तथा इबादत की ओर निमन्त्रण किया था। पवित्र कुरआन में अल्लाह और ईसा (यीशु या जीसस) अलैहि सलाम (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) के बीच होने वाली बात चीत को इस प्रकार बयान किया गया है।
“ मैं ने उनसे उसके सिवा कुछ नहीं कहा जिसका आपने आदेश दिया था, यह कि अल्लाह की बन्दगी करो जो मेरा रब भी है और तुम्हारा रब भी। मैं उसी समय तक उनका निगराँ था जब तक मैं उनके बीच था। जब आपने मुझे वापस बुला लिया तो आप उनपर निगराँ थे और आप तो सारी ही चीजों पर निगराँ हैं। अब अगर आप उन्हें सजा दें तो वे आपके बन्दें हैं और अगर माफ कर दें तो आप प्रभुत्वशाली और तत्त्वदर्शी हैं। ”
(सूराः अल-माइदा,119)
(7) ईसा (यीशु या जीसस) अलैहि सलाम (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) ने अपने सन्देष्ठा होनो का एलान किया था और भविष्यवाँणी किया था के मेरे पक्षपात एक सन्देष्ठा आने वाला होगा जिस का नाम “ अहमद ” होगा। ““
और याद करो मरयम के बेटे ईसा की वह बात जो उसने कही थी कि ऐ , इसराइल के बेटों, मैं तुम्हारी ओर अल्लाह का भेजा हुआ रसूल हूँ, पुष्टि करनेवाला हूँ उस तौरात की जो मुझ से पहले आई हुई मौजूद है, और खुशखबरी देने वाला हूँ एक रसूल की जो मेरे बाद आएगा जिसका नाम अहमद होगा।” ” (सूराः अस-सफ्फ,6)
(8) जब ईसा (यीशु या जीसस) अलैहि सलाम (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) ने अपने अनुयायियों से भय और अधर्म को महसूस किया तो ऐलान किया कि कौन धर्म के लिए मेरी सहायता करेगा ?
गोया कि ईसा (यीशु या जीसस) अलैहि सलाम (उन पर अल्लाह की शान्ती हो) भी मानव और मनुष्य थे जिन्हें सहायक की आवश्यकता थी ताकि धर्म के प्रचार के लिए उनके मददगार और सहयोगी रहे ,
“ जब ईसा ने महसूस किया कि इसराईल की संतान अधर्म और इनकार पर आमादा है तो उसने कहा , कौन अल्लाह के मार्ग में मेरा सहायक होता है ? हवारियों (साथियों) ने उत्तर दिया , हम अल्लाह के सहायक हैं , हम अल्लाह पर ईमान लाए , गवाह रहो कि हम मुस्लिम (अल्लाह के आज्ञाकारी) हैं ” (सूराः आले-इमरानः52)
(9) अल्लाह तआला ने ईसा (अलैहिस सलाम) को खबर दे दिया था कि तुम को हम अपने पास बुलाने वाले हैं और लोगों के षड़यन्त्र से सुरक्षित रखेंगे जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है “ जब उसने कहा ऐ, ईसा अब मैं तुझे वापस ले लूंगा और तुझको अपनी ओर उठा लूंगा और जिन्हों तेरा इनकार किया है उनसे ( उनकी संगत से और उनके गंदे वातावरण में उनके साथ रहने से) तुझे पाक कर दूँगा और तेरे अनुयायियों को क़ियामत तक उन लोगों के ऊपर रखूँगा जिन्होंने तेरा इनकार किया है। ” (सूराः आले-इमरानः55)
(10) अल्लाह तआला ने यहुदीयों की आस्था का इनकार किया जो वह कहते हैं कि यीशु (जीसस) को हमने क़त्ल कर दिया और क्रिस्चन के आस्था का भी इनकार किया जो वह कहते हैं कि यीशु (जीसस) लोगों को पापों से मुक्ति देने के लिए अपने आप को बलिदान कर दिया बल्कि इन चिज़ों से ऊंचा और बेहतर आस्था पेश किया जो यीशु (जीसस) के स्थान को प्रमेश्वर के पास बड़ा करता है। अल्लाह तआला का कथन कुरआन शरीफ में है।
“ और वह खुद कहा कि हमने मसीह ईसा (यीशु या जीसस) मरयम के बेटे अल्लाह के रसूल का क़त्ल कर दिया, हालाँकि वास्तव में इन्हों ने न उसकी हत्या की, न सूली पर चढ़ाया बल्कि मामला इनके लिए संदिग्ध कर दिया गया, और जिन लोगों ने इसके विषय में मतभेद किया है वह भी वास्तव में शक में पड़े हुए हैं, उनके पास इस मामले में कोई ज्ञान नहीं हैं, केवल अटकल पर चल रहे हैं, उन्हों ने मसीह को यक़ीनन क़त्ल नहीं किया – बल्कि अल्लाह ने उसको अपनी ओर उठा लिया, अल्लाह ज़बरदस्त त़ाक़त रखने वाला और तत्त्वदर्शी है। ” (सूराः अन्निसाः157- 158)

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

महिलाओं का स्थान



इस्लाम ने महिलाओं को जो अधिकार दिया है, जो आदर–सम्मान किया है पूरी दुनिया वाले उस जैसा दे ,यह तो दूर की बात है, उस के निकट भी नहीं पहुंच सकते बल्कि अपने लोभ तथा स्वाद के कारण दिखाने के लिए कुछ शौर मचाते, सड़क जाम करते और कुछ प्रेस कान्फरेन्स करके महिलाओं के अधिकारों का रोना रोते, और एक दुसरे पर कीचर उछालते और महिला दिवस मना कर खामूश हो जाते हैं और कुच्छ खबर रिपोरटर भी कुच्छ सुनी सुनाइ बात या समाज में भैली हुई खराबी को देख कर एक लम्बा चौरा आरटिकल लिख देते हैं और इस्लाम पर आरोपों की लाइन लगा देते हैं और अपनी बेवक़ुफी को सब पर प्रकट करते हैं।
इस्लामिक धर्मग्रंथों में महिलाओं और पुरुषों के बीच कोई अन्तर नही बल्कि प्राकृतिक शारीरिक बनावट के अनुसार कुच्छ वस्तु को पुरुषों के लिए वर्जित किया गया हैं। तो कुच्छ वस्तु को महिलाओं के लिए वर्जित किया गया हैं और महिलाओं को जीवन के प्रत्येक मोड़ पर एक सुन्दर स्थान दी गई है जो उस के आदर तथा सम्मान को अधिक अच्छा करता हैं।
निः संदेह महिला का एक महान स्थान है और इस्लाम ने उसे उसके योग्य स्थान पर स्थापित किया है और जीवन के हर मोड़ पर एक सुरक्षक दिया है जो उस की देख भाल करे और महिला को सम्मान किया है और उसके कल्याण के लिए उसके पुरूष संबंधी पर जिम्मेदारी डाल दिया है जो जीवन के हर मरहले पर उसके आवश्यकता को पूरा करे।
मानव पर ईश्वर के बाद सब से अधिकतम अधिकार माता का है जिसे इस्लाम ने विभिन्न तरीके से प्रमाणित किया है और मानव जीवन में सब से महत्वपूर्ण समय को याद दिलाया है। “ और हम्ने इन्सानें को उस के माता पिता के सम्बन्ध में आज्ञा दी है कि उस की माता ने कष्टों पर कष्ट उठा कर उसे गर्भ में रखा तथा उसकी दूध छुड़ायी दो वर्षों में है । कि तुम मेरी तथा अपने माता-पिता की कृतज्ञता व्यक्त कर , मेरी ही ओर लौटकर आना है।” ( सुरः लुक्मान, 14)
और प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया जैसा कि अबू हुरैरा ( रज़ी अल्लाहु अन्हु) वर्णन करते हैं कि " एक आदमी रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास आया और कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! कौन मेरे अच्छे व्यवहार तथा खूब सेवा का ह़क़दार है ? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उत्तर दियाः तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ? आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ? आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ? आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारा बाप। " (सह़ीह़ुल बुखारीः ह़दीस संखियां- 113508)
इसी तरह इस्लाम ने स्त्री को आदर- सम्मान दिया जब वह पत्नी हो, यदि नापसन्द हो तो भी उसे अपने पास रखे अल्लाह ने उस में दुसरी बहुत सी भलाई उत्पन की है जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है। “ उनके साथ भले ढंग से रहो, सहो अगर वे तुम्हें पसन्द न हों तो होसकता है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो मगर अल्लाह ने उसी में बहुत कुछ भलाई रख दी हो ” ( सूरः निसा, 19)
प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने लोगो को उभारा कि वह अपने पत्नियों के साथ अच्छा व्यवहार करे, फरमाने रसूल है।
“ तुम में सब से बेहतर व्यक्ति वह है जो अपने पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार करे और मैं अपने पत्नियों के साथ अच्छा सुलूक करता हूँ।”
और फरमाया “ दुनिया एक अच्छी चीज़ है और दुनिया की सब से अच्छी चीज़ नेक महिला है ” ( सही मुस्लिम ,हदीसः क्रमाक,1467 )
इसी तरह इस्लाम ने बेटी की हालत में स्त्री को आदर- सम्मान दिया है और उसकी पालन-पोशन और शिक्षा-दिक्षा का अच्छा व्यवस्था करने की आज्ञा दी है। प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने लेगों को बेटी की उत्तम तरबीयत पर उभारा है और फरमाया “ जिसने दो बालिकाओं की अच्छी तरह से पालन पोशन किया यहाँ तक कि वह दोनों जवान हो जोए तो मैं और वह व्यक्ति क़ियामत के दिन एक साथ होंगे ” ( सही मुस्लिम, हदीस न, 2631)
कितना ही खुश किस्मत होगा वह व्यक्ति जिसे प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का साथ नसीब हो, और जिसे प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का साथ नसीब होगा वह निश्चित तौर पर जन्नत में जायेगा।
और प्रिय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया “ जिस के पास बालिका हैं और उसने उन बालिकाओं का अच्छा व्यवहार तथा पालन पोशन किया तो यह बालिकायें उस के लिए जहन्नम ( नरक) से मुक्ति का कारण बनेगी ” ( सही मुस्लिम, हदीस न, 2629)
इसी तरह इस्लाम ने बहिन की हालत में स्त्री को आदर- सम्मान दिया है प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है। “ जिस किसी के पास तीन बेटियाँ या तीन बहिनें हों और उस ने उन के साथ अच्छा व्यवहार तथा पालन पोशन किया तो वह निश्चित तौर पर जन्नत ( सवर्ग) में प्रवेश करेगा ” ( मुस्नद अहमद, 43/3)
इसी तरह इस्लाम ने महिला को आदर- सम्मान दिया है जबकि वह विद्घवा हो , और उसकी खबर गीरी की जाए, उस के जीवन यापन के लिए आर्थिक सहायता की जाए बिना किसी संबंध के और संसारिक लोभ तथा स्वाद के बल्कि इस सहायता का बदला अल्लाह के पास प्राप्त करने का लक्ष्य हो, जैसा कि प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है। जिसे अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) वर्णन करते है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा “ विद्धवा और फक़ीर पर रूपिया खर्च करने वाला और उन की देख भाल करने वाला अल्लाह के रास्ते में दिलों जान से लगे रहने वाले की तरह है, और (एक दुसरी रिवायत में है) हमेशा नमाज़ पढ़ने वाले और हमेशा रोज़ा रखने वाले के सवाब (पुण्य) के बराबर उसे सवाब (पुण्य) मिलेगा । " (सह़ी बुखारीः ह़दीस संख्यां- 6007)
इसी तरह इस्लाम ने महिला को आदर- सम्मान दिया है जबकि वह मौसी (माँ की बहिन) हो, जिसे बरा बिन आज़िब (रज़ी अल्लाहु अन्हु) वर्णन करते है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा “ मौसी माता के स्थान पर होती हैं । ” (सह़ी बुखारीः ह़दीस संख्यां- 4251)
यह तो कुछ उदाहरण दिया हूँ किन्तु इस्लाम ने महिला को बहुत ही ऊंचे पद पर बैठाया है जो उसके शारीरिक तथा मांसिक और प्राकृतिक बनावट के अनुकूल है

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एसे थे


मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कुछ विशेष्ता तथा गुण

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जन्म दिन 9 रबीउल अव्वल आमुल फील का पहला वर्ष है जो कि ईसवी वर्ष के अनुसार 22 अप्रील 571 है। जैसा कि इतिहासिक विद्वानों ने प्रामाणित किया है। मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस्लाम के प्रचार में बहुत कष्ट उठाया। विरोधी लोगों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमक को शारीरिक और मान्सिक टार्चर किया परन्तु आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर प्रकार की यातनाओं को झेलते हुए अच्छे आचार, शिक्षा, सदाचार तथा व्यवहार को फैलाते रहे। ईश्वर के संदेश और आज्ञा को लोगों तक पहुंचाते रहे और इस रास्ते में आने वाली परिशानियों पर सब्र करते रहे। यहां तक कि ईश्वर ने उन्हें अपने पास बुला लिया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम 23 वर्ष की कम अविधि में ही ईश्वर के संदेश को पुरे अरब द्विप में फैला दिया। एसे महापुरूष जो स्वयं भुके रहके दुसरों को खिलाते रहे। उन के जीवन कथा के अन्गिनित पहलु में कुच्छ बातें आप के साम्ने रखता हूँ और ईश्वर से प्रार्थाना करता हूँ कि अल्लाह हमें और आप को मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीके के अनुसार चलने की शक्ति प्रदान करे।


मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भेंट के समय सब से पहले सलाम करते।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर समय अल्लाह का नाम लिया करते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सब लोगों से अधिक दान शील थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सब लोगों से अधिक बहादुर थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसी स्थान पर बैठ जाते जहाँ जगह मिल जाती।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम झूट से घृणा करते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दुनिया की सामग्री से अरूचि रखते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम चटाई पर सोते और थोड़ी वस्तु पर गुज़ारा करते और उनका तक्या खोजूर के रेशे से बनाया गया था।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम गरिबों के साथ उठा बैठा करते।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कुंवारी लड़की से अधिक लज्जा करते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कभी कोई चीज़ मांगी गई तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इन्कार नहीं किया।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जाहिल (मुर्ख) को क्षमा कर देते और पीड़ा पर सब्र करते ।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बात करने वालों की ओर पूरा ध्यान देते हुए मुस्कुराते और प्रेम से उसका हाथ पकड़े रहते यहाँ तक स्वयं वह छोड़ दोता।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बात करने वालों की ओर पूरी तरह मोतवज्जा होते यहाँ तक कि वह समझता कि वह उनके पास सब से प्रिय है।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नापसन्द करते कि कोइ उस के लिए खड़ा हो, जैसा कि मना करते कि उनकी प्रशंसा में निश्चित सिमा को पार किया जाए।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब किसी वस्तु को नापसन्द करते तो उन्के चेहरे से पता चल जाता।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सिवाए अल्लाह के पद में अपने हाथ से किसी को तक्लिफ न पहुंचाया ।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को वह कार्य (पुण्य) सब से अधिक प्रिय था जो निरंतरता से किया जाए यदि वह कम ही क्यों न हो,

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों को हल्की नमाज पढ़ाते थे और स्वयं नमाज़ बहुत लम्बी पढ़ते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सोते समय अपने दांये हाथ को दांये गाल के निचे रखते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को जब भी शुभ खबर प्राप्त होती तो अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए सज्दा करते थे।
मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब किसी समुदाय से डरते तो अल्लाह से प्रार्थाना करते " ऐ अल्लाह, हम तुझ ही को उन के मुकाबले में करते हैं और उनकी शड़यंत्र से तेरी शरण में आते हैं।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब प्रिय वस्तु देखते तो कहते थे, सम्पूर्ण प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है जिस के दया से अच्छी चीज़ होती हैं और जब अप्रिय वस्तु देखते तो कहते, हर हाल में सम्पूर्ण प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने लिए पहले दुआ करते फिर दुसरों के लिए दुआ करते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब फजर की दो रकअत सुन्नत पढ़ लेते तो दांये करवट थोड़ासा लेटते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब शव को दफना देते तो वहां खड़ा होते और कहते " अपने भाइ के लिए प्रार्थाना करो कि अल्लाह उसे क्षमा कर दे और उसे सही उत्तर देने की शक्ति प्रदान करे, क्योंकि अभी उस से प्रश्न किया जाएगा।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सोते समय दातौन अपने माथे के नीचे ही रखते और जब भी आंख खुलती तो दातौन करते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कभी भी किसी वस्तु में नक्स न निकाला।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कभी भी किसी भोजन में नक्स न निकाला। यदि इच्छा हुइ तो खाते थे , नही तो छोड़ देते,

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी तीन उंगलियों से खाते और हाथ पोंछ्ने से पहले उसे चाट लेते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी शक्ति के अनुसार दांये ओर से आरम्भ करने को पसन्द करते थे। चाहे पवित्रता हो, या जूता – चप्पल पहनने में या अपने हर कार्य में,

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुर्य के निकल्ने के कुछ समय के बाद चार रकअत नमाज़ पढ़ते और कभी जितना अल्लाह चाहे ज़्यादा पढ़ते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सोमवार और गुरूवार को रोज़ा रखने का खास खयाल करते थे।

मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उत्तम, महान सद्व्यवहार के होते हुए भी अल्लाह से प्रार्थना करते थे कि अल्लाह उन्के सदाचार को अच्छा बनाऐ, और बुरे व्यवहार से अल्लाह की शरण लेते थे। एसे महान व्यक्ति मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अन्गिनित दरूदु सलाम हो,

आइशा (रज़ी अल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दुआ करते थे " ऐ अल्लाह तू ने मुझे रूपवान बनाया है उसी तरह मेरे व्यवहार को सुन्दर तथा अच्छा कर दे।

अबू हुरैरो (रज़ी अल्लाहु अन्हु) वर्णन करते हैं कि सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दुआ करते थे " ऐ अल्लाह मैं तेरे शरण में आता हूँ, बुरे व्यवहार से ,धर्म भ्रष्ट से, और असभ्य (बदबख्ती) से

यही वह उत्तम शिक्षा और आदर्श जीवन कथा है जो हमारे लिए अनुकरणीय है और यही हमारे लिए मोक्षीय है, और अल्लाह तआला ने हमें रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आज्ञा पालन का हुक्म दिया है।

अल्लाह तआला का कथन है," और जो लोग अल्लाह और रसूल के आज्ञा का पालन करेंगे वह उन लोगों के साथ होंगे जिन पर अल्लाह ने इनाम फरमाया है अर्थात नबी , सच्चे लोग, और शहीदों और अच्छे लोग , कैसे अच्छे हैं यह साथी जो किसी को प्राप्त हों "। (सूरःनिसाः70)

अल्लाह तआला का कथन है," वास्तव में तुम लोगों के लिए अल्लाह के रसूल में एक उत्तम आदर्श था प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और अन्तिम दिन की आशा रखता हो, और अल्लाह को ज़्यादा याद करे "। ( सूराः अहज़ाबः २१)
तो वास्तविक मोमिन वह व्यक्ति है जो प्रिय रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पूर्ण रूप से जीवन के हर मोड़ पर अनुकरण करे और उनके सुन्नत पर हर तरह से अमल करे ।
अल्लाह से दुआ करता हूँ कि हमें और आप को मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीके के अनुसार अनुकरण की शक्ति प्रदान करे। आमीन

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

गणतंत्र दिवस और देशवासियों को हमारी शुभ कामनाऐ










आज 26/01/2010 गणतंत्र दिवस है जिस के समारोह कार्यक्रम में देश की सैन्य ताकत, समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता का नज़ारा देखने को मिला और यह हमारा हक है कि हम अपनी ताकत और शक्ति का प्रदर्शन करे, अपनी संस्कृति-रीती- रवाज से दुनिया को परिचय करवाए और प्राचीन-समृद्ध संस्कृति और सभ्यता से खुद को जोड़े रखते हुए विश्व शक्ति के उच्च स्थान पर ब्राजमान हो, यही हमारी खाहिश और ईश्वर से दुआ भी
आजादी के बाद जिन लोगों को सत्ता मिली वे स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े ऊंचे आदर्शो और मूल्यों वाले नेता थे। उनके नेतृत्व में देश के विकास के लिए कई बुनियादी कार्य किए गए, लेकिन दूसरी पीढ़ी के नेताओं और उस के बाद के नेताओं के हाथ में सत्ता आते ही मूल्यों और आदर्शो के उल्लंघन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह जारी है और बिते समय के साथ अधिक से अधिकतम हो रहा है।
हमारे ऊंचे आदर्शो और मूल्यों वाले नेताओं ने जो अनूठा संविधान का निर्माण किया और जो उनका सपना था उस की एक झलक आप को दिखाता हूँ,
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक बार संविधान सभा में कहा था कि " मैं आशा करता हूं कि जो संविधान सभा बनाने जा रही है, वह भूखों को रोटी, वस्त्रहीनों को वस्त्र और बेघरों को छत देगा। अगर संविधान यह सब कुछ न कर सका तो मेरे लिए वह कागज के टुकड़े से अधिक कुछ नहीं होगा। "
डा. अंबेडकर ने इस संविधान के प्रति एक बार कहा कि " लोग कहते हैं कि मैं इस संविधान का जनक हूं। यह बिल्कुल गलत है। मैंने वह लिखा, जो मुझे लिखने के लिए कहा गया। अगर मुझे अवसर मिले तो मैं पहला व्यक्ति हूंगा, जो इस संविधान को जला दूं। यह अच्छा नहीं है और किसी के काम का नहीं है। बाद में जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि हमने मंदिर तो अच्छा बनाया था, लेकिन अगर उसमें भगवान की मूर्ति रखने के बजाय राक्षस की मूर्ति स्थापित कर दी गई हो तो मैं और क्या कह सकता हूं "
संविधान प्रारूप समिति के सदस्य मोहम्मद सादुल्ला ने एक बार कहा।
" मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे जितना भी अच्छा या खराब क्यों न हो, यदि वे लोग जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, खराब निकलें तो निश्चित रूप से संविधान खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान कितना भी खराब क्यों न हो, अगर इसे अमल में लाने वाले अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा "
भारतीय संविधान में सभी को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनेतिक न्याय देने का वचन दिया गया है, लेकिन राजनीतिक सत्ता अब घटनाओं, प्रक्रियाओं, संसाधनों और अधिकारियों के व्यवहार को सार्वजनिक हित में प्रभावित करने और लोगों को न्याय देने का माध्यम नहीं रह गई है। इसकी जगह राजनीतिक सत्ता का उद्देश्य निजी स्वार्थो की पूर्ति और सार्वजनिक धन के बेजा इस्तेमाल, विशेषाधिकार, संरक्षण, तानाशाही और विरोधी विचारधारा के लोगों को परेशान करना या जनता को परेशान करना हो गया है।
अपराधी और माफिया तत्व, जिनके हाथ खून से रंगे हुए हैं, विभिन्न दलों में प्रवेश करके माननीय बन गए हैं। राजनेता भी अब जनता से दूर कमाडो के घेरे में रहने लगे हैं। बेईमान लोगों ने राज्य की शक्तियों को येन केन प्रकारेण हस्तगत कर लिया है और वे अपने निजी स्वार्थो को पूरा करने में लगे हैंसत्ता का दुरूपयोग करते हैं। हमारी राज्य व्यवस्था अपनी जनता को पानी, बिजली के साथ-साथ रोजी रोटी मुहैया कराने में विफल हो रही है परन्तु उनके बैंक बाइलेंस में इतना पैसा होता कि दो चार वंश बिना किसी चिंता के मैज मस्ती कर सकती है।
दुखद आश्चर्य यह है कि भ्रष्टाचार में संलिप्त लोग अब शर्मसार नहीं होते बल्कि सीना ठोक कर चलते हैं और पैसा तथा राजनेतिक शक्ति के बल बुते झूट को सत्य और सत्य को झूट प्रामाणित कर देते हैं। चाहे वह आर्थिक घोटाला हो, या बलत्कार या मडर कैस हो,
जनता को केवल पानी, बिजली के साथ-साथ रोजी रोटी और शान्ती चाहिये परन्तु हमार राजनेतिक दल इसे प्राप्त कराने में पुरी तरह विफल हैं ।
अल्लाह से बिन्ती करता हूँ कि अल्लाह हमें और हमारे देशवासियो के समस्या का समाधान करे और अच्छी जीवन दे जो परिशानियों से मुक्त हो,

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?

महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ? महापाप (बड़े गुनाह) क्या हैं ?   महापाप (बड़े गुनाह) प्रत्येक वह कार्य जिस का पाप बहुत ज़्य...